भोजन पकाने की विधियाँ
भोजन पकाने की विधियां
(Methods of Cooking)
आदि काल से मनुष्य अपनी भुख शान्त करने के लिए कन्द.मूल खाता या जानवरों का शिकार करता था। अचानक जब कभी एक शिकार आग में भुन गया तो मनुष्य ने अनुभव किया कि यह पका हुआ मांस ज्यादा स्वादिष्ट था। उसके बाद से मनुष्य आमतौर पर पका हुआ भोजन ही ग्रहण करने लगा। सभी क्षेत्राों में तरक्की के साथ.साथ मनुष्य ने खाना पकाने की भी विभिन्न विधियां खोज निकाली और इसी के फलस्वरूप आज हम अपना भोजन विभिन्न तरीकों से पकाते हैं। इन सभी विधियों के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने से पहले यह भी जानना जरूरी है कि हम भोजन को क्यों पकाते हैं। हालांकि इसका मुख्य उíेश्य तो भोजन को खाने योग्य बनाना ही है, परन्तु भोजन को पकाने के और भी कारण हैं, जैसे -
1. भोजन का आकर्षक व स्वादिष्ट बनाना - पका हुआ भोजन, कच्चे खाध.पदार्थों की अपेक्षा अधिक आकर्षक और स्वादिष्ट होता है कोर्इ भी भली प्रकार पकाया गया भोजन देखने से ही हमारे पाचक.रस उत्तेजित होने लगते हैं और इस प्रकार हमारी भूख को बढ़ाते हैं।
2. भोजन को पकने योग्य बनाना - पकाने से भोजन नरम व हल्का हो जाता है जिससे उसे पचाने में आसानी होती है। उदाहरण के तौर पर खाध.पदार्थों में पाया जाने वाला कार्बोज़ पकाने पर कुछ हद तक जल्दी पचने योग्य हो जाता है। इसी प्रकार प्रोटीन भी पकाने पर स्कनिदत ;ब्वंहनसंजमद्ध हो जाती है, और पचने में आसान हो जाती है। इसी कारण बीमारी की अवस्था में तो विशेषतौर पर भली प्रकार पकाया गया नरम भोजन देने की ही सलाह दी जाती है, क्याेंकि ऐसे लोगों का पाचन संस्थान कमजोर ही होता है।
3. भोजन में विभिन्नता लाना - विभिन्न पाक.विधियों के इस्तेमाल से आहार में आसानी से विभिन्नता लार्इ जा सकती है। उदाहरण के तौर पर आलू कहने को तो एक खाध.पदार्थ है, परन्तु उसी आलू को पका कर विभिन्न रूपों में परिवर्तित कर सकते हैं जैसे आलू की सब्जी, आलू के चिप्स, आलू की चाट, आलू का हलवा, आलू के कटलेट आदि।
4. कुछ पौषिटक तत्त्वों की उपलबिध को बढ़ाना - कुछ प्रोटीन युक्त खाध.पदार्थों में टि्रपसिन नामक अमीनों अम्ल की उपलबिध में रुकावट डालने वाले कुछ पदार्थ पाए जाते हैं, परन्तु ये पदार्थ भोजन के पकाने से नष्ट हो जाते हैं और इस प्रकार यह अमीनो.अम्ल शरीर में अवशोषित किया जा सकता है। इसी प्रकार खाध.पदार्थों में उपसिथत शर्करा भी पकाने के पश्चात आसानी से अवशोषित की जा सकती है।
5. कीटाणु नष्ट करना - खाध.पदार्थों को पकाने से उनमें पाए जाने वाले कीटाणु काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार पकाया हुआ भोजन शरीर के लिए अधिक सुरक्षित होता है। कर्इ एक खाध.पदार्थ, जैसे - दूध, मांस, मछली आदि में कुछ ऐसे कीटाणु हो सकते हैं जो शरीर को कर्इ बीमारियों का शिकार बना सकते हैं। कच्चे दूध में टी.बी. और टायफाइड के कीटाणु पाए जा सकते हैं, और यदि ऐसे दूध को कच्चा ही ग्रहण कर लिया जाए तो यह शरीर को रोग.ग्रस्त बना सकता है। मीट, खास तौर पर सुअर के मांस में कीड़े या उनके अंडे पाए जा सकते हैं, और इस प्रकार मनुष्य के पेट में कीड़े हो सकते हैं। सौभाग्यवश ये कीटाणु आमतौर पर प्रयोग में लार्इ, जाने वाली पाक.विधियों द्वारा नष्ट हो जाते हैं और इस प्रकार भोजन सुरक्षित रहता है, उदारहरण पाश्चुरीÑत दूध। कीटाणु नष्ट करने का दूसरा लाभ यह है कि हम पकाए गए भोजन को अधिक देर तक रख सकते हैं अर्थात यह ज्यादा समय तक खराब नहीं होता।
6. भोजन के उपभोग को बढ़ाना - भोजन पकाने से भोजन का स्वरूप बदल जाता है और खाने योग्य हो जाता है। स्वरूप व खुशबू में बदलाव से भोजन अधिक मात्रा में ग्रहण किया जाता है और हमारे पोषक तत्त्वों की पूर्ति हो सकती है।
