दरभंगा महाराज फैमिली
दरभंगा राज बिहार के मिथिला क्षेत्र में लगभग 6,200 किलोमीटर के दायरे में था। इसका मुख्यालय दरभंगा शहर था। इस राज की स्थापना मैथिल ब्राह्मण जमींदारों ने 16वीं सदी की शुरुआत में की थी। ब्रिटिश राज के दौरान तत्कालीन बंगाल के 18 सर्किल के 4,495 गांव दरभंगा नरेश के शासन में थे। राज के शासन-प्रशासन को देखने के लिए लगभग 7,500 अधिकारी बहाल थे। भारत के रजवाड़ों में दरभंगा राज का अपना खास ही स्थान रहा है।
दरभंगा-महाराज खण्डवाल कुल के थे जिसके शासन-संस्थापक महेश ठाकुर थे। उनकी अपनी विद्वता, उनके शिष्य रघुनन्दन की विद्वता तथा महाराजा मानसिंह के सहयोग से अकबर द्वारा उन्हें राज्य की स्थापना के लिए धन प्राप्त हुई थी।
कोलकाता के डलहौजी चौक पर लक्ष्मीश्वर सिंह की प्रतिमा18.महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह - 1880-1898 तक। ये काफी उदार, लोक-हितैषी, विद्या एवं कलाओं के प्रेमी एवं प्रश्रय दाता थे। रमेश्वर सिंह इनके अनुज थे।
19.महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह - 1898-1929 तक। इन्हें ब्रिटिश सरकार की ओर से 'महाराजाधिराज' का विरुद दिया गया तथा और भी अनेक उपाधियाँ मिलीं। अपने अग्रज की भाँति ये भी विद्वानों के संरक्षक, कलाओं के पोषक एवं निर्माण-प्रिय अति उदार नरेन्द्र थे। इन्होंने भारत के अनेक नगरों में अपने भवन बनवाये तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया। वर्तमान मधुबनी जिले के राजनगर में इन्होंने विशाल एवं भव्य राजप्रासाद तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया था। यहाँ का सबसे भव्य भवन (नौलखा) 1926 ई. में बनकर तैयार हुआ था, जिसके आर्चिटेक डाॅ. एम.ए.कोर्नी (Dr. M.A. Korni) थे। ये अपनी राजधानी दरभंगा से राजनगर लाना चाहते थे लेकिन कुछ कारणों से ऐसा न हो सका, जिसमें कमला नदी में भीषण बाढ़ से कटाई भी एक मुख्य कारण था। जून 1929 में इनकी मृत्यु हो गयी। ये भगवती के परम भक्त एवं तंत्र-विद्या के ज्ञाता थे।
20. महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह - पिता के निधन के बाद ये गद्दी पर बैठे। इन्होंने अपने भाई राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह को अपने पूज्य पिता द्वारा निर्मित राजनगर का विशाल एवं दर्शनीय राजप्रासाद देकर उस अंचल का राज्य-भार सौंपा था। 1934 के भीषण भूकम्प में अपने निर्माण का एक दशक भी पूरा होते न होते राजनगर के वे अद्भुत नक्काशीदार वैभवशाली भवन क्षतिग्रस्त हो गये।
कामेश्वर सिंह के समय में ही भारत स्वतंत्र हुआ और जमींदारी प्रथा समाप्त हुई। देशी रियासतों का अस्तित्व समाप्त हो गया। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह को संतान न होने से उनके भतीजे (राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह जी के ज्येष्ठ पुत्र) कुमार जीवेश्वर सिंह संपत्ति के अधिकारी हुए।
दरभंगा नरेश कामेश्वर सिंह अपनी शान-शौकत के लिए पूरी दुनिया में विख्यात थे। अंग्रेज शासकों ने इन्हें 'महाराजाधिराज' की उपाधि दी थी। राज दरभंगा ने नए जमाने के रंग को भांप कर कई कंपनियों की शुरुआत की थी। नील के व्यवसाय के अलावा महाराजाधिराज ने चीनी मिल, कागज मिल आदि खोले। इससे बहुतों को रोजगार मिला और राज सिर्फ किसानों से खिराज की वसूली पर ही आधारित नहीं रहा। आय के नये स्रोत बने। इससे स्पष्ट होता है कि दरभंगा नरेश आधुनिक सोच के व्यक्ति थे।
पत्रकारिता के क्षेत्र में दरभंगा महाराज ने महत्त्वपूर्ण काम किया। उन्होंने 'न्यूजपेपर एंड पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड' की स्थापना की और कई अखबार व पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू किया। अंग्रेजी में 'द इंडियन नेशन', हिंदी में 'आर्यावर्त (समाचारपत्र)' और मैथिली में 'मिथिला मिहिर' साप्ताहिक मैगजीन का प्रकाशन किया। एक जमाना था जब बिहार में आर्यावर्त सबसे लोकप्रिय अखबार था।
