Chattanon Ka Vargikarann pdf चट्टानों का वर्गीकरण pdf

चट्टानों का वर्गीकरण pdf

GkExams on 22-02-2019

भारत में पृथ्वी के सभी भूवैज्ञानिक कालों में निर्मित चट्टानें पायी जाती हैं| इसीलिए भारत की भूवैज्ञानिक संरचना विविधतापूर्ण है| चट्टानों की विविधता के कारण ही भारत में विविध तरह के खनिज पाये जाते हैं| भूवैज्ञानिक इतिहास के आधार पर भारत में पायी जाने वाली चट्टानों को उनके निर्माण क्रम (प्राचीन से नवीन) के अनुसार क्रमशः आर्कियन, धारवाड़, कडप्पा, विंध्यन, गोंडवाना, दक्कन ट्रेप, टर्शियरी व क्वार्टनरी क्रम की चट्टानों में वर्गीकृत किया गया है|


आर्कियन क्रम की चट्टानें


• ये सर्वाधिक प्राचीन और प्राथमिक आग्नेय चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण तप्त व पिघली हुई पृथ्वी के ठंडे होने के दौरान हुआ था|


• वर्तमान में अत्यधिक रूपान्तरण के कारण इन चट्टानों का मूल रूप नष्ट हो चुका है|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं|


• आर्कियन क्रम की चट्टानें मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छोटानागपुर का पठार, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान और बुंदेलखंड में पायी जाती हैं|


धारवाड़ क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है| इसलिए ये अवसादी चट्टानें हैं|


• ये सबसे प्राचीन अवसादी चट्टानें हैं|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं| इसके दो कारण माने जाते है- या तो उस समय तक जीवों की उत्पत्ति नहीं हुई थी या फिर लंबा समय बीत जाने के कारण इन चट्टानों के जीवाश्म नष्ट हो गए हैं|


अरावली पर्वतमाला, जोकि विश्व के सबसे प्राचीन वलित पर्वतों में से है, का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है|


• इस क्रम की चट्टानें कर्नाटक के धारवाड़ व शिमोगा जिले में पायी जाती हैं, इसीलिए इन्हें ‘धारवाड़’ नाम दिया गया है|


• इसके अलावा ये चट्टानें कावेरी नदी घाटी, बेल्लारी जिला, जबलपुर की सासर पर्वतमाला, नागपुर और गुजरात की चम्पानेर पर्वतमाला में पायी जाती हैं|


• उत्तर भारत में धारवाड़ क्रम की चट्टानें हिमालय की लद्दाख, जास्कर, गढ़वाल और कुमायूं श्रेणी में पायी जाती हैं|


• धारवाड़ क्रम की चट्टानें आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अधिकांश धात्विक खनिज इसी क्रम की चट्टानों में पाये जाते है|


कडप्पा क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं क्योंकि इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है|


• आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले में इस क्रम की चट्टानें अर्द्ध-वृत्ताकार क्षेत्र में विस्तृत पायी जाती हैं, इसीलिए इनका नाम ‘कडप्पा’ रखा गया है|


• ये चट्टानें बलुआ पत्थर, चुना पत्थर, एस्बेस्टस और संगमरमर की चट्टानों के लिए प्रसिद्ध हैं|


• कडप्पा चट्टानें राजस्थान में भी पायी जाती हैं|


विंध्यन क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण कडप्पा चट्टानों के बाद अवसादों के निक्षेपण से हुआ है|


• इन चट्टानों में जीवाश्मों के भी प्रमाण पाये जाते हैं|


• विंध्यन क्रम की चट्टानें मालवा पठार, सोन घाटी और बुंदेलखंड आदि प्रदेशों में पायी जाती है|


• इस संरचना की चट्टानों का उपयोग इमारतों व घरों के निर्माण कार्य में किया जाता है| लाल किला, जामा मस्जिद और सांची स्तूप जैसी कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण इस संरचना में पायी जाने वाले लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों से हुआ है| इसके अलावा चूना पत्थर, डोलोमाइट आदि चट्टानें भी इस संरचना में पायी जाती हैं|