7. पोषक तत्वों का संग्रहीकरण होना - यह नमी की कमी के कारण, भोजन पकाने की विधि के कारण या भोजन को मिश्रित करके लेने से हो सकता है।
अत: भोजन को पकाना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे भोजन की पाचकता और स्वाद तो बढ़ता ही है और साथ ही कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
भोजन पकाने की विभिन्न विधियों को ताप के स्रोत के आधार पर मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है, यानि - पानी के माध्यम से प्राप्त की गर्इ उष्मा और सूखी उष्मा।
भोजन पकाने की विधियां
नमी लिए उष्मा | सूखी उष्मा द्वारा |
1. उबालना 2. भाप द्वारा (प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष) 3. प्रेशर द्वारा पकाना 4. स्टूयिंग 5. कम आंच पर पकाना 6. पोचिंग | 1. तलना अ) सोटिंग ब) उथली विधि स) गहरी विधि 2. बेकिंग 3. भूनना 4. गि्रलिंग |
A. पानी के माध्यम से प्राप्त की गइ उष्मा द्वारा - इस सभी पाक विधियों में पानी के माध्यम से प्राप्त की गर्इ उष्मा को किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता हैं इसके अन्तर्गत आने वाली विभिन्न विधियां निम्नलिखित हैं -
1. उबालना (Boiling) - इस विधि में खाध.पदार्थों को पानी में डालकर पकाया जाता है। अत: भोजन पानी के सीधे सम्पर्क में आता है। एक उचित बर्तन में पानी लेकर उसमें खाध.पदार्थ को रख दिया जाता है। इस बर्तन को ढक दिया जाता है और अब इसे गर्म किया जाता है। जब एक बार पानी तेजी से उबलने लगता है, तो नीचे से आंच कम कर दी जाती है और खाध.पदार्थ को नरम होने तक पकाया जाता है। इस विधि द्वारा पकाया गया भोजन हल्का होता है; अत: बीमार व्यकितयों को आसानी से दिया जा सकता है। दाल, चावल, अण्डे, आलू, मीट, साबूदाना इत्यादि को उबालकर पका सकते हैं। उबालने की प्रक्रिया अधिक पानी में भी की जा सकती है (अण्डे) और पर्याप्त पानी में भी की जा सकती है (दाल, उपमा)।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. खाध.पदार्थ को उबालने के लिए पानी उतना ही लें जितना आवश्यक हो ताकि खाध.पदार्थ उसे पूरी तरह सोख लें। यदि आवश्यकता से अधिक पानी का प्रयोग किया जाए, तो ऐसी अवस्था में अतिरिक्त पानी फेंकना पड़ता है, जिससे पानी में घुलनशील पौषिटक तत्त्व और खाध.पदार्थों का रस इस पानी के साथ निकल जाता है।
2. उबलते हुए खाध.पदार्थ को ढक कर पकाएं, ताकि खाना जल्दी पके और र्इंधन भी कम लगे।
3. तेजी से उबालने से भोजन जल्दी नहीं पकता। वास्तव में तेज उबालने से र्इंधन ही नष्ट होता है और खाध.पदार्थ का रंग.रूप बिगड़ जाता है। अत: एक बार पानी उबालना शुरू हो जाए तो गैस हमेशा कम कर देनी चाहिए।
उबालने से लाभ
1. यह भोजन पकाने की सबसे आसान विधि है। इसमें कोर्इ विशेष कौशल या उपकरण की आवश्यकता नहीं होती।
2. भोजन एकसार पकता है।
3. इस विधि द्वारा पकाया गया भोजन हल्का व आसानी से पचाया जा सकने वाला होता है।
4. यदि उबालने के लिए पानी की सही मात्राा का प्रयोग किया जाए और खाने को ढक कर पकाया जाए, तो खाने में पौषिटक तत्त्व काफी मात्राा में सुरक्षित रह जाते हैं।
उबालने से हानि
1. अधिक समय लेने वाली विधि है और इ±धन भी अधिक व्यय होता है।
2. पानी में घुलनशील रंग निकल जाते हैं जैसे चुकन्दर में।
3. उबला हुआ भोजन अधिक स्वादिष्ट नहीं होता क्योंकि भोजन की प्राÑतिक सुगन्ध पानी में निकल जाती है। अधिक उबालनने से भोजन गल जाता है।
4. यदि भोजन को आवश्यकता से अधिक पानी में उबाला जाए और उसे बाद में फेंक दिया जाए, जो इससे पानी में घुलनशील पौषिटक तत्त्व, विशेषतया विटामिन सी, बी-गुट के विटामिन और खनिज लवण पानी में निकल जाते हैं।
हालांकि यदि कभी उबालने के पश्चात अतिरिक्त पानी बच जाए और उसे निकालना पड़े तो उसे किसी और खाध.पदार्थ जैसे दाल या सूप आदि में प्रयोग कर लेना चाहिए, ताकि उसमें निकले पौषिटक तत्त्व नष्ट न जाए।
