राजनीतिक दल के प्रकार
6.1. प्रोटो-दल (Proto Party):- राजनीतिक दल आधुनिक परिघटना है परन्तु इतिहास में प्राचीन ग्रीक नगर-राज्यों से ही गुट मिलना शुरू हो जाते है। आधुनिक युग से पूर्व काल में दल व गुट अथवा समूह जैसे शब्द एक-दूसरे के पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाते रहे। ऐसे समूहों के पास पर्याप्त मात्र में संगठनात्मक आधार व वैचारिक भिन्नता भी होती थी। ऐसे ही गुटों अथवा दलों को प्रोटो-पार्टी कहा जाता है। 17-18वी सदी के आसपास ब्रिटेन में व्हिग व टोरी जैसे समूह ऐसे ही दलों के उदाहरण है। टोरी व व्हिग दोनों के पास उचित संगठन व विचारधारा थी, जिस कारण वह राजनीतिक दल के रूप में ही क्रमश: कंज़र्वेटिव दल व लिबरल दल जैसे आधुनिक राजनीतिक दल में परिवर्तित हो गए।
ऐसे प्रोटो-पार्टी मूलत: ‘राजनीतिक-गुट’ होते है जिनका सामाजिक आधार उच्च व मध्य वर्ग का भी कुलीन वर्ग ही था। ऐसे दलों की सदस्य संख्या काफी कम होती थी और नेतृत्व कुलीन व्यक्तियों के हाथों में ही होता है, जो दल का संचालन स्वार्थपूर्ति हेतु भी किया करते थे।
6.2. कैडर दल (Cadre Party):- कैडर (Cadre) दल, जिसे अभिजन दल और कॉकस दल के नाम से भी जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है ढांचा (Framework) और दलीय राजनीति के सन्दर्भ में इसका सम्बन्ध विशेष दलीय संगठन से है। ऐसे दल 19वीं सदी में विशेष रूप से पाए जाते थे, जो आंतरिक रूप से निर्मित होते है और विधानमंडल के अन्दर कुछ सदस्यों के समूह द्वारा ही निरुपित किये जाते है, जो चुनावी गतिविधियों पर विशेष ध्यान देते है।
ऐसे दल मूलत: गिने चुने अभिजनों व महत्त्वपूर्ण उच्चस्तरीय व कुलीन व्यक्तियों के दल होते है, जो सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के व्यापक फैलाव से पहले यह दल उच्च व मध्य वर्गीय लोग, जिन्हें वोट डालने का अधिकार था, उनकी ही सदस्यता, वित्तीय सहयोग व समर्थन पर टिके थे। अत: यह दल सदस्यों की गुणवत्ता पर बल देते थे न कि उनकी संख्या पर। इसलिए बहुत बड़ी जनसँख्या (आम सामान्य व्यक्ति) को वह सदस्यता का पात्र भी नहीं मानते थे। इनकी नीतियाँ भी मूलतः अभिजन वर्ग के लिए होती है न कि सामान्य व्यक्तियों के लिए, इसलिए इन्हें बड़े संगठन की आवश्यकता नहीं होती, जिससे व्यापक रूप में आम जनता को जागरूक किया जाए बल्कि इनका संगठन बहुत छोटा होता है, जिनमें सिर्फ कुछ प्रभावशाली लोगों को ही उनकी योग्यता व महत्त्व के आधार पर चुना जाता है, इसलिए कैडर दल एक अनौपचारिक समूह जैसा होता है, जो संगठनात्मक स्तर पर शिथिल होता है। इसे ही दुवर्जर कमज़ोर अभिव्यक्ति का नाम देते है। ऐसे दलों के उदाहरण मुख्यतः ब्रिटेन, कनाडा, स्वीडन के कंज़र्वेटिव दल और अमरीका की फ़ेडरलिस्ट व जेफेर्सोनियंस आदि है।
ऐसे दलों का वित्त-साधन अपनी सदस्यता के अनुरूप एक छोटे समूह तक ही सीमित होता है, जिसमें ‘कम संख्या-ज्यादा योगदान’ के सूत्र पर क्रियान्वयन होता है। जिसमें निजी उद्योगपतियों व अमीर संरक्षकों के कुछ समूह होते है। साथ ही ऐसे दलों का सामाजिक आधार मुख्यतः उच्च, कुलीन व मध्यवर्ग होता था क्योंकि उस समय मताधिकार कुछेक गिने-चुने लोगों के पास ही था।
