वैश्वीकरण का शिक्षा पर प्रभाव
वस्तुएं जिन्हें हम अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं। भले ही वे आवश्यकताए हों जैसे भोजन, कपड़े, फर्नीचर, बिजली का सामान या दवाइया अथवा आराम और मनोरंजन की वस्तुए। इनमें से कई भूमंडलीय आकार के नेटवर्क से हम तक पहुचती हैं। कच्चा माल किसी एक देश से निकाला गया हो सकता है। इस कच्चे माल पर प्रक्रिया करने का ज्ञान किसी दूसरे देश के पास हो सकता है और इस पर वास्तविक प्रक्रिया किसी अन्य स्थान पर हो सकती है, और हो सकता है कि उत्पादन के लिए पैसा एक बिल्कुल अलग देश से ध्यान दीजिए कि विश्व के विभिन्न भागों में बसे लोग किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उनकी परस्पर निर्भरता केवल वस्तुओं के उत्पादन और वितरण तक ही सीमित नहीं है। वे एक दूसरे से शिक्षा, कला और साहित्य के क्षेत्र में भी प्रभावित होते हैं। देशों और लोगों के बीच व्यापार, निवेश, यात्रा, लोक संस्कॄति और अन्य प्रकार के नियमों से अंतर्क्रिया भूमंडलीकरण की दिशा में एक कदम है।भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में देश एक दूसरे पर परस्पर निर्भर हो जाते हैं और लोगों के बीच की दूरिया घट जाती हैं। एक देश अपने विकास के लिए दूसरे देशों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए सूती कपड़े के उद्योग में महत्त्वपूर्ण नामों में से एक, जापान, भारत या अन्य देशों में पैदा हुई कपास पर निर्भर करता है। काजू के अंतर्राष्टरीय बाजार में प्रमुख, भारत, अफ़्रीकी देशों में पैदा हुए कच्चे काजू पर निर्भर करता है। हम सब जानते हैं कि अमरीका का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग किस सीमा तक भारत और अन्य विकासशील देशों के इंजीनियरों पर निर्भर करता है। भूमंडलीकरण में केवल वस्तुओं और पूजी का ही संचलन नहीं होता अपितु लोगों का भी संचलन होता है।भूमंडलीकरण के प्रारंभिक रूप भूमंडलीकरण कोई नई चीज नहीं है। लगभग 200 ई- पूर्व से 1000 ई- तक पारस्परिक क्रिया और लंबी दूरी तक व्यापार सिल्क रूट के माध्यम से हुआ। सिल्क रूट मध्य और दक्षिण-पश्चिम एशिया में लगभग 6000 कि-मी तक फैला हुआ था और चीन को भारत, पश्चिमी एशिया और भूमईोय क्षेत्र से जोड़ता था। सिल्क रूट के साथ वस्तुओं, लोगों और विचारों ने चीन, भारत और यूरोप के बीच हजारों कि-मी की यात्रा की। 1000 ई- से 1500 ई- तक एशिया में लंबी-लंबी यात्राओं द्वारा लोगों में वैचारिक आदान-प्रदान होता रहा। इसी दौरान हिंद महासागर में समुद्रीय व्यवस्था को महत्त्व मिला।दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया के बीच समुद्री मार्ग का विस्तार हुआ। केवल वस्तुओं और लोगों ने ही नहीं अपितु प्रौद्योगिकी ने भी विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक की यात्रा की। इस अवधि में भारत न केवल शिक्षा एवं अध्यात्म का केंद्र था अपितु यहाँ धन-दौलत का भी अपार भंडार था। इसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था जिससे आकर्षित होकर विश्व के अन्य भागों से व्यापारी और यात्री यहाँ आए। चीन में मंगोल शासन के दौरान कई चीनी आविष्कार जैसे बारूद, छपाई, धमन भट्टी, रेशम की मशीनें, कागज की मुद्रा और ताश यूरोप में पहुचे। वास्तव में इन्हीं व्यापारिक संबंधों ने आधुनिक भूमंडलीकरण का बीजारोपण किया।