प्लासी का युद्ध का परिणाम
प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में २२ मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे प्लासी नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नबाव सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। किंतु इस युद्ध को कम्पनी की जीत नही मान सकते कयोंकि युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। नवाब की तो पूरी सेना ने युद्ध मे भाग भी नही लिया था युद्ध के फ़ौरन बाद मीर जाफ़र के पुत्र मीरन ने नवाब की हत्या कर दी थी। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है।
अनुक्रम
1 ब्रिटिश उदय
2 कम्पनी को हुए लाभ
3 भारतीय राजनीति पर पड़े प्रभाव
4 इन्हें भी देखें
5 सन्दर्भ
6 विस्तृत पठन
7 बाहरी कड़ियाँ
ब्रिटिश उदय
इस युद्ध से कम्पनी को बहुत लाभ हुआ वो आई तो व्यापार हेतु थी किंतु बन गई राजा। इस युद्ध से प्राप्त संसाधनो का प्रयोग कर कम्पनी ने फ्रांस की कम्पनी को कर्नाटक के तीसरे और अन्तिम युद्ध मे निर्णायक रूप से हरा दिया था। इस युद्ध के बाद बेदरा के युद्ध मे कम्पनी ने ड्च कम्पनी को हराया था।इस युद्ध की जानकारी लन्दन के इंडिया हाउस लाइब्ररी में उपलब्ध है जो बहुत बड़ी लाइब्ररी है और वहां भारत की गुलामी के समय के 20 हज़ार दस्तावेज उपलब्ध है। वहां उपलब्ध दस्तावेज के हिसाब से अंग्रेजों के पास प्लासी के युद्ध के समय मात्र 300 सिपाही थे और सिराजुदौला के पास 18 हजार सिपाही।
अंग्रेजी सेना का सेनापति था रोबर्ट क्लाइव और सिराजुदौला का सेनापति था मीरजाफर। रोबर्ट क्लाइव ये जानता था की आमने सामने का युद्ध हुआ तो एक घंटा भी नहीं लगेगा और हम युद्ध हार जायेंगे और क्लाइव ने कई बार चिठ्ठी लिख के ब्रिटिश पार्लियामेंट को ये बताया भी था। इन दस्तावेजों में क्लाइव की दो चिठियाँ भी हैं। जिसमे उसने ये प्रार्थना की है कि अगर प्लासी का युद्ध जीतना है तो मुझे और सिपाही दिए जाएँ। उसके जवाब में ब्रिटिश पार्लियामेंट के तरफ से ये चिठ्ठी भेजी गयी थी की हम अभी (1757 में) नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं और प्लासी से ज्यादा महत्वपूर्ण हमारे लिए ये युद्ध है और इस से ज्यादा सिपाही हम तुम्हे नहीं दे सकते।
रोबर्ट क्लाइव ने तब अपने दो जासूस लगाये और उनसे कहा की जा के पता लगाओ की सिराजुदौला के फ़ौज में कोई ऐसा आदमी है जिसे हम रिश्वत दे लालच दे और रिश्वत के लालच में अपने देश से गद्दारी कर सके। उसके जासूसों ने ये पता लगा के बताया की हाँ उसकी सेना में एक आदमी ऐसा है जो रिश्वत के नाम पर बंगाल को बेच सकता है और अगर आप उसे कुर्सी का लालच दे तो वो बंगाल के सात पुश्तों को भी बेच सकता है। और वो आदमी था मीरजाफर और मीरजाफर ऐसा आदमी था जो दिन रात एक ही सपना देखता था की वो कब बंगाल का नवाब बनेगा। ये बातें रोबर्ट क्लाइव को पता चली तो उसने मीरजाफर को एक पत्र लिखा। कम्पनी ने इसके बाद कठपुतली नवाब मीर जाफर को सत्ता दे दी किंतु ये बात किसी को पता न थी के सत्ता कम्पनी के पास है। नवाब के दरबारी तक उसे क्लाइव का गधा कहते थे कम्पनी के अफ़सरों ने जम कर रिश्वत बटोरी बंगाल का व्यापार बिल्कुल तबाह हो गया था इसके अलावा बंगाल मे बिल्कुल अराजकता फ़ैल गई थी।
प्लासी युद्ध के कारण और परिणाम