2. भाप में पकाना (By Steam) - यह भी खाध.पदार्थों को पानी द्वारा पकाने की एक विधि है। पर इस विधि में खाध.पदार्थ पानी के सीधे सम्पर्क में नहीं आता, बलिक पानी द्वारा उत्पन्न की गर्इ भाप में पकाया जाता है। इस विधि द्वारा उबालने की अपेक्षा अधिक समय लगता है।
भाप द्वारा भोजन दो विधियों से पकाया जाता है।
(क) प्रत्यक्ष भाप में पकाना
(ख) अप्रत्यक्ष भाप में पकाना
(क) प्रत्यक्ष भाप में पकाना (Direct Steaming) - इस विधि से खाना भाप के सीधे सम्पर्क में आकर पकता है। इस विधि से भोजन पकाने के लिए एक साधारण स्टीमर ;ैजमंउमतद्ध का प्रयोग किया जाता है या फिर स्टीमर जैसा उपकरण बनाया जा सकता है। एक पतीले में थोड़ा पानी डालकर आग पर रख दिया जाता है ताकि उसमें पानी उबल कर भाप बन सके। खाध.पदार्थ को एक लोहे की छलनी में रख कर इस पतीले के ऊपर रखकर ढक दिया जाता है। ऊपर से कोर्इ भार रख देना चाहिए ताकि अधिक से अधिक भाप अन्दर रहे। इस प्रकार पानी से उठ रही भाप छलनी में रखे खाध.पदार्थ के सीधे सम्पर्क में आती है और इसकी उष्मा से खाना पक कर तैयार हो जाता है। नीचे के बर्तन में पानी हर समय उबलते रहना चाहिए ताकि भाप लगातार बनती रहे। इस विधि से पकाए जाने वाले भोजन हैं - सबिजयां, अंकुरित दालें, मछली, इडली, ढोकला आदि।
(ख) अप्रत्यक्ष भाप में पकाना (Indirect Steaming) - इस विधि में खाध.पदार्थ भाप के सीधे सम्पर्क में नहीं आता, क्योंकि यह एक बन्द डिब्बे में होता है और यह डिब्बा जब भाप से चारों तरफ से घिर जाता है तो उसकी उष्मा से भोजन पक कर तैयार हो जाता है। एक पतीले में थोड़ा सा पानी डालकर आग पर रख दिया जाता है। पकाए जाने वाले खाध.पदार्थ को एक छोटे बर्तन में रख दिया जाता है, जो ऊपर से बन्द हो सके, और इस बर्तन को पानी वाले बर्तन के अन्दर रख दिया जाता है। अब पानी वाले बर्तन को भी ऊपर ढक्कन से ढक कर कुछ भार रख दिया जाता है ताकि भाप बाहर न निकले। जैसे.जैसे पानी के उबलने से भाप उत्पन्न होती है, वह इस अन्दर वाले बर्तन को चारों तरफ से घेर लेती है और खाध.पदार्थ को पकाने में सहायता करती है। इस विधि द्वारा भोजन पकाने में थोड़ा समय अधिक लगता है। पूरी प्रक्रिया के दौरान भाप बनती रहनी चाहिए, यानि पानी उबलता रहना चाहिए। इस विधि द्वारा बनाए गए व्यंजन के उदाहरण हैं- कस्टर्ड, पुडिंग आदि।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. नीचे वाले बर्तन में पानी उबलते रहना चाहिए ताकि भाप बनने की प्रक्रिया बनी रहे।
2. बर्तन का ढक्कन कस कर बन्द रखें ताकि भाप बाहर न निकले।
3.अप्रत्यक्ष भाप से पकाने की विधि में जिस बर्तन में खाध.पदार्थ रखा हो उसे ठीक से बन्द कर देना चाहिए या फिर उसको चिकनार्इ युक्त कागज को कस कर बांध दें, ताकि वाष्प खाध.पदार्थ पर न गिरे।
4. कुछ उबला हुआ पानी तैयार रखें, ताकि यदि बर्तन में पानी सूखने लगे तो तुरन्त डाला जा सके।
लाभ -
1. भाप द्वारा भोजन किसी भी विधि से बनाया जाए, वह सदा नरम, हल्का और सुपाच्य होता है, अत: बीमार व्यकितयों के लिए बहुत उपयोगी है।
2. भोजन स्वादिष्ट होता है और उसकी खुशबू भी बनी रहती है।
3. भोजन के पौषिटक तत्त्व सर्वाधिक मात्रा में सुरक्षित रहते हैं, विशेषतौर पर यदि भोजन अप्रत्यक्ष भाप में पकाया जाए। हालांकि प्रत्यक्ष भाप में पकाने से जल में घुलनशील बी-गुट के विटामिन और विटामिन सी की कुछ मात्रा नष्ट हो जाती है, परन्तु फिर भी यह नुकसान उबालने की विधि की अपेक्षा कम ही होता है।
4. भोजन को लगातार ध्यान देने की जरूरत नहीं पड़ती।
5. भोजन का स्वरूप अच्छा होता है और देखने में हल्का और सही आकार लिए लगता है।
हानियां -
1. खाना बनाने की यह धीमी प्रक्रिया है, अत: काफी समय लेती है केवल आसानी से पकने वाले खाध.पदार्थ ही इस विधि द्वारा पकाये जा सकते हैं।
