संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान की गर्इ है।इस अधिनियम के द्वारा स्थानीय स्वशासन व विकास की इकार्इयों को एक पहचान मिली है।त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में ग्राम पंचायत ग्राम विकास की पहली इकार्इ मानी गर्इ है। गांव केलोगों के सबसे नजदीक होने के कारण इसका अत्यधिक महत्व है। ग्राम प्रधान, उपप्रधान वसदस्यों से मिलकर ग्राम पंचायत बनती है। ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों का चयन ग्राम सभा केसदस्य चुनाव के द्वारा करते है। अत: ग्राम सभा के सदस्यों से इसका सीधा नाता होता है। ग्रामपंचायत ग्राम सभा के निर्देषन में ग्राम सभा के सदस्यों की समस्याओं के समाधान हेतु कार्यकरती है। गांव के विकास व सामाजिक न्याय की योजना बनाना इनका प्रमुख काम है। कर्इलोगों का मानना है कि पंचायत लोगों की आवाज व आवश्यकताओं को केन्द्र तक पहँुचाने काएक कारगर मंच हो सकता है। अत: पंचायत सही मायने में लोगों की आवाज बने इसके लियेजरूरी है कि ग्राम पंचायत की बैठकें बराबर होती रहें और इसमें सभी सदस्यों की उचितभागीदारी हो। एक ग्राम पंचायत तभी सशक्त हो सकती है जब हर सदस्य अपने विचारों कोपंचायत की बैठक में बिना किसी संकोच के रख सके, गांव की समस्याओं तथा अन्य मुद्दों परचर्चा करे और उनके निदान के लिये प्रयत्न करे।
ग्राम पंचायत का गठन (धारा- 12-1)
सर्व प्रथम यह जानना जरूरी है कि ग्राम पंचायत का गठन कैसे होता है। त्रिस्तरीय पंचायतव्यवस्था की पहली इकार्इ ग्राम पंचायत में एक प्रधान व कुछ सदस्य होते हैं। ग्राम पंचायत केसदस्यों की संख्या पंचायत क्षेत्र की आबादी के अनुसार निम्न प्रकार से होगी -
- 500 तक की जनसंख्या पर - 05 सदस्य
- 501 से 1000 तक की जनसंख्या पर - 07 सदस्य
- 1001 से 2000 तक की जनसंख्या पर - 09 सदस्य
- 2001 से 3000 तक की जनसंख्या पर - 11 सदस्य
- 3001 से 5000 तक की जनसंख्या पर - 13 सदस्य
- 5000 से अधिक की जनसंख्या पर - 15 सदस्य
प्रधान तथा 2 तिहार्इ सदस्यों के चुनाव होने पर ही पंचायत का गठन घोषित किया जायेगा।
ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों के चुनाव
1. प्रधान का चुनाव (धारा- 11- ख - 1)
ग्राम सभा सदस्यों द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा प्रधान का चुनाव किया जायेगा। यदिपंचायत के सामान्य चुनाव में प्रधान का चुनाव नहीं हो पाता है तथा पंचायत के लिए दो तिहार्इसे कम सदस्य ही चनु े जाते है उस दशा में सरकार एक प्रशासनिक समिति बनायेगी। जिसकीसदस्य संख्या सरकार तय करेगी। सरकार एक प्रशासक भी नियुक्त कर सकती है। प्रशासनिकसमिति व प्रशासक का कार्यकाल 6 माह से अधिक नहीं होगा। इस अवधि में ग्राम पंचायत,उसकी समितियों तथा प्रधान के सभी अधिकार इसमें निहित होंगे। इन छ: माह में नियत प्रक्रियाद्वारा पंचायत का गठन किया जायेगा।
2. उपप्रधान का चुनाव (धारा- 11 - ग - 1)
उप प्रधान का चुनाव ग्राम पंचायत के सदस्यों के द्वारा अपने में से ही किया जाऐगा। यदि उपप्रधान का चुनाव न हो पाये तो नियत अधिकारी किसी सदस्य को उप प्रधान मनोनीत कर सकताहै।
पंचायतों का कार्यकाल
ग्राम पंचायत की पहली बैठक के दिन से 5 साल तक ग्राम पंचायत का कार्यकाल होता है। यदिपंचायत को उसके कार्यकाल पूर्ण होने के 6 माह पूर्व भंग किया जाता है तो ग्राम पंचायत में पुन:चुनाव करवाकर पंचायत का गठन किया जाता है। इस नवनिर्वाचित पंचायत का कार्यकाल 5 वर्षके बचे हुए समय के लिए होगा अर्थात बचे हुए छ: माह के लिए ही होगा।
पंचायतों की बैठक
