पशु चिकित्सा बुक्स इन हिंदी
पशु-चिकित्सा-विज्ञान (Veterinary medicine) में मनुष्येतर जीवों की शरीररचना (anatomy), शरीरक्रिया (physiology), विकृतिविज्ञान (pathology), भेषज (medicine) तथा शल्यकर्म (surgery) का अध्ययन होता है। पशुपालन शब्द से साधारणतया स्वस्थ पशुओं के वैज्ञानिक ढंग से आहार, पोषण, प्रजनन, एवं प्रबंध का बोध होता है। पाश्चात्य देशों में पशुपालन एवं पशुचिकित्सा दोनों भिन्न-भिन्न माने गए हैं पर भारत में ये दोनों एक दूसरे के सूचक समझे जाते हैं।
अनुक्रम
1 इतिहास
2 पशुचिकिसा विद्यालय
3 पशुचिकित्सा का पाठ्यक्रम
4 पशुगणना
5 पशुरोग एवं उनका नियंत्रण
6 पशु संचारित रोग
7 इन्हें भी देखें
8 बाहरी कड़ियाँ
इतिहास
प्राचीन नगर वैशाली में अशोक स्तम्भ, जिस पर मानवों के साथ-साथ पशुओं के लिये भी चिकित्सालय बनवाने का उल्लेख है।
शालिहोत्र की पाण्डुलिपि के पन्ने
भारत के प्राचीन ग्रंथों से पता लगता है कि पशुपालन वैदिक आर्यों के जीवन और जीविका से पूर्णतया हिल मिल गया था। पुराणों में भी पशुओं के प्रति भारतवासियों के अगाध स्नेह का पता लगता है। अनेक पशु देवी देवताओं के वाहन माने गए हैं। इससे भी पशुओं के महत्व का पता लगता है। प्राचीन काव्यग्रंथों में भी पशुव्यवसाय का वर्णन मिलता है। बड़े बड़े राजे महाराजे तक पशुओं को चराते और उनका व्यवसाय किया करते थे। ऐसा कहा जाता है कि पांडव बंधुओं में नकुल ने अश्वचिकित्सा और सहदेव ने गोशास्त्र नामक पुस्तकें लिखी थीं। ऐतिहासिक युग में आने पर अशोक द्वारा स्थापित पशुचिकित्सालय का स्पष्ट पता लगता है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में अश्वों एवं हाथियों के रोगों की चिकित्सा के लिए सेना में पशुचिकित्सकों की नियुक्ति का उल्लेख किया है। अश्व, हाथी एवं गौर जाति के रोगों पर विशिष्ट पुस्तकें लिखी गई थीं, जैसे जयदत्त की अश्वविद्या तथा पालकण्य की हस्त्यायुर्वेद। पर पशुचिकित्सा के प्रशिक्षण के लिए विद्यालयों के सबंध में कोई सूचना नहीं मिलती।
विदेशों में भी पशुओं का महत्व बहुत प्राचीन काल में समझ लिया गया था। ईसा से 1900-1800 वर्ष पूर्व के ग्रंथों में पशुरोगों पर प्रयुक्त होनेवाले नुसखे पाए गए हैं। यूनान में भी ईसा से 500 से 300 वर्ष पूर्व के हिप्पोक्रेटिस, जेनोफेन, अरस्तू आदि ने पशुरोगों की चिकित्सा पर विचार किया था। ईसा के बाद गेलेन नामक चिकित्सक ने पशुओं के शरीरविज्ञान के संबंध में लिखा है। बिज़ैटिन युग में (ईसा से 5,508 वर्ष पूर्व से) पशुचिकित्सकों का वर्णन मिलता है। 18वीं और 19वीं शती में यूरोप में संक्रामक रागों के कारण पशुओं की जो भयानक क्षति हुई उससे यूरोप भर में पशुचिकित्साविद्यालय खोले जाने लगे। पशुचिकित्सा का सबसे पहला विद्यालय फ्रांस के लीओन में 1762 ई. में खुला था।
पशुचिकिसा विद्यालय
