अंतर्राज्यीय परिषद के कार्य
संविधान का अनुच्छेद 263 एक अंतर्राज्यीय परिषद् (Inter-State Council – ISC) के गठन का प्रावधान करता है. न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया की अध्यक्षता में गठित आयोग ने 1988 में अपनी रिपोर्ट में अनुशंसा की थी कि –
इस प्रकार, 1990 में अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थापना हुई.
अंतर्राज्यीय परिषद्
- अनुच्छेद 263, राष्ट्रपति को निम्नलिखित मुद्दों पर जाँच, चर्चा और सलाह देने के लिए एक अंतर्राज्यीय परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान करता है –
- विवाद, जो राज्यों के मध्य उत्पन्न हो गये हों,
- उन विषयों पर, जिनमें कुछ या सभी राज्यों अथवा संघ और एक या अधिक राज्यों के समान हित हों, या
- लोक हित के किसी विषय पर अनुशंसा करने और उस विषय के सम्बन्ध में नीति एवं कार्यवाही के अधिक बेहतर समन्वयन के लिए अनुशंसा करने.
- इसकी स्थापना 1990 में सरकारिया आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर एक राष्ट्रपति आदेश द्वारा की गई थी.
- इसमें परिषद् प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), सभी राज्यों एवं संघ शाषित प्रदेशों के मुख्यमंत्री, जिन संघ शाषित क्षेत्रों में विधानसभाएँ नहीं हैं उनके प्रशासक तथा प्रधानमन्त्री द्वारा मनोनीत छह केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री (गृह मंत्री सहित) शामिल होते हैं.
- पहले से ही संविधान में अनुच्छेद 131 में उच्चतम न्यायालय को यह शक्ति दी गई है कि एक से अधिक राज्यों के बीच में कोई कानूनी विवाद हो तो उसपर वह अपना निर्णय दे सकता है.अंतरराज्जीय परिषद् भी दो या अधिक राज्यों के बीच में विवाद के समाधान के लिए बना है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस परिषद् का कार्य सर्वोच्च न्यायालय के उस शक्ति का अनुपूरक है.
- यह अंतर्राज्यीय, केंद्र-राज्य तथा केंद्र एवं संघ शासित प्रदेश संबंधों से सम्बंधित मुद्दों पर एक परामर्शदात्री निकाय है.
- यह एक संवैधानिक निकाय नहीं है परन्तु यदि राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत होता है कि इस परिषद् की स्थापना लोकहित के लिए आवश्यक है, तब इसे किसी भी समय स्थापित किया जा सकता है.
1996 में परिषद् के विचारार्थ मामलों पर सतत परामर्श और निपटान करने के लिए परिषद् की स्थाई समिति की स्थापना की गई थी. इसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं –
1991 में परिषद् को अलग से सहायता प्रदान करने के लिए एक अंतर्राज्यीय परिषद् सचिवालय की स्थापना की गई जिसका प्रमुख भारत सरकार का एक सचिव होता है.
ISC (Inter-State Council) (Inter-State Council) का महत्त्व
संवैधानिक समर्थन – केंद्र सरकार के सहयोग हेतु अन्य मंचों के विपरीत, ISC (Inter-State Council) को संवैधानिक समर्थन प्राप्त है जो राज्यों की स्थिति को मजबूत करता है.
सहकारी संघवाद – केंद्र और विभिन्न राज्यों में अलग-अलग राजनैतिक दलों के शासन के दौरान परस्पर संवाद व वार्ता की आवश्यकता बढ़ जाती है. इस प्रकार, ISC (Inter-State Council) राज्यों की अपनी चिंताओं पर चर्चा करने हेतु एक मंच प्रदान करता है.
राज्य-राज्य तथा केंद्र-राज्य से सम्बंधित विवादों का समाधान करना – इसके द्वारा वर्ष 2015 और 2016 में क्रमशः 82 एवं 140 मुद्दों का समाधान किया था.
निर्णयन प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत बनाना – अधिक विकेंद्रीकृत राजनीति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच वार्ता की आवाश्यकता होती है. इस दिशा में अंतर्राज्यीय परिषद् पहला महत्त्वपूर्ण कदम है.
सरकारों को अधिक जवाबदेह बनाती है – वार्ता एवं चर्चा हेतु एक मंच होने के कारण, यह केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारों को अपने कार्यों के प्रति और अधिक जवाबदेह बनाती है.
एक सुरक्षा वाल्व – यह परिषद् केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास की कमी को दूर करने में सहायता करती है. हालाँकि यह हमेशा समस्या का समाधान नहीं कर पाती है, फिर भी इसने अनेक परिस्थतियों में एक सुरक्षा वाल्व के रूप में काम किया है.
✓ अंतर्राज्यीय परिषद् की राज्यों के साथ उचित परमर्श के बाद विकसित एजेंडे पर आधारित वर्ष में कम-से-कम तीन बैठकें अवश्य होनी चाहिए.
✓ परिषद् के संगठनात्मक ढाँचे में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारीयों के अतिरिक्त विधि, प्रबन्धन तथा राजनीति विज्ञान से सम्बंधित विषयों के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए.
✓ परिषद् को एक पेशेवर सचिवालय के साथ कार्यात्मक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. सचिवालय सीमित अवधि के लिए प्रतिनियुक्ति पर आये केंद्र और राज्य अधिकारियों द्वारा समर्थित प्रासंगिक ज्ञान के क्षेत्र के विशेषज्ञों से गठित होना चाहिए.
✓ ISC (Inter-State Council) को नीति विकास तथा विवाद समाधान हेतु एक जीवंत एवं वार्ता मंच बनाने के बाद राष्ट्रीय विकास परिषद् के कार्यों को ISC (Inter-State Council) को स्थानांतरित करने पर विचार किया जा सकता है.
यद्यपि प्रधानमन्त्री, चयनित कैबिनेट मंत्रियों तथा मुख्यमंत्रियों सहित समान संरचना से युक्त नीति आयोग की शासी परिषद् जैसे अन्य निकाय भी विद्यमान हैं. परन्तु, नीति आयोग के विपरीत ISC (Inter-State Council) को संवैधानिक समर्थन प्राप्त है. नीति आयोग के पास केवल एक कार्यकारी शासनदेश है. यह केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार के लिए आवश्यक सहयोगात्मक परिवेश के निर्माण में राज्यों को अधिक ठोस आधार प्रदान करता है.
Antar rajya parishad ke karya AVN gathan ka vivechana kijiye
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