राष्ट्रीय चिन्ह पर निबंध
प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र के लिए उसके स्वतन्त्र अस्तित्व की पहचान हेतु कुछ प्रतीक होते हैं, जो उस राष्ट्र की पहचान होते हैं । उन प्रतीकों में सर्वप्रमुख प्रतीक होता है: उसका राष्ट्रीय झण्डा या ध्वज । उसका राज्य चिन्ह । उसका राष्ट्रीय गान । उसका राष्ट्रगीत, उसका राष्ट्रीय पक्षी तथा राष्ट्रीय पंचांग ।
राष्ट्रीय प्रतीकों का हर राष्ट्र के लिए बड़ा ही महत्त्व होता है; क्योंकि इन्हीं के माध्यम से वह राष्ट्र विश्व में माना जाता है । उसके अस्तित्व की पहचान इन्हीं प्रतीकों से होती है । जब कोई राष्ट्र गुलाम होता है, तो यही चिन्ह उसकी राष्ट्रीयता का प्रतीक बनकर उसके संघर्ष को एक गति देता है । राष्ट्र के इन प्रतीकों के प्रति वहां के निवासियों में एक गर्व भरा रोमांच होता है ।
राष्ट्रीय महोत्सवों के अवसर पर यह प्रतीक समूचे देश को एकता के सूत्र में बांधते हैं । भारत जैसे विविध धर्मावलम्बी राष्ट्र के लिए उसे भावात्मक एकता के साथ बांधने में राष्ट्रीय प्रतीकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है ।
स्वतन्त्र एवं लोकतन्त्रात्मक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भारत के विभिन्न राष्ट्रीय प्रतीकों में राष्ट्रध्वज का सर्वाधिक महत्त्व है । भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है । यह हाथ से काते हुए सूत और हाथ से बने हुए खादी के कपड़े का बना होता है, जो सूती या रेशमी हो सकता है । झंडे की आकृति आयताकार होती है, जिसकी लम्बाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है ।
इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की तीन समानान्तर पट्टियां होती हैं । बीच की श्वेत पट्टी पर नीले रंग का चक्र अंकित होता है, जिसमें चौबीस तीलियां होती हैं, जो अशोक स्तम्भ के शीर्ष भाग पर अंकित अन्तिम चक्र की अनुकृति है ।
यह चक्र मौर्य सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में स्थापित सिंह शीर्ष स्तम्भ से लिया गया है । राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप संविधान निर्मात्री सभा द्वारा 22 जुलाई, 1947 को अपनाया गया और 14 अगस्त, 1947 को प्रस्तुत किया गया ।
राष्ट्रध्वज के तीनों रंग तथा चक्र विशेष अर्थ रखते हैं: केसरिया रंग हमारे त्याग और शौर्य का प्रतीक है । श्वेत रंग हमारी सत्यनिष्ठा तथा पवित्रता का तथा हरा रंग हमारी शरच श्यामल मातृभूमि के प्रति हमारे प्रेम एवं समृद्धि का प्रतीक है ।
नीला चक्र हमारी सारकृतिक निष्ठा एवं गतिशीलता का पारेचायक है । जब भी हम राष्ट्रीय ध्वज को देखते हैं, तो हमारे मन में देशभक्ति, देशाभिमान का भाव जागत होता है । साथ ही यह त्याग, देशप्रेम, गतिशीलता आदि महान् जीवन मूल्यों का सन्देशवाहक है । राष्ट्रध्वज हमारे विभिन्नताओं से भरे इस राष्ट्र के नागरिकों की भावात्मक एकता का केन्द्र है ।
यह हमारी सार्वभौमिक सत्ता, स्वाभिमान, शौर्य का परिचय देते रहता है । वह हमारी मान-मर्यादा तथा आन-बान का प्रतीक है । विदेशी आक्रमणकारी को देश से भगीने के लिए हम इसी राष्ट्रध्वज के तले एकत्र हुए थे । इसकी सुरक्षा, इसकी शान हमारे देश की शान है ।
हम इसे कभी झुकने नहीं देंगे । इसकी आन, बान और शान के लिए हम मर मिटेंगे । कवि श्यामलाल गुप्त पार्षद ने इसकी महिमा का गान इस तरह किया है: विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊंचा रहे हमारा ।
सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला ।। वीरों को हर्षाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा । स्वतन्त्रता के भीषण रण में, लखकर बड़े जोश क्षण-क्षण में ।।
कांपे शत्रु देखकर मन में, मिट जायें भय संकट सारा । इस झण्डे के नीचे निर्भय ले, स्वराज्य यह अविचल निश्चय ।। बोले भारतमाता की जय, स्वतन्त्रता हो ध्येय हमारा । आओ प्यारे ! वीरों आओ ! देश धर्म पर बलि-बलि जाओ ।। एक साथ सब मिलकर गाओ, प्यारा भारत देश हमारा ।
इसकी शान न जाने पाये, चाहे जान भले ही चली जाये ।। विश्वविजय करके दिखलाये, तब होवे क्या पूर्ण हमारा । विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊंचा रहे हमारा ।। राष्ट्रीय ध्वज के फहराने की अपनी मर्यादा है तथा कुछ सीमाएं हैं । इसके कुछ विशेष नियम हैं, जिनका पालन राष्ट्रीय दायित्व एवं परम कर्तव्य है । ध्वजारोहण केवल राष्ट्रीय दिवसों तथा राष्ट्रीय महत्व के कुछ क्षणों पर ही किया जा सकता है ।
स्वाधीनता दिवस तथा गणतन्त्र दिवस पर स्थान-स्थान पर राष्ट्रीय ध्वज को फहरा सकते हैं । सामान्य दिनों में इसे केवल कुछ राजकीय भवनों, संस्थाओं की इमारतों पर फहराया जाता है । सैनिक छावनियों, विदेशों में भारतीय दूतावास अपनी पहचान के लिए फहराते हैं ।
राष्ट्रीय ध्वज को अपने शरीर पर धारण नहीं करते हैं । राष्ट्रीय ध्वज के साथ यदि अन्य कोई ध्वज फहराते हैं, तो उसके बायीं ओर रखे जाते हैं । राष्ट्रीय ध्वज प्रातःकाल फहराया जाता है एवं सायंकाल उसे उतार लिया जाता है । राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ध्वज दण्ड के मध्य भाग में फहराया जाता है ।
राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग पर लगे प्रतिबन्ध को गणतन्त्र दिवस 2002 को समाप्त कर दिया गया । इसे अब आम नागरिक भी बेरोक-टोक इस्तेमाल कर सकता है, बशर्ते इसका अपमान न होने पाये । राष्ट्रीय ध्वज को फहराने का सभी नागरिकों को संवैधानिक अधिकार है ।
भारत का राज्य चिन्ह: भारत का राज्य चिन्ह मौर्य सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में स्थापित सिंह स्तम्भ से लिया गया है । भारत सरकार द्वारा यह चिन्ह 26 जनवरी, 1950 को अपनाया गया । इस राजचिन्ह के मूल स्तम्भ के शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक दूसरे के विपरीत दिशा में घूमकर बैठे हैं । देखने पर यह तीन ही दिखाई पड़ते है । इसके नीचे घण्टे के आकार के पह्य के ऊपर एक चित्रवल्लरी में एक हाथी है ।
सिंह शीर्ष के नीचे स्थित है । पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दायीं ओर एक सांड और बायीं ओर चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा है तथा एक सिंह की उभरी हुई आकृति है, जिसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं । आधार के पद्य को खाली छोड़ दिया गया है । यह सम्पूर्ण स्तम्भ एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया है । फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद से ‘सत्श्वमेव जयते’ लिखा गया है, जिसकी लिपि देवनागरी है ।
जनगण मंगलदायक जय हे, भारत भाग्य-विधाता ।। जय हे! जय हे । जय हे! जय जय जय, जय हे! (2) अहरह तव आइकन प्रचारित, सुनि तव उदार वाणी, हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसिक, मुसलमान, क्रिस्तानी ।।
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पासे, प्रेम हार हृदय गाथा । जन-गण ऐक्य विधायक जय हे, भारत भाग्य विधाता ।। जय हे! जय हे! जय हे । जय-जय-जय-जय हे ।