भारत में पहले पहल 1827 ई. में पूना में सैनिक पशुचिकित्साविद्यालय स्थापित हुआ था। फिर 1882 ई. में अजमेर में ऐसा ही दूसरा विद्यालय स्थापित हुआ। पशुरोगों के निदान के लिए सर्वप्रथम प्रयोगशाला 1890 ई. में पूना में स्थापित हुई थी, जो पीछे मुक्तेश्वर में स्थानांतरित कर दी गई। आज भी यह भारतीय पशुचिकित्साशाला के नाम से कार्य कर रही है और आज पशुचिकित्सा संबंधी अनेक खोजें वहाँ हो रही हैं। फिर धीरे धीरे अनेक नगरों में पशुचिकित्साविद्यालय खुले। ये विद्यालय बंबई, कलकत्ता, मद्रास, पटना, हैदराबाद, मथुरा, हिस्सार, गोहाटी, जबलपुर, तिरुपति, बीकानेर, मऊ, भुवनेश्वर, त्रिचूर, बंगलौर, नागपुर, रुद्रपुर और राँची में हैं। विदेशों में प्राय: सब देशों में एक या एक से अधिक पशुचिकित्सालय हैं।
भारत में सभी पशुचिकित्सा महाविद्यालय विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं, जहाँ शिक्षार्थियो को उपाधियाँ दी जाती हैं। कुछ विद्यालयों में स्नातकोत्तर उपाधियाँ भी दी जाती हैं।
पशुचिकित्सा विद्यालयों में पशुचिकित्सक तैयार होते हैं। इन्हें विभिन्न वर्गों के जीवों के स्वास्थ्य और रोगों की देखभाल करनी पड़ती है। इन जीवों की शरीररचना, पाचनतंत्र, जननेंद्रिय, इत्यादि का तथा इनके विशेष प्रकार के रोगों और औषधोपचार का अध्ययन करना पड़ता है। पहले केवल घोड़ों पर ध्यान दिया जाता था। पीछे खेती के पशुओं पर ध्यान दिया जाने लगा। फिर खाने के काम में आनेवाले, अथवा दूध देनेवाले पशुओं पर, विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। ऐसे पशुओं में गाय, बैल, भैस, सूअर, भेड़, बकरी, कुत्ते, बिल्लियाँ और कुक्कुट हैं। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से मांस और दूध देनेवाले पशुओं और पक्षियों की चिकित्सा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है और यह अवश्य भी है, क्योंकि रोगी पशुओं के मांस और दूध के सेवन से मनुष्यों के भी रोगग्रस्त होने का भय रहता है। प्राणिउद्यान तथा पशु पाकों में रखे घरेलू या जंगली पशुओं, पशुशालाओं, गोशालाओं और कुक्कुटशालाओं के पशुओं की भी देखभाल विकित्सकों को करनी पड़ती है।
पशुचिकित्सा का पाठ्यक्रम
पशु-चिकित्सा-महाविद्यालयों की इंटरमीडिएट उत्तीर्ण छात्रों के लिए पाठ्यावधि भारत में चार वर्षों की है, जबकि अन्य देशों में मैट्रिक उत्तीण छात्रों के लिए पाँच से सात वर्षों की रखी गई है। पाठ्य विषयों को साधारणतया दो वर्गों में विभक्त किया गया है। एक पूर्वनैदानिक (pre-clinical) पाठयक्रम और दूसरा नैदानिक (clinical) पाठ्यक्रम।
पूर्वनैदानिक पाठ्यक्रम में जो विषय पढ़ाए जाते हैं, वे निम्नलिखित हैं :
1. घरेलू जानवरों की सामान्य शरीररचना, ऊतिकी (histology)।
2. शरीर के अंगों एवं अवयवों का क्रियाविज्ञान (physiology)
3. औषध-प्रभाव-विज्ञान (Pharmacology)
4. सूक्ष्मजीवविज्ञान (Microbiology)
5. परजीवी विज्ञान (Parasitology)
6. शरीर-विकृति-विज्ञान (Pathology)
7. पोषण (Nutrition) और
8. आनुवंशिकी (Genetics)
नैदानिक विषयों में हैं :
(१) भेषज विज्ञान, जिसमें नैदानिक और निवारक सभी प्रकार की औषधियाँ संमिलित हैं और इनका क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत हैं
(२) शल्य कार्य, जिसमें प्रसूतिविद्या, मादा-रोग-विज्ञान, घावों के उपचार, अस्थिभंग के उपचार, शरीरावयवों के उच्छेदन, एक्स किरण आदि आते हैं (कृत्रिम प्रजनन भी इसी के अंतर्गत आता है) तथा
(३) प्रसार जिसमें प्रसार के सिद्धांत और तरीके, व्यावहारिक समाजविज्ञान, अर्थशास्त्र, पशुचिकित्सा संबंधी विविध विषयों की जानकारी दी जाती है।
