राजस्थान का दूसरा जलियावाला बाग हत्याकांड
कहाँ है राजस्थान का जलियांवाला बाग? क्या है मानगढ़ धाम? क्यों
17 नवंबर, 1913 को अंजाम दिया गया एक बर्बर
आदिवासी नरसंहार...
राजस्थान-गुजरात की सीमा पर
अरावली पर्वत श्रंखला कि मानगढ़ नाम कि एक
पहाड़ी है और इसी जगह
करीब एक सदी पहले 17 नवंबर, 1913
को अंजाम दिया गया एक बर्बर आदिवासी नरसंहार.....
एक ऐसा नरसंहार जिसको वर्तमान इतिहास में वह स्थान
नहीं मिल पाया जिसका वह अधिकारी था मैं
जानती हूँ कि यह कोई उपलब्धि वाला विषय
नहीं है और लेकिन यह नरसंहार इस बात का
साक्ष्य है कि किस तरह भीलो ने अपने शोषण के
विरुद्ध गोविंद गुरु के नेतृत्व में आवाज बुलंद किया था
30 दिसंबर 1858 में बासीपा ग्राम, ज़िला डूँगरपुरके एक
बंजारा परिवार में गोविंद -गुरु का जन्म हुआ था|सामाजिक रूप से जागरूक
और धार्मिक व्यक्तित्व वाले गोविंद गुरु, भीलों और
गरासियों में व्याप्त कुरीतियों से एक अलग लड़ाई लड़ रहे
थे|
गोविंद गुरु ने भीलों के बीच अपना आंदोलन
1890 के दशक में शुरू किया था| आंदोलन में अग्नि देवता को
प्रतीक माना गया था|अनुयायियों को पवित्र अग्नि के
समक्ष खड़े होकर पूजा के साथ-साथ हवन (यानी
धूनी) करना होता था|
उन्होंने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में
भीलों के बीच उनके
सशक्तीकरण के लिए भगत आंदोलन चलाया था,
जिसके तहत भीलों ने शाकाहार अपनाना शुरू कर दिया था
और हर किस्म के मादक पदार्थों से दूर रहना शुरू कर दिया था|भगत
आंदोलन को मजबूती देने के लिए गुजरात कि
धरती से एक सामाजिक और धार्मिक संगठन संप- सभा
के रूप शुरू हो चूका था|गांव-गांव में इसकी इकाइयां
स्थापित करने में तीहा भील का खास
योगदान था|5 लाख से अधिक आदिवासी एक
ही लक्ष्य आदिवासियों से कराई जा रही
बेगार से मुक्ति प्राप्त करने के लिए कार्य कर रहे थे|
गुरु ने 1903 में अपनी धूनी मानगढ़
टेकरी पर जमाई. उनके आह्वान पर भीलों
ने 1910 तक अंग्रेजों के सामने अपनी 33 मांगें
रखीं, जिनमें मुख्य मांगें अंग्रेजों और
स्थानीय रजवाड़ों द्वारा करवाई जाने वाली
बंधुआ मजदूरी, लगाए जाने वाले भारी लगान
और गुरु के अनुयायियों के उत्पीडऩ से जुड़ी
थीं|
दक्षिणी राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश में
भीलों पर अंग्रेज़ों और बांसवाड़ा, संतरामपुर, डूंगरपुर और
कुशलगढ़ के रजवाड़ों, सामंतों व् जागीरदारों शोषण करते
ही थे|भगत आन्दोलन आंदोलन सामंतों, रजवाड़ों
की ज़ड़ों को हिलाने वाला आंदोलन बन रहा था| वे इसे
कुचलने का षडयंत्र रच रहे थे| सामंतों व् रजवाड़ों द्वारा गोविंद गुरु को