दरभंगा महाराज संगीत और अन्य ललित कलाओं के बहुत बड़े संरक्षक थे। 18वीं सदी से ही दरभंगा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बड़ा केंद्र बन गया था। उस्ताद बिस्मिल्ला खान, गौहर जान, पंडित रामचतुर मल्लिक, पंडित रामेश्वर पाठक और पंडित सियाराम तिवारी दरभंगा राज से जुड़े विख्यात संगीतज्ञ थे। उस्ताद बिस्मिल्ला खान तो कई वर्षों तक दरबार में संगीतज्ञ रहे। कहते हैं कि उनका बचपन दरभंगा में ही बीता था। गौहर जान ने साल 1887 में पहली बार दरभंगा नरेश के सामने प्रस्तुति दी थी। फिर वह दरबार से जुड़ गईं। दरभंगा राज ने ग्वालियर के मुराद अली खान का बहुत सहयोग किया। वे अपने समय के मशहूर सरोदवादक थे। महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह स्वयं एक सितारवादक थे। ध्रुपद को लेकर दरभंगा राज में नये प्रयोग हुए। ध्रुपद के क्षेत्र में दरभंगा घराना का आज अलग स्थान है। महाराज कामेश्वर सिंह के छोटे भाई राजा विश्वेश्वर सिंह प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और गायक कुंदनलाल सहगल के मित्र थे। जब दोनों दरभंगा के बेला पैलेस में मिलते थे तो बातचीत, ग़ज़ल और ठुमरी का दौर चलता था। दरभंगा राज का अपना फनी ऑरकेस्ट्रा और पुलिस बैंड था।
खेलों के क्षेत्र में दरभंगा राज का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। स्वतंत्रतापूर्व बिहार में लहेरिया सराय में दरभंगा महाराज ने पहला पोलो मैदान बनवाया था। राजा विश्वेश्वर सिंह ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के संस्थापक सदस्य में थे। दरभंगा नरेशों ने कई खेलों को प्रोत्साहन दिया।
शिक्षा के क्षेत्र में दरभंगा राज का योगदान अतुलनीय है। दरभंगा नरेशों ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और कई संस्थानों को काफी दान दिया। महाराजा रामेश्वर सिंह बहादुर पंडित मदनमोहन मालवीय के बहुत बड़े समर्थक थे और उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को 5,000,000 रुपये कोष के लिए दिए थे। महाराजा रामेश्वर सिंह ने पटना स्थित दरभंगा हाउस (नवलखा पैलेस) पटना विश्वविद्यालय को दे दिया था। सन् 1920 में उन्होंने पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के लिए 500,000 रुपये देने वाले सबसे बड़े दानदाता थे। उन्होंने आनन्द बाग पैलेस और उससे लगे अन्य महल कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय को दे दिए। कलकत्ता विश्वविद्यालय के ग्रन्थालय के लिए भी उन्होंने काफी धन दिया। ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय को राज दरभंगा से 70,935 किताबें मिलीं।
इसके अलावा, दरभंगा नरेशों ने स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में काफी योगदान किया। महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह बहादुर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे। अंग्रेजों से मित्रतापूर्ण संबंध होने के बावजूद वे कांग्रेस की काफी आर्थिक मदद करते थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी से उनके घनिष्ठ संबंध थे। सन् 1892 में कांग्रेस इलाहाबाद में अधिवेशन करना चाहती थी, पर अंग्रेज शासकों ने किसी सार्वजनिक स्थल पर ऐसा करने की इजाजत नहीं दी। यह जानकारी मिलने पर दरभंगा महाराजा ने वहां एक महल ही खरीद लिया। उसी महल के ग्राउंड पर कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। महाराजा ने वह किला कांग्रेस को ही दे दिया। महाराजा कामेश्वर सिंह गौतम ने भी राष्ट्रीय आन्दोलन में काफी योगदान दिया। महात्मा गांधी उन्हें अपने पुत्र के समान मानते थे।
Maharaj dwara bihar ke Anya jagho per banye mandir me kya darvanga jile ke hi pandit ji Pooja path kare Asa likha hai kya
Darbhanga sampati kitanahi
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