• मध्य प्रदेश की पन्ना की खानें और कर्नाटक की गोलकुंडा की खानें, जहां से हीरा प्राप्त होता है, विंध्यन क्रम की चट्टानों में ही स्थित हैं|


गोंडवाना क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण कार्बनीफेरस से जुरासिक काल के बीच हुआ था|


• ‘गोंडवाना’ शब्द की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के ‘गोंड’ क्षेत्र के नाम पर हुई है|


• भारत का अधिकांश कोयला गोंडवाना क्रम की चट्टानों में ही पाया जाता है|


• कार्बनीफेरस काल के दौरान प्रायद्वीपीय भारत में अनेक दरारों का निर्माण हुआ| इन दरारों के सहारे भूमि के धँसने से बेसिननुमा गर्तों का निर्माण हुआ| इन्हीं गर्तों में तत्कालीन वनस्पति के दबने से और उस पर हुई ताप व दाब की क्रिया से कोयले का निर्माण हुआ| वर्तमान में कोयला भारत की दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी व वर्धा आदि नदी घाटियों में पाया जाता है


दक्कन ट्रेप


• मेसोजोइक युग के अंतिम समय में अर्थात क्रिटेशस काल में प्रायद्वीपीय भारत में हुई दरारी ज्वालामुखी क्रिया से सीढ़ीनुमा दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ है|


• इसमें बसाल्टीय चट्टानें पायी जाती हैं, जोकि बहुत ही कठोर होती हैं दीर्घकाल में इनके निक्षेपण से काली या रेगुर मृदा का निर्माण होता है|


• यह संरचना मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में पायी जाती है|


टर्शियरी क्रम की चट्टानें


• टर्शियरी कल्प (Epoh) को कालक्रम के अनुसार चार भागों में बांटा जाता है- (a) इओसीन (b) ओलिगोसीन (c) मायोसीन (d) प्लायोसीन |


• इन चट्टानों का निर्माण इओसीन से लेकर प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• इस कल्प के दौरान हिमालय का निर्माण निम्नलिखित क्रम से हुआ है:


I. वृहत हिमालय का निर्माण ओलिगोसीन काल के दौरान हुआ था|


II. लघु या मध्य हिमालय का निर्माण मायोसीन काल के दौरान हुआ था|


III. शिवालिक हिमालय का निर्माण प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• असम, गुजरात व राजस्थान से मिलने वाला खनिज तेल इओसीन और ओलिगोसीन काल की चट्टानों से ही प्राप्त होता है|


क्वार्टनरी क्रम की चट्टानें


• ये चट्टानें गंगा एवं सिंधु के मैदान में पायी जाती है|


• क्वार्टनरी युग को कालक्रम के अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है- प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन काल|


• ऊपरी एवं मध्य प्लीस्टोसीन काल में पुरानी जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ था, जिसे आज ‘बांगर’ नाम से जाना जाता है|


• प्लीस्टोसीन के अन्तिम समय से लेकर होलोसीन तक जिस नवीन जलोढ़ मृदा का निर्माण जारी रहा, उसे ‘खादर’ कहा जाता है|


• कश्मीर की घाटी का निर्माण प्लीस्टोसीन काल में ही हुआ था| कश्मीर की घाटी प्रारम्भ में एक झील थी, लेकिन इसमें लगातार मलबे के निक्षेपित होते रहने से यह घाटी रूप में बदल गयी, जिसे ‘करेवा’ कहा जाता है|


• प्लीस्टोसीन काल के निक्षेपण थार मरुस्थल में भी पाये जाते हैं|


• ‘कच्छ का रन’ पूर्व में समुद्र का भाग था, लेकिन प्लीस्टोसीन व होलोसीन काल के दौरान यह अवसादी निक्षेपों से भर गया|



