सूक्ष्म जीव विज्ञान परिभाषा
सूक्ष्मजैविकी उन सूक्ष्मजीवों का अध्ययन है, जो एककोशिकीय या सूक्ष्मदर्शीय कोशिका-समूह जंतु होते हैं। इनमें यूकैर्योट्स जैसे कवक एवं प्रोटिस्ट और प्रोकैर्योट्स, जैसे जीवाणु और आर्किया आते हैं। विषाणुओं को स्थायी तौर पर जीव या प्राणी नहीं कहा गया है, फिर भी इसी के अन्तर्गत इनका भी अध्ययन होता है।
संक्षेप में सूक्ष्मजैविकी उन सजीवों का अध्ययन है, जो कि नग्न आँखों से
दिखाई नहीं देते हैं। सूक्ष्मजैविकी अति विशाल शब्द है, जिसमें विषाणु विज्ञान, कवक विज्ञान, परजीवी विज्ञान,
जीवाणु विज्ञान, व कई अन्य शाखाएँ आतीं हैं। सूक्ष्मजैविकी में तत्पर शोध
होते रहते हैं एवं यह क्षेत्र अनवरत प्रगति पर अग्रसर है। अभी तक हमने शायद
पूरी पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों में से एक प्रतिशत का ही अध्ययन किया है।
हाँलाँकि सूक्ष्मजीव लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व देखे गये थे, किन्तु जीव
विज्ञान की अन्य शाखाओं, जैसे जंतु विज्ञान या पादप विज्ञान की अपेक्षा
सूक्ष्मजैविकी अपने अति प्रारम्भिक स्तर पर ही है।
सूक्ष्मजीवों के अस्तित्व का अनुमान उनकी खोज से कई शताब्दियों पूर्व
लगा लिया गया था। इन पर सबसे पहला सिद्धांत प्राचीन रोमन विद्वान मार्कस
टेरेंशियस वैर्रो ने अपनी कृषि पर आधारित एक पुस्तक में दिया था। इसमें
उन्होंने चेतावनी दी थी कि दलदल के निकट खेत नहीं बनाए जाने चाहिए।[क] कैनन ऑफ मैडिसिन
नामक पुस्तक में, अबु अली इब्न सिना ने कहा है कि शरीर के स्राव, संक्रमित
होने से पहले बाहरी सूक्ष्मजीवों द्वारा दूषित किये जाते हैं। उन्होंने क्षय रोग
व अन्य संक्रामक बिमारियों के संक्रमक स्वभाव की परिकल्पना की थी, व
संगरोध (क्वारन्टाइन) का प्रयोग संक्रामक बिमारियों की रोकथाम हेतु किया
था। चौदहवीं शताब्दी
में जब काली मृत्यु (ब्लैक डैथ) व ब्युबोनिक प्लेग अल-अंडैलस में पहुँचा
तब इब्न खातिमा ने यह प्राक्कलन किया कि सूक्ष्मजीव मानव शरीर के अंदर
पहुँच कर, संक्रामक रोग पैदा करती हैं। 1546
में जिरोलामो फ्रैकैस्टोरो ने यह प्रस्ताव दिया कि महामारियाँ
स्थानांतरणीय बीज जैसे अस्तित्वों द्वारा फैलती हैं। ये वस्तुएँ प्रत्यक्ष
या परोक्ष रूप से कभी कभी तो बिना सम्पर्क के ही लम्बी दूरी से भी संक्रमित
कर सकती हैं। सूक्ष्मजीवों के बारे में ये सभी दावे अनुमान मात्र ही थे
क्योंकि ये किसी आंकड़ों या विज्ञान पर आधारित नहीं थे। सत्रहवीं शताब्दी
तक सूक्ष्म जीव ना तो सिद्ध ही हुए थे और न ही देखे गये थे। इनको सत्रहवीं
शताब्दी में ही सही तौर पर देखा गया तथा वर्णित किया गया। इसका मूल कारण
यह था कि सभी पूर्व सूचनाएँ व शोध एक मूलभूत उपकरण के अभाव में किये गये
थे, जो सूक्ष्मजैविकी या जीवाणुविज्ञान के अस्तित्व में रहने के लिये
अत्यावश्यक था और वह था सूक्ष्मदर्शी यंत्र।
एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक प्रथम सूक्ष्मजीववैज्ञानिक थे जिन्होंने पहली बार
सूक्ष्मजीवों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा था, इसी कारण उन्हें
सूक्ष्मजैविकी का जनक कहा जाता है। इन्होंने ही सूक्ष्मदर्शी यंत्र का
आविष्कार किया था।
जीवाणु व सूक्ष्मजीवों को सर्वप्रथम एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक ने 1676 में स्वनिर्मित एकल-लेंस सूक्ष्मदर्शी से देखा था। ऐसा करके उन्होंने जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व कार्य किया जिसके द्वारा जीवाणु विज्ञान व सूक्ष्मजैविकी का आरम्भ हुआ। बैक्टीरियम शब्द का प्रयोग काफी बाद (1828) में एह्रेन्बर्ग द्वारा हुआ। यह यूनानी शब्द βακτηριον