2. यदि निचले बर्तन में पानी की उचित मात्राा न डाली जाए; तो हो सकता है कि पानी जल्दी सूख जाए और खाध.पदार्थ के पकने से पहले ही बर्तन जलने लग जाए।
3. प्रैशर द्वारा पकाना (Pressure Cooking) - इस विधि में भोजन को सामान्य से अधिक दबाव में पकाया जाता है, क्योंकि दबाव बढ़ाने से तापमान बढ़ जाता है, और भोजन जल्दी पक जाता है। इस विधि द्वारा भोजन पकाने के लिए पै्रशर.कुकर नामक यन्त्रा का प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर पै्रशर कुकर में दो.तीन डिब्बे होते हैं, जिससे एक ही समय में एक से अधिक खाध.पदार्थ पकाए जा सकते हैं। अत: इससे र्इंधन भी कम खर्च होता है और समय की भी बचत होती है। यदि केवल एक ही खाध.पदार्थ पकाना हो, तो इन डिब्बों का प्रयोग नहीं किया जाता। इस विधि द्वारा आमतौर पर पाए जाने वाले कोर्इ भी भोजन आसानी से बनाया जा सकता है, जैसे दाल, चावल, मीट, सबिजयां आदि।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. पै्रशर.कुकर को दो-तिहार्इ से अधिक नहीं भरना चाहिए।
2. उस पर ढक्कन लगाकर थोड़ी भाप निकलने के बाद ही प्रैशर ;मपहीजद्ध रखना चाहिए।
3. एक बार पै्रशर बनने पर आंच धीमी कर देनी चाहिए और टार्इम नोट कर लेना चाहिए।
4. खाध.पदार्थ के अनुसार निर्धारित समय तक ही पकाना चाहिए।
5. ढक्कन खोलन से पहले प्रैशर.कुकर को पानी के नीचे या वैसे ही ठंडा होने देना चाहिए।
लाभ -
1. इस विधि द्वारा र्इंधन और समय दोनों की ही बचत होती है, अत: भोजन पकाने का एक कम खर्च वाला तरीका है।
2. प्रैशर कुकिंग में पौषिटक तत्त्व सर्वाधिक मात्रा में सुरक्षित रहते हैं।
3. अलग डिब्बों का प्रयोग करने से एक ही समय में एक से अधिक खाध पदार्थ पकाए जा सकते हैं।
हानियां -
1. यदि प्रैशर.कुकर में भोजन बनाते समय ध्यान देने योग्य बातों पर पूरा अमल न किया जाए तो यह बहुत खतरनाक हो सकता है, क्योंकि कर्इ बार प्रैशर.कुकर के फटने का डर रहता है।
2. यदि खाध.पदार्थ के अनुसार निर्धारित समय से अधिक समय के लिए भोजन पका लिया जाए तो वह अत्यधिक नरम हो जाता है और उसका रंग रूप बिगड़ जाता है।
4. स्टूयिंग (Stewing) - इस विधि में खाध.पदार्थ को एक ढके हुए बर्तन में पानी की कम मात्रा में मन्दी आंच पर पकाया जाता है। एक पानी में उबाल आने पर आंच मन्दी कर दी जाती है और खाध.पदार्थ को धीरे.धीरे पकने दिया जाता है। इस प्रकार यह एक धीमी गति का ज्यादा समय लेने वाला तरीका है। पानी उतनी ही मात्राा में डाला जाता है जितना कि बनने के बाद खाध.पदार्थ के साथ थोड़ा.सा तरल रूप में रह जाए (एक.दो चम्मच) जो उसी भोजन के साथ परोस दिया जाता है। इस प्रकार भोजन की खुशबू पूरी तरह से उसी में रह जाती है। इस विधि द्वारा आमतौर पर पकाए जाने वाले खाध.पदार्थ हैं, फल, सब्जी, मीट आदि।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. बर्तन का ढक्कन कस कर बन्द होना चाहिए।
2. खाध-पदार्थ में पानी उतना ही डालें जितना कि आवश्यक हो (खाध-पदार्थ पानी में करीब आधा डूब जाए)।
3.पानी में एक बार उबाल आने पर उसे बहुत मन्दी आंच पर नरम होने तक पकाएं।
4. बचा हुआ तरल पदार्थ भोजन के साथ ही परोस दें।
लाभ -
1. इस विधि द्वारा सस्ती किस्म के सख्त मीट और कम पके फल व सब्जी आदि पकाए जा सकते हैं, क्योंकि पानी में धीमी-धीमी आंच पर पकने से इसमें उपसिथत रेशे नरम पड़ जाते हैं और खाध-पदार्थ पक जाता है।
2. मीट और सब्जी को इक्टठा भी पकाया जा सकता है, जो कि एक स्वादिष्ट व्यंजन बन जाता है।
3. भोजन में अधिकतर पौषिटक.तत्त्व व उसके रस, खुशबू आदि सुरक्षित रह जाते हैं और इस प्रकार भोजन स्वादिष्ट बनता है।
हानियां -
1. भोजन पकाने का यह एक बहुत ही धीमा तरीका है।