Advertisements

GkExams on 22-02-2019

भारत में पृथ्वी के सभी भूवैज्ञानिक कालों में निर्मित चट्टानें पायी जाती हैं| इसीलिए भारत की भूवैज्ञानिक संरचना विविधतापूर्ण है| चट्टानों की विविधता के कारण ही भारत में विविध तरह के खनिज पाये जाते हैं| भूवैज्ञानिक इतिहास के आधार पर भारत में पायी जाने वाली चट्टानों को उनके निर्माण क्रम (प्राचीन से नवीन) के अनुसार क्रमशः आर्कियन, धारवाड़, कडप्पा, विंध्यन, गोंडवाना, दक्कन ट्रेप, टर्शियरी व क्वार्टनरी क्रम की चट्टानों में वर्गीकृत किया गया है|


आर्कियन क्रम की चट्टानें


• ये सर्वाधिक प्राचीन और प्राथमिक आग्नेय चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण तप्त व पिघली हुई पृथ्वी के ठंडे होने के दौरान हुआ था|


• वर्तमान में अत्यधिक रूपान्तरण के कारण इन चट्टानों का मूल रूप नष्ट हो चुका है|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं|


• आर्कियन क्रम की चट्टानें मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छोटानागपुर का पठार, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान और बुंदेलखंड में पायी जाती हैं|


धारवाड़ क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है| इसलिए ये अवसादी चट्टानें हैं|


• ये सबसे प्राचीन अवसादी चट्टानें हैं|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं| इसके दो कारण माने जाते है- या तो उस समय तक जीवों की उत्पत्ति नहीं हुई थी या फिर लंबा समय बीत जाने के कारण इन चट्टानों के जीवाश्म नष्ट हो गए हैं|


अरावली पर्वतमाला, जोकि विश्व के सबसे प्राचीन वलित पर्वतों में से है, का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है|


• इस क्रम की चट्टानें कर्नाटक के धारवाड़ व शिमोगा जिले में पायी जाती हैं, इसीलिए इन्हें ‘धारवाड़’ नाम दिया गया है|


• इसके अलावा ये चट्टानें कावेरी नदी घाटी, बेल्लारी जिला, जबलपुर की सासर पर्वतमाला, नागपुर और गुजरात की चम्पानेर पर्वतमाला में पायी जाती हैं|


• उत्तर भारत में धारवाड़ क्रम की चट्टानें हिमालय की लद्दाख, जास्कर, गढ़वाल और कुमायूं श्रेणी में पायी जाती हैं|


• धारवाड़ क्रम की चट्टानें आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अधिकांश धात्विक खनिज इसी क्रम की चट्टानों में पाये जाते है|


कडप्पा क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं क्योंकि इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है|


• आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले में इस क्रम की चट्टानें अर्द्ध-वृत्ताकार क्षेत्र में विस्तृत पायी जाती हैं, इसीलिए इनका नाम ‘कडप्पा’ रखा गया है|


• ये चट्टानें बलुआ पत्थर, चुना पत्थर, एस्बेस्टस और संगमरमर की चट्टानों के लिए प्रसिद्ध हैं|


• कडप्पा चट्टानें राजस्थान में भी पायी जाती हैं|


विंध्यन क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण कडप्पा चट्टानों के बाद अवसादों के निक्षेपण से हुआ है|


• इन चट्टानों में जीवाश्मों के भी प्रमाण पाये जाते हैं|


• विंध्यन क्रम की चट्टानें मालवा पठार, सोन घाटी और बुंदेलखंड आदि प्रदेशों में पायी जाती है|


• इस संरचना की चट्टानों का उपयोग इमारतों व घरों के निर्माण कार्य में किया जाता है| लाल किला, जामा मस्जिद और सांची स्तूप जैसी कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण इस संरचना में पायी जाने वाले लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों से हुआ है| इसके अलावा चूना पत्थर, डोलोमाइट आदि चट्टानें भी इस संरचना में पायी जाती हैं|