से निकला है, जिसका अर्थ है - छोटी सी डंडी। हालॉकि ल्यूवेन्हॉक को प्रथम
सूक्ष्मजैविज्ञ कहा गया है, किन्तु प्रथम मान्यता प्राप्त सूक्ष्मजैविक रॉबर्ट हूक (1635-1703) को माना जाता है जिन्होंने मोल्ड के फलन का अवलोकन किया था।
जीवाणु विज्ञान (जो बाद में सूक्ष्मजैविकी का एक उप-विभाग बन गया) फर्डिनैंड कोह्न (1828–1898) द्बारा स्थापित किया गया माना जाता है। ये एक पादपवैज्ञानिक थे, जिनके शैवाल व प्रकाशसंश्लेषित जीवाणु पर किये गए शोध ने उन्हें बैसिलस
व बैग्गियैटोआ सहित कई अन्य जीवाणुओं का वर्णन करने को प्रेरित किया था।
कोह्न ही जीवाणुओं के वर्गीकरण की योजना को परिभाषित करने वाले प्रथम
व्यक्ति थे। लुई पाश्चर (1822–1895) व रॉबर्ट कोच (1843–1910) कोह्न के समकालीन थे तथा उनको आयुर्विज्ञान सूक्ष्मजैविकी का संस्थापक माना जाता है।
पाश्चर तत्कालीन सहज उत्पादन के सिद्धांत को झुठलाने के लिये अपने द्वारा
किये गए श्रेणीबद्ध प्रयोगों के लिये प्रसिद्ध हो चुके थे। इसीसे
सूक्ष्मजैविकी का धरातल और ठोस हो गया।[10] पाश्चर ने खाद्य संरक्षण के उपाय खोजे थे (पाश्चराइजेशन) उन्होंने ही ऐन्थ्रैक्स, फाउल कॉलरा एवं रेबीज़ सहित कई रोगों के सुरक्षा टीकों की खोज की थी। कोच अपने रोगों के जीवाणु सिद्धांत
के लिये प्रसिद्ध थे, जिसके अनुसार कोई विशिष्ट रोग, किसी विशिष्ट रोगजनक
सूक्ष्मजीव के कारण ही होता है। उन्होंने ही कोच्स पॉस्ट्युलेट्स बनाये थे।
कोच शुद्ध कल्चर में से जीवाणुओं के पृथकीकरण करने वाले वैज्ञानिकों में
से प्रथम रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप कई नवीन जीवाणुओं की खोज व वर्णन किए
जा सके, जिनमें माइकोबैक्टीरियम ट्यूबर्क्युलोसिस, क्षय रोग का मूल जीवणु भी रहा।
पाश्चर एवं कोच प्रायः सूक्ष्मजैविकी के जनक कहे जाते हैं परंतु उनका
कार्य सही ढंग से सूक्ष्मजैविक संसार की वास्तविक विविधता को नहीं दर्शाता
है, क्योंकि उनक ध्यान प्रत्यक्ष चिकित्सा संबंधी संदर्भों वाले
सूक्ष्मजीवों पर ही केन्द्रित रहा। मार्टिनस विलियम बेइजरिंक (1851–1931) एवं सर्जेई विनोग्रैड्स्की (1856–1953),
जो सामान्य सूक्ष्मजैविकी (एक पुरातन पद, जिसमें सूक्ष्मजैविक शरीरक्रिया
विज्ञान, विभेद एवं पारिस्थितिकी आते हैं) के संस्थापक कहे जाते हैं, के
कार्यों के उपरांत ही, सूक्ष्मजैविकी की सही-सही परिधि का ज्ञान हुआ।
बेइजरिंक के सूक्ष्मजैविकी में दो महान योगदान हैं: विषाणुओं की खोज तथा उपजाऊ संवर्धन तकनीक (एन्ररिचमेंट कल्चर टैक्नीक) का विकास।[11]
उनके तम्बाकू मोज़ाइक विषाणु पर किये गए अनुसंधान कार्य ने विषाणु विज्ञान
के मूलभूत सिद्धांत स्थापित किये थे। यह उनके एनरिच्मेंट कल्चर का विकास
था, जिसका तात्क्षणिक प्रभाव सूक्ष्मजैविकी पर पड़ा। इसके द्वारा एक वृहत
सूक्ष्मजीवों की शृंखला को संवर्द्धित किया जा सका, जिनकी शारीरिकी विविध
प्रकार की थी। विनोग्रैड्स्की ने अकार्बनिक रासायनिक पदार्थों
(कीमोलिथोट्रॉफी) पर प्रथम सिद्धांत प्रस्तुत किया था, जिसके साथ ही
सूक्ष्मजीवों की भूरासायनिक प्रक्रियाओं में अतिमहत्वपूर्ण भूमिका उजागर
हुई।[12] इन्होंने ही सर्वप्रथम नाइट्रिफाइंग तथा नाइट्रोजन-फिक्सिंग जीवाणु का पृथकीकरण किया था।
सूक्ष्म जीवी अनेक प्रकार के होते हैं जिनमें जीवाणु प्रमुख हैं। जीवाणु
एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलीमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति
गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़ आदि के आकार की हो सकती है। ये प्रोकैरियोटिक,
कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते
है। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों
में[13],
जल में, भू-पपड़ी में, यहाँ तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं
जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में 4
करोड़ जीवाणु कोष तथा 1 मिलीलीटर जल में 10 लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग 5X1030 जीवाणु पाए जाते हैं।[14] जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है।[15] ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडल के लिए नाइट्रोजन
के स्थिरीकरण में। हाँलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी
नहीं हुआ है तथापि लगभग आधों की किसी न किसी जाति को प्रयोगशाला में उगाया
जा चुका है।[16] जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो सूक्ष्मजैविकी की ही एक शाखा है।
मानव शरीर में जितनी मानव कोशिकाएँ हैं, उसके लगभग 10 गुना अधिक जीवाणु
कोष है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहारनाल में पाए जाते हैं।[17]
हानिकारक जीवाणु सुरक्षा तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान
नहीं पहुँचा पाते है। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के
परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार,
निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि। सिर्फ क्षय रोग से प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख लोग मरते हैं जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं।[18] विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में प्रतिजैविक
प्रयोगों के लिए इनका उपयोग होता है, इसलिए जीवाणुओं में इन प्रतिजैविक
दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र
में जीवाणुओं की किण्वन क्रिया द्वारा दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।[19]
इसके अतिरिक्त विषाणु
जो अतीसूक्ष्म जीव हैं। वे शरीर के बाहर तो मृत होते हैं परंतु शरीर के
अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता
है। कवक
जो एक प्रकार के पौधे हैं, अपना भोजन सड़े गले म्रृत कार्बनिक पदार्थों से
प्राप्त करते हैं और जिनका सबसे बड़ा लाभ संसार में अपमार्जक के रूप में
कार्य करना है, प्रोटोज़ोआ जो एक एककोशिकीय जीव है, जिसकी कोशिकायें युकैरियोटिक प्रकार की होती हैं और साधारण सूक्ष्मदर्शी यंत्र से आसानी से देखे जा सकता है, आर्किया या आर्किबैक्टीरिया जो अपने सरल रूप में बैक्टीरिया जैसे ही होते हैं पर उनकी कोशीय संरचना काफ़ी अलग होती है। और शैवाल जो सरल सजीव हैं, पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण
की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं और एक कोशिकीय से लेकर
बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़,
पत्तियाँ इत्यादि रचनाएँ नहीं पाई जाती हैं भी सूक्ष्मजीवियों की श्रेणी
में आते हैं।
सूक्ष्मजीव जैसे जीवाणु तथा विषाणु अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं परन्तु
इनकी संरचना सरल होती हैं। इनके अध्ययन में सूक्ष्मदर्शी यंत्र की