आधुनिक भारत के इतिहास में प्लासी युद्ध का अत्यंत महत्व है। इस युद्ध के द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल के नवाब सिराजुददौला को पराजित कर बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली। इस लिए इस युद्ध को भारत के निर्णायक युद्धों में विशिष्ट स्थान उपलब्ध है। बंगाल मुगल साम्राज्य का एक अभिन्न अंग था। परन्तु औरंगजेब की मृत्यु के बाद इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रांतों में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। जिसमें अलवर्दी खाँ ने बंगाल पर अपना अधिकार कर लिया। उन्हें कोई पुत्र नहीं था। सिर्फ तीन पुत्रियाँ थी। बड़ी लड़की छसीटी बेगम नि:सन्तान थी। दूसरी और तीसरी से एक- एक पुत्र थे। जिसका नाम शौकतगंज, और सिराजुद्दौला था। वे सिराजुद्दौला को अधिक प्यार करते थे। इसलिए अपने जीवन काल में ही उसने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। 10 अप्रैल 1756 को अलवर्दी की मृत्यु हुई। और सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना परन्तु शुरु से ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ उसका संघर्ष अवश्यभावी हो गया। अंत में 23 जून 1757 को दोनों के बीच युद्ध छिड़ा जिसे प्लासी युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध के अनेक कारण थे जो इस प्रकार है।
आंतरिक संघर्ष-
गद्दी पर बैठते ही सिराजुद्दौला को शौकतगंज के संघर्ष का सामना करना पड़ा क्योंकि शौकतगंज नवाब बनना चाहता था। इसमें छसीटी बेगम तथा उसके दिवान राजवल्लाव और मुगल सम्राट का समर्थन उसे प्राप्त था इस लिए सिराजुद्दौला ने सबसे पहले उस आन्तरिक संघर्ष को सुलझाने का प्रयास किया। क्योंकि इसी के चलते बंगाल की राजनीति में अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था नवाब ने शौकतगंज की हत्या कर दी। और इसके पश्चात उसने अंग्रेजों से मुकाबला करने का निश्चय किया।
अंग्रेज द्वारा नवाब के विरुद्ध षडयंत्र-
प्रारंभ से ही अंग्रेजों की आखें बंगाल पर लगी हुई थी। क्योंकि बंगाल एक उपजाऊ और धनी प्रांत था। अगर बंगाल पर कम्पनी का अधिकार हो जाता तो उसे अधिक से अधिक धन कमाने की आशा थी। इतना ही नहीं वे हिन्दु व्यापारियों को अपनी ओर मिलाकर उन्हें नवाब के विरुद्ध भड़काना शुरु किया नवाब इसे पसन्द नहीं करता था।
व्यापारिक सुविधाओं का उपयोग-
मुगल सम्राट के द्वारा अंग्रेजों को निशुल्क सामुद्रिक व्यापार करने की छूट मिलि थी लेकिन अंग्रेजों ने इसका दुरुपयोग करना शुरु किया। वे अपना व्यक्तिगत व्यापार भी नि:शुल्क करने लगे और देशी व्यापारियों को बिना चुंगी दिए व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। इससे नवाब को आर्थीक क्षति पहुँचती थी। नवाब इन्हें पसन्द नहीं करता था जब, उन्होने व्यापारिक सुविधाओं के दुरुपयोग को बन्द करने का निश्चय किया तो अंग्रेज संघर्ष पर उतर आए।
अंग्रेजों द्वारा किले बन्दी-
इस समय यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ने की आशंका थी। जिसमें इंगलैण्ड और फ्रांस एक दूसरे के विरुद्ध लड़ने वाले थे अत: दूसरे देश में भी जो अंग्रेज और फ्रांसीसी थे। उन्हे युद्ध की आशंका थी। इसलिए अपनी- 2 स्थिति को मजबूत करने के लिए उन्होनें किलेबन्दी करना शुरु किया। नवाब इसे बर्दास्त नहीं कर सकता था।
अंग्रेज द्वारा सिराजुद्दौला को नवाब की मान्यता नहीं देना-
बंगाल की प्राचीन परम्परा के अनुसार अगर कोई नया नवाब गद्दी पर बैठता था तो उस दिन दरवार लगती थी। और उसके अधीन निवास करने वाले राजाओं, अमीरों या विदेशी जातियों के प्रतिनिधियों को दरबार में उपस्थित हो कर उपहार भेट करना पड़ता था। कि वे नये नवाब को स्वीकार करते हैं। परन्तु सिराजुद्दौला के राज्यभिषेक के अवसर पर अंग्रेजों का कोई प्रतिनिधि दरबार में हाजिर नहीं हुआ। क्योंकि वे सिराजुद्दौला को नवाब नहीं मानते थे इसके चलते भी दोनों के बीच संघर्ष की संम्भावना बढ़ती गई।
