आपदा प्रबंधन के उपाय
जब प्रकृति में असंतुलन की स्थिति होती है, तब आपदायें आती हैं जिसके कारण विकास एवं प्रगति बाधक होती है। प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त कुछ विपत्तियाँ मानवजनित भी होती हैं। प्राकृतिक आपदायें जैसे- भूकम्प, सुनामी, भूस्खलन, ज्वालामुखी, सूखा, बाढ़, हिमखण्डों का पिघलना आदि हैं। धैर्य, विवेक, परस्पर सहयोग व प्रबंधन से ही इन आपदाओं से पार पाया जा सकता है। आपदा प्रबंधन दो प्रकार से किया जाता है आपदा से पूर्व एवं आपदा के पश्चात।
Abstract - Disasters are the result of imbalance in nature that leads to hindered development and progress. Besides natural calamities there are several manmade situations. Natural disaster are earthquake, Tsunami, Landslide, coopcration of volcanocs, draught, flood, melting of glaciers etc. Patience, intelligence, mutual cooperation and proper management are the remedial means. Disaster management is of two types-pre disaster and post disaster.
भारत की प्राकृतिक संरचना में पर्वतों, नदियों, समुद्रों आदि का बहुत महत्त्व है। इनसे असंख्य लोगों की आजीविका चलती है। लेकिन जब प्रकृति में असंतुलन की स्थिति होती है, तब आपदायें आती हैं इनके आने से प्रगति बाधित होती है और परिश्रम तथा यत्न पूर्वक किये गये विकास कार्य नष्ट हो जाते हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब ग्रह बुरी स्थिति में होते हैं तब आपदायें आती हैं धर्म शास्त्र के अनुसार जब पाप बढ़ जाते हैं तब पृथ्वी पर आपदायें आती हैं इन आपदाओं में बाढ़, चक्रवात, बवन्डर, भूकम्प, भूस्खलन, सुनामी, सूखा, ज्वालामुखी विस्फोट, दावानल, टिट्डी दल का हमला, महामारी, समुद्री तूफान, गर्म हवाएँ और शीतलहर आदि इन प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त कुछ मानव जनित आपदायें हैं जैसे साम्प्रदायिक दंगे, आतंकवाद आगजनी, शरणार्थी समस्यायें, वायु, रेल व सड़क दुर्घटनाएँ आदि हैं। इसके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की आपदायें हैं जो मानव जीवन को तहस नहस कर देती हैं। भारत में 1980 से 2010 के बीच में समुचित आपदाओं में सूखा 7 बार, भूकम्प 16 बार, महामारी 56 बार, अत्यधिक गर्मी 38 बार, बाढ़ 184 बार, कीट संक्रमण 1 बार, बड़े पैमाने पर सूखा 34 बार, तूफान 92 बार, ज्वालामुखी 2 बार आ चुके हैं। जिनसे जन-जीवन अस्त-व्यस्त हुआ और बहुत बड़ी आर्थिक और जन-जीवन की हानि हुयी।
भूकम्प - भूकम्प प्राकृतिक आपदा के सर्वाधिक विनाशकारी रूपों में से एक है, जिसके कारण व्यापक तबाही हो सकती है। भूकम्प का साधारण अर्थ है ‘‘भूमि का कम्पन’’ अर्थात भूमि का हिलना। भूकम्प पृथ्वी की आंतरिक क्रियाओं के परिणाम स्वरूप आते हैं। पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली क्रियाओं का प्रभाव पर्पटी पर भी पड़ता है और उसमें अनेक क्रियायें होने लगती हैं। जब पर्पटी की हलचल इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि वह चट्टानों को तोड़ देती है और उन्हें किसी भ्रंश के साथ गति करने के लिये मजबूर कर देती है, तब धरती के सतह पर कम्पन या झटके, उत्पन्न हो जाते हैं। कम्पन ही भूकम्प होते हैं, भूकम्प का पृथ्वी पर विनाशकारी प्रभाव भूस्खलन धरातल का धसाव मानव निर्मित पुलों, भवनों जैसी संरचनाओं की क्षति या नष्ट होने के रूप में दृष्टि गोचर होता है वैसे तो भूकम्प पृथ्वी पर कहीं भी व कभी भी आ सकते हैं लेकिन इनके उत्पत्ति के लिये कुछ क्षेत्र, बहुत ही संवेदनशील होते हैं। संवेदनशील क्षेत्र से तात्पर्य पृथ्वी के उन दुर्बल भागों से है जहाँ बलन और भ्रंश की घटनाएँ अधिक होती हैं इसके साथ ही महाद्वीप और महासागरीय सम्मिलन के क्षेत्र ज्वालामुखी भी भूकम्प उत्पन्न करने वाले प्रमुख स्थान हैं।