• मध्य प्रदेश की पन्ना की खानें और कर्नाटक की गोलकुंडा की खानें, जहां से हीरा प्राप्त होता है, विंध्यन क्रम की चट्टानों में ही स्थित हैं|


गोंडवाना क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण कार्बनीफेरस से जुरासिक काल के बीच हुआ था|


• ‘गोंडवाना’ शब्द की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के ‘गोंड’ क्षेत्र के नाम पर हुई है|


• भारत का अधिकांश कोयला गोंडवाना क्रम की चट्टानों में ही पाया जाता है|


• कार्बनीफेरस काल के दौरान प्रायद्वीपीय भारत में अनेक दरारों का निर्माण हुआ| इन दरारों के सहारे भूमि के धँसने से बेसिननुमा गर्तों का निर्माण हुआ| इन्हीं गर्तों में तत्कालीन वनस्पति के दबने से और उस पर हुई ताप व दाब की क्रिया से कोयले का निर्माण हुआ| वर्तमान में कोयला भारत की दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी व वर्धा आदि नदी घाटियों में पाया जाता है


दक्कन ट्रेप


• मेसोजोइक युग के अंतिम समय में अर्थात क्रिटेशस काल में प्रायद्वीपीय भारत में हुई दरारी ज्वालामुखी क्रिया से सीढ़ीनुमा दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ है|


• इसमें बसाल्टीय चट्टानें पायी जाती हैं, जोकि बहुत ही कठोर होती हैं दीर्घकाल में इनके निक्षेपण से काली या रेगुर मृदा का निर्माण होता है|


• यह संरचना मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में पायी जाती है|


टर्शियरी क्रम की चट्टानें


• टर्शियरी कल्प (Epoh) को कालक्रम के अनुसार चार भागों में बांटा जाता है- (a) इओसीन (b) ओलिगोसीन (c) मायोसीन (d) प्लायोसीन |


• इन चट्टानों का निर्माण इओसीन से लेकर प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• इस कल्प के दौरान हिमालय का निर्माण निम्नलिखित क्रम से हुआ है:


I. वृहत हिमालय का निर्माण ओलिगोसीन काल के दौरान हुआ था|


II. लघु या मध्य हिमालय का निर्माण मायोसीन काल के दौरान हुआ था|


III. शिवालिक हिमालय का निर्माण प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• असम, गुजरात व राजस्थान से मिलने वाला खनिज तेल इओसीन और ओलिगोसीन काल की चट्टानों से ही प्राप्त होता है|


क्वार्टनरी क्रम की चट्टानें


• ये चट्टानें गंगा एवं सिंधु के मैदान में पायी जाती है|


• क्वार्टनरी युग को कालक्रम के अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है- प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन काल|


• ऊपरी एवं मध्य प्लीस्टोसीन काल में पुरानी जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ था, जिसे आज ‘बांगर’ नाम से जाना जाता है|


• प्लीस्टोसीन के अन्तिम समय से लेकर होलोसीन तक जिस नवीन जलोढ़ मृदा का निर्माण जारी रहा, उसे ‘खादर’ कहा जाता है|


• कश्मीर की घाटी का निर्माण प्लीस्टोसीन काल में ही हुआ था| कश्मीर की घाटी प्रारम्भ में एक झील थी, लेकिन इसमें लगातार मलबे के निक्षेपित होते रहने से यह घाटी रूप में बदल गयी, जिसे ‘करेवा’ कहा जाता है|


• प्लीस्टोसीन काल के निक्षेपण थार मरुस्थल में भी पाये जाते हैं|


• ‘कच्छ का रन’ पूर्व में समुद्र का भाग था, लेकिन प्लीस्टोसीन व होलोसीन काल के दौरान यह अवसादी निक्षेपों से भर गया|



