Crips Mission Kab Bharat Aaya क्रिप्स मिशन कब भारत आया

क्रिप्स मिशन कब भारत आया



GkExams on 29-05-2019

क्रिप्स योजना – Cripps Mission, 30 March 1942 in Hindi


द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रथम दो वर्ष ब्रिटिश साम्राज्य के लिए बहुत संकटपूर्ण थे. जर्मनी की निरंतर सफलता और इंग्लैंड पर आक्रमण की आशंका से इंग्लैंड अपनी रक्षा के लिए खुद प्रयत्नशील था. जापानी आक्रमण से भारतीय साम्राज्य पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे थे. इस प्रकार युद्ध की दोहरी मार से ब्रिटिश साम्राज्य की शांति और सुरक्षा खतरे में पड़ गयी थी. परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना चाहती थी. चलिए जानते हैं क्रिप्स योजना के बारे में Details in Hindi. What is Cripps Mission? इस मिशन को भारत में कब और क्यों लाया गया? क्रिप्स-योजना में क्या कमी थी और यह क्यों असफल हुआ? इस योजना की प्रमुख बातें भी जानेंगे और क्रिप्स-योजना की प्रस्तुतीकरण के कारण को भी समझेंगे.

विंस्टन चर्चिल की घोषणा

11 मार्च, 1942 ई. को इंग्लैंड के प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल ने यह घोषणा की कि –

“जापानियों की प्रगति के कारण भारत के लिए जो भय और संकट उप्तन्न हो गया है, उसे देखते हुए हम यह आवश्यक समझते हैं कि आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा के लिए हमें उसके समस्त वर्गों को संगठित करना चाहिए. अगस्त, 1940 ई. में हमने भारत के सम्बन्ध में अपने उद्देश्यों और नीति के विषय में पूर्णरूप से प्रकाश डालते हुए एक घोषणा की थी, जिसका संक्षेप में यह आशय था कि युद्ध के समाप्त होने पर यथासंभव शीघ्र भारत को पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज प्रदान किया जायेगा. हमने युद्ध मंत्रिमंडल के एक सदस्य को भारत भेजने का निश्चय किया है जिससे कि वह भारत जाकर भारतीय नेताओं से विचार-विनिमय करने के उपरान्त इसकी तसल्ली कर ले कि हमने भारत के सम्बन्ध में जो निर्णय लिया है, वह भारतीयों को स्वीकृत है. इस कार्य के लिए सर स्टैफोर्ड क्रिप्स सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भारतीय गतिरोध का अंत करने के उद्देश्य से भारत जायेंगे.”

क्रिप्स योजना की प्रस्तुतीकरण के कारण

क्रिप्स योजना को प्रस्तुत करने के पीछे जिन कारणों और परिस्थितयों का हाथ था उनकी विवेचना निम्नलिखित ढंग से की जा सकती है : –

