क्रिप्स मिशन कब भारत आया
क्रिप्स योजना – Cripps Mission, 30 March 1942 in Hindi
द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रथम दो वर्ष ब्रिटिश साम्राज्य के लिए बहुत संकटपूर्ण थे. जर्मनी की निरंतर सफलता और इंग्लैंड पर आक्रमण की आशंका से इंग्लैंड अपनी रक्षा के लिए खुद प्रयत्नशील था. जापानी आक्रमण से भारतीय साम्राज्य पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे थे. इस प्रकार युद्ध की दोहरी मार से ब्रिटिश साम्राज्य की शांति और सुरक्षा खतरे में पड़ गयी थी. परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना चाहती थी. चलिए जानते हैं क्रिप्स योजना के बारे में Details in Hindi. What is Cripps Mission? इस मिशन को भारत में कब और क्यों लाया गया? क्रिप्स-योजना में क्या कमी थी और यह क्यों असफल हुआ? इस योजना की प्रमुख बातें भी जानेंगे और क्रिप्स-योजना की प्रस्तुतीकरण के कारण को भी समझेंगे.
11 मार्च, 1942 ई. को इंग्लैंड के प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल ने यह घोषणा की कि –
“जापानियों की प्रगति के कारण भारत के लिए जो भय और संकट उप्तन्न हो गया है, उसे देखते हुए हम यह आवश्यक समझते हैं कि आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा के लिए हमें उसके समस्त वर्गों को संगठित करना चाहिए. अगस्त, 1940 ई. में हमने भारत के सम्बन्ध में अपने उद्देश्यों और नीति के विषय में पूर्णरूप से प्रकाश डालते हुए एक घोषणा की थी, जिसका संक्षेप में यह आशय था कि युद्ध के समाप्त होने पर यथासंभव शीघ्र भारत को पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज प्रदान किया जायेगा. हमने युद्ध मंत्रिमंडल के एक सदस्य को भारत भेजने का निश्चय किया है जिससे कि वह भारत जाकर भारतीय नेताओं से विचार-विनिमय करने के उपरान्त इसकी तसल्ली कर ले कि हमने भारत के सम्बन्ध में जो निर्णय लिया है, वह भारतीयों को स्वीकृत है. इस कार्य के लिए सर स्टैफोर्ड क्रिप्स सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भारतीय गतिरोध का अंत करने के उद्देश्य से भारत जायेंगे.”
क्रिप्स योजना को प्रस्तुत करने के पीछे जिन कारणों और परिस्थितयों का हाथ था उनकी विवेचना निम्नलिखित ढंग से की जा सकती है : –
Cripps Mission की प्रमुख बातें
Cripps Mission में कांग्रेस की दो मुख्य मांगों को स्वीकार किया गया था. सर्वप्रथम औपनिवेशिक स्वराज्य की बात स्वीकार की गई और दूसरे, संविधान-निर्मात्री परिषद् की स्थापना कर नया संविधान बनाने की बात मान ली गई. इस दृष्टि से क्रिप्स-योजना अगस्त-योजना से अधिक स्पष्ट और निश्चित थी परन्तु क्रिप्स योजना (Cripps Mission) में कुछ व्यावहरिक दोष थे :-
क्रिप्स योजना (Cripps Mission) विशेष परिस्थिति में पेश की गई थी. युद्ध के समय इंग्लैंड की सरकार स्वयं संकट में थी. उसे भारत को आधार के रूप में प्रयोग में लाना था. सत्ता-हस्तांतरण की कोई तिथि निर्धारित नहीं थी. यह प्रस्ताव सच्ची भावनाओं से बहुत दूर था. क्रिप्स-प्रस्ताव का विरोध कांग्रेस के अतिरिक्त हिंदू-महासभा और मुस्लिम लीग के द्वारा भी किया गया था.
ब्रिटेन ने प्रभावकारी शक्ति को तुरंत भारतीयों के हाथों में हस्तांतरित करने व भारत की सुरक्षा में हिस्सा देने से इन्कार कर दिया. अंततः इस मुद्दे पर बातचीत टूट गयी. गांधीजी ने इसे ‘उत्तरतिथिक चेक’ (Postdated Check) की संज्ञा दी. इन सबके बावजूद क्रिप्स प्रस्ताव ने ‘अगस्त प्रस्ताव’ से आगे संवैधानिक प्रगति की दिशा में कुछ ठोस कार्य किये, उदाहरणस्वरूप राष्ट्रमंडल से अलग होने के साथ-साथ डोमिनियन स्टटेस का निश्चित आश्वासन तथा सिर्फ भारतीय सदस्यों से बनने वाली संविधान सभा. इस तरह क्रिप्स मिशन भारतीयों का सक्रिय सहयोग पाने के अपने प्राथमिक उद्देश्य में असफल रहा, फिर भी इसका वास्तविक लाभ चचिर्ल को ही हुआ. उसने रूजवेल्ट को संतुष्ट कर दिया कि भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए लिए भारतीय नेता ही तैयार नहीं हैं.
11 अप्रैल, 1942 को यह प्रस्ताव वापस लिया गया. इस असफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि क्रिप्स को बातचीत में लचीला होने की सुविधा नहीं थी. उसे ‘प्रारूप घोषणा’ के अतिक्रमण का अधिकार नहीं था. क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीयों को कटुता से भर दिया तथा इससे अंततः ‘भारत छोड़ो आन्दालेन’ का जन्म हुआ.
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