आज के भूमंडलीकरण की एक विशेषता ‘प्रतिभा पलायन’ अथवा प्रतिभा संपन्न लोगों का पूर्व से पश्चिम की ओर भागना है। चौदहवीं सदी का विश्व इसी प्रकार की घटना का साक्षी है परंतु तब बहाव विपरीत अर्थात पश्चिम से पूर्व को था। भूमंडलीकरण के प्रारंभिक रूपों में भारत का कपड़ा, इंडोनेशिया और पूर्वी अफ़्रीका के मसाले, मलाया का टिन और सोना, जावा का बाटिक और गलीचे, जिंबाबवे का सोना तथा चीन के रेशम, पोर्सलीन और चाय ने यूरोप में प्रवेश पाया। यूरोप के लोगों की अपने स्रोतों को ढूढ़ने की उत्सुकता ने यूरोप में अन्वेषण के युग का प्रारंभ किया। अत: पश्चिम के तत्त्वावधान में आधुनिक भूमंडलीकरण मुख्यत: अतीत में भारतीयों, अरबों और चीनियों द्वारा स्थापित ढाचे के कारण ही संभव हुआ है। आधुनिक भूमंडलीकरण की ओर कदम प्रौद्योगिक परिवर्तनों ने भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतर्राष्टरीय संस्थाओं जैसे संयुक्त राष्टर, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन की स्थापना इस प्रक्रिया में सहयोग देने वाला एक अन्य कारक है। इससे बढ़कर निजी कंपनियों को अपने देश से बाहर बाजार मिलने और उपभोक्तावाद ने विश्व के विभिन्न भागों को भूमंडलीकरण के विस्तार की ओर प्रेरित किया।भूमंडलीकरण दो क्षेत्रों पर बल देता है — उदारीकरण और निजीकरण। उदारीकरण का अर्थ है औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की विभिन्न गतिविधयों से संबंधत नियमों में ढील देना और विदेशी कंपनियों को घरेलू क्षेत्र में व्यापारिक और उत्पादन इकाइया लगाने हेतु प्रोत्साहित करना। निजीकरण के माध्यम से निजी क्षेत्र की कंपनियों को उन वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की अनुमति प्रदान की जाती है, जिनकी पहले अनुमति नहीं थी। इसमें सरकारी क्षेत्र की कंपनियों की संपत्ति को निजी क्षेत्र के हाथों बेचना भी सम्मिलित है। भूमंडलीकरण के आधुनिक रूपों का प्रारंभ दूसरे विश्व युद्ध से हुआ है परंतु इसकी ओर अधिक ध्यान गत 20 वषों में गया है। आधुनिक भूमंडलीकरण मुख्यत: विकसित देशों के इर्द-गिर्द केंद्रित है। ये देश विश्व के प्राकॄतिक संसाधनों का मुख्य भाग खर्च करते हैं। इन देशों के लोग विश्व जनसंख्या का 20 प्रतिशत हैं परंतु वे पृथ्वी के प्राकॄतिक संसाधनों के 80 प्रतिशत से अधिक भाग का उपभोग करते हैं। उनका नवीनतम प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण है। विकासशील देश प्रौद्योगिकी, पूजी, कौशल और हथियारों के लिए इन देशों पर निर्भर हैं।भूमंडलीकरण कई देशों में सरकार के स्थान पर बहुराष्टरीय कंपनियों को मुख्य भूमिका निभाने की छूट देता है। उनके पास संसाधन एवं प्रौद्योगिकी है और उनकी गतिविधयों को सरकार का सहयोग उपलब्ध है। कई बहुराष्टरीय कंपनिया अपनी फैक्टिरयों को एक देश से दूसरे देश में ले जाती हैं। इस प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी उन्हें उत्पादन और वितरण को भंग कर विश्व में कहीं भी जाने योग्य बनाती है। कल और आज के भूमंडलीकरण में क्या अंतर है ? आज न केवल वस्तुए ही एक देश से दूसरे देशों को जा रही हैं अपितु बड़ी संख्या में लोग भी जा रहे हैं। पहले केवल तैयार की गई वस्तुए ही जाती थीं, अब इनमें कच्चा माल, प्रौद्योगिकी और लोग भी सम्मिलित हैं। पहले पूर्व के देशों की ही अंतर्राष्टरीय व्यापार में प्रमुखता थी और उनकी वस्तुओं की मांग, उंचे दाम और सम्मान था। अब स्थिति विपरीत है। अब पश्चिम की वस्तुओं का सम्मान अधिक है। कई कंपनिया विकासशील देशों में वस्तुओं का उत्पादन करके और विकसित देशों में उन पर अपना लेबल लगा कर पूरे विश्व बाजार में विकसित देशों के उत्पाद के रूप में उन्हें बेच रही हैं।