  • द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्रराष्ट्रों की स्थिति प्रारम्भ से संकटपूर्ण हो गयी थी. जर्मनी और जापान युद्ध में सफलता प्राप्त कर उत्तरोत्तर आगे बढ़ रहे थे. इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने स्वयं कहा था कि – “पूर्वी एशिया में जापान के भयंकर आक्रमण तथा ब्रिटेन और अमेरिका के जहाजी बड़ों के समुद्री तट पर पीछे हट जाने से सिंगापुर के आत्मसमर्पण और अन्य कई परिस्थितियों के कारण जापानी आतंक से भारत की सुरक्षा की संभावना संकटग्रस्त हो गई है. बंगाल की खाड़ी पर से हमारा प्रभुत्व समाप्त हो गया और बहुत कुछ हिन्दमहासागार से भी.” उस समय यह संभावना हो गई थी कि बंगाल और मद्रास के प्रांत भी जापानी आक्रमण के शिकार बनेंगे. चर्चिल ने यह भी बतलाया था कि “हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि भारत ही एक ऐसा शक्तिशाली आधार है जहाँ से हम जापान के अत्याचार और आक्रमण के विरुद्ध शक्तिशाली चोट कर सकते हैं.” अतः ऐसी संकटपूर्ण परिस्थिति में इंग्लैंड की सरकार ने भारत के संवैधानिक गतिरोध को दूर करना आवश्यक समझा.
  • भारतीय समस्या की ओर इंग्लैंड के कुछ व्यक्तियों ने सरकार का ध्यान आकृष्ट करने की चेष्टा की और उसका समुचित निदान ढूँढने पर बल दिया. फरवरी, 1942 ई. में ब्रिटेन की लोकसभा में इस सम्बन्ध में दिलचस्प वाद-विवाद हुआ. अतः वाद-विवाद के बाद क्रिप्स-योजना (Cripps Misson) तैयार करना आवश्यक हो गया था.
  • चीन के जनरल च्यांग-काई-शेक, उनकी पत्नी और सैनिक पदाधिकारी का आगमन भारत में हुआ. पूर्वी क्षेत्र में जापान का मुकाबला करने के लिए भारत की समर्थता का महत्त्व बतलाते हुए च्यांग-कोई-शेक ने ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया कि वे भारतीयों की माँगों को स्वीकार कर उन्हें संतुष्ट रखें. च्यांग-काई-शेक ने कहा था कि – “मुझे पूरी आशा और दृढ़ विश्वास है कि हमारा मित्र ब्रिटेन भारतीयों की मांग की प्रतीक्षा किये बिना ही उन्हें शीघ्र-से-शीघ्र वास्तिविक राजनीतिक शक्ति प्रदान करेगा जिससे वे अपनी आत्मिक और बौद्धिक शक्तियों को और भी उन्नत कर सकें और इस प्रकार यह अनुभव कर सकें कि वे केवल आतंकवाद के विरोधी राष्ट्रों की विजय के लिए ही युद्ध में सहयोग नहीं दे रहे हैं, वरन् यह भी अनुभव कर रहे हैं कि उनका यह सहयोग भारतीय स्वतंत्रता के उनके संघर्ष में भी एक युगांतकारी घटना है. क्रियात्मक दृष्टि से मेरे विचार में यह सबसे अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण नीति होगी जो ब्रिटिश साम्राज्य के यश को चतुर्दिक प्रासिरित कर देगी.”
  • विश्व के महान राष्ट्रों के द्वारा इंग्लैंड की सरकार पर दबाव डाला जाने लगा कि भारत की राजनीतिक समस्या का वह न्यायोचित समाधान करे. संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने चर्चिल को अटलांटिक चार्टर भारत पर भी लागू करने की सलाह दी और भारतीयों को आत्मनिर्णय का अधिकार देने की पुष्टि की. उसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री डॉ. इवाट ने भारत की स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया था. इन राष्ट्रों की स्वाभाविक सहानुभूति भारत के प्रति थी.
  • इंग्लैंड का जनमत भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में था. ब्रिटिश संसद के सदस्यों ने शासन पर वचन-भंग का आरोप लगाया और संवैधानिक गतिरोध को दूर कर भारत को स्वतंत्र करने पर बल दिया.
  • सुभाषचंद्र बोस ने जापान जाकर रासबिहारी बोस के सहयोग से आजाद हिन्द फ़ौज का गठन कर लिया था. सैनिकों के बीच भी भारत को स्वतंत्र बनाने की प्रवृत्ति जग चुकी थी. इससे ब्रिटिश सरकार की चिंता बढ़ी और उसने क्रिप्स को भारत भेजने का निश्चय किया.

Cripps Mission की प्रमुख बातें

Cripps Mission में कांग्रेस की दो मुख्य मांगों को स्वीकार किया गया था. सर्वप्रथम औपनिवेशिक स्वराज्य की बात स्वीकार की गई और दूसरे, संविधान-निर्मात्री परिषद् की स्थापना कर नया संविधान बनाने की बात मान ली गई. इस दृष्टि से क्रिप्स-योजना अगस्त-योजना से अधिक स्पष्ट और निश्चित थी परन्तु क्रिप्स योजना (Cripps Mission) में कुछ व्यावहरिक दोष थे :-