महत्वपूर्ण भूमिका है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी यंत्र के आविष्कार के बाद
तो इनका अध्ययन और भी सरल हो गया है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन
क्षमता साधारण या यौगिक सूक्ष्मदर्शी से हजारों गुणा अधिक है। इससे
सूक्ष्मजीवों को वास्तविक आकार से लाखों गुणा बड़ा करके देखा जाता है।
जीवाणुओं को अभिरंजित करने की विधियों की खोज होने के बाद इनकी पहचान सरल
हो गई है। ग्राम स्टेन की सहायता से जीवाणुओं का वर्गीकरण एवं अध्ययन किया
जाता है। प्रयोगशाला में संवर्धन द्वारा जीवाणुओं की कॉलोनी उगाई जाती है।
इस प्रकार से उगाई गई जीवाणु-कॉलोनी जीवाणुओं पर शोध करने में अत्यंत
उपयोगी सिद्ध हुई है।
अध्ययन के लिए सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र को प्रायः कई उप-क्षेत्रों में
बांटा जाता है: सूक्ष्मजीव शरीर क्रिया विज्ञान इसमें सूक्ष्मजैविक
कोशिकाएँ किस प्रकार जैवरासायनिक क्रियाएँ करतीं हैं, इसका अध्ययन तथा
सूक्ष्मजैविक उपज, सूक्ष्मजैविक उपपाचय (मैटाबोलिज़्म) एवं सूक्ष्मजैविक कोशिका संरचना सम्मिलित हैं। सूक्ष्मजैविक अनुवांशिकी इसमें सूक्ष्मजीवों में जीन तथा उनकी कोशिकीय क्रियाओं के संबंध में, वे किस प्रकार व्यवस्थित व नियमित होते हैं, इसकी जानकारी प्राप्त की जाती है। यह श्रेणी आण्विक जैविकी के क्षेत्र से निकटता से संबंधित है। आयुर्विज्ञान सूक्ष्मजैविकी या सूक्ष्मजैव आयुर्विज्ञान इसमें मानवीय रोगों में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजैविक रोगजनन एवं महामारी विज्ञान का अध्ययन किया जाता है साथ ही यह रोग विकृति विज्ञान एवं शरीर के सुरक्षा विज्ञान से भी संबंधित है। पशु सूक्ष्मजैविकी इसकी सूक्ष्मजीवों की पशु चिकित्सा या पशु वर्गीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका है। पर्यावरण सूक्ष्मजैविकी इसमें सूक्ष्मजीवों के प्राकृतिक पर्यावरण/वातावरण में क्रिया व विभेद का अध्ययन किया जाता है तथा इसमें सूक्ष्मजैविक पारिस्थितिकी, सूक्ष्मजैविकीय-मध्यस्थ पोषण चक्र, भूसूक्ष्मजैविकी, सूक्ष्मजैविक विभेद व बायोरीमैडियेशन भी सम्मिलित हैं। विकासवादी सूक्ष्मजैविकी इसमें सूक्ष्मजीवों के विकास का अध्ययन किया जाता है साथ ही इसमें जीवाण्विक सुव्यवस्था एवं वर्गीकरण भी सम्मिलित है। औद्योगिक सूक्ष्मजैविकी
इसमें औद्योगिक प्रक्रियाओं में सूक्ष्मजीवों के अनुप्रयोग व उपयोग का
अध्ययन किया जाता है। उदाहरणार्थ, औद्योगिक प्रकिण्वन, व्यर्थ जल निरुपण
इत्यादि। यह जैवप्रौद्योगिकी व्यवसाय का निकट संबंधी है। इस क्षेत्र में मद्यकरण भी सम्मिलित है, जो सूक्ष्मजैविकी का महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है। वायु सूक्ष्मजैविकी यह वायुवाहित सूक्ष्मजीवों का अध्ययन है। खाद्य सूक्ष्मजैविकी
जिसमें सूक्ष्मजीवों द्वारा खाद्य पदार्थों में खराबी व खाद्य संबंधी
रोगों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों को खाद्य पदार्थ उत्पादन हेतु
प्रयोग में लाना, जैसे प्रकिण्वन आदि भी इसमें शामिल है। औषधीय सूक्ष्मजैविकी में औषधियों में दूषण लाने वाले सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। मौखिक सूक्ष्मजैविकीमें
मुख के भीतर के सूक्ष्मजीवों का अध्ययन, खासकर जो सूक्ष्मजीवी दंतक्षय एवं
दंतपरिधीय (पैरियोडाँन्टल) रोगों के कारण हैं उनका अध्ययन किया जाता है।
Father of botne
Microbiology question answer
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।