पशुगणना
घरेलू जानवरों के सही सही आँकड़े प्राप्त करना सर्वथा कठिन है। भारत में पशुधन और कुक्कुटों की प्रति वर्ष गणना की जाती है। सन् 1961 की गणना के अनुसार पशुओं की कुल संख्या 22.68 करोड़ है, जिसमें 17.56 करोड़ गोजातीय और 5.12 करोड़ भैंस जातीय है। संसार के समस्त गोजातीय पशुओं का लगभग छठा हिस्सा और भैंस जातियों का लगभग आधा हिस्सा भारत में है। बकरियों की संख्या छह करोड़, भेड़ों की संख्या चार करोड़, मुर्गी एवं बतखों की संख्या 12 करोड़ और घोड़ा, गदहा, खच्चर, ऊँट एवं सूअर, कुल मिलाकर एक करोड़ हैं। भारत में दूध का कुल उत्पादन 50 करोड़ मन, घी का एक करोड़ मन और अंडे का 140 करोड़ है।
हड्डी, बाल, खाल या चमड़ा, मांस तथा अंत: स्त्रावी उत्पादों का आर्थिक मूल्य करोड़ों रुपए का हो जाता है। यदि हम इसमें पशुओं के श्रमदान का मूल्य भी जोड़ लें, ता उनका मूल्य अरबों तक पहुँच जायगा।
पशु रोगों से होनेवाली क्षति के सही आँकड़े प्राप्त करना संभव नहीं है। परिमित आकलन के आधार पर भारत में इस क्षति को पशुधन के कुल मूल्य का 25ऽ मान लें तो वह बहुत बड़ी रकम होगी। संयुक्त राज्य, अमरीका, जैसे प्रगतिशील देशों में 10 प्रतिशत के आधार पर इसका आकलन किया गया है।
पशुरोग एवं उनका नियंत्रण
रोगों से पशुधन की क्षति का प्रधान कारण परजीवियों का संचार है, जिससे उनमें उर्वरा शक्ति का ह्रास, दूध एव मांस के उत्पादन में कमी तथा निकृष्ट कोटि के ऊन का उत्पादन होता है। पशुरोगों में सबसे भयंकर पशुप्लेग (rinderpest), गलाघोंटू (heamoragic septicaemia), ऐंथ्रैक्स (anthrax) तथा जहरबाद (black quarter) हैं। खुर एवं मुँह पका रोग यूरोपीय पशुओं के लिए भंयकर रोग हैं, पर भारत में नमक द्वारा उपचार से पशु प्राय: रोगमुक्त हो जाते हैं। जुताई के समय इस रोग के फैलने से काम ठप्प हो जाते हैं। ब्रुसेलोसिस (brucellosis) यक्ष्मा या क्षय रोग, जींस डिज़ीज, स्तनकोप या थनेजा (mastitis), नाभी रोग (navel diseases), कुछ ऐसे जीवाणु रोग हैं, जो पशुपालकों एवं पशुचिकित्सकों के लिए चिंता के कारण बन जाते हैं। परोपजीवी रोगों में फैशियोलिसिस (fasciolisis), शिस्टोसोमिएसिस (schistosomiasis), बेवेसिएसिस तथा कॉक्सिडिओसिस (coccidiosis) हैं।
उपचार न होने पर सर्रा (surra) रोग से ग्रसित पशु मर जाते हैं। अफ्रीकी अश्वरोग का प्रसार भारत में अन्य देशों से हुआ है। यह बहुत ही घातक बीमारी हैं। अश्वग्रंथि (glanders) रोग का भारत से लगभग उन्मूलन हो चुका है। दमघोटू सामान्यत: नए कुक्कुटों की बीमारी है। यह रोग साधारणत: अच्छा हो जाता है लेकिन कभी कभी इस रोग से मुक्त हो जाने पर कुक्कुट निकम्मा हो जाता है।
भेड़ों की मृत्यु सामान्यत: गोटी और ब्रैक्सी (braxy) रोगों से हुआ करती है। भेड़ तथा अनय मवेशियों के लिए उभयचूष रोग चिंताजनक बीमारी है। गोटी, हैजा एवं कौक्सिडिओसिस के कारण कुक्कुट पालन उद्योग को गहरी क्षति पहुँचती है। कुक्कुटों के सेलमोनेलोसिस (salmonelosis) से मनुष्यों को भी खतरा है। शूकर ज्वर या विशूचिका (swine fever) तथा एरिसिपेलैस (erysipelas) सूअरों के प्रमुख रोग हैं। कुत्ते, बिल्लियों के रोगों में पिल्लों में भयानक संयतता, कुत्तों में रैबीज़, अंकुश कृमि, पट्टकृमि, रक्तजीवरोग, लेप्टोस्पिरोसिस (leptospirosis) आदि प्रमुख रोग हैं।