6.3. मास दल (Mass Party):- मताधिकार के विस्तार और सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार की ओर बढ़ने के परिणामस्वरूप ‘मास’ (Mass-जन) दलों का उदय हुआ। इन दलों की उत्पत्ति 1860-1960 के बीच मिलती है। इन दलों की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएं है, जो इस प्रकार है –
(A) व्यापक सदस्यता : ‘मास’ दलों की सदस्यता कैडर जैसे दलों की अपेक्षा काफी विस्तृत होती है क्योंकि कामगार वर्ग को भारी संख्या में मताधिकार प्राप्ति होती है जो इन दलों की सदस्यता ग्रहण करते है। ऐसे दलों में औपचारिक सदस्यता खुली होती है। “बशर्ते जो व्यक्ति सदस्यता ले रहा है वह दलीय संगठन की विचारधारा,नियमों व बाध्यताओं का स्वीकारें, जिसके जरिए उस सदस्य को संगठन के शासन में भागीदारी का अधिकार मिलता है”[1]। साथ ही ऐसे दलों में प्रत्यक्ष सदस्यता के अलावा अप्रत्यक्ष सदस्यता भी होती है, क्योंकि मास दल कई मजदूर संघ व ऐसे ही संगठनों से जुड़े होते है और इन संघों, संगठनों के सदस्य भी इन दलों के सदस्यों की तरह कार्य करते है। जैसे- ब्रिटिश लेबर पार्टी के बड़े संख्या में सदस्य ऐसे कई मजदूर संघों, फेबियन समाज के सदस्य थे।
(B) विधानमंडल के बाहर निर्मित : कैडर और प्रोटो पार्टी के उल्ट मास पार्टी विधानसभा के बहर उत्पन्न होती है, इनका सामाजिक आधार बाहर विद्यमान कई संघ, संगठन व संस्था होती है, जो इन्हें लगातार प्रभावित करती है, इसलिए विधानसभा के बाहर ही वह जनता को अपने से जोड़ने का प्रयास करते है।
(C) चुनाव में भागीदारी : मास पार्टी प्रत्यक्ष रूप से चुनावों में भाग लेती है और यह दल ऐसे लोगों का समूह होता है, जो अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विधानमंडल (संसद) में प्रतिनिधित्व चाहते है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए दल के सदस्य चुनाव लड़ते है।
Source:www.socialistpartyscotland.org.uk
(D) फंडिंग (वित्त) : दलीय वित्त पूरी तरह से ‘बड़ी संख्या-छोटा योगदान’ के सूत्र पर टिका होता है, इसके जरिए यह दल कुछ धनवान कुलीनों पर निर्भरता कम करके सामान्य सदस्यों पर विश्वास बनाए रखती है। साथ ही जब दलीय नेता विधानमंडलों में चुन लिए जाते है, तो उन्हें अपने वेतन का कुछ भाग दल के कोष में जमा करना पड़ता है जिससे यह दल दो उद्देश्य पूरे करते है –
i). दल में किसी के भी निजी लाभ का कोई स्थान नहीं है।
ii). दल को अपने संचालन के लिए धन मिल जाता है।[2]
(E) संगठन : मास दलों का एक व्यापक संगठन होता है परन्तु यह संगठन बहुत जटिल है क्योंकि यह कई अन्य संघो, समूहों से जुड़ाव रखता है, इसलिए हमें उन्हें भी इस दल के संगठन के रूप में शामिल करना चाहिए। सामान्यत: ऐसे दलों में एक केंद्रीय संरचना होती है परन्तु वह एक कार्यकारी समिति का निर्माण करते है, जिसमें दल के अध्यक्ष, सचिव आदि दल के महत्त्वपूर्ण पद्सोपानिक स्तर पर आधारित व्यक्ति होते है, जो दल का शीर्ष नेतृत्व कहलाता है परन्तु दल की बुनियादी इकाइयां चुनाव-क्षेत्रों के अनुरूप ही भौगोलिक आधार (शाखाओं) पर बंटी रहती है, जो केंद्रीय संरचना के प्रति उत्तरदायी होता है। अधिकतर सदस्य इन्ही बुनियादी इकाइयों से जुड़े रहते है और उनके लिए कार्य करते है। साथ ही लोकतांत्रिक तरीकों से केंद्रीय संरचना में शामिल किये जाते है। दुवर्जर इसे ‘सशक्त-अभिव्यक्ति’ का नाम देते है।