पंचायतीराज को स्थानीय स्वशासन की इकार्इ के रूप में स्थापित करने की दिशा में पंचायतों मेंग्राम सभा व ग्राम पंचायतों की बैठकों का आयोजन विशेष महत्व रखता है। 73वें संविधानसंशोधन के द्वारा जो नर्इ पंचायत व्यवस्था लागू हुर्इ ह,ै उसमें ग्राम पंचायतों व ग्राम सभा कीबैठकों का आयोजन वैधानिक रूप से आवश्यक माना गया है। यही नहीं इन बैठकों में प्रधान वउप-प्रधान सहित अन्य पंचायत सदस्यों की भागेदारी अत्यन्त आवश्यक है। इसके साथ हीग्रामीण विकास से जुड़े विभिन्न रेखीय विभाग के प्रतिनिधियों द्वारा भी बैठक में भागीदारी कीजायेगी। महिला, दलित व पिछड़े वर्ग के लोगों की भागीदारी के बिना बैठकों का कोर्इ महत्व नहींहै। अत: पंचायतों की बैठकों का नियमित समय पर आयोजन व उन बैठकों में समस्त प्रतिनिधियोंकी भागीदारी विकेन्द्रीकरण की दिशा में किये गये प्रयासों को साकार करने का एक महत्वपूर्णमाध्यम है। अक्सर यह देखा गया है कि ग्राम सभा या ग्राम पंचायतों की बैठकों में प्रतिनिधियों वग्राम सभा सदस्यों की समुचित भागीदारी न होने से बैठकों में दो-चार प्रभावशाली लोगों द्वारा हीनिर्णय लेकर ग्राम विकास के कार्य किये जाते हैं। अत: अगर ग्रामस्वराज या स्थानीय स्वशासनको मजबूत बनाना है तो पंचायत प्रतिनिधियों व ग्राम सभा के सदस्यों को अपनी जिम्मेदारी काअहसास होना जरूरी है। साथ ही इन बैठकों को पूरी तैयारी के साथ आयोजित किया जानाचाहिए।
1. ग्राम पंचायत की बैठक के आयोजन से संबंधित कार्यवाही
ग्राम पंचायत की बैठक प्रत्येक माह में एक बार जरूर होनी चाहिये। जिस गांव में पंचायत घरहोगा वहीं बैठक होगी। दो लगातार बैठकों के बीच दो माह से अधिक का अन्तर नहीं होनाचाहिये।
- पंचायत की बैठक की सूचना निश्चित तारीख के कम से कम पांच दिन पहले लिखितनोटिस से सदस्यों को दी जायेगी। सूचना को ग्राम के प्रमुख स्थानों पर चिपकाना होगा।
- प्रधान पंचायत की बैठक की अध्यक्षता करेगा/करेगी तथा समय, स्थान व तारीख तयकरेगा/करेगी। उसके गैर हाजिरी में उपप्रधान द्वारा बैठक की अध्यक्षता कीजायेगी।प्रधान, उपप्रधान दोनों की गैर हाजिरी में प्रधान बैठक में अध्यक्षता के लिए किसीसदस्य का नाम पहले दे सकता/सकती है या उसके द्वारा चुना अधिकारी किसी सदस्यका नाम अध्यक्षता के लिये दे सकता/सकती है। इन सब की नामौजूदगी में ग्राम पंचायतकिसी सदस्य को बैठक की अध्यक्षता करने के लिये चुन सकती है।
- पंचायतेां की बैठकों में सदस्यों की एक तिहार्इ संख्या का होना जरूरी है इसे कोरम कहतेहै। जिसके बिना बैठक नहीं हो सकती। सरल शब्दों में पंचायत सदस्य, प्रधान ओरउपप्रधान को मिला कर पूरे सदस्यों की संख्या यदि 18 है तो 6 के होने पर बैठक होसकेगी। कोरम के न होने से यदि बैठक नहीं हो सके तो सदस्यों को दुबारा नोटिस देनाहोगा। इस बैठक में कोरम की जरूरत नहीं होगी।
- पंचायत के एक तिहार्इ सदस्य यदि लिख कर बैठक बुलाने की मांग करें तो 15 दिन केअन्दर प्रधान को बैठक बुलानी होगी। अगर किसी कारण वश प्रधान बैठक नहीं बुलाता हैतो ए. डी. ओ. पंचायत द्वारा बैठक बुलार्इ जायेगी।
- बैठक की कार्यवाही को एक रजिस्टर में लिखा जायेगा जिसे “एजेन्डा रजिस्टर” कहते हैं।
2. बैठक से पहले
- ग्राम पंचायतों की हर माह होने वाली बैठक में प्रतिनिधि, वार्ड की समस्याओं पर चर्चा,विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत हुए आय-व्यय का ब्यौरा, जिला या ब्लाक से मिली सूचनाका आदान-प्रदान करते हैं।
- इस बैठक में पंचायत राज अधिकारी भी भागीदारी करते हैं। अत: प्रधान को बैठक मेंउपस्थित होने वाले लोगों की सूची, किन विषयों पर चर्चा होगी उसका एजेण्डा या कार्यसूची तैयार कर लेनी चाहिए।
- बैठक का स्थान सभी की सुविधा व महिलाओं की पहुँच को ध्यान में रखकर तय करनाचाहिए।
- जिस विषय पर बैठक हो रही है उससे सम्बन्धित जानकार लोगों को भी बैठक में बुलानाचाहिए ताकि उनके सुझावों का लाभ लिया जा सके। अगर कार्यक्रम नियोजन को लेकरबैठक है तो नियोजन से सम्बन्धित विभागीय विशेषज्ञ को बैठक में बुलाना चाहिए। यदिवित्त प्रबन्धन से सम्बन्धित बैठक है तो वित्त से सम्बन्धित विशेषज्ञ को बैठक में बुलानाचाहिए।
- बैठक का एजेण्डा बनाते समय सरल व स्पष्ट शब्दों का प्रयोग करें व विषयों कोक्रमानुसार रखें। साथ ही बैठक प्रारम्भ होने व समाप्त होने का समय अवश्य लिखा होनाचाहिए।
- बैठक का समय ऐसा हो जिसमें अधिक से अधिक प्रतिनिधियों की भागीदारी हो, महिलाओंपर अत्यधिक कार्यबोझ होने से उनकी बैठक में अनुपस्थिति अधिक रहती है। अत: प्रधानको महिलाओं की समस्या के प्रति संवेदनशील रहते हुए बैठक का समय ऐसा रखनाचाहिए ताकि महिला प्रतिनिधि सक्रिय रूप से भागीदारी कर सकें।