(3) पतन अभुदय बसुर पंथा, युग-युग धावित यात्री । हे चिर सारथि! तव रथ चक्रे मुखरित पथ दिन-रात्रि ।। दारूण विप्लव मांझे, तव शंखध्वनि बाजे, संकट दुःख त्राता । जन-गण पथ परिचायक जय हे! भारत भाग्य-विधाता ।। जय हे! जय हे! जय हे! जय, जय, जय, जय हे ।
(4) घोर तिमिर घन, निविड़ निशीथे, पीड़ित मूर्च्छिंत देशे । जाग्रत छिलो तव अविचल मंगल, नत नयने अनिमेषे ।। दुःस्वप्ने अतिके, रक्षा करिले अंके, स्नेहमयी तुमि माता । जन-गण दुःखत्रायक जय हे । भारत भाग्य विधाता ।। जय हे! जय हे! जय हे! जय, जय, जय, जय हे ।
(5) रात्रि प्रभातिल उदित रविच्छवि पूर्ण उदय गिरि भाले । गाहे विहंगम पुन्य समीरन नवजीवन रस ढाले ।। तव करूणारूण रागे निद्रित भारत जागे, तव चरणे नत माथा । जय, जय, जय हे! जय राजेश्वर भारत-भाग्य विधाता ।। जय हे! जय हे! जय हे! जय, जय, जय, जय हे ।।
वंदेमातरम यह भारत का राष्ट्रीय गीत है । इसे बंकिमचन्द्र द्वारा रचित ”आनंदमठ” से लिया गया है । संविधान परिषद् द्वारा इसे 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गीत का गौरव मिला । वंदेमातरम । सुजलाम, सुपालाम, मलयज, शीतलाम शस्य श्यामलाम मातरम्! वंदे मातरम् शुम्र ज्योल्लां पुलकितयामिनीम् फुल्लकुसुमित दुमदल शोभिनीम सुहासिनीम सुमधुर भाषिणीम् ! सुखदाम, बरदा! मातरम् वंदेमातरम! त्रिशकोटि कंठ कल कल निनाद कराले द्वित्रिशकोटिभुजै धृत खर करवाले के बोले मां ।
तुमि अबले बहुबल धारिणी ! नमामि तारिणीम् रिपुदल वारिणी मातरम् वंदेमातरम्! श्यामलां, सरलाम! सुस्मितां भूषिताम् धरणीं भरणी मातरम् वंदेमातरम! इसके पांच पद हैं, किन्तु इसका पहला पद ही स्वीकार किया गया है । इसकी अवधि एक मिनट पांच सैकेण्ड में गाने की है ।
राष्ट्रीय पक्षी: मयूर या मोर {पावो किस्टेसस} को भारत के राष्ट्रीय पक्षी के रूप में मान्यता दी गयी है । भारतीय वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत इसे पूर्ण संरक्षण प्राप्त है ।
राष्ट्रीय पशु: भारत का राष्ट्रीय पशु शेर है । इसे भारत में रॉयल बंगाल के नाम से जाना जाता है ।
राष्ट्रीय पुष्प: भारत का राष्ट्रीय पुष्प कमल {निलम्बो न्यूसीफेरा} है । यह हल्का गुलाबी होता है । इसे शान्ति का प्रतीक माना जाता है ।
राष्ट्रीय पंचांग: भारतीय संविधान में 22 मार्च को राष्ट्रीय पंचांग को मान्यता प्रदान की गयी । ग्रिगेरियन कैलेण्डर और राष्ट्रीय पंचांग की तिथियों में समानता है । सामान्यत: चैत्र का पहला दिन 22 मार्च को पड़ता
है । भारत के राष्ट्रीय पंचांग को जिन सरकारी उद्देश्यों के लिए अपनाया गया है, वे हैं:
1. भारत का राजपत्र, 2. आकाशवाणी के समाचार प्रसारण, 3. भारतीय सरकार द्वारा जारी किया गया कैलेण्डर, 4. भारत सरकार द्वारा जारी की गयी सार्वजनिक विज्ञप्तियां । राष्ट्रीय पंचांग के मास हैं: चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, कुंवार, कार्तिक, अग्रहण, पौष, माघ, फाल्युन ।
राष्ट्रभाषा: राष्ट्रभाषा हिन्दी को हमारे देश की राष्ट्रभाषा होने का गौरव हासिल है ।
इस प्रकार राष्ट्रीय प्रतीक किसी भी राष्ट्र की अस्मिता की पहचान हैं । इन पर किसी भी देश के नागरिकों को गर्व होता है । हमें इनके गौरव व मर्यादा का हमेशा ध्यान रखना चाहिए । इनका सम्मान राष्ट्र का सम्मान है । इनका अपमान राष्ट्र का अपमान है । राष्ट्र के प्रतीक हमें राष्ट्रीय एकता तथा भावात्मक एकता के सूत्र में बांधते हैं ।
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