जो प्रतिनिधि सार्वजनिक पदों के लिए दल के नाम के अधीन चुने जाते है, वह दल के एजेंट के रूप में ही कार्य करते है और सामान्यत: मतदाता भी दल को देखकर ही उन उम्मीदवारों को चुनते है। साथ ही दलीय संगठन सदस्यों को परिवार का अंग मानता है।
दुवर्जर मानते है कि मास पार्टी दलीय सिद्धांतों का सही मायनों में प्रतिनिधित्व करती है और इनका नेतृत्व व सदस्य निम्न सामाजिक स्तर की पृष्ठभूमि अर्थात् कामगार-वर्ग से आते है। इस प्रकार के दल श्रमिक, किसान समूह के सामाजिक आन्दोलन का समर्थन करते है। आम जनता व अपने सदस्यों को राजनीतिक शिक्षा देते है, अपनी विचारधारा का प्रसार करते है। ऐसे दलों के उदाहरण जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी है। संपूर्ण यूरोप में इस तरह के समाजवादी दलों ने 20वी सदी में अत्यधिक प्रभावित किया। ब्रिटिश लेबर पार्टी, पारंपरिक फ्रंच सोशलिस्ट पार्टी ऐसे ही कुछ उदाहरण है।
6.4. कैच-ऑल पार्टी (Catch-All Party):- 1950 के पश्चात् व्यवहारिक राजनीति का स्वरुप बदलने लगा। लगभग हर देश में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार की लहर चलने लगी और इसी पृष्ठभूमि में राजनीतिक दलों ने भी अपना स्वरुप बदलना शुरू किया, जिसे Otto Kirchheimer ने “Catch-All” दल का नाम दिया। उस समय विद्यमान ‘मास पार्टी’ और ‘कैडर दलों’ ने स्वयं को ‘कैच-ऑल’ दलों के रूप में ही विकसित करना प्रारंभ किया। कैच-ऑल पद का हिंदी रूपांतरण सभी कुछ प्राप्त करना है और इसी अर्थ में ‘कैच-आल’ दल सभी प्रकार के मतदाताओं के मतों को प्राप्त करना चाहते है, न की समाज के किसी विशेष वर्ग के मतों को। इसलिए ऐसे दल सिर्फ किसी सामाजिक वर्ग के मतों की सीमा में ही नहीं रहते बल्कि उस सीमा को तोड़ आगे निकल जाते है।
1945 के पश्चात् से राजनीतिक व्यवस्था काफी परिवर्तित हुई, जिसमें शासन तकनीकयुक्त हो गया है, जिसमें चुनावी संचार ‘जनसंचार- माध्यमों’ से किया जाता है और नेता अपने मतदाताओं से टेलीविज़न के द्वारा संपर्क करते है[3]। अब व्यक्तिगत रूप से मतदाताओं से मिलने के प्रयत्न की जरुरत कम है। वह सिर्फ दल की छवि को अच्छा बनाने व लगातार सुधारने पर बल देते है, जिससे उम्मीदवार को ज्यादा से ज्यादा वोट मिले और वह विजयी हो क्योंकि ‘कैच-ऑल’ दल सिर्फ चुनाव में हर संभव प्रयास से विजय चाहते है और इसलिए वह ‘कैच-ऑल’ रणनीति अपनाते है। बहुत सारे हित समूहों को विशेष पुरस्कार भी देते है। इसलिए कैच-ऑल दल बड़े व्यापरियों को कार्य हेतु अच्छी परिस्थितियाँ, श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा व उच्च वेतन, किस्सानों को अच्छा दाम व समर्थन, वरिष्ठ नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा, अच्छी शिक्षा व युवाओं के लिए नौकरियों जैसे वादे करती है,[4] जिससे सभी प्रकार के मतदाता खुश हो और अपना मत उन्हें ही दें।