- महिला सदस्यों की भागेदारी सुनिश्चित करने के लिए बैठक से पूर्व ही उनको बैठक मेंआने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह एक योग्य व सक्रिय प्रधान का कर्तव्य भी है।
- बैठक के आयोजन से पूर्व प्रधान को गांव के सभी सदस्यों व गांव के लोगों का बैठक केबारे में बताना चाहिए। व प्रत्येक सदस्य के घर एजेण्डा भेजकर सदस्यों द्वारा उठाये जानेवाले मुद्दों की सूचना भी एकत्र करनी चाहिए।
ग्राम पंचायतों की कार्यवाही
गाम पंचायत की कार्यवाही के कुछ कायदे हैं जिनका ध्यान हर ग्राम प्रधान को रखना चाहिय।बैठक में सर्वप्रथम पिछली बैठक की कार्यवाही पढ़कर सुनार्इ जायेगी तथा सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से पारित होने पर प्रधान उस पर अपने हस्ताक्षर करेगी/करेगा। इसके पष्चात पिछलेमाह में किये गये विकास कार्यों को सबके सामने बैठक में रखा जायेगा व उससे सम्बन्धितहिसाब-किताब व व्यय को ग्राम पंचायत के सामने रखकर उस पर विचार किया जायेगा। अगरराज्य, जिला व ब्लाक स्तर से पंचायत को कोर्इ महत्वपूर्ण सूचना मिली है तो उसको पंचायत कीबैठक में पढ़कर सुनाया जायेगा। ग्राम पंचायत की बैठक में ग्राम पंचायत की समितियों कीकार्यवाही पर भी विचार होगा।इन कार्यों के पष्चात मतदाता सूची, परिवार रजिस्टर, जन्म मृत्यु रजिस्टर में किये गये व कियेजाने वाले नामांकन या बदलाव पर चर्चा की जायेगी।यदि कोर्इ पंचायत सदस्य प्रशासन या कृत्योंसे सम्बन्धित किसी विषय पर प्रस्ताव लाना चाहे या प्रश्न उठाना चाहे तो उसकी एक लिखितसूचना बैठक से 11 दिन पहले प्रधान या उपप्रधान को देनी होगी। प्रधान किसी भी प्रस्ताव कोस्वीकार करने के सम्बन्ध में निर्णय लेगा/लेगी। प्रस्ताव या प्रश्न नियम के अनुसार होने चाहियेव विवाद बढ़ाने वाले मनगढ़ंत या किसी जाति/ व्यक्ति के लिये अपमानजनक नहीं होने चाहिये।यदि कोर्इ भी प्रस्ताव या प्रश्न संविधान के नियमों के अनुरूप नहीं है तो प्रधान उन्हें पूछने केलिये मना कर सकती/सकता है।
1. बैठक के दौरान ध्यान देने वाली बातें
प्रधान ग्राम पंचायत का मुखिया होने के नाते बैठक का आयोजन करती/करता है।बैठक के दौरान अपने विचारों को ठीक प्रकार से रखना, चर्चा का सही रूप सेसंचालन करना, बैठक में उठाये मुद्दों पर सदस्यों को सन्तुष्ट करना जैसे अनेक बातेंहैं जिन्हें प्रधान को बैठक के दौरान ध्यान में रखनी है।
- बैठक के प्रारम्भ में प्रधान सभी सदस्यों का स्वागत करना चाहिए तथा बैठक के एजेण्डाको सभी सदस्यों के सम्मुख रखना चाहिए। प्रधान को यह ध्यान रखना है कि अपनीबात रखते समय वह सभी उपस्थित लोगों की तरफ देख कर अपनी बात को कहे।केवल एक ही व्यक्ति की तरफ देखते हुए अपनी बात नहीं कहनी चाहिए। चर्चा केदौरान यदि कोर्इ दूसरा बोल रहा हो तो उसे बीच में नही टोकना चाहिए अपितुबोलने वाले को अपनी बात समाप्त करने का मौका देना चाहिए।
- बैठक में यदि कोर्इ सदस्य अपनी बात रख रहे हों तो अपनी बात शुरू करने से पहले‘माननीय’ प्रधान जी या अध्यक्ष जी कह कर सम्बोधन करना चाहिए।
- यदि बैठक में कोर्इ प्रश्न पूछना है या कोर्इ सूचना देनी है तो प्रधान की अनुमति लेकरअपनी बात रखी जा सकती है। और यदि कोर्इ बात आपकी समझ में न आयी हो तोवह भी प्रधान की अनुमति मांगकर स्पष्ट की जा सकती है।
- अगर किसी मुद्दे पर चर्चा विषय से हट गर्इ हो तो ऐसी स्थिति में हस्तक्षेप द्वारा चर्चाको पुन: मुद्दे पर लाना चाहिए व चर्चा को संतुलित बनाये रखना चाहिए।
- कुछ सदस्य खासकर महिलाएं, दलित व पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि अपनी बात नहीं रखतेव बैठक में चुप्पी साधे रहते हैं। अत: प्रधान व सक्रिय सदस्यों को चाहिए कि वे उनलोगों को विशेष रूप से प्रेरित करें, उन्हेंं अपनी बात रखने के लिए उचित वातावरणप्रदान करें ताकि महिलाएं बिना झिझक, संकोच व डर के अपनी बात को बैठक में रखसकें।
3. बैठक का समापन
