अमेरिका की दलीय प्रणाली की विशेषता
जब भी हम अमेरिकी राजनीति के बारे में सोचते हैं तो डेमोक्रेट और रिपब्लिकन का ही ध्यान आता है। यहां के राजनीतिक परिदृश्य पर इन दोनों पार्टियों का प्रभाव इतना ज्यादा रहा है कि इस बात की कल्पना करना भी मुश्किल होता है कि देश में कोई और प्रतिद्वंद्वी भी हैं या और तीसरे राजनीतिक दल भी मैदान में हो सकते हैं।
वर्ष 2013 के गैलप सर्वेक्षण के मुताबिक, 60 प्रतिशत अमेरिकी यह महसूस करते हैं कि तीसरे प्रमुख राजनीतिक दल की आवश्यकता है।
साफ है कि बहुत से अमेरिकी लोगों को इस बात की जानकारी नहीं हैं कि वहां तीसरी राजनीतिक ताकत के रूप में कई दलों की मौजूदगी है जैसे कि लिबर्र्टेरियन पार्टी, ग्रीन पार्टी, नैचुरल लॉ पार्टी और कॉन्स्टीट्यूशन पार्टी आदि। इन राजनीतिक दलों को अप्रैल 2016 के आंकड़ों के अनुसार 10 राज्यों में मान्यता भी हासिल है।
लंबा और गतिशील इतिहास
ऑस्टिन में टेक्सॅस यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के प्रोफेसर रॉबर्ट जेनसेन के अनुसार, ‘‘अमेरिका में चुनावी व्यवस्था काफी हद तक दो दलीय प्रणाली के पक्ष में झुकी है, लेकिन इस देश की राजनीति में तीसरे दलों का भी लंबा और महत्वपूर्ण इतिहास रहा है।
अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति जॉन एडम्स ने एक बार कहा था कि इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि यह देश ‘‘दो राजनीतिक दलों के बीच बंट जाए, हरेक अपने नेता के तहत व्यवस्थित और पार्टियां एक-दूसरे के विरोध में काम करती रहें। विनम्रता के साथ मेरा मानना है कि यह संविधान के तहत सबसे बड़ी राजनीतिक बुराई होगी।’’
प्रोफेसर जेनसेन बताते हैं, ‘‘देश में दलीय व्य्वस्था की नींव जॉर्ज वाशिंगटन के समय ही पड़ गई थी, जब अलेक्जेंडर हैमिल्टन और टॉमस जैफरसन के बीच इस बात को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ था कि अमेरिका को कृषि प्रधान देश बने रहना चाहिए या फिर उसे एक औद्योगिक राष्ट्र के रूप में खुद को विकसित करना चाहिए।’’ 1850 के दशक में दास प्रथा के कारण पार्टियों के संक्रमण का था, जब व्हिग्स खत्म हो गए और रिपब्लिकन का जन्म हुआ। इसी समय अब्राहम लिंकन की विजय ने रिपब्लिकन पार्टी को मजबूती से स्थापित कर दिया जो इस समय तक राजनीतिक पटल पर एक तीसरे राजनीतिक दल की हैसियत ही रखती थी। अब तक किसी भी तीसरे राजनीतिक दल के किसी अन्य सदस्य ने राष्ट्रपति चुनाव नहीं जीता है।
मुद्दों और मतदाताओं पर प्रभाव
कई बार तीसरे दल उन गुटों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो प्रमुख राजनीतिक दलों से नीतिगत मतभेदों के चलते अलग हो गए। ऐसे राजनीतिक दल पॉपुलर और इलेक्टोरल कॉलेज वोट हासिल करने में सबसे ज्यादा सफल रहे। वर्ष 1912 में पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट ने प्रोग्रेसिव पार्टी (जिसे बुल मूज पार्टी भी कहा जाता है) के उम्मीदवार के रूप में रिपब्लिकन उम्मीदवार विलियम होवार्ड ट़फ्ट के खिलाफ चुनाव लड़ा था। स्ट्रोम थॉर्मंड ने 1948 में डेमोक्रेटिक पार्टी इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि वह राष्ट्रपति हेनरी एस. ट्रूमैन के नागरिक अधिकार कार्यक्रम का विरोध कर रहे थे। बाद में वह स्टेट्स राइट्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बन गए।
तीसरे दलों ने महिला उत्पीड़न, न्याय संगत श्रम कानून और बाल श्रम निषेध जैसे मसलों को गंभीरता से उठाया है। 19वीं सदी की शुरुआत से ही 40 घंटे के कार्य सप्ताह को लेकर सोशलिस्ट पार्टी के लगातार प्रयासों का ही नतीजा था कि 1938 में फेयर लेबर स्टैंडर्ड एक्ट को पारित किया गया। वर्ष 1992 में राष्ट्रपति पद के निर्दलीय उम्मीदवार टेक्सॅस के अरबपति उद्योगपति हेनरी रॉस पेरो ने ही सबसे पहले फेडेरल बजट में घाटे को कम करने के मसले को उठाया था। उस समय यह मसला डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टियों के लिए लोकप्रिय चुनावी मसला नहीं था। पेरो ने उस वर्ष कुल मतदान के 19 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रहे।
यहां यह बात भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनावों में जब कांटे का मुकाबला हो तो बाहरी उम्मीदवार वोट काट कर किसी प्रमुख दल से राष्ट्रपति पद की जीत को छीन सकने की स्थिति में होते हैं।