भूमंडलीकरण के प्रभावभूमंडलीकरण प्रत्येक देश को भिन्न-भिन्न ढंग से प्रभावित करता है। इसका प्रभाव एक देश से दूसरे देश में भी बदल जाता है। भूमंडलीकरण का विकसित देशों पर प्रभाव विकासशील देशों से अलग होगा। विकसित देशों में भूमंडलीकरण से नौकरिया कम हुई हैं क्योंकि कई कंपनिया उत्पादन खर्च को कम करने के लिए उत्पादन इकाइयों को विकासशील देशों में ले जाती हैं। यूरोप के कई देशों में बेरोजगारी एक सामान्य बात हो गई है। विकासशील देशों में भूमंडलीकरण खाद्यान्नों एवं अन्य कई निर्मित वस्तुओं के उत्पादकों को प्रभावित करता है। भूमंडलीकरण ने कई विकासशील देशों के लिए दूसरे देशों से कुछ मात्रा में वस्तुए खरीदना अनिवार्य बना दिया है, भले ही उन वस्तुओं का उनके अपने देश में ही उत्पादन क्यों न हो रहा हो। बाहर के देशों की निर्मित वस्तुओं के प्रवेश से स्थानीय उद्योगो को खतरा बढ़ जाता है। विकासशील देशों की दृष्टि से भूमंडलीकरण के कुछ अन्य प्रभाव निम्नलिखित हैं–आर्थिक प्रभाव : भूमंडलीकरण से अन्य देशों से पूजी, नवीनतम प्रौद्योगिकी और मशीनों का आगमन होता है। उदाहरण के लिए, भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग विकसित देशों में प्रयोग किए जाने वाले कंप्यूटरों और दूर संचार यंत्रों के प्रयोग करता है। लगभग 15 वर्ष पहले यह अकल्पनीय था। भारत के कुछ संस्थानों के इंजीनियर स्नातकों की अमरीका और यूरोप के कई देशों में बहुत माग है। कई देशों में सरकारों के पास प्राकॄतिक संसाधनों का स्वामित्व होता है और वे पूरी दक्षता से जन-हित में उनका उपयोग करती हैं और लोगों को विभिन्न सेवाए उपलब्ध कराती हैं। भूमंडलीकरण सरकारों को संसाधनों का निजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करता है जिससे लाभ कमाने की दृष्टि से संसाधनों का शोषण होता है और कुछ लोगों के हाथों में पैसा इकट्ठा हो जाता है। निजीकरण उन लोगों को भी वंचित रखता है जो इन संसाधनों का उपभोग करने के लिए खर्च करने की क्षमता नहीं रखते।राजनीतिक प्रभाव : भूमंडलीकरण सभी प्रकार की गतिविधयों को नियमित करने की शक्ति सरकार के स्थान पर अंतर्राष्टरीय संस्थानों को देता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, जब एक देश किसी अन्य देश की व्यापारिक गतिविधयों के साथ जुड़ा होता है तो उस देश की सरकार उन देशों के साथ अलग-अलग समझौते करती है। यह समझौते अलग-अलग देशों के साथ अलग-अलग होते हैं। अब अंतर्राष्टरीय संगठन जैसे विश्व व्यापार संगठन सभी देशों के लिए नियमावली बनाता है और सभी सरकारों को ये नियम अपने-अपने देश में लागू करने होते हैं। इसके साथ ही भूमंडलीकरण कई सरकारों को निजी क्षेत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु कई विधायी कानूनों और संविधान बदलने के लिए विवश करता है। प्राय: सरकारें कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा करने वाले और पर्यावरण संबंधी कुछ नियमों को हटाने पर विवश हो जाती हैं।सामाजिक-सांस्कॄतिक प्रभाव: भूमंडलीकरण पारिवारिक संरचना को भी बदलता है। अतीत में संयुक्त परिवार का चलन था। अब इसका स्थान एकाकी परिवार ने ले लिया है। हमारी खान-पान की आदतें, त्योहार, समारोह भी काफी बदल गए हैं। जन्मदिन, महिला दिवस, मई दिवस समारोह, फास्ट-फूड रेस्तरांओं की बढ़ती संख्या और कई अंतर्राष्टरीय त्योहार भूमंडलीकरण के प्रतीक हैं। भूमंडलीकरण का प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे पहनावे में देखा जा सकता है। समुदायों के अपने संस्कार, परंपराए और मूल्य भी परिवर्तित हो रहे हैं।भूमंडलीकरण : भारतीय परिदृश्यस्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति को चुना जिसके अंतर्गत सरकार ने विकास का मार्ग अपनाया। इसने कई बड़े उद्योग स्थापित किए और धीरे-धीरे निजी क्षेत्र को विकसित होने दिया। बरसों तक भारत अपने निधार्रित लक्ष्य पाने में सक्षम नहीं हो सका। कल्याणकारी कार्यो के लिए भारत ने अन्य देशों से ऋण लिया। कुछ स्थितियों में सरकार ने लोगों के पैसे को भी मुक्तहस्त से खर्च किया। 