सदस्यता ऐसे दलों की सभी के लिए खुली होती है और दूसरे दल के सदस्यों को भी आकर्षित करते है। इनके दलीय वित्त का स्रोत बहु-आयामी है, इनके सदस्य व समर्थक बड़े पूंजीपति से लेकर आम व्यक्ति होता है जो इन्हें चंदा देते है। राज्य भी कई देशों में इन दलों को अनुदान देता है। उदाहरण के लिए 1945 के बाद से जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, क्रिश्तियन डेमोक्रेटिक पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आदि दल रहे है।
6.5. अधिनायकवादी दल :- ऐसे दल विद्यमान व्यवस्था विरोधी, संविधान विरोधी भी हो सकते है। ऐसे दल सत्ता इसलिए प्राप्त करना चाहते है, जिनसे विद्यमान संवैधानिक संरचना को उखाड़ फेंक अन्य साधनों से चीज़ें स्थापित की जाए। जनता के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को अपने अधीन लाया जाए। इसलिए अधिनायकवादी दल काफी कठोर होते है, जो अपनी सदस्यता भर्ती में चुनाव के माध्यम से सदस्य चुनते है, उसी को सदस्य चुना जाता है, जो दल व उसके विचारों को समय व विश्वास दे सकता है। उदाहरण के लिए नाज़ी व फासी दल। साथ ही, फ्रांस व इटली के साम्यवादी दल जो चाहते थे कि वहाँ भी सोवियत संघ की तरह अधिनायकवाद स्थापित किया जाए, जो ‘दल-राज्य एक समान’ के सूत्र पर कार्य करें।
6.6. कार्टेल दल (Cartel Party):- 1970 के पश्चात् कैच-ऑल दलों के सामने सार्वजानिक ऋणों में वृद्धि और कल्याणकारी योजनाओं में खर्च में कमी जैसी चुनौतियाँ थी और वैश्वीकरण की नयी शुरुआत की आहट सरकारों की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण की शक्ति को कमज़ोर कर रही थी। वहीँ गैर-सरकारी संगठन, नागरिक समाज का उदय भी इन दलों पर दबाव बना रहा था। भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति का बोलबाला, चुनाव प्रचार में ज्यादा खर्च, दलीय निष्ठां, दलीय सदस्यता में गिरावट जैसे मुद्दे दलों को बदनाम भी कर रहे थे। इसी पृष्ठभूमि में Cartel दलों का जन्म होता है। Cartel दल शब्द काटज और पीटर मैर ने सर्वप्रथम 1995 में प्रयुक्त किया। इसका शाब्दिक अर्थ उत्पादक संघों से है, जो स्वतंत्र है और प्रतियोगिता को सीमित करते है। दलीय राजनीति में इसका अर्थ ऐसे दलों से है, जिसमें पेशेवर राजनीतिज्ञ होते है, जिनके समर्थन का मुख्य स्रोत सार्वजानिक स्त्रोतों का वित्त अथवा राज्य द्वारा दिया गया फण्ड है। यह चुनाव वोट और सीट प्राप्त करने के लिए लडती है क्योंकि इनका अस्तित्व तभी बचा रहता है, जब तक यह पद ग्रहण किए रहते है इसलिए यह हमेशा प्रयास करते है कि मतदाताओं को आकर्षित करे, दलीय नेतृत्व को चुनौती मिलने की सम्भावना को ख़त्म करें तथा फंडिंग के स्रोतों को बनाए रखें, जिससे वह चुनावी बाज़ार में टिके रह सकें।[5]
6.7. एंटी-कार्टेल दल (Anti-Cartel Party):- काटज और पीटर मैर ने कार्टेल दल, जो कैच-ऑल दलों का परवर्तित रूप था, के विरुद्ध एक दलीय व्यवस्था के विरोधी दल को अस्तित्वमान बताया, जो कार्टेल दलों को चुनौती देते है। ऐसे दलों को वह Anti-Cartel दल कहा गया। इन्हें ‘आन्दोलनकारी दल’ भी कहा जाता है। कार्टेल व कैच-ऑल दल के विरुद्ध अपने सदस्यों से गहरी प्रतिबद्धता की अपेक्षा करते है, मास दल की तरह नहीं जो सिर्फ एक सामाजिक समूह पर ध्यान केन्द्रित करें बल्कि यह एक विचार से जुड़े होते है। इन दलों की दो प्राथमिक अपील है –