2. पूरी प्रक्रिया के दौरान लगातार ध्यान रखने की आवश्यकता है।
3. भोजन में उपसिथत विटामिन सी काफी मात्राा में नष्ट हो जाता है।
5. धीमी आंच पर पकाना (Simmering) - जब भोजन को पूर्ण रूप से बन्द होने वाले उपकरण में पूर्ण रूप से ढककर, उबले पानी के तापमान से कम अर्थात 82°ब से 99°ब तक के तरल में, जिसमें भोजन डाला गया है, पकाया जाए, उस विधि को धीमी आंच पर पकाना कहते हैं। जिन खाध पदार्थों को पकाने में अधिक समय लगता है, उनके लिए यह उपयुक्त विधि है। जैसे - मीट, मछली, कस्टर्ड, खीर, सबिजयां, गाजर का हलवा इत्यादि। यह विधि सूप बनाने के लिए भी उपयुक्त है।
लाभ -
1. खाध पदार्थ पूर्ण रूप से पक जाता है।
2. भोजन को जलने से बचाया जा सकता है।
3. पानी में पोषक तत्त्व, रंग इत्यादि बहुत कम निकलता है।
हानियां -
1. अधिक ताप पर नष्ट होने वाले पोषक तत्त्व, लम्बे समय तक पकाने से नष्ट हो जाते हैं।
2. अधिक समय व अधिक इ±धन लगता है।
6. पोचिंग (Poaching) - उबलते पानी के तापमान से कम, 80°ब से 85°ब पर, कम से कम तरल में पकाने की विधि को पोचिंग कहते हैं। अण्डा, मछली व फल अधिकतर पोचिंग विधि द्वारा पकाए जाते हैं। अण्डे को पोचिंग विधि द्वारा पकाते समय उसमें नमक व सिरका डाला जाता है।
लाभ -
1. यह भोजन पकाने की बहुत तीव्र विधि है।
2. भोजन आसानी से पचता है क्योंकि वसा का प्रयोग नहीं होता।
हानियां -
1. भोजन अधिक स्वादिष्ट नहीं होता।
2. पानी में धुलनशील पोषक तत्त्व पानी में निकल सकते हैं।
B. मिली-जुली विधि - कुछ खाध पदार्थ एक विधि द्वारा नहीं पकाए जाते अपितु एक से अधिक विधियों द्वारा पकाए हाते हैं। जैसे -
तरी वाली सब्जी : सोटिंग व धीमी आंच पर पकाना
उपमा : भूनना व उबालना
कटलेट : उबालना व गहरी विधि द्वारा तलना
1. ब्रेजिंग (Braising) - इस विधि में भोजन को दो विधियों के मिश्रण से पकाया जाता है जो हैं भूनना और स्टूयिंग। इसके लिए ठीक प्रकार से ढके जा सकने वाले बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है। इस विधि से अधिकतर मीट ही पकाया जाता है। जिसे पहले अच्छी तरह से भून लिया जाता है। इसमें फिर पानी या बनी हुर्इ तरी डाली जाती है जो मीट को करीब दो.तिहार्इ ढक लेती है। फिर इसमें मसाले आदि डालकर ढक्कन कस कर बन्द कर दिया जाता है और इसे मन्दी आंच पर स्टूयिंग की भांति पकाया जाता हैं आंच की बजाए इस बर्तन को ओवन में भी रखा जा सकता है, जिसमें मीट धीरे.धीरे पकता रहता है। जब मीट पक कर नरम पड़ जाता है तो इसे थोड़ी सी मात्राा में बचे हुए तरल पदार्थ के साथ परोस दिया जाता है।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. भूनते समय ध्यान रखना चाहिए कि मीट चारों तरफ से एक जैसा भूरे रंग का हो जाए।
2. स्टूयिंग करते समय बर्तन का ढक्कन कस कर बन्द करना चाहिए और पानी सही मात्रा में डालना चाहिए।
लाभ -
1. भोजन बड़ा स्वादिष्ट और खुशबू से भरपूर होता है। ज्यादातर पौषिटक-तत्त्व भी सुरक्षित रहते हैं।
हानियां -
1. इस विधि द्वारा भोजन पकने में काफी समय लगता है और लगातार ध्यान भी रखना पड़ता है।
C. सूखी उष्मा द्वारा पकना
1. तलना (Frying)
खाध-पदार्थों को गर्म घी या तेल में पकाने की विधि को तलना कहते हैं। घी या तेल अधिक तापमान तक गर्म किए जा सकते हैं, जिसके फलस्वरूप जब खाध उसके सम्पर्क में आता है तो वह शीघ्र ही पक जाता है। इस विधि द्वारा पकाया गया भोजन स्वादिष्ट होने के कारण हमारे भोजन में आमतौर पर प्रयोग किया जाता है।
तलने की विधि तीन प्रकार से सम्पन्न की जाती है -
1.सोटेयिंग (Sautering)
2. कम घी में तलना
3.ज्यादा घी में तलना
1. सोटेयिंग (Sautering)