बहुत से डेमोक्रेट ये मानते हैं कि वर्ष 2000 के चुनावों में ग्रीन पार्टी के उम्मीदवार रॉल्फ नेडर की वजह से ही अल गोर चुनाव हार गए थे। फ्लोरिडा में जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और गोर के मतों में अंतर सिर्फ 537 मतों का था जबकि नेडर ने 97,488 वोट उस राज्य में हासिल किए थे। वहां के चुनाव सर्वेक्षणों ने इस बात के संकेत दिए ते कि अगर वहां नेडर न खड़े हुए होते तो ये वोट गोर के पक्ष में जा सकते थे।
इससे पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है। वर्ष 1912 में रूज़वेल्ट ने तीसरे दल के उम्मीदवार के रूप मे 27 प्रतिशत वोट हासिल कर लिए जिससे रिपब्लिकन वोटों का बंटवारा हो गया और राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेट उम्मीदवार वुड्रो विल्सन ने जीत हासिल कर ली। 1968 में जॉर्ज वॉलेस और 1992 में रॉस पेरो ने दोनों महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों के काफी वोट काटे थे।
न्यू जर्सी में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर रॉबर्ट सीन विलेंट्ज ने पीबीएस न्यूज़ऑवर में लिखे अपने लेख मे कहा है, ‘‘तीसरे दलों का आचरण काफी कुछ झकझोरने वाले विरोधी की तरह रहा है। ये दल आमतौर पर ऐसे मुद्दों को उठाते हैं जो महत्वपूर्ण दलों की प्राथमिकता में नहीं होते।’’ टेक्सॅस यूनिवर्सिटी के ऑस्टिन कॉलेज ऑफ लिबरल आर्ट्स के डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट के प्रख्यात प्रोफेसर सीन एम. थेरिऑल्ट भी ऐसा मानते हैं। उनके अनुसार, ‘‘चुनावी मौसम में यही एक तरीका है जिससे वे अपने मुद्दों की मदद कर सकते हैं। उनके उम्मीदवार का प्रदर्शन जितना बढि़या होगा, उतनी ही संभावना उनकी सबसे कम पसंद वाले उम्मीदवार के जीतने की होगी।’’
राजनीतिक गुमनामी
तीसरे दल ऐसी स्थिति में क्यों पहुंच जाते हैं कि उनका कोई महत्व नहीं रह जाता, इस बारे में थेरिऑल्ट कहते हैं, ‘‘अमेरिकी निर्वाचन व्यवस्था कुछ इस तरह की है कि उन्हीं राजनीतिक दलों को ऑटोमेटिक बैलट पहुंच मिलती है जो चुनावों में सफलता हासिल करते रहे हों। इसीलिए यहां तीसरे दल एक दुष्चक्र में फंसे रहते हैं।’’ उन्हें दूसरी और दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है, जैसे कि उनके लिए चंदा देने वाले भी वही लोग हैं जो बड़ी पार्टियों को देते हैं लेकिन उनका हिस्सा काफी कम होता है। ‘‘यही नहीं, ऐसी पार्टियां अक्सर किसी एक नेता जैसे कि रॉस पेरो, सरीखे के इर्दगिर्द एक मसले को लेकर एकजुट होकर चुनाव लड़ती हैं जो हो सकता है जनता को उतना न छुए। इन्हीं वजहों से उन्हें मीडिया कवरेज भी ज्यादा नहीं मिलता।’’
उनके अनुसार, ‘‘किसी तीसरे दल के उत्थान के लिए ज़रूरी है कि यह उस पार्टी को नुकसान पहुंचाए जिसके करीब हो और उस पार्टी की मदद करे जिसे यह सबसे कम पसंद करे।’’
लोकतांत्रिक व्यवस्था में तीसरे दलों की महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन आज की स्थिति में अमेरिका में उनकी बहुत सीमित भूमिका है। थेरिऑल्ट कहते हैं, ‘‘अगर हमारे यहां आनुपातिक प्रतिनिधित्व वाली संसदीय व्यवस्था होती तो ऐसे तीसरे दलों की भूमिका कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होती। लेकिन ऐसा है नहीं और यही वह कारण है जिसके चलते अमेरिका में तीसरे दल इतनी कमजोर स्थिति में हैं।’’
परोमिता पेन पत्रकार हैं। वह ऑस्टिन, टेक्सॅस में रहती हैं।
कौन संचालित करता है चुनाव?
अमेरिका में चुनाव स्थानीय स्तर पर ही होते हैं, चाहे वे फेडेरल ऑफिस के लिए ही हों। हज़ारों प्रशासक- नागरिक सेवा कर्मी जो काउंटी या नगर अधिकारी या क्लर्क होते हैं, अमेरिकी चुनावों के आयोजन और संचालन के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। ये प्रशासक महत्वपूर्ण और जटिल कामों को अंजाम देते हैं:
चुनावों की तारीख तय करना।
उम्मीदवारों की पात्रता को प्रमाणित करना।
पात्र मतदाताओं के पंजीकरण और पंजीकृत मतदाताओं की सूची बनाने का काम।
मतदान उपकरणों को चुनना।
मतदान पत्र का डिज़ाइन।
चुनाव के दिन मतदान के लिए बड़ी संख्या में अस्थायी कर्मियों की व्यवस्था।
वोट गिनने और परिणामों को प्रमाणित करने का काम।
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