बैठक के समापन से पहले बैठक में लिये गये निर्णयों को एक बार सभी को पढकर सुनाना चाहिएव उसके क्रियान्वयन से सम्बन्धित जिम्मेदारी भी तय हो जानी चाहिए। जिम्मेदारी सुनिश्चित करतेसमय यह भी तय कर लेना चाहिए कि अमुक कार्य कब पूरा होगा। बैठक की कार्यवाही सुनाने केपश्चात उस पर प्रधान ग्राम पंचायत तथा ग्राम पंचायत विकास अधिकारी (पंचायत सचिव) केहस्ताक्षर करवाने चाहिए। बैठक समापन करते समय प्रधान/अध्यक्ष को बैठक में उपस्थित सभीप्रतिभागियों का धन्यवाद करना चाहिए। बैठक की कार्यवाही की एक प्रति सहायक विकासअधिकारी (पंचायत) /खण्ड विकास अधिकारी को भेजनी चाहिए।
4. ग्राम प्रधान के कार्य एंव अधिकार
- ग्रामसभा की एवं ग्राम पंचायत की बैठक बुलाना व बैठक की कार्यवाही पर नियन्त्रणकरना।
- ग्राम पंचायतों में चल रही विकास योजनाओं,निर्माण कार्य व अन्य कार्यक्रमों की जानकारीरखना।
- पंचायत की आर्थिक व्यवस्था और प्रशासन की देखभाल करना तथा इसकी सूचना गांववालों को देना।
- पंचायती राज संम्बन्धी विभिन्न रजिस्टरों का रखरखाव करना व ग्राम पंचायत द्वारा रखेगये कर्मचारियों की देखभाल करना।
- ग्राम पंचायत के कार्यों को क्रियान्वित करना व सरकारी कर्मचारियों से आवश्यक सहयोगलेना व सहयोग देना।
- ग्रामपंचायत संम्बन्धी संम्पत्तियों की सुरक्षा व्यवस्था करना तथा ग्राम पंचायत द्वारा निर्धारितविभिन्न शुल्कों की वसूली भी सुनिश्चित करना।
ग्राम पंचायत सचिव के कार्य एवं अधिकार
पंचायत सचिव का प्रथम कार्य पंचायत अधिनियम व उसके अन्र्तगत बने नियमों , विभागीयआदेशों का सावधानी से अघ्ययन करना व उनका पालन सुनिश्चित करवाना है।
- ग्राम पंचायत कार्यालय को व्यवस्थित करना तथा पंचायत के समस्त अभिलेखों काविषयवार रख-रखाव करना सचिव का कर्तव्य है। इसके साथ ही पंचायत के पुरानेअभिलेखों को पंजीबद्ध करके सुरक्षित रखना होता है।
- विभिन्न योजनाओं हेतु पात्र लाभार्थियों का सर्वेक्षण करना।
- प्रधान की सहमति से ग्राम पंचायत की बैठक बुलाने की कार्यवाही करनी होती है साथ हीबैठक का एजेण्डा भी तैयार करना होता है। सचिव को पंचायतों की बैठकों की समय परसभी सदस्यों को सूचना देनी होती है। बैठक में जो सदस्य उपस्थित नहीं हैं, उनकीसूचना प्रधान केा देनी होती है। सचिव ही ग्राम पंचायत की बैठकों की कार्यवाही कालेखन करता है।
- विकास खण्ड द्वारा मांगी गर्इ सूचनाओं को ग्राम पंचायत द्वारा समय से प्रेषित करना होताहै।
- सचिव द्वारा ग्राम पंचायत में विकास कार्यों के सम्पादन में ग्राम पंचायत व पंचायतसमितियों को सहयोग दिया जाता है। ग्राम पंचायत की समितियों की बैठकों की कार्यवाहीका विवरण रखना व उसे पंचायत की बैठक में प्रस्तुत करना सचिव का ही कार्य है। साथही ग्रामपंचायत का वार्षिक प्रतिवेदन हर साल निश्चित तिथि तक तैयार कर उसे पंचायतकी बैठक में रखना व उनपर कार्यवाही सुनिश्चित करवाना सचिव का कार्य है।
- सचिव द्वारा पंचायत में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त राषि को पंचायत कोष में जमा करवायाजाता है , उसका हिसाब-किताब रखा जाता है तथा उनके व्यय हेतु आवश्यक कार्यवाहीकी जाती है।
प्रधान, उप-प्रधान पर आन्तरिक नियन्त्रण(अविश्वास प्रस्ताव)
पंचायत राज अधिनियम की धारा- 14 व सहपठित नियम -33 ख के अन्तर्गत ग्राम पंचायत केप्रधान व उप-प्रधान को हटाये जाने की व्यवस्था की गयी है। अविश्वास प्रस्ताव से सम्बन्धितमुख्य बिन्दु हैं-
- ग्राम पंचायत प्रधान के प्रति अविश्वास प्रस्ताव लाने हेतु ग्राम सभा के कम से कम आधेसदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस को कम से कम 3 सदस्य स्वयं जिला पंचायत राजअधिकारी को देंगे।
- जिला पंचायत राज अधिकारी नोटिस प्राप्ति के 30 दिन के अन्तर्गत ग्राम सभा की बैठकबुलायेगें। उक्त बैठक की अध्यक्षता जिला पंचायत राज अधिकारी स्वयं करते है या इसहेतु प्रधिकृत व्यक्ति द्वारा की जाती है।
- इस बैठक हेतु कोरम कुल ग्राम सभा सदस्यों का 1/5 निर्धारित है। बैठक में अविश्वासप्रस्ताव पर बहस की जाती है। तदुपरान्त गुप्त मतदान सम्पन्न करवाया जाता है।
- अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में उपस्थित व मतदान करने वाले ग्राम सभा सदस्यों के दोतिहार्इ मत पड़ने की दशा में प्रस्ताव पारित समझा जाता है तथा प्रधान अपने पद से हटजाता है।