दोष

  1. क्रिप्स-मिशन में औपनिवेशिक स्वराज्य देने की कोई अवधि निश्चित नहीं की गई थी. इसका स्वरूप अस्पष्ट और अनिश्चित था. महात्मा गाँधी ने इसे दिवालिया बैंक के नाम अगली तारीख का चेक की संज्ञा दी और एक अन्य लेखक ने इसे ऐसे बैंक के नाम जो टूटनेवाला हो कहकर पुकारा. इसी कारण महात्मा गाँधी ने क्रिप्स-योजना (Cripps Mission) को अमान्य कर दिया.
  2. क्रिप्स मिशन में मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग को एक कदम और आगे बढ़ा दिया गया. इसमें देशी राज्यों और मुस्लिम लीग को प्रसन्न रखने के लिए उन राज्यों और प्रान्तों को यह छूट दी गई कि वे स्वेच्छानुसार भारतीय संघ में सम्मिलित हो सकते हैं. मुस्लिम बहुल प्रान्तों को भारतीय संघ से अलग रहने का अधिकार प्राप्त हो गया. डॉ. पट्टाभि सीतारमैया के अनुसार “इस प्रस्ताव में विभिन्न रुचियों को संतुष्ट करने के विभिन्न पदार्थ थे.”
  3. देशी राज्यों में जनता की राय जानने को कोई महत्त्व नहीं दिया गया था. नरेशों के प्रतिनिधियों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया. इस प्रकार संविधान-निर्मात्री परिषद् में चौथाई सदस्य अप्रजातांत्रिक ढंग से आते और वे रुढ़िवादी होने के कारण प्रगतिशील सुधारों का विरोध करते.
  4. ब्रिटिश प्रान्तों को संघ में सम्मिलित होने या न होने का अधिकार देकर सरकार ने साम्प्रदायिक तत्त्वों को प्रोत्साहन दिया. मुस्लिम लीग पाकिस्तान बनाने की माँग करने लगी पर पंजाब के सिखों ने इसका घोर विरोध किया और वे भारत-संघ से पंजाब के बहिष्कार का किसी भी मूल्य पर विरोध करने के लिए तैयार हो गए.
  5. अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा की स्पष्ट व्याख्या क्रिप्स मिशन में नहीं थी. पिछड़े वर्ग के लोगों का विचार था कि योजना में उनके हितों की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है.
  6. भारत की रक्षा का दायित्व भारतीयों के हाथ में न देकर ब्रिटिश सरकार ने अपने पास रख ली थी. यह बात कांग्रेस को मान्य नहीं थी. क्रिप्स ने यह स्पष्ट कर दिया था कि किसी परिस्थिति में सुरक्षा-विभाग भारतीयों के हाथ में नहीं दिया जायेगा. अधिक-से-अधिक सरकार केवल एक भारतीय को सुरक्षा-सदस्य नियुक्त करने पर तैयार थी.

क्रिप्स योजना (Cripps Mission) विशेष परिस्थिति में पेश की गई थी. युद्ध के समय इंग्लैंड की सरकार स्वयं संकट में थी. उसे भारत को आधार के रूप में प्रयोग में लाना था. सत्ता-हस्तांतरण की कोई तिथि निर्धारित नहीं थी. यह प्रस्ताव सच्ची भावनाओं से बहुत दूर था. क्रिप्स-प्रस्ताव का विरोध कांग्रेस के अतिरिक्त हिंदू-महासभा और मुस्लिम लीग के द्वारा भी किया गया था.

मूल्यांकन

ब्रिटेन ने प्रभावकारी शक्ति को तुरंत भारतीयों के हाथों में हस्तांतरित करने व भारत की सुरक्षा में हिस्सा देने से इन्कार कर दिया. अंततः इस मुद्दे पर बातचीत टूट गयी. गांधीजी ने इसे ‘उत्तरतिथिक चेक’ (Postdated Check) की संज्ञा दी. इन सबके बावजूद क्रिप्स प्रस्ताव ने ‘अगस्त प्रस्ताव’ से आगे संवैधानिक प्रगति की दिशा में कुछ ठोस कार्य किये, उदाहरणस्वरूप राष्ट्रमंडल से अलग होने के साथ-साथ डोमिनियन स्टटेस का निश्चित आश्वासन तथा सिर्फ भारतीय सदस्यों से बनने वाली संविधान सभा. इस तरह क्रिप्स मिशन भारतीयों का सक्रिय सहयोग पाने के अपने प्राथमिक उद्देश्य में असफल रहा, फिर भी इसका वास्तविक लाभ चचिर्ल को ही हुआ. उसने रूजवेल्ट को संतुष्ट कर दिया कि भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए लिए भारतीय नेता ही तैयार नहीं हैं.


11 अप्रैल, 1942 को यह प्रस्ताव वापस लिया गया. इस असफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि क्रिप्स को बातचीत में लचीला होने की सुविधा नहीं थी. उसे ‘प्रारूप घोषणा’ के अतिक्रमण का अधिकार नहीं था. क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीयों को कटुता से भर दिया तथा इससे अंततः ‘भारत छोड़ो आन्दालेन’ का जन्म हुआ.




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