एक खतरा बता कर अंग्रेजो के द्वारा गिरफ्तार कराया परंतु आदिवासियों ने
इसे चुनौती के रूप में लिया और अंग्रेजो को गोविंद गुरु को
रिहा करना पड़ा|इसका अंत यहीं नहीं
हुआ| इसके बाद आदिवासियों पर अंग्रेजो और सामंतो के द्वारा
अत्याचार और बढ़ा दिए गए| सामंतों व् रजवाड़ों द्वारा भीलो
पर हिंसात्मक हमले तो हो ही रहे थे इसके अलावा
भीलो के उन पाठशालाओं को बंद कराना एक बड़ा प्रयोजन
था जिसके द्वारा आदिवासी बेगार से मुक्ति होने कि शिक्षा
ले रहे रहे थे अंग्रेजों और स्थानीय रजवाड़ों द्वारा मांगें
ठुकराए जाने के बाद, खासकर मुफ्त में बंधुआ मजदूरी
की व्यवस्था को खत्म न किए जाने के कारण
भीलो में एक रोष उत्तपन हो गया| नरसंहार से एक
माह पहले हजारों भीलों ने मानगढ़
पहाड़ी पर कब्जा कर लिया था और अंग्रेजों से
अपनी आजादी का ऐलान करने
की कसम खाई| अंग्रेजों ने आखिरी चाल
चलते हुए सालाना जुताई के लिए सवा रुपये की पेशकश
की, लेकिन भीलों ने इसे सिरे से खारिज कर
दिया. इस दौरान भील क्रांतिकारी गाना
गुनगुनाते है थे , ओ भुरेतिया नइ मानु रे, नइ मानु (ओ अंग्रेजों, हम
नहीं झुकेंगे तुम्हारे सामने)|
इन्हीं दिनों गठरा गाँव, संतरामपुर , गुजरात के एक क्रूर
थानेदार गुल मोहम्मद की हरकतों से तंग आ चुके
भील गुरु के दाएं हाथ पुंजा धिरजी
पारघी और उनके समर्थकों ने उसकी
हत्या कर दी और इस घटना को राजद्रोह के तौर पर
प्रचारित किया गया और अंग्रेज़ों से सैनिक मदद माँगी गई|
इस घटना के बाद बांसवाड़ा, संतरामपुर, डूंगरपुर और कुशलगढ़
की रियासतों में गुरु और उनके समर्थकों का जोर बढ़ता
ही गया, जिससे अंग्रेजों और स्थानीय
रजवाड़ों को लगने लगा कि इस आंदोलन को अब कुचलना
ही होगा| भीलों को मानगढ़
खाली करने की आखिरी
चेतावनी दी गई जिसकी समय
सीमा 15 नवंबर, 1913 थी, लेकिन
भीलो ने इसे मानने से इनकार कर दिया|
17 नवंबर, 1913 को मेजर हैमिलटन सहित तीन
अंग्रेज अफसरों की अगुआई में मेवाड़
भील कोर और रजवाड़ों की
अपनी सेना ने संयुक्त रूप से मानगढ़
पहाड़ी को घेर लिया और भीलों को छिटकाने
के लिए हवा में गोलीबारी की
जाने लगी, जिसने बाद में बर्बर नरसंहार
की शक्ल अख्तियार कर लिया|लाखों लोगों पर अंधाधुँध
गोलीबारी की गई और लोग जान
बचाने के लिए कई लोग खैड़ापा खाई की ओर भागे और
भगदड़ में मारे गए| अंग्रेजों ने खच्चरों के ऊपर तोप
जैसी बंदूकें लाद दी थीं और
उन्हें वे गोले में दौड़ाते थे तथा गोलियां चलती
जाती थीं, ताकि ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को मारा
जा सके| इसकी कमान अंग्रेज अफसरों मेजर एस.