नवाब बदलने की कोशिश-
अंग्रेज सिराजुद्दौला को हटा कर किसी ऐसे व्यक्ति को नवाब बनाना चाहते थे जो उसके इशारे पर चलने के लिए तैयार हो इसके लिए अंग्रेजों ने प्रयास करना शुरु किया। ऐसी परिस्थिति में संघर्ष टाला नहीं जा सकता था।
कलकत्ता पर आक्रमण-
जब नवाब ने किले बंदी करने को रोकने का आदेश जारी किया तो अंग्रेजों ने उसपर कोई ध्यान नहीं दिया वो किले का निर्माण करते रहे। इसपर नवाब क्रोधित हो उठा और 4 जुन 1756 को कासिमबाजार की कोठी पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेज सैनिक इस आक्रमण से घबड़ा गए और अंग्रेजों की पराजय हुई और कासिम बाजार पर नवाब का अधिकार हो गया। इसके बाद नवाब ने शिघ्र ही कलकत्ता के फोर्ट विलिय पर आक्रमण किया यहाँ अंग्रेज सैनिक भी नवाब के समक्ष टीक नहीं पाया और इसपर भी नवाब का अधिकार हो गया। इस युद्ध में काफी अंग्रेज सैनिक गिरफ्तार किये गये।
काली कोठरी की दुर्घटना-
उपर्युक्त लड़ाई में नवाब ने 146 अंग्रेज सैनिकों को कैद कर लिया तो उसे एक छोटी सी अंधेरी कोठरी में बन्द कर दिया इसकी लम्बाई 18 फिट और चौड़ाई 14- 10 फिट थी। यह अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया था और इसमें भारतीय अपराधियों को बन्द किया जाता था। चुँकि गर्मी का दिन था और युद्ध के परिम थे 123 सैनिकों की मृत्यु दम घुटने के कारण हो गई और 23 सैनिक बचे जिसमें हाँवेल एक अंग्रेज सैनिक भी था। उसी के इस घटना की जानकारी मद्रास के अंग्रेजों को दी। इसी दुर्घटना को काली कोठरी की दुर्घटना के नाम से जाना जाता है। इसके चलते अंग्रेजों का क्रोध भड़क उठा और वे नवाब से युद्ध की तैयारी करने लगे।
अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता पर पुन: अधिकार-
अपनी पराजय का बदला लेने के लिए अंग्रेज ने शीघ्र ही कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। इस समय नवाब ने मानिकचन्द को कलकत्ता का राजा नियुक्त किया था। लेकिन वह अंग्रेजों का मित्र और शुभचिन्तक था। फलत: अंग्रेजों की विजय हुई कलकत्ता नवाब के चंगुल से मुक्त हो गया। 9 फरवरी 1757 को दोनों के बीच अली नगर की संधि हुई और अंग्रेजों को फिर से सभी तरह के व्यवहारिक अधिकार उपलब्ध हो गया।
फ्रांसीसीयों पर अंग्रेजों का आक्रमण-
अंग्रेजों ने फ्रांसीसीयों की वस्ती चन्द नगर पर आक्रमण कर दिया। और उसे अपने अधिन कर लिया। फ्रांसिसी नवाब के मित्र थे इसलिए नवाब इस घटना से काफी क्षुब्ध थे।
मीरजाफर के साथ गुप्त संधि –
इसी समय अंग्रेजों ने नवाब को पदच्युत करने के लिए एक षडयंत्र रचा। इसमें नवाब के भी कई लोग शामिल थे। जैसे- रायदुर्लभ प्रधान सेनापति मीरजाफर और धनी व्यापाकिर जगत सेवक आदि। अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने का प्रलोभन दिया और इसके साथ गुप्त संधि की इस संधि के पश्चात नवाब पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होने अली नगर की संधि का उलंघन किया है और उसी का बहाना बनाकर अंग्रेज ने नवाब पर 22 जुन 1757 को आक्रमण कर दिया। प्लासी युद्ध के मैदान में घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ मीरजाफर तो पहले ही अंग्रेजों से संधि कर चुका था फलत: नवाब की जबरदस्त पराजय हुई। अंग्रेजों की विजय हुई। नवाब की हत्या कर दी गई और मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया।
प्लासी युद्ध के परिणाम-