- प्रधान के निर्वाचन के उपरान्त एक वर्ष तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता।अविश्वास प्रस्ताव पारित न होने या बैठक में गणपूर्ति के अभाव की दशा में प्रधान के प्रतिआगामी दो वर्षों तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
- उप प्रधान को हटाने हेतु उसके प्रति अविश्वास प्रस्ताव पंचायत सदस्य लाते है, बाकीनियम वही लागू होंगे जो प्रधान को पद से हटाये जाने के लिए है।
1. बाह्य नियंत्रण
राज्य सरकार ग्राम पंचायत के प्रधान, उप प्रधान या ग्राम पंचायत सदस्यों को हटा सकती है ।यदि प्रधान, वित्तीय अनियमितता, पद का दुरूपयोग आदि कदाचार का दोषी पाया जाता है तोउसे सरकार पदच्युत कर सकती है। जांच के दौरान जिला मजिस्ट्रेट के द्वारा तीन सदस्यों कीसमिति गठित की जाती है तथा प्रधान के दायित्वों का निर्वहन इसी समिति के सदस्यों द्वाराकिया जाता है। यदि ग्राम पंचायत सदस्य बिना कारण बताये लगातार तीन बैठकों से अनुपस्थितरहता/ रहती है, या उसके द्वारा कार्य करने से इन्कार किया जाता है अथवा पद का दुरूपयोगकिया जाता है तो उसे भी राज्य सरकार पदच्युत कर सकती है।
2. पद रिक्त होने पर चुनाव
पंचायत भंग होने या किसी पद के रिक्त होने के छ: माह के अन्तर्गत ही पुन: चुनाव करायेजाऐंगे। किसी भी परिस्थिति में छ: माह से अधिक समय तक पंचायतें भंग नहीं रह सकती वपंचायत का कोर्इ पद रिक्त नहीं रह सकता है।
ग्राम पंचायत के कार्य, एवं शक्तियॉं
प्रत्येक स्तर पर पंचायतों के कार्यकलाप एवं दायित्वों की सूची तैयार की गर्इ है। इस सूची केअन्तर्गत पंचायतों की 29 जिम्मेदारियां सुनिश्चित की गर्इ हैं। संविधान के 73 संशोधन द्वारा 29विषय पंचायतों के अधीन किये गये हैं, जिसके लिये पृथक से 73वें संविधान संशोधन में 243 जी11वीं अनुसूची जोड़ी गर्इ है। इस सूची में शामिल विषयों के अन्तर्गत आर्थिक विकास, सामाजिकन्याय और विकास योजनाओं को अमल में लाने का दायित्व पंचायतों का होगा। संविधान कीग्यारहवीं अनुसूचि के अन्तर्गत ग्राम पंचायतों की कुछ जिम्मेदारियां सुनिश्चित की गर्इ है। प्रत्येकग्राम पंचायत निम्नांकित कृत्यों का संपादन निष्ठापूर्वक करेगी।प्रत्येक स्तर पर पंचायतों के कार्यकलाप एवं दायित्वों की सूची तैयार की गर्इ है इस सूची केअन्तर्गत पंचायतों की 29 जिम्मेदारियां सुनिश्चित की गर्इ हैं। जिसके द्वारा पंचायती राज संस्थाओंको विभागों एवं विषयों के दायित्व सांपै े गये हैं।
ग्राम पंचायत के कार्य, एवं शक्तियॉं
क्र.सं. | जिम्मेदारी | मुख्य कार्य |
---|
1 | कृषि एवं कृषि विस्तार | • कृषि एवं बागवानी का विकास और प्रोन्नति। • बंजर भूमि और चारागाह भूमि का विकास और उसके अनाधिकृत अतिक्रमण एवं प्रयोग की रोकथाम करना। |
2 | भूमि विकास, सुधार का कार्यान्वयन और चकबन्दी | • भूमि विकास, भूमि सुधार, चकबन्दी और भूमि संरक्षण में सरकार तथा अन्य एजेन्सियों की सहायता करना। |
3 | लघु सिंचार्इ, जल अनुरक्षण, व्यवस्था, जल आच्छादन विकास | • लघु सिंचार्इ योजनाओं का लिर्माण, मरम्मत और सिंचार्इ के उद्देश्य से जल पूर्ति का विनिमय। |
4 | पशुपालन, दुग्ध उद्योग तथा कुक्कुट पालन | • पालतु जानवरों कुक्कुटों और अन्य पशुओं की नस्लों में सुधार करना। • दुग्ध उद्योग, कुक्कुट पालन तथा सुअर पालन की प्रोन्नति। • गांव में मत्स्य पालन विकास |
5 | सामाजिक और कृषि वानिकी | • सड़कों और सार्वजनिक भूमि के किनारों पर वृक्षारोपण और परिरक्षण। • सामाजिक, वानिकी, कृषि वालिकी एवं रेशम उत्पादन का विकास करना। |
6 | लघु वन उत्पाद | • लघु वन उत्पादों की प्रोन्नति एवं विकास करना। |
7 | लघु उद्योग | • लघु उद्योगों के विकास में सहायता करना। • कुटीर उद्योगों की प्रोन्नति। |
8 | लघु वन उद्योग | • लघु वन उत्पादन के कार्यक्रम की प्रोन्नतिऔर उसका क्रियान्वयन |
9 | कुटीर और ग्राम उद्योग | • कृषि एवं वाणिज्यिक उद्योगों के विकास में सहायता करना। • कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना। |