इस विधि में थोड़ी.सी मात्राा में घी गरम करके खाध.पदार्थ को उसमें लगातार हिलाते हुए तला जाता है, जब तक वह उस घी को सोख ले। आमतौर पर इस विधि का प्रयोग भोजन की पूर्व-तैयारी के रूप में किया जाता है, जैसे सबिजयों का पुलाव बनाने में पहले सबिजयों को कम घी में इस विधि द्वारा तला जाता है। इसी प्रकार नूडलस या मीट के पतले टुकड़े आदि भी तले जाते हैं।
2. उथली विधि द्वारा तलना (Shallow Frying)
इस विधि में खाध.पदाथो± को एक कम गहरे बर्तन, जैसे कि फ्रार्इंग पैन (Frying pan) या तवे पर थोड़ा.घी या तेल डालकर तला जाता है। तलने की प्रक्रिया के दौरान खाध.पदार्थ को एक-दो बार पलट दिया जाता है ताकि वह दोनों तरफ से एक जैसा भूरे रंग का हो जाए। इस विधि में भी आमतौर पर उतना ही घी या तेल डाला जाता है, जितना कि खाध.पदार्थ सोख ले। इस विधि द्वारा पकाए जाने वाले खाध.पदार्थ हैं - परांठे, आमलेट, आलू की टिक्की, पूड़ा इत्यादि।
कुछ खाध-पदाथो± में अपनी ही वसा काफी मात्राा में होती है, जैसे कि सोसेजिस (Saussages) व बेकन (Bacon)(एक प्रकार के मीट)। ये खाध.पदार्थ गर्म बर्तन में ही अपनी ही वसा छोड़ देते हैं और उसी में तले जा सकते हैं।
3. गहरी विधि द्वारा तलना (Deep Fat Frying)
इस विधि में खाध.पदार्थ गर्म घी या तेल में पूरी तरह डुबो दिया जाता है, और इसीलिए घी या तेल को गर्म करने के लिए एक गहरे बर्तन, जैसे कि कढ़ाही का इस्तेमाल किया जाता है। कढ़ाही को करीब 1/2 से 2/3 तक तेल या घी से भर कर आंच पर रख दिया जाता है, और जब यह अच्छी तरह गरम हो जाए, तो तले जाने वाले खाध.पदार्थ को इसमें डाल दिया जाता है, जो गर्म वसा के सम्पर्क में आते ही तुरन्त पक जाता है। इस विधि द्वारा आमतौर पर पकाए जाने वाले खाध.पदार्थ हैं . पूरी, पकौडे़, कटलेट, समोसे इत्यादि। तलते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वसा आवश्यकता से अधिक गरम न हो, अर्थात जले नहीं। क्येांकि ऐसा करने से वसा का खण्डन हो जाता है, जिससे न केवल स्वाद ही बिगड़ जाता है परन्तु ऐसी वसा हमारे शरीर के लिए भी हानिकारक होती है। इसके विपरीत यदि वसा आवश्यकता से कम गर्म हो तो तले जाने वाला खाध.पदार्थ टूट सकता है ओर वसा भी ज्यादा सोख लेता है। अत: तलने से पूर्व यह देखना जरूरी है घी या तेल उचित तापमान तक गर्म हुआ कि नहीं, जिसके लिए निम्नलिखित तरीकों का प्रयोग कर सकते हैं -
1. उचित तापमान तक गर्म घी या तेल में एक प्रकार का हल्का नीला धुआं सा निकलने लगता है और उसमें नीचे बुलबुले नहंी होते।
2. यदि गर्म घी या तेल में एक इंच का चौकोर टुकड़ा डालने पर वह एक मिनट में सुनहरे रंग का कुरकरा हो जाए तो उसका तापमान तलने के लिए उचित है।
3. इसी प्रकार एक आसान तरीका है कि जो भी खाध पदार्थ तला जाना है, उसका छोटा सा टुकड़ा गर्म घी में डालकर देखें। यदि वह ठीक तला जाता है तो बाकी भी तल लें।
मीठे और नमकीन दोनों प्रकार के ही व्यंजन तलने की प्रक्रिया द्वारा बनाए जाते हैं। खाध.पदार्थ कम घी में तले गए खाध.पदार्थ की अपेक्षा अधिक आकर्षक होता है, क्योंकि चारों तरफ से एक जैसा सुनहरा और अधिक कुरकरा होता है। हालांकि इस विधि के लिए आरम्भ में घी या तेल अधिक मात्राा में चाहिए होता है, परन्तु कम घी में तलने की अपेक्षा इस विधि से तले गए खाध.पदार्थ कुल वसा कम ही सोखते हैं।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. तलने के लिए सदा ऐसे घी या तेल का प्रयोग करें, जिसे अधिक ताप तक गरम किया जा सकता हो, उदाहरणतया देसी घी की अपेक्षा वनस्पति घी या तेल बिना जले अधिक ताप तक गरम किए जा सकते हैं, अत: ये तलने के लिए उत्तम है।
2. तलने से पूर्व देख लेना चाहिए कि घी या तेल उचित ताप तक गर्म हो गए हैं और तलने की प्रक्रिया के दौरान ध्यान रखें कि ये जले नहीं।
3. तले जाने वाले खाध.पदार्थ को सही आकार दें ताकि उसकी सतह कहीं से टूटी.फूटी न हो।