1991 में भारत ऐसी स्थिति में पहुच गया जिससे वह बाहर के अन्य देशों से ऋण लेने की विश्वसनीयता खो बैठा। कई अन्य समस्याओं जैसे बढ़ती कीमतें, पर्याप्त पूजी की कमी, धीमा विकास और प्रौद्योगिकी के पिछड़ेपन ने संकट को बढ़ा दिया। सरकारी खर्च आय से कहीं अधिक हो गया। इसने भारत को भूमंडलीकरण की प्रक्रिया को तेज करने तथा दो अंतर्राष्टरीय संस्थाओं, विश्व बैंक और अंतर्राष्टरीय मुद्रा कोष के सुझाव के अनुसार अपने बाजार खोलने को विवश किया। सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति को नई आर्थिक नीति कहा जाता है। इस नीति के अंतर्गत कई गतिविधयों को, जो सरकारी क्षेत्र द्वारा ही की जाती थीं, निजी क्षेत्र के लिए भी खोल दिया गया। निजी क्षेत्र को कई प्रतिबंध से भी मुक्त कर दिया गया। उन्हें उद्योग प्रारंभ करने तथा व्यापारिक गतिविधया चलाने के लिए कई प्रकार की रियायतें भी दी गई। देश के बाहर से उद्योगपतियों एवं व्यापारियों को उत्पादन करने तथा अपना माल और सेवाए भारत में बेचने के लिए आमंत्रित किया गया। कई विदेशी वस्तुओं को, जिन्हें पहले भारत में बेचने की अनुमति नहीं थी, अब अनुमति दी जा रही है।
भारत में भूमंडलीकरण के अंतर्गत विगत एक दशक में कई विदेशी कंपनियों द्वारा मोटर गाड़ियों, सूचना प्रौद्योगिकी, इलैक्टरॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के क्षेत्र में उत्पादन इकाइया लगाई गई हैं। इससे भी बढ़कर कई उपभोक्ता वस्तुओं विशेषत: इलैक्ट्रानिक्स उद्योग में जैसे रेडियो, टेलीविजन और अन्य घरेलू उपकरणों की कीमतें घटी हैं। दूरसंचार क्षेत्र ने असाधारण प्रगति की है। अतीत में जहा हम टेलीविजन पर एक या दो चैनल देख पाते थे उसके स्थान पर अब हम अनेक चैनल देख सकते हैं। हमारे यहाँ सेल्यूलर फोन प्रयोग करने वालों की संख्या लगभग दो करोड़ हो गई है, कंप्यूटर और अन्य आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग खूब बढ़ा है। जब विकासशील देशों को व्यापार के लिए विकसित देशों से सौदेबाजी करनी होती है तो भारत एक नेता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक क्षेत्र जिसमें भूमंडलीकरण भारत के लिए उपयोगी नहीं है वह है – रोजगार पैदा करना। यद्यपि इसने कुछ अत्यधक कुशल कारीगरों को अधिक कमाई के अवसर प्रदान किए परंतु भूमंडलीकरण व्यापक स्तर पर रोजगार पैदा करने में असफल रहा। अभी कॄषि को, जो भारत की रीढ़ की हड्डी है, भूमंडलीकरण का लाभ मिलना शेष है। भारत के अनेक भू-भागों को विश्व के अन्य भागों में उपलब्ध भिन्न प्रकार की प्रौद्योगिकी का कुशलता से प्रयोग कर सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। विकसित देशों में खेती के लिए अपनाए जाने वाले तरीकों को अपनाने के लिए भारतीय कॄषको शिक्षित करना है। यहाँ अस्पतालों को अधिक आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता है। भूमंडलीकरण द्वारा अभी भारत के लाखों घरों में सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध करवानी है।अत: भूमंडलीकरण एक अनुत्क्रिमणीय प्रक्रिया है। इसका प्रभाव विश्व में सर्वत्र देखा जा सकता है। विश्व के एक भाग के लोग अन्य भाग के लोगों के साथ अंतर्क्रिया कर रहे हैं। नि:संदेह इस प्रकार के व्यवहार की अपनी समस्याए होती हैं। लेकिन हमें इसके उज्ज्वल पक्ष की ओर देखना चाहिए और हमें अपने लोगों के हित में काम करना चाहिए।
Vishwakalyan ko paribhashit kijiye tatha vaishvikaran ka shiksha vyavastha par kya prabhav padta hai samjhaie
Vaishvikaran ke vibhinn aayamo ki ingit kare
Rastriy madhymik shiksha abhiyan se aap qya abhipray he sarvbhomik manav mulya ko bdane me shiksha ke yogdan ka varnan
Bhumandali karan ka shiksha par prabhaw, or shramik par pabhaw
Discuss the importance of globalization and effects on Indian education
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