10 | ग्रामीण आवास | • ग््रामीण आवास कार्यक्रमों को क्रियान्वयन। • आवास स्थलों का वितरण और उनसे सम्बन्धित सभी प्रकार के अभिलेखों का रख-रक्षाव तथा अनुरक्षण। |
11 | पेयजल | • पीने, कपड़ा धोने, स्नान करने के प्रयोजनों के लिए सार्वजनिक कुओं, तालाबों, पोखरों का निर्माण • अनुरक्षण तथा पेयजल के लिए जल सम्ीाारण के स्रोतों का विनिमय। |
12 | र्इंधन व चारा भूमि | • र्इंधन व चारा भूमि से सम्बन्धित घास और पौधों का विकास। • चारा भूमि के अनियमित चारा पर नियंत्रण। |
13 | पुलिया, नौकाघाट तथा संचार के अन्य साधन | • गांव की सड़कों, पुलियों, पुलों और नौकाघाटों का निर्माण तथा अनुरक्षण। • जल मार्गों का अनुरक्षण। सार्वजनिक स्थानों से अतिक्रमण को हटाना। |
14 | ग्रामीण विद्युतीकरण | • सार्वजनिक मार्गों तथा अन्य स्थानों पर प्रकाश उपलब्ध कराना तथा अनुरक्षण करना। |
15 | गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत | • गैर पारम्परिक ऊर्जा के कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, प्रोन्नत्ति तथा उनका अनुरक्षण |
16 | गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम | • गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, पा्रन्नत्ति एवं कार्यान्वयन। |
17 | शिक्षा के बारे में सार्वजनिक चेतना | • त्कनीकी प्रशिक्षण एवं व्यवसायिक शिक्षा • ग्रामीण कला और शिल्पकारों की प्रोन्नति। |
18 | प्रौढ़, अनौपचाकरक शिक्षा | • प्रौढ़, अनौपचाकरिक शिक्षा का प्रसार। |
19 | पुस्तकालय | • पुस्तकालयों की स्ािापना एवं अनुरक्षण। |
20 | खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्य | • समाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों को बढ़ावा देना। • विभिन्न त्यौहारों पर सांस्कृतिक संगोष्ठियों का आयोजन करना। • खेलकूद के लिए ग्रामीण कलबों की स्थापना एवं अनुरक्षण। |
21 | बजार एवं मेले | • पंचायत क्षेत्रों के मेलों, बाजारों व हाटों को प्रोत्साहित करना। |
22 | चिकित्सा एवं स्वच्छता | • ग््रामीण स्वच्छता को प्रोत्साहित करना। • महामारियों के विरूद्ध रोकथाम। • मनुष्य, पशु टीकाकरण के कार्यक्रम। • खुले पशु और पशुधन की चिकित्सा तथा उनके विरूद्ध निवारण कार्यवाही। • जन्म-मृत्यु एवं विवाह का पंजीकरण। |
23 | परिवार कल्याण | • परिवार कल्याण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित कर क्रियान्वित करना। |
24 | आर्थिक विकास के लिए योजना | • ग्राम पंचायत क्षेत्र के आर्थिक विकास हेतु योजना तैयार करना। |
25 | प्रसूति एवं बाल विकास | • ग्राम पंचायत स्तर पर महिला एवं बाल विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में भाग लेना। • बाल स्वास्थ्स एवं बाल विकास के पोषण कार्यक्रमों की प्रोन्नत्ति करना। |
26 | समाज कल्याण | • समाज कल्याण के तहत मानसिक रूप से विकलांग एवं मंद बुद्धि के बच्चों, व्यक्तियों, पुरुषों तथा महिलाओं की सहायता करना। • वृद्धावस्था और विधवा पेन्शन योजनाओं में सहायता करना। |
27 | अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का कल्याण | • अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा समाज के अन्य कमजोर वगांर् े के लिए विशिष्ट कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सहयोग करना। • सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं की तैयारी करना तथा क्रियान्वयन करनां |
28 | सार्वजनिक वितरण प्रणाली | • सार्वजनिक वितरण प्रणाली, आवश्यक वस्तुओं के वितरण के सम्बन्ध में सार्वजलिक चेतना की प्रोन्नति करना। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अनुश्रवण एवं मूल्यांकन करना। |
29 | समुदायिक अस्तियों का अनुरक्षण | • समुदायिक अस्तियों का परिरक्षण और अनुरक्षण |
1. ग्राम पंचायत के अन्य कार्य
- ग्राम पंचायत व ग्राम सभा की बैठकों की तिथि, कार्यसूचि निश्चित करना तथा बैठकों कीकार्यवाही अंकित करना। साथ ही ग्राम पंचायत की विभिन्न समितियों की बैठक करना।