चक्रवात - हम सभी जानते हैं कि इसमें वायु बाहर की ओर से केन्द्र की ओर घूमती हुई ऊपर उठती है। इसके केन्द्र में न्यून वायुदाब तथा चारों ओर उच्च वायुदाब रहता है। वायु की क्षैतिज एवं लम्बवत दोनों ही गति तेज रहती है जिसमें आंधी, तूफान के साथ-साथ ओलावृष्टि तथा भारी वर्षा होती है। थोड़ी ही देर में मौसम परिवर्तित हो जाता है। इस सन्दर्भ में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों हरिकेन तथा टाईफून का उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण है। चीन में इन्हें टाईफून तथा दक्षिणी संयुक्त राज्य एवं अमेरिका एवं मैक्सिको में इन्हें हरिकेन कहा जाता है इसकी गति 90-125 कि.मी. प्रति घंटा तक देखी गयी है। वायु की तीव्र गति के कारण समुद्री जल के खम्भे बनकर तटवर्ती क्षेत्रों में घुसकर विनाश का भयावह ताण्डव करते हैं।
भूस्खलन - भूस्खलन भी एक प्राकृतिक घटना है भूस्खलन भूमि उपयोग को सीधा प्रभावित करता है। प्रायः पर्वतीय भागों जैसे भारत के हिमालयी पर्वत के ढालू भागों में घटती है। चट्टानों का नीचे खिसकना भूस्खलन कहलाता है। यह क्रिया प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से हो सकती है इसमें सड़क अवरुद्ध हो जाती है। बाँध टूट जाते हैं तथा गाँव शहर नष्ट हो जाते हैं, भूस्खलन के लिये प्राकृतिक कारणों में भूकम्प सबसे प्रभावशाली कारक है। इसके साथ ही वनों के ह्रास, जल के रिसाव, अपश्रय भू-क्षरण तथा अधिक वर्षा के साथ ही मानवीय क्रियायें जैसे- सड़क निर्माण, उत्खनन, सुरंग, बांध, जलाशय से भूस्खलन को बढ़ावा मिलता है। सिक्किम, भूटान तथा नेपाल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण प्रायः मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
बाढ़ आपदा - किसी बड़े शहर भू-भाग का जलमग्न का जलमग्न होना जिसमें अपार जनधन की हानि होती है, बाढ़ कहलाती है। इसके उत्तरदायी कारकों को अतिभ्रिष्ट पर्यावरण विनाश, भूस्खलन, बांध, तटबंध तथा बैराज का टूटना, सड़क तथा अन्य निर्माण कार्य नदियों में गाद बढ़ना नदियों में निर्मित बांधों में तलछट भरना आदि है। केन्द्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1953 से 1990 के मध्य औसत रूप से प्रतिवर्ष 7944 मि.हे. क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता रहता है। बाढ़ द्वारा सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र वर्ष 1978 में 17500 मि.हे. क्षेत्र भी रहा है। 1953 से 1990 के मध्य की अवधि में औसत रूप से प्रतिवर्ष 12, 18, 690 भवन तथा 1532 व्यक्ति बाढ़ आपदा के शिकार हुए हैं। जबकि इसी अवधि में सर्वाधिक 3507542 भवनों का विनाश वर्ष 1978 में तथा सर्वाधिक 11316 व्यक्ति वर्ष 1977 में बाढ़ के शिकार हुए हैं। हमारे देश में न केवल बाढ़ प्रभावित भूभाग बढ़ता जा रहा है बल्कि बाढ़ प्रभावित जनसंख्या भी बढ़ती जा रही है। खाद्य एवं कृषि संगठन के एक ताजा अनुमान के अनुसार देश की लगभग 25 करोड़ आबादी उन क्षेत्रों में निवास कर रही है जहाँ बाढ़ के प्रकोप की आशंका है।
सुनामी आपदा - सुनामी दो शब्दों से मिलकर बना है TSU का अर्थ है बन्दरगाह और NAMI का अर्थ है लहरें। इसे ज्वारीय या भूकम्पीय लहरें भी कहते हैं। समुद्र की सतह हिलने के कारण तली के ऊपर भरा पानी ऊपर नीचे उठता गिरता है। जिससे सुनामी लहरें पैदा होती हैं। भारत में सुनामी का मुख्य केन्द्र उत्तरी भाग एक ही संवेदन शील भूकम्पीय पट्टी से जुड़ा है। यह पट्टी गुजरात के भुज क्षेत्र से हिमालय की तलहटी और म्यांमार होती हुयी सुमात्रा द्वीप तक है।