Advertisements

GkExams on 22-02-2019

भारत में पृथ्वी के सभी भूवैज्ञानिक कालों में निर्मित चट्टानें पायी जाती हैं| इसीलिए भारत की भूवैज्ञानिक संरचना विविधतापूर्ण है| चट्टानों की विविधता के कारण ही भारत में विविध तरह के खनिज पाये जाते हैं| भूवैज्ञानिक इतिहास के आधार पर भारत में पायी जाने वाली चट्टानों को उनके निर्माण क्रम (प्राचीन से नवीन) के अनुसार क्रमशः आर्कियन, धारवाड़, कडप्पा, विंध्यन, गोंडवाना, दक्कन ट्रेप, टर्शियरी व क्वार्टनरी क्रम की चट्टानों में वर्गीकृत किया गया है|


आर्कियन क्रम की चट्टानें


• ये सर्वाधिक प्राचीन और प्राथमिक आग्नेय चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण तप्त व पिघली हुई पृथ्वी के ठंडे होने के दौरान हुआ था|


• वर्तमान में अत्यधिक रूपान्तरण के कारण इन चट्टानों का मूल रूप नष्ट हो चुका है|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं|


• आर्कियन क्रम की चट्टानें मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छोटानागपुर का पठार, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान और बुंदेलखंड में पायी जाती हैं|


धारवाड़ क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है| इसलिए ये अवसादी चट्टानें हैं|


• ये सबसे प्राचीन अवसादी चट्टानें हैं|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं| इसके दो कारण माने जाते है- या तो उस समय तक जीवों की उत्पत्ति नहीं हुई थी या फिर लंबा समय बीत जाने के कारण इन चट्टानों के जीवाश्म नष्ट हो गए हैं|


अरावली पर्वतमाला, जोकि विश्व के सबसे प्राचीन वलित पर्वतों में से है, का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है|


• इस क्रम की चट्टानें कर्नाटक के धारवाड़ व शिमोगा जिले में पायी जाती हैं, इसीलिए इन्हें ‘धारवाड़’ नाम दिया गया है|


• इसके अलावा ये चट्टानें कावेरी नदी घाटी, बेल्लारी जिला, जबलपुर की सासर पर्वतमाला, नागपुर और गुजरात की चम्पानेर पर्वतमाला में पायी जाती हैं|


• उत्तर भारत में धारवाड़ क्रम की चट्टानें हिमालय की लद्दाख, जास्कर, गढ़वाल और कुमायूं श्रेणी में पायी जाती हैं|


• धारवाड़ क्रम की चट्टानें आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अधिकांश धात्विक खनिज इसी क्रम की चट्टानों में पाये जाते है|


कडप्पा क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं क्योंकि इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है|


• आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले में इस क्रम की चट्टानें अर्द्ध-वृत्ताकार क्षेत्र में विस्तृत पायी जाती हैं, इसीलिए इनका नाम ‘कडप्पा’ रखा गया है|


• ये चट्टानें बलुआ पत्थर, चुना पत्थर, एस्बेस्टस और संगमरमर की चट्टानों के लिए प्रसिद्ध हैं|


• कडप्पा चट्टानें राजस्थान में भी पायी जाती हैं|


विंध्यन क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण कडप्पा चट्टानों के बाद अवसादों के निक्षेपण से हुआ है|


• इन चट्टानों में जीवाश्मों के भी प्रमाण पाये जाते हैं|


• विंध्यन क्रम की चट्टानें मालवा पठार, सोन घाटी और बुंदेलखंड आदि प्रदेशों में पायी जाती है|


• इस संरचना की चट्टानों का उपयोग इमारतों व घरों के निर्माण कार्य में किया जाता है| लाल किला, जामा मस्जिद और सांची स्तूप जैसी कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण इस संरचना में पायी जाने वाले लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों से हुआ है| इसके अलावा चूना पत्थर, डोलोमाइट आदि चट्टानें भी इस संरचना में पायी जाती हैं|


• मध्य प्रदेश की पन्ना की खानें और कर्नाटक की गोलकुंडा की खानें, जहां से हीरा प्राप्त होता है, विंध्यन क्रम की चट्टानों में ही स्थित हैं|