- किये जाने वाले कार्यों की प्राथमिकता तय करना व कार्यों की निगरानी व प्रगति कीदेख-रेख।
- ग्राम विकास के लिए योजनायें बनाना व सरकार द्वारा तय तरीके के अनुसार निर्धारितसमय में उन्हें क्षेत्र पंचायत को भेजना।
- पंचायत द्वारा लगाये जाने वाले करों, पथ करों, शुल्क, फीस की राशि, भुगतान विधि, जमाकरने की तिथि निर्धारित करना। प्राप्त होने वाली धनराशियों का लेखा-जोखा रखना।
- ग्राम सभा की बैठकों की कार्यवाही चलाना व अंकित करना। ग्राम सभा द्वारा दी जानेवाली सिफारिशों पर विचार करके निर्णय लेना।
- ग्राम सभा की देख-रेख में चलने वाली सरकारी योजनाओं का नियमों के अनुसार संचालनव निगरानी करना।
2. राज्य सरकार द्वारा समनुदेशित कार्य
- पंचायत क्षेत्र में स्थित किसी वन की व्यवस्था व अनुरक्षण।
- पंचायत क्षेत्र के भीतर स्थित सरकार की बंजर भूमि, चारागाह भूमि, खाली पड़ी भूमि कीव्यवस्था।
- किसी कर या भूराजस्व का संग्रह और संविधान आदि लेखों का रखरखाव।
- सार्वजनिक सड़कों, जलमार्गों तथा अन्य विषयों के सम्बन्ध में ग्राम पंचायतों की शक्ति।
- नये पुल अथवा पुलिया का निर्माण।
- जल मागोर्ं को पास पड़ोस के खेतों को न्यूनतम क्षति पहुंचा कर सार्वजनिक सड़क, पुल,पुलिया को चौड़ा करना, विस्तार करना।
- सार्वजनिक सड़क पर निकली किसी वृक्ष या झाड़ी की शाखा को काट सकती है।
- सार्वजनिक जलमार्ग, पीने व भोजन बनाने के लिये उपयोग होने वाला जल यदि स्नानकरने, कपड़े धोने, पशु नहलाने या अन्य कारणों से गन्दा हो रहा है तो उसका प्रतिषेद्यकर सकती है।
- सफार्इ सुधार के लिये ग्राम पंचायत नोटिस द्वारा किसी भूमि अथवा भवन के स्वामी कोउसकी वित्तीय स्थिति का सुधार करते हुये नोटिस दे कर तथा उसके पालन कायथोचित समय देकर निर्देश दे सकती है।
- शौचालय, मूत्रालय, नाली, मल, कूप मलवा, कूड़ा को हटाने सफार्इ करने, मरम्मत करनेकीटाणु रहित करने, अच्छी हालत में रखने को कार्य।
- हौज, कुन्ड, तालाब, नौले जलाशय, खदान को जो पास पड़ोस के व्यक्तियों के स्वास्थ्यके लिये हानिकारक है दुर्गन्ध युक्त पदार्थ - जैसे गोबर, मल, खाद, आदि को हटाने वपाटने के आदेश दे सकती है।
- जिस व्यक्ति को सफार्इ का नोटिस पंचायत देती है वह 30 दिन के भीतर जिला स्वास्थ्यअधिकारी को उक्त नोटिस के विरूद्ध अपील कर सकता है। जो उसे बदल सकता है,रद्द कर सकता है, पुष्टि कर सकता है।
- अगर दो या तीन पास पास की पंचायतों में स्कूल, चिकित्सालय, औषधालय नहीं है याअपने सामान्य लाभ के लिये किसी पुल या सड़क की आवश्यकता है तो वे पंचायतेंनियत अधिकारी के निर्देश द्वारा इन सुविधाओं के निर्माण या अनुरक्षित करने मेंसम्मिलित हो जायेगी। राज्य सरकार व जिला पंचायतों द्वारा अनुदान दिये जायेगें, जोनियत हो।
पंचायतों द्वारा अभ्यावेदन एवं सिफारिश
- ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में कार्यरत्त सींचपाल, पतरोल, लेखपाल, पटवारी, ग्राम पंचायतविकास अधिकारी व ग्राम स्तरीय कार्यकर्त्ता/कर्मचारी के स्थानान्तरण, पदच्युत के सम्बन्धमें सिफारिश कर सकती है।
- अपने अधिकारिक क्षेत्र के अन्तर्गत कार्य करने वाले कर्मचारियों के आचार की जांच वरिपोर्ट ए.डी.ओ. पंचायत/सक्षम अधिकारी को भेज सकती है।
- पंचायत मंत्री के अतिरिक्त ऐसे कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति कर सकती है जिसकीसमय-समय पर आवश्यकता पड़ती है। ऐसा नियत प्राधिकारी के अनुमोदन से ही करसकती है। आपात स्थिति में प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना भी कर्मचारी की नियुक्ति करसकती है। लेकिन इसकी सूचना तत्काल देनी होती है। उन कर्मचारियों के वेतन कीव्यवस्था पंचायत को अपने खर्चे से करनी होती है।
- ग्राम पंचायत का सदस्य किसी बैठक में कोर्इ संकल्प/प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है औरप्रधान या उपप्रधान से ग्राम पंचायतों के प्रशासन से सम्बन्धित विषयों के सम्बन्ध में प्रश्ननियत रीति से पूछ सकता है।