बेली और कैप्टन ई. स्टॉइली के हाथ में
थी| इस कांड में कहा जाता है कि
गोलीबारी में 1500 भील व्
अन्य वनवासी शहीद हुए|इस बर्बर
गोलीबारी को एक अंग्रेज अफसर ने तब
रोका जब उसने देखा कि मारी गई भील
महिला का बच्चा उससे चिपट कर स्तनपान कर रहा था. कुछ
खुशकिस्मत लोग बचकर निकल गए और घर लौटने से पहले कई
दिन तक एक गुफा में छिपे रहे| इस हत्याकांड से इतना खौफ फैल
गया कि आजादी के कई दशक बाद तक
भील मानगढ़ जाने से कतराते थे. नरसंहार के बाद इस
क्षेत्र को अंग्रेजो द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया गया. इसका
उद्देश्य साक्ष्य मिटाना और दस्तावेज़ीकरण को रोकना
था| लेकिन- ‘ख़ून फिर ख़ून है, टपकेगा तो जम जाएगा’ अब हर वर्ष
अंग्रेज़ी माह नवंबर की 17
तारीख को उन शहीदों को यहाँ श्रद्धांजलि
देने के लिए लोग एकत्रित होते हैं|
इस नरसंघार में बड़ी संख्या में भील
जख्मी हुए और करीब 900 को जिंदा
पकड़ लिया गया, जो गोलीबारी के बावजूद
मानगढ़ हिल खाली करने को तैयार नहीं थे|
गोविंद गुरु को पकड़ लिया गया, उन पर मुकदमा चला और उन्हें
आजीवन कारावास में भेज दिया गया. उनकी
लोकप्रियता और अच्छे व्यवहार के चलते 1919 में उन्हें
हैदराबाद जेल से रिहा कर दिया गया लेकिन उन रियासतों में उनके
प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया जहां उनके समर्थक थे|उनके
सहयोगी पुंजा धीरजी को
आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और
काला पानी भेज दिया गया|
गोविंद गुरु और मानगढ़ हत्याकांड भीलों की
स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं. बावजूद इसके राजस्थान और गुजरात
की सीमा पर बसे बांसवाड़ा-पंचमहाल के
सुदूर अंचल में दफन यह ऐतिहासिक त्रासदी भारत
की आजादी की लड़ाई के
इतिहास में एक फुटनोट से ज्यादा की जगह
नहीं पाती|आदिवासियों के जलियांवाला बाग
हत्याकांड के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों?
यह आंदोलन काँड बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास ‘आनंदमठ’
में लिखे राष्ट्रगान ‘वंदेमातरम्’ को सही संदर्भ देता है
कि भारत के मूलनिवासियों का स्वतंत्रता-सघर्ष अभी
चल रहा है, उनकी ज़मीनें आज
भी छीनी जा रही
हैं और कानून उनकी मदद नहीं करता
है| मानगढ़ पहाड़ी निस्संदेह स्वतंत्रता के
दीवाने शहीदों का स्मारक है
Rajasthan ka dusra jaliya vala bag hatya kand nimada hatya kand ko kaha jata hai
Rajsthan ka dusra जलियांवाला बाग
rajasthan ka jaliyawala bag hatyakand kise kahte hai
Bharat ka dusra jliyawala bag htyakand kise khte h
Mangad htyakand me govind giri ko girftar krke kha bheja gya tha
Haldighati yudh ki fix date kya h 18 june ya 21 june
Rajshtan ka dusra jaliyavala bag htyakan
Rajshthan ka jliyavala bag htyakand
Mandrah kand ki "jaliyanvaala bhag kand se sbse phele tula kisne ki
Sir जब अकबर ने 1568 में मेवाड़ के राजा उदय सिंह पर आक्रमण किया तो उस युद्ध में महाराणा प्रताप का किया रोल रहा था
Ans। राजस्थान का दूसरा जलियावाला बाग हत्याकांड
Ans। मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में मार्च 1922 को भील आदिवासी अपनी मांग मनवाने के लिए नीमड़ा गांव में सभा कर रहे थे जिस में बिर्टिश मेजर hg शटन के निर्देश से गोली चलाई गई जिस से 1200 भील आदिवासी की हत्या हो गई ।
इसे ही दूसरा जलिया वाला बाग हत्याकांड है
राजस्थान का दूसरा जलीयावाला बाग हत्या कांड?
rajasthan ka dusra jaliyavala baag hatayakand
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