चट्टान (Rocks) की उत्पत्ति तथा विशेषताएं
चट्टानों एवं खनिजों का निर्माण पृथ्वी की उत्पत्ति के समय हुआ था। इसी कारण ये दोनों तत्व मिश्रित रूप में पाये जाते हैं। अधिकांश चट्टानों में एक या अनेक खनिज पाये जाते हैं। उदाहरण के लिए ग्रेनाइट चट्टानों में कई खनिज मिले रहते हैं। जैसे-स्फटिक, फेल्सपार, अभ्रक आदि। जबकि संगमरमर में एक ही खनिज कैल्साइट(Calcite) मिला रहता है। इस प्रकार चट्टानों में एक या एक से अधिक खनिज उपलब्ध हो सकते हैं। इसके अलावा चट्टानों का अधिकतम भाग खनिज पदार्थों का मिश्रण होता है।
जब आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों के रंग, स्वरूप और संगठन में अत्यधिक दबाव के कारण परिवर्तन हो जाता है, तो इन नवीन चट्टानों को रूपांतरित चट्टानें कहते हैं। इन चट्टानों का अधिक ताप के कारण केवल रंग और स्वरूप बदलता है, उनका विघटन (Decomposition)अथवा वियोजन (Disintagration नहीं होता। इन चट्टानों में स्थित खनिजों के गुणों में परिवर्तन हो जाता है, इसके साथ-साथ चट्टान की कठोरता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। जब कभी अत्यधिक परिवर्तन हो जाता है, तो उसके मूल रूप को पहचानना भी कठिन हो जाता है। चट्टानों में रूपांतरण शीघ्रता से तथा धीरे-धीरे भी हो सकता है। रूपांतरित चट्टानों के उदाहरणों में चूना पत्थर (Limestone) से संगमरमर (Marbale) शेल (Shale) से स्लेट (Slate)उल्लेखनीय है।
मूल चट्टानों में परिवर्तन पाँच प्रकार से होता है-
1. तापीय रूपांतरण:- पृथ्वी के आंतरिक भाग में स्थित मैग्मा के संपर्क से चट्टानों का स्वरूप बदल जाता है। इसे तापीय रूपांतरण कहते हैं। इस प्रकार का परिवर्तन सामान्यतः ज्वालामुखी उद्भेदन के समय होता है। चूना पत्थर का रूपांतरण मैग्मा के संपर्क के कारण ही होता है। इसी प्रकार बलुआ पत्थर (Sandstone) से क्वार्टजाइट का निर्माण होता है। चट्टान का जो भाग मैग्मा के अधिक संपर्क में रहता है, उसका परिवर्तन अधिक होता है, मैग्मा से जैसे-जैसे दूरी बढ़ती है, परिवर्तन भी क्रमशः घटता जाता है।
2. जलीय रूपांतरण:&https:/upsssc.com/https:/upsssc.com/https:/upsssc.com/#8211; महासागरों में स्थित जल की विशाल मात्रा के भार के कारण तली में स्थित चट्टानों में परिवर्तन हो जाता है, इसे जलीय रूपांतरण कहते हैं। इस प्रकार का परिवर्तन सीमित क्षेत्रों में तथा बहुत कम होता है।
3. ताप-जलीय रूपांतरण:- यह रूपांतरण ताप एवं जलीय भार के कारण होता है। सामान्यतः इस रूपांतरण का प्रभाव कम ही दिखाई देता है।
4. गत्यात्मक रूपांतरण:- भूपटल के भीतर चट्टानों के क्षैतिज अथवा ऊध्र्वाधर खिसकने से उत्पन्न घर्षण एवं ताप के कारण यह रूपांतरण होता है। इस रूपांतरण में समय बहुत अधिक लगता है। उदाहरण-शेल (Shale)से स्लेट (Slate) कोयला से ग्रेनाइट का बनना। सामान्यतः यह रूपांतरण पर्वतीय क्षेत्रों में ही होता है।
5. स्थैतिक रूपांतरण:- ऊपरी चट्टानों के दबाव के कारण नीचे स्थित चट्टानों में परिवर्तन होता है, तो उसे स्थैतिक रूपांतरण कहते हैं। इसे दाब रूपांतरण भी कह सकते हैं। भूपटल की बहुत सी चट्टानें इस प्रकार रूपांतरित हो जाती है।
अधिकांश चट्टानों का रूपांतरण दबाव एवं ताप के कारण ही होता है, लेकिन इस प्रक्रिया में अन्य तत्वों का भी प्रभाव देखा गया है, जैसे-रासायनिक प्रक्रिया, घर्षण आदि। इनका विवरण इस प्रकार है,
1. ताप(Heate)- . यही एक तत्व है, जिसके प्रभाव से भूपटल की अधिकांश रूपांतरित चट्टानें बनी हैं। ताप के कारण मूल चट्टान पिघल जाती है, जिससे उसके स्वरूप और संरचना में पूर्ण परिवर्तन हो जाता है। भूपटल के अंदर ताप का स्रोत मैग्मा होता है। जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है, तब इस तत्व का प्रभाव अधिक दिखाई देता है।
2. दबाव (Compression)- अत्यधिक दबाव के कारण नीचे स्थित चट्टानों में रूपांतरण हो जाता है। इसके अलावा जब दोनों ओर से दबाव पड़ता है, तो बीच का चट्टानी भाग रूपांतरित हो जाता है। इस प्रकार का परिवर्तन महाद्वीपीय निर्माणकारी (Epierogenic- Mocement) और पर्वत निर्माणकारी हलचलों (ogenic- Mocement)के कारण होता है।
3. घोल (Solution)- विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संपर्क के कारण चट्टानों में स्थित पदार्थ घुल जाते हैं और उनमें परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण के लिए जल में कार्बन डाईआॅक्साइड और आॅक्सीजन गैस मिल जाने से उसकी रासायनिक क्रियाएँ बढ़ जाती हैं। इस जल के संपर्क में आने पर चट्टानों का स्वरूप एवं संगठन बदल जाता है।
.विभिन्न रासायनिक तत्वों (Chemical Elements) से बनने वाले पदार्थों को खनिज कहते हैं। लोंगवेल (Longwell) के अनुसार, खनिज प्राकृतिक रूप से उपलब्ध वह पदार्थ, है जिसमें एक प्रकार के भौतिक गुण होतें हैं और उनकी रचना को रासायनिक सूत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। सामान्यतः खनिज की निम्नलिखित विशेषताएॅ होती हैं-
पृथ्वी की संरचना तीन परतों में विभाजित है। पृथ्वी का ऊपरी भाग, भूपटल (Earth Crust) कहलाता है, इसे ही भू-पृष्ठ भू-पर्पटी आदि भी कहते हैं। पृथ्वी पर स्थित पर्वत, पठार, मैदान, समुद्र सभी भूपटल के अंग है। भूपटल की औसत गहराई 10 से 25 मील तक है। इसका निर्माण खनिजों एवं चट्टानों से हुआ है। भूपटल की रचना में लगभग दो हजार खनिजों का योगदान है।
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