i). चुनावों के जारी मुख्यधारा के दल के परिवर्तन से कुछ नहीं होगा सिर्फ, छिटपुट बदलाव आयेंगे। यदि व्यापक परिवर्तन चाहते है तो विचार व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है।
ii). मुख्यधारा के दल चुनाव जीतकर सिर्फ़ अपने विशेषाधिकारों को संरक्षित करते है, बजाय की सामान्य नागरिकों के हितो को संवर्धित करने के।[6]
Source: www.prezi.com
ऐसे दलों के उदाहरण विभिन्न देशों के ग्रीन दल और भारत में आम-आदमी पार्टी का उदय इसका एक बड़ा उदाहरण है।
Source:www.wikipedia.com
ज्ञान संवर्धन : क्या आप जानते हैं?
राजनीतिक दलों के विचारधारात्मक वर्गीकरण का आधार
दक्षिणपंथी राजनीतिक दल: दक्षिणपंथी दल मूलतः नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के समर्थक होते है, जो बाज़ार को राज्य के नियंत्रण से मुक्त रखने की बात करते हैं, निजीकरण के हिमायती बनते हैं परन्तु सामाजिक मुद्दों व धर्म में अनुदारवादी रवैया अपनाते हैं और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना चाहते है। संस्कृति के नाम पर राष्ट्रवाद को आगे बढाते हैं। ऐसे दलों का सामाजिक आधार मुख्यतः उच्च व मध्य वर्ग (व्यापारी वर्ग) का एक बड़ा हिस्सा होता है।
वामपंथी राजनीतिक दल: वामपंथी दल प्रगतिशील, समाजवाद पर बल देते है और गरीबों, मजदूरों, कृषकों व आम जनता के हितैषी तथा निजीकरण, बड़े उद्योगपतियों के विरोधी होने के साथ नवउदारवादी नीतियों के घोर विरोधी होते हैं। वह सामाजिक सुधर तथा आर्थिक लोकतंत्र के प्रति अपनी कड़ी प्रतिबद्धता रखते है। ऐसे राजनीतिक दल चाहते हैं कि बाज़ार का संचालन राज्य स्वयं करे क्योंकि बाज़ार कमज़ोर को बहिष्कृत कर देता है, जिसे राज्य द्वारा विशेष व्यवहार से ही मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है। अत: सकारात्मक समतावाद में वामपंथ विश्वास रखता है। इन दलों का सामाजिक आधार व समर्थन गरीब व वंचित वर्ग सामान्यत: करते है।
केंद्रीयपंथी राजनीतिक दल: दक्षिणपंथ व वामपंथ के बीच की विचारधारा में इस प्रकार के राजनीतिक दल कार्य करते है। वह नव उदारवादी नीतियों के समर्थक हो सकते हैं परन्तु सामाजिक मुद्दों व धार्मिक मुद्दों पर प्रगतिशील विचार रखते हैं। ऐसे दल उद्योगपतियों व आम जनता दोनों के हित में कार्य करने की बात करते हैं।
Rajnatik sanbidhan kya hai
Sara Aise pura Ho Jaaye niche rajnitik Dal ke bare mein kya likhen
Rajnitik dal kitne parkar ke hote hai
Raj neetik dal ke prakaar
Rajnitik dal kitne prakar ke hote h
Rajnitik dal kitane prakar ke hote hai
Rajnetik dal ke kitne prakar hote hai
Rajnetic dal ka kitne Ang hotel hai
क्या राजनीतिक पार्टी का चुनाव आयोग मे राजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है।
Tori konsa dal h
Rajneetik dal ka parkar
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।