गोंडवाना क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण कार्बनीफेरस से जुरासिक काल के बीच हुआ था|


• ‘गोंडवाना’ शब्द की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के ‘गोंड’ क्षेत्र के नाम पर हुई है|


• भारत का अधिकांश कोयला गोंडवाना क्रम की चट्टानों में ही पाया जाता है|


• कार्बनीफेरस काल के दौरान प्रायद्वीपीय भारत में अनेक दरारों का निर्माण हुआ| इन दरारों के सहारे भूमि के धँसने से बेसिननुमा गर्तों का निर्माण हुआ| इन्हीं गर्तों में तत्कालीन वनस्पति के दबने से और उस पर हुई ताप व दाब की क्रिया से कोयले का निर्माण हुआ| वर्तमान में कोयला भारत की दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी व वर्धा आदि नदी घाटियों में पाया जाता है


दक्कन ट्रेप


• मेसोजोइक युग के अंतिम समय में अर्थात क्रिटेशस काल में प्रायद्वीपीय भारत में हुई दरारी ज्वालामुखी क्रिया से सीढ़ीनुमा दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ है|


• इसमें बसाल्टीय चट्टानें पायी जाती हैं, जोकि बहुत ही कठोर होती हैं दीर्घकाल में इनके निक्षेपण से काली या रेगुर मृदा का निर्माण होता है|


• यह संरचना मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में पायी जाती है|


टर्शियरी क्रम की चट्टानें


• टर्शियरी कल्प (Epoh) को कालक्रम के अनुसार चार भागों में बांटा जाता है- (a) इओसीन (b) ओलिगोसीन (c) मायोसीन (d) प्लायोसीन |


• इन चट्टानों का निर्माण इओसीन से लेकर प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• इस कल्प के दौरान हिमालय का निर्माण निम्नलिखित क्रम से हुआ है:


I. वृहत हिमालय का निर्माण ओलिगोसीन काल के दौरान हुआ था|


II. लघु या मध्य हिमालय का निर्माण मायोसीन काल के दौरान हुआ था|


III. शिवालिक हिमालय का निर्माण प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• असम, गुजरात व राजस्थान से मिलने वाला खनिज तेल इओसीन और ओलिगोसीन काल की चट्टानों से ही प्राप्त होता है|


क्वार्टनरी क्रम की चट्टानें


• ये चट्टानें गंगा एवं सिंधु के मैदान में पायी जाती है|


• क्वार्टनरी युग को कालक्रम के अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है- प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन काल|


• ऊपरी एवं मध्य प्लीस्टोसीन काल में पुरानी जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ था, जिसे आज ‘बांगर’ नाम से जाना जाता है|


• प्लीस्टोसीन के अन्तिम समय से लेकर होलोसीन तक जिस नवीन जलोढ़ मृदा का निर्माण जारी रहा, उसे ‘खादर’ कहा जाता है|


• कश्मीर की घाटी का निर्माण प्लीस्टोसीन काल में ही हुआ था| कश्मीर की घाटी प्रारम्भ में एक झील थी, लेकिन इसमें लगातार मलबे के निक्षेपित होते रहने से यह घाटी रूप में बदल गयी, जिसे ‘करेवा’ कहा जाता है|


• प्लीस्टोसीन काल के निक्षेपण थार मरुस्थल में भी पाये जाते हैं|


• ‘कच्छ का रन’ पूर्व में समुद्र का भाग था, लेकिन प्लीस्टोसीन व होलोसीन काल के दौरान यह अवसादी निक्षेपों से भर गया|