4. कटलेट आदि तलते समय उन पर डबलरोटी का चूरा लगाया जाता है, ध्यान रखें कि यह चूना चारों तरफ एक जैसा लगा है और कटलेट के साथ ठीक से चिपका हो। फालतू चूरे को तलने से पहले कटलेट पर से झाड़ दें नहीं तो ये कढ़ाही के तेल में निकल जाता है और जलने लगता है।
5. तलते समय बहुत सारे टुकड़े एक साथ न डालें, नहंी तो तेल या घी ठंडा पड़ जाता है।
6. तलते समय खाध.पदार्थ को बराबर उलटते.पलटते रहना चाहिए, ताकि चह चारों तरफ से अच्छी तरह से सिक जाए और रंग भी भूरा हो जाए।
7. तलने के बाद बचे हुए घी या तेल को अच्छी प्रकार से छानकर और ढककर ठंडी जगह पर रखना चाहिए।
8. दुबारा तलने के लिए उसी वसा का प्रयोग कर सकते हैं, परन्तु बेहतर यही है कि उसमें थोड़ा सा नया घी या तेल डाल लें।
लाभ -
1. इस विधि से भोजन शीघ्र ही पक जाता है।
2. तले हुए खाध.पदार्थ आकर्षक और स्वादिष्ट होते हैं।
3. तले हुए भोजन अधिक समय तक सुरक्षित रखें जा सकते हैं उदाहरणतया: चपाती के मुकाबले में पूरी
4. देर तक रखी जा सकती है, और उसका स्वाद भी खराब नहंी होता।
5. तलने की विधि के प्रयोग से भोजन में विभिन्नता आती है, क्योंकि ये खाध पदार्थ कुरकुरे होते हैं।
6. तले हुए खाध.पदार्थ खाने के पश्चात ज्यादा देर तक भूख नहीं लगती।
7.इस विधि द्वारा पके भोजन से अधिक कैलोरी मिलती है।
8. उथली विधि द्वारा तलने में वसा की मात्राा को नियनित्रात किया जा सकता है।
हानियां -
1.तले हुए खाध.पदार्थ पचाने मुशिकल होते हैं, क्योंकि इन पर वसा की परत होती है, जिसे पहले पचाना पड़ता है।
2. तलते समय ताप अधिक होने के कारण कुछ पौषिटक तत्त्व, विशेषकर वसा में घुलनशील विटामिन काफी मात्राा में नष्ट हो जाते हैं।
3. घी व तेल महंगे होते हैं, अत: यह भोजन पकाने की एक मंहगी विधि है।
4. अधिक वसा सोख लेने के कारण भोजन गला हुआ सा लगता है।
5. पकाते समय अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
6. बार.बार उसी वसा में तलने से कुछ हानिकारक तत्त्व वसा में बन जाते हैं।
इन विधियों में उष्मा पानी के अतिरिक्त किसी अन्य माध्यम से उत्पन्न की जाती है।
2. बेकिंग (Baking) - इस विधि में खाध.पदार्थ को एक बन्द ओवन के अन्दर रखकर उसमें उत्पन्न होने वाली सूखी उष्मा में पकाया जाता है। पकाए जाने वाले खाध.पदार्थ को पहले से गरम किए गए ओवन में रखा जाता है, जहां यह चारों ओर से गरम वायु से घिर जाता है और पक जाता है। जो खाध.पदार्थ पकाया जाना हो, उसी की आवश्यकतानुसार भोजन को एक उचित ताप तक गरम कर लिया जाता है और यह तापमान बेकिंग की पूरी प्रक्रिया के दौरान बनाए रखा जाता है। इस विधि द्वारा आमतौर पर पकाए जाने वाले खाध.पदार्थ हैं - केक, बिस्कुट, डबलरोटी, पुडिंग और सबिजयां आदि।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. खाध.पदार्थ को हमेशा पहले से गरम किए गए ओवन में रखें।
2. पूरी प्रक्रिया के दौरान ओवन का तापमान बनाए रखें।
3. ओवन को ठीक से बन्द कर देना चाहिए और इसे बार.बार नहंी खोलना चाहिए। ऐसा करने से बाहर की ठंडी वायु अन्दर प्रवेश पा जाती है और ओवन का तापमान कम हो जाता है।
4. खाध.पदार्थ ओवन में तब तक सेकना चाहिए, जब तक वह हल्के भूरे रंग का न हो जाए और हाथ से चिपके नहंीं।
लाभ -
1. बेकिंग की विधि द्वारा पकाया गया भोजन पचाने में आसान होता है।
2. ऐसे भोज्य.पदार्थ आहार में विभिन्नता लाते हैं।
हानियां -
1.यह भोजन पकाने की एक धीमी प्रक्रिया है, अत: अधिक समय लेती है।
2.इस विधि द्वारा भोजन आमतौर पर ओवन में ही पकाया जा सकता है, जो कि हर घर में नहंी पाया जाता।