प्लासी युद्ध के द्वारा बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। अंग्रेजों को नवाब बनाया गया। प्लासी का युद्ध वास्तव में कोई युद्ध नहीं था यह एक षडयंत्र और विश्वासघाति का प्रदर्शन था प्रसिद्ध इतिहासकार ‘पानीवकर’ के अनुसार प्लासी का युद्ध नहीं, परन्तु इसका परिणाम काफी महत्वपूर्ण निकला। इसलिए इसे विश्व के निर्णायक युद्धों में स्थान उपलब्ध है। क्योंकि इसी के द्वारा बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। क्लाइव ने इस युद्ध को क्रांति की संज्ञा दी है। वास्तव में यह एक क्रांति थी क्योंकि इसके द्वारा भारतीय इतिहास की धारा में महान परिवर्तन आ गया और एक व्यापारिक संस्था ने बंगाल की राजनितिक बागडोर अपने हाथों में ले ली। इसके विभिन्न तरह के परिणाम दृष्टिगोचर होते हैं।
राजनीतिक परिणाम-
इसके राजनीतिक परिणाम भारत के लिए घातक सिद्ध हुआ। इसके द्वारा एक व्यापारिक संस्था के हाथों में राजनीतिक अधिकारों का समावेश हुआ और भारत में अंग्रेजी सत्ता कायम हुआ। वस्तुत: यह ब्रिटिश राष्ट्र के लिए अत्यधिक महत्व था इस युद्ध के पश्चात मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया। परन्तु यह क अयोग्य व्यक्ति था। इसके अयोग्यता काफायता उठाते हुए बंगाल का वास्तविक शासक अंग्रेज बन गए। बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ता गया और धीरे- 2 ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार का मार्ग साफ होता गया। सिराजुद्दौला के हटने से अंग्रेजों को राजनीतिक प्रभुत्व बढाने का फायदा मिला। मुगल साम्राज्य के लिए बी प्लासी का परिणाम घातक सिद्ध हुआ बंगाल से प्रतिवर्ष मुगल शासक को अच्छी आमदनी होती थी लेकिन अब यह आमदनी समाप्त हो गई। अंग्रेजों को भारतीय नरेशों को कमजोरी की जानकारी मिल गई। भविष्य में उसने उसका काफी फायदा उठाया और उत्तरी भारत की विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
आर्थीक परिणाम-
इस युद्ध के द्वारा अंग्रेजों को काफी आर्थीक लाभ पहुँचा मीरजाफर ने कम्पनी को 1 करोड़ 17 लाख रुपये दिये जिससे कम्पनी की आर्थीक स्थिति काफी मजबूत हो गई बंगाल की लुट से बी उसे काफी धन हाथ लगा। कम्पनी के मठ कर्मचारीयों को साढ़े 12 लाख रुपए मिले। क्लाइव को दो लाख 24 हजार रुपए मिले। इस युद्ध के पश्चात कम्पनी धीरे- 2 जागीदार बाद में बंगाल की दीवान बन गई। इस प्रकार इसके द्वारा भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। अंग्रेजों को पुन: व्यापार करने का अधिकार मिला मीरजाफर ने कम्पनी को घुस के रूप में 3 करोड़ रुपए प्रदान किए तथा व्यापार से भी अंग्रेजों ने 15 करोड़ का मुनाफा कमाया।
By- Mohammad Shahid (https://www.facebook.com/shahid.sta)
कम्पनी को हुए लाभ
भारत के सबसे समृद्ध तथा घने बसे भाग से व्यापार करने का एकाधिकार।
बंगाल के साशक पर भारी प्रभाव, क्योंकि उसे सत्ता कम्पनी ने दी थी। इस स्थिति का लाभ उठा कर कम्पनी ने अप्रत्यक्ष सम्प्रभु सा व्यवहार शुरू कर दिया।
बंगाल के नवाब से नजराना, भेंट, क्षतिपूर्ति के रूप मे भारी धन वसूली।
एक सुनिश्चित क्षेत्र २४ परगना का राजस्व मिलने लगा।
बंगाल पे अधिकार व एकाधिकारी व्यापार से इतना धन मिला कि इंग्लैंड से धन मँगाने कि जरूरत नही रही, इस धन को भारत के अलावा चीन से हुए व्यापार मे भी लगाया गया।
इस धन से सैनिक शक्ति गठित की गई जिसका प्रयोग फ्रांस तथा भारतीय राज्यों के विरूद्ध किया गया।
देश से धन निष्कासन शुरू हुआ जिसका लाभ इंग्लैंड को मिला वहां इस धन के निवेश से ही ओद्योगिक क्रांति शुरू हुई थी।
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