Advertisements

GkExams on 22-02-2019

भारत में पृथ्वी के सभी भूवैज्ञानिक कालों में निर्मित चट्टानें पायी जाती हैं| इसीलिए भारत की भूवैज्ञानिक संरचना विविधतापूर्ण है| चट्टानों की विविधता के कारण ही भारत में विविध तरह के खनिज पाये जाते हैं| भूवैज्ञानिक इतिहास के आधार पर भारत में पायी जाने वाली चट्टानों को उनके निर्माण क्रम (प्राचीन से नवीन) के अनुसार क्रमशः आर्कियन, धारवाड़, कडप्पा, विंध्यन, गोंडवाना, दक्कन ट्रेप, टर्शियरी व क्वार्टनरी क्रम की चट्टानों में वर्गीकृत किया गया है|


आर्कियन क्रम की चट्टानें


• ये सर्वाधिक प्राचीन और प्राथमिक आग्नेय चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण तप्त व पिघली हुई पृथ्वी के ठंडे होने के दौरान हुआ था|


• वर्तमान में अत्यधिक रूपान्तरण के कारण इन चट्टानों का मूल रूप नष्ट हो चुका है|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं|


• आर्कियन क्रम की चट्टानें मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छोटानागपुर का पठार, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान और बुंदेलखंड में पायी जाती हैं|


धारवाड़ क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है| इसलिए ये अवसादी चट्टानें हैं|


• ये सबसे प्राचीन अवसादी चट्टानें हैं|


• इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं| इसके दो कारण माने जाते है- या तो उस समय तक जीवों की उत्पत्ति नहीं हुई थी या फिर लंबा समय बीत जाने के कारण इन चट्टानों के जीवाश्म नष्ट हो गए हैं|


अरावली पर्वतमाला, जोकि विश्व के सबसे प्राचीन वलित पर्वतों में से है, का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है|


• इस क्रम की चट्टानें कर्नाटक के धारवाड़ व शिमोगा जिले में पायी जाती हैं, इसीलिए इन्हें ‘धारवाड़’ नाम दिया गया है|


• इसके अलावा ये चट्टानें कावेरी नदी घाटी, बेल्लारी जिला, जबलपुर की सासर पर्वतमाला, नागपुर और गुजरात की चम्पानेर पर्वतमाला में पायी जाती हैं|


• उत्तर भारत में धारवाड़ क्रम की चट्टानें हिमालय की लद्दाख, जास्कर, गढ़वाल और कुमायूं श्रेणी में पायी जाती हैं|


• धारवाड़ क्रम की चट्टानें आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अधिकांश धात्विक खनिज इसी क्रम की चट्टानों में पाये जाते है|


कडप्पा क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं क्योंकि इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है|


• आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले में इस क्रम की चट्टानें अर्द्ध-वृत्ताकार क्षेत्र में विस्तृत पायी जाती हैं, इसीलिए इनका नाम ‘कडप्पा’ रखा गया है|


• ये चट्टानें बलुआ पत्थर, चुना पत्थर, एस्बेस्टस और संगमरमर की चट्टानों के लिए प्रसिद्ध हैं|


• कडप्पा चट्टानें राजस्थान में भी पायी जाती हैं|


विंध्यन क्रम की चट्टानें


• ये अवसादी चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण कडप्पा चट्टानों के बाद अवसादों के निक्षेपण से हुआ है|


• इन चट्टानों में जीवाश्मों के भी प्रमाण पाये जाते हैं|


• विंध्यन क्रम की चट्टानें मालवा पठार, सोन घाटी और बुंदेलखंड आदि प्रदेशों में पायी जाती है|


• इस संरचना की चट्टानों का उपयोग इमारतों व घरों के निर्माण कार्य में किया जाता है| लाल किला, जामा मस्जिद और सांची स्तूप जैसी कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण इस संरचना में पायी जाने वाले लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों से हुआ है| इसके अलावा चूना पत्थर, डोलोमाइट आदि चट्टानें भी इस संरचना में पायी जाती हैं|


• मध्य प्रदेश की पन्ना की खानें और कर्नाटक की गोलकुंडा की खानें, जहां से हीरा प्राप्त होता है, विंध्यन क्रम की चट्टानों में ही स्थित हैं|