बादल फटना - इनमें हवायें तेजी से उठती हैं। बिजली की चमक एवं बादलों की गरज के साथ तीव्र वर्षा होती है ओलापात भी हो सकता है। मूसलाधार वृष्टि के कारण गाँव के गाँव बह जाते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक मानव जनित आपदायें होती हैं इनका निराकरण हमारी सूझबूझ, सावधानी, विवेक व परस्पर सहयोग से संभव है। देश में लगभग हर समय किसी न किसी प्रकार की प्राकृतिक मानव-जनित या अन्य प्रकार की आपदायें आती रहती हैं। इसका प्रबन्धन करने की आवश्यकता होती है।
आपदा प्रबंधन - आपदा प्रबंधन के दो विभिन्न एवं महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। आपदा पूर्व व आपदा पश्चात का प्रबंधन। आपदा पूर्व प्रबन्धन को जोखिम प्रबन्धन के नाम से भी जाना जाता है। आपदा के जोखिम भयंकरता व संवेदनशीलता के संगम से पैदा होते हैं जो मौसमी विविधता व समय के साथ बदलता रहता है। जोखिम प्रबन्धन के तीन अंग हैं। जोखिम की पहचान, जोखिम में कमी व जोखिम का स्थानान्तरण किसी भी आपदा के जोखिम को प्रबन्धित करने के लिये एक प्रभावकारी रणनीति की शुरूआत जोखिम की पहचान से ही होती है। इसमें प्रकृति ज्ञान और बहुत सीमा तक उसमें जोखिम के बारे में सूचना शामिल होती है। इसमें विशेष स्थान के प्राकृतिक वातावरण के बारे में जानकारी के अलावा वहाँ आ सकने का पूर्व निर्धारण शामिल है। इस प्रकार एक उचित निर्णय लिया जा सकता है कि कहाँ व कितना निवेश करना है। एक ऐसी परियोजना को डिज़ाइन करने में मदद मिल सकती है। जो आपदाओं के गम्भीर प्रभाव के सामने स्थिर रह सकें। अतः जोखिम प्रबन्धन में व इससे जुड़े पेशेवरों का कार्य जोखिम क्षेत्रों का पुर्वानुमान लगाना व उसके खतरे के निर्धारण का प्रयास करना तथा उसके अनुसार सावधानी बरतना, मानव संसाधन व वित्त जुटाना व अन्य आपदा प्रबन्धन के इस उपशाखा का ही अंग है।
केन्द्रीय स्तर पर आपदा प्रबन्धन - उच्च अधिकार प्राप्त समिति (एच.पी.सी.) ने राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक एवं प्रभावी आपदा प्रबन्धन व्यवस्था व आपदा प्रबन्धन मन्त्रालय कठिन किया जाए जो कि बाढ़ में एन.सी.सी.एम. जैसे केन्द्रों और प्राधिकरणों सहित उचित सहायक निकायों का गठन कर सकता है अथवा सहायता के लिये वर्तमान केन्द्रों का उपयोग हो सकता है। आपदा प्रबन्धन हेतु केन्द्र सरकार द्वारा जो सर्वदलीय समिति का गठन किया गया है उसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। इस योजना के संचालन हेतु एवं वैज्ञानिक एवं तकनीकी सलाहकार समिति भी उसकी सहायता करेगी।
राज्य स्तर पर आपदा प्रबन्धन - हमारे देश में राष्ट्रीय आपदाओं से निपटने की जिम्मेदारी अनिवार्य रूप से राज्यों की है। केन्द्र सरकार की भूमिका भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों की सहायता देने की है। अधिकतर राज्यों में राहत आयुक्त हैं जो अपने राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में राहत एवं पुनर्वास कार्यों के प्रभारी हैं तथा पूर्ण प्रभारी मुख्य सचिव होता है तथा राहत आयुक्त उसके निर्देश एवं नियन्त्रण में कार्य करते हैं। आपदा के समय प्रभावित लोगों तक पहुँचने के प्रयासों में सम्मिलित करने के लिये राज्य सरकार, गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय संगठनों को आमन्त्रित करती है।
जिलास्तर पर आपदा प्रबन्धन - आपदा प्रबन्धन हेतु सभी सरकारी योजनाओं और गतिविधियों के क्रियान्वयन के लिये जिला प्रशासन केन्द्र बिन्दु है। कम से कम समय में राहत कार्य चलाने के लिये जिला अधिकारी को पर्याप्त अधिकार दिये गये हैं। प्रत्येक जिले में आने वाली आपदाओं से निपटने के लिये अग्रिम आपात योजना बनाना जरूरी है तथा निगरानी का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट को है।
टापू पर बन्दर फस गए है हमारे पास कोई साधन नही है उन्हें वहाँ से कैसे निकाले गे।
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।