3. भूनना (Roasting) - इस विधि में खाध.पदार्थ को बिना ढके सूखी उष्मा द्वारा पकाया जाता है। यह प्रक्रिया 'तन्दूर में ओवन में या फिर किसी भारी तली के बर्तन में सम्पन्न की जा सकती है। कुछ खाध.पदार्थ, जैसे- मुर्गा या फिर उत्तम किस्म के मीट आदि को भूनते समय उन पर बीच.बीच में थोड़ी पिघलती हुर्इ वसा डालते रहते हैं। इससे इनकी सतह सूखती नहंी और इनकी खुशबू भी बेहतर हो जाती है। इसके विपरीत कुछ, सबिजयां, जैसे- आलू, शकरकन्द और बैंगन आदि को बिना वसा डाले ही खुली आंच पर या फिर ओवन में रखकर भूना जाता है। इसी प्रकार सूजी, दलिया, सेवियां आदि को भारी तली के बर्तन जैसे कढ़ाही में डालकर सूखा या फिर थोड़ी सी वसा की सहायता से भूना जाता है। वसा डालना या सूखा भूनना इस बात पर निर्भर करता है कि उससे क्या व्यंजन बनाना है।
कुछ खाध पदार्थ किसी और उचित माध्यम में, भी भूने जा सकते हैं, जैसे कि नमक या रेत जो कि आसानी से शीघ्र ही गरम हो जाते हैं और अपने अन्दर उष्मा को बनाए रखते हैं। जिससे भूनने के लिए सही तापमान बना रहता है। उदाहरणतया कुछ अनाज जैसे- मक्का (पापकार्न) या मुरमरे आदि बनाने में जब इस विधि द्वारा ये अनाज भूने जाते हैं तो ये एकदम फूल कर पक जाते हैं और खाने के लिए तैयार होते हैं।
इस प्रकार भूनने की प्रक्रिया द्वारा भोजन पकाने में बेकिंग की प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक तापमान बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. ओवन में भूनते समय, ध्यान रखें कि ओवन पूरी तरह से साफ हो, नहंी तो खाध पदार्थ की खुशबू खराब हो जाती है।
2. पूरी प्रक्रिया के दौरान उचित तापमान बनाए रखें।
3. मीट या मुर्गा भूनते समय विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि इन में बार बार चाकू या सलार्इ आदि चुभो कर न देखा जाए, क्योंकि ऐसा करने से इनके कुछ रस बाहर निकल जाते हैं।
4. खुली आंच पर भूनते समय खाध.पदार्थ को बार.बार पलटते रहना चाहिए।
लाभ -
1. बेकिंग की अपेक्षा इस विधि द्वारा भोजन जल्दी पकता है।
2. भुनने की प्रक्रिया से कर्इ तरह के व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं।
3. इस विधि में वसा नहंी चाहिए।
4. पका हुआ भोजन अधिक खुशबू और स्वाद लिए होता है।
5. यह विधि भोजन में नमी को कम करती है, जिससे भोजन को अधिक समय तक रखा जा सकता है।
हानियां -
1. भूनते समय खाध.पदार्थ का लगातार ध्यान रखना पड़ता है, ताकि वह जले नहंीं।
2. जब भोजन भूरा हो जाता है तो पोषक तत्त्व नष्ट हो जाता है। जैसे- अमीनो अम्ल।
4. तेज खुली आंच पर पकाना (Grilling) - इस विधि द्वारा खाध.पदार्थ को तेज खुली आंच पर या फिर बिजली या गैस की गि्रल के नीचे पकाया जाता है। इस प्रकार यह भी सीधी आंच द्वारा पकाए जाने की ही एक विधि है। आमतौर पर खाध.पदार्थ को एक लोहे की छड़ में पिरो दिया जाता है और फिर इसे तेज खुली आंच पर सेका जाता है। सेकते समय बीच.बीच में पिघली हुर्इ वसा लगाना भी जरूरी है। आंच कोर्इ भी हो सकती हैं, जैसे कोयला, बिजली या फिर गैस। तापमान अधिक होने के कारण खाध.पदार्थ काफी जल्दी पक जाता है। इस विधि द्वारा केवल बेहतर किस्म के मीट, मुर्गे, मछली या कुछ सबिजयां, जैसे- टमाटर व खुम्बी आदि बनाए जाते हैं। उदाहरणतया इस प्रक्रिया द्वारा बनाया जाने वाला सबसे अधिक प्रचलित व्यंजन है- सीक कबाव।
ध्यान देने योग्य बातें -
1. खाध पदार्थ पर बीच-बीच में पिघली हुर्इ वसा डालते रहना चाहिए। ताकि इसकी सतह सूखे नहंी और खुशबू भी अच्छी हो जाए।
2.खाध पदार्थ को बराबर घुमाते रहना चाहिए, ताकि वह जले नहीं और चारों तरफ से बराबर सिक जाए।
लाभ -
1. इस विधि से पकाया गया भोजन स्वादिष्ट होता है।
2.ध इस विधि द्वारा भोजन बहुत जल्दी पकता है।
3.इस विधि द्वारा पके भोजन में खुशबू होती है।
हानियां -
1. इस विधि द्वारा केवल बेहतर किस्म के खाध.पदार्थ ही पकाए जा सकते हैं, अत: भोजन पकाने का यह एक मंहगा तरीका है।
2. इस विधि से भोजन पकाते समय बराबर ध्यान रखना पड़ता है।Bhojan pakane ke vidhiyon ka vargikaran
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