रोगों के नियंत्रण के लिए स्वच्छता के नियमों का कठोर पालन, रोगग्रस्त पशुओं का पृथक्करण तथा आयात किए हुए पशुओं का संगरोधन (quarantine) आवश्यक है। रोग एवं परजीवियों से बचाव के लिए अधिक से अधिक पुष्टाहार तथा टीका एंव लसी चिकित्सा द्वारा पशुओं की प्राकृतिक तथा कृत्रिम प्रतिकार शक्ति में वृद्धि होती है। खुर एवं मुँहपका रोग, माता रोग, क्षय रोग आदि के अन्मूलन के लिए अमरीका आस्ट्रेलिया, ग्रेट ब्रिटेन तथा यूरोप के कतिपय अन्य देशों में रोगपीड़ित पशुओं का वध करने की नीति अपनाई गई है। कतिपय रोगों के लिए प्रतिजैविक पदार्थ (antibiotic) तथा रसायनचिकित्सा (chemotherapy) बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुई है।
कतिपय पशुरोगों के लिए रोगाणुनाशक औषधियों को मिलाकर खिलाने से सूअर तथा कुक्कुट की उन रोगों से होनेवाली क्षति बहुत ही कम हो गई है।
पशु संचारित रोग
मुख्य लेख : पशुजन्यरोग
कुछ रोग पशुओं से मनुष्यों को हो जाते हैं, ऐसे रोगों में ग्लैंडर्स, यक्ष्मा, ब्रुसेलोसिस, ऐंथ्रैक्स, प्लेग, सेलमोनेलोसिस, रैबीज़ (जलभीति), सिटेकोसिस, ऐस्परगिलोसिस (aspergillosis), मासिक रोग, क्यूफी वरगोटी (pox), अतिसार, लेप्टोस्पिरोसिस, आदि सामान्य रूप से पाए जानेवाले रोग हैं। दूषित मांस खाने से मांस के ऐल्कालायड विष का कुप्रभाव हो जाता है। उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पशुओं से प्राप्त होनेवाले खाद्य पदार्थों का पशुचिकित्सकों द्वारा सतत निरीक्षण सर्वथा आवश्यक है।
Hamari bhesh ko Bukhar hai Hum Kya Kare
मेरा भैंस का बछडा जो एक साल की है वह चारा नही खा रही है और अपने सर को दीवार पर भी पटक रही है कुछ उपचार बताएं
गाय के पूरे शरीर व थनों पर छोटे छोटे दाने या फोड़े निकलते रहते हैं,कुछ सूख जाते हैं तो नये निकल आते हैं इसके लिए हम क्या करे।
Fmd
Sabse Phele pashu ki halat dekhenge ki kiya h pashu ko kyu jugali nhi kar rha kyu chara nhi kha rha or uske fever chek karenge
Cow ke than se milk Sam subah gotta hai hemopethik me Dana kiya dena hai
भैस खल,फीड,चोकर कुछ नही खा रही हैं। जिसके कारण दूध भी कम हो गया हैं क्या करें
Mere gaay ke doodh duhne wale baat me funsiyan nikal gayi hain.upchar batawen.
हमारी गाय को सर्रा हो गया है दवाई भी दिलवा दी है, लेकिन कोई फर्क नहीं हुआ, क्या करें??
Gk pashu chikitsa questions
Test
Sabse Phele pashu ki test karay
मेरी गाय को थाईलिरिया रोग हो रहा है क्या किया जा सकता हैं ईलाज
मेरी गाय कुछ खा नहीं रहीं न जुगाली कर रही नाक से पानी निकल रहा क्या करे
उसको हमने b complex antovaitic dva फिर v आराम नही
Meri gaya ke ek than me doodha nikalta hai teen thano me kam nikalta hai
Gaay ki taang tut gai Ishki leye keya karna chaiye
मेरी गाय चारा नही कहा रही है।
जुगाली भी कर रही है,
Gay ka sugar kam hone par Kay kare
Pashu chikitsa book ka name batauo
Bhes chara nahi kha rahi hai,sir thandi lagati hai.
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