गोंडवाना क्रम की चट्टानें


• इन चट्टानों का निर्माण कार्बनीफेरस से जुरासिक काल के बीच हुआ था|


• ‘गोंडवाना’ शब्द की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के ‘गोंड’ क्षेत्र के नाम पर हुई है|


• भारत का अधिकांश कोयला गोंडवाना क्रम की चट्टानों में ही पाया जाता है|


• कार्बनीफेरस काल के दौरान प्रायद्वीपीय भारत में अनेक दरारों का निर्माण हुआ| इन दरारों के सहारे भूमि के धँसने से बेसिननुमा गर्तों का निर्माण हुआ| इन्हीं गर्तों में तत्कालीन वनस्पति के दबने से और उस पर हुई ताप व दाब की क्रिया से कोयले का निर्माण हुआ| वर्तमान में कोयला भारत की दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी व वर्धा आदि नदी घाटियों में पाया जाता है


दक्कन ट्रेप


• मेसोजोइक युग के अंतिम समय में अर्थात क्रिटेशस काल में प्रायद्वीपीय भारत में हुई दरारी ज्वालामुखी क्रिया से सीढ़ीनुमा दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ है|


• इसमें बसाल्टीय चट्टानें पायी जाती हैं, जोकि बहुत ही कठोर होती हैं दीर्घकाल में इनके निक्षेपण से काली या रेगुर मृदा का निर्माण होता है|


• यह संरचना मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में पायी जाती है|


टर्शियरी क्रम की चट्टानें


• टर्शियरी कल्प (Epoh) को कालक्रम के अनुसार चार भागों में बांटा जाता है- (a) इओसीन (b) ओलिगोसीन (c) मायोसीन (d) प्लायोसीन |


• इन चट्टानों का निर्माण इओसीन से लेकर प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• इस कल्प के दौरान हिमालय का निर्माण निम्नलिखित क्रम से हुआ है:


I. वृहत हिमालय का निर्माण ओलिगोसीन काल के दौरान हुआ था|


II. लघु या मध्य हिमालय का निर्माण मायोसीन काल के दौरान हुआ था|


III. शिवालिक हिमालय का निर्माण प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|


• असम, गुजरात व राजस्थान से मिलने वाला खनिज तेल इओसीन और ओलिगोसीन काल की चट्टानों से ही प्राप्त होता है|


क्वार्टनरी क्रम की चट्टानें


• ये चट्टानें गंगा एवं सिंधु के मैदान में पायी जाती है|


• क्वार्टनरी युग को कालक्रम के अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है- प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन काल|


• ऊपरी एवं मध्य प्लीस्टोसीन काल में पुरानी जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ था, जिसे आज ‘बांगर’ नाम से जाना जाता है|


• प्लीस्टोसीन के अन्तिम समय से लेकर होलोसीन तक जिस नवीन जलोढ़ मृदा का निर्माण जारी रहा, उसे ‘खादर’ कहा जाता है|


• कश्मीर की घाटी का निर्माण प्लीस्टोसीन काल में ही हुआ था| कश्मीर की घाटी प्रारम्भ में एक झील थी, लेकिन इसमें लगातार मलबे के निक्षेपित होते रहने से यह घाटी रूप में बदल गयी, जिसे ‘करेवा’ कहा जाता है|


• प्लीस्टोसीन काल के निक्षेपण थार मरुस्थल में भी पाये जाते हैं|


• ‘कच्छ का रन’ पूर्व में समुद्र का भाग था, लेकिन प्लीस्टोसीन व होलोसीन काल के दौरान यह अवसादी निक्षेपों से भर गया|



Advertisements


Advertisements


Comments Arpit on 06-03-2023

Chattano ka vargikaran ka notes in Hindi mai

Chattano ka vargikarn on 17-07-2021

Chattano ka vargikarn


Advertisements

आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity


इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।

अपना जवाब या सवाल नीचे दिये गए बॉक्स में लिखें।