- अगर ग्राम पंचायत या ग्राम पंचायतें किसी जमीन को पंचायती एक्ट में निहित किसी कार्यके उपयोग के लिए प्राप्त करना चाहती है तो वे पहले तो आपसी समझौते से इसे लेंगीअगर दोनो पार्टी किसी एग्रीमेन्ट पर नहीं पहँुचतीं है तो जिलाधिकारी को एक प्रार्थना पत्रभेज सकती है। (नियत प्रपत्र में जिलाधिकारी ग्राम पंचायतों को भूमि अर्जित कर सकतीहै।)
पंचायत सदस्यों की अन्य जिम्मेदारियां
पंचायत में चुनकर आये प्रतिनिधियों की सबसे पहली जिम्मेदारी है कि गाँव में चुनाव के दौरानहुए आपसी मतभेद को भुलाकर सौहार्द का वातावरण बनाना।
- पंचायत की नियमित बैठकें आयोजित करवाना व उन बैठकों में अपनी सक्रिय भागीदारीदेना।
- ग्राम सभा की बैठक नियमित समय पर करवाना व उसमें महिला-पुरूषों की भागीदारीसुनिश्चित करना।
- गांव की महिलाओं, पिछड़े व दलित वर्ग के लोगों को विशेष रूप से हर कार्य, निर्णय वयोजनाओं के निमार्ण में शामिल करना।
- पंचायत के लिये संसाधन जुटाना जैंसे-मानव श्रम की उपलब्धता, धन की व्यवस्था करना,कर लगाना व वसूल करना व इससे पंचायत की आमदनी बढ़ाना।
- पंचायत में आये धन का सदुपयोग करना व उसका लेखा-जोखा पंचायत भवन के बाहरलिखना।
- ग्राम पंचायत के अन्र्तगत क्षेत्र में आने वाले कर्मचारियों के कार्यो की देख-रेख करना।
- जन्म मृत्यु का पंजीकरण करना। अगर पंचाायत अपने स्तर पर विवाह पंजीकरण भी करेंतो यह एक अच्छी पहल होगी।
- पंचायत की समितियों का गठन कर उसके सदस्य के रूप में अपने कार्यो व भूमिका कानिर्वहन करना।
- पंचायत के प्रतिनिधि गाँव व क्षे़त्र में व्याप्त सामाजिक बुरार्इयों जैसे- दहेज, बालविवाह,शराब आदि पर प्रतिबन्ध भी लगा सकती है। समाज सुधार की दिशा में यह महत्वपूर्णकार्य होगा।
- अपने क्षेत्र के जल, जंगल, जमीन के संरक्षण व संवर्धन के लिये योजना बनाना व ग्रामवासियों के साथ मिलकर इन प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा व प्रबन्धन करना।
- गाँव में बने अन्य सामुदायिक संगठनों जैसे महिला मंगल दल, स्वयं सहायता समूह या वनसुरक्षा समिति आदि के साथ मिलकर कार्य करना व उनके साथ तालमेल बनाना।
- महिला सदस्य गांव में देखें कि गांव की गर्भवती महिलाओं का आंगन बाड़ी रजिस्टर मेंपंजीकरण व देखभाल की उचित व्यवस्था है या नहीं। आंगनबाड़ी केन्द्र में ए.एन.एमसमय-समय पर आ रही है या नहीं। गर्भवती महिलायें आयरन व फॉलिक एसिड कीगोलियां खा रही हैं या नहीं। उनहे नियमित खून की जांच कराने तथा संतुलित आहारलेने के लिए प्रेरित करें।
- आंगनबाड़ी केन्द्र का वातावरण स्वच्छ है या नहीं, बच्चों के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध हो इसकाभी ध्यान दें। ए.एन.एम. बच्चों व गर्भवती महिला को आवश्यक टीके दे रही हैं या नहीं।
- ग्राम पंचायत में महिला समूहों की विशेष बैठक करनी चाहिये जिसमें महिलाओं केअधिकारों व सामाजिक बिन्दुओं पर चर्चा करें।
- पंचायतों को देखना होगा कि कोर्इ बाल श्रमिक तो कार्य नहीं कर रहा। बाल श्रमिक को स्वीकारने कामतलब उसे उसकी शिक्षा व खेलने के अधिकार से वंचित रखना। दलित व पिछड़े वर्ग के लोगोंखासकर महिलाओं की भागीदारी विकास कार्यक्रमों में सुनिश्चित करें।
- पंचायत की बैठक में गांव के बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के उपायों पर चर्चाकरें व ग्राम सभा के लोगों को उससे सम्बन्धित जानकारियां दें। विकलांग बच्चों कोविकास सम्बन्धित योजनाओं को भी प्राथमिकता दें।
- गांव के विद्यालय में शिक्षक प्रतिदिन उपस्थित हो रहे हैं या नहीं व बच्चों को पढ़ाते हैं यानहीं इस बात को भी ध्यान रखें। निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने की जिम्मेदारी पंचायतके पढ़े-लिखे सदस्यों को लेनी होगी। उन्हें पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करें।
- गांव में चल रही योजनाओं की निगरानी करने की जिम्मेदारी भी पंचायत सदस्यों कोनिभानी है। ताकि योजना सही ढंग से पूरी हो और उसमें किसी प्रकार की धांधलेबाजी नहो।
- गांव में महिला मंगल दल व युवक मंगल दल को मजबूत व सक्रिय बनाना। उनकीआवश्यकताओं का पंचायत द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए।
gram panchayat sarpanch apne putra ko wender bana sakta h ki nhi