लेसिक लेजर सर्जरी का खर्च
नजर कमजोर होने पर चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस लगाना हर किसी को पसंद नहीं आता। ऐसे में सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है। आज-कल लेजर तकनीक से होने वाली सर्जरी डॉक्टर संजय तेवतिया से:
लेसिक लेजर या कॉर्नियोरिफ्रेक्टिव सर्जरी नजर का चश्मा हटाने की तकनीक है। इससे जिन दोषों में चश्मा हटाया जा सकता है, वे हैं:
1. निकट दृष्टिदोष (मायोपिया): इसमें किसी भी चीज का प्रतिबिंब रेटिना के आगे बन जाता है, जिससे दूर का देखने में दिक्कत होती है। इसे ठीक करने के लिए माइनस यानी कॉनकेव लेंस की जरूरत पड़ती है।
2. दूरदृष्टि दोष (हायपरमेट्रोपिया): इसमें किसी भी चीज का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है, जिससे पास का देखने में परेशानी होती है। इसे ठीक करने के लिए प्लस यानी कॉनवेक्स लेंस की जरूरत होती है।
3. एस्टिगमेटिज्म: इसमें आंख के पर्दे पर रोशनी की किरणें अलग-अलग जगह फोकस होती हैं, जिससे दूर या पास या दोनों की चीजें साफ नजर नहीं आतीं।
कैसे करता है काम
लेसिक लेजर की मदद से कॉर्निया की सतह को इस तरह से बदल दिया जाता है कि नजर दोष में जिस तरह के लेंस की जरूरत होती है, वह उसकी तरह काम करने लगता है। इससे किसी भी चीज का प्रतिबिंब एकदम रेटिना पर बनने लगता है और बिना चश्मे भी एकदम साफ दिखने लगता है।
कितनी तरह का लेसिक
लेसिक लेजर 3 तरह का होता है।
1. सिंपल लेसिक लेजर
2. ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर
3. सी-लेसिक या कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर
1. सिंपल लेसिक लेजर
आंख में लोकल एनेस्थीसिया डाला जाता है। फिर लेजर से फ्लैप बनाते हैं। कट लगातार कॉर्नियो को री-शेप किया जाता है। पूरे प्रोसेस में करीब 20-25 मिनट लगते हैं।
खूबियां
- इससे ऑपरेशन के बाद चश्मा पूरी तरह हट जाता है और नजर साफ हो जाती है।
- खर्च काफी कम होता है। दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 20 हजार रुपये खर्च आता है।
खामियां
- सिंपल लेसिक सर्जरी का इस्तेमाल अब ज्यादा नहीं होता। अब इससे बेहतर तकनीक भी मौजूद हैं।
- ऑपरेशन के बाद काफी दिक्कतों की आशंका बनी रहती है।
2. ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर
इसका प्रोसेस करीब-करीब सिंपल लेसिक जैसा ही होता है। असली फर्क मशीन का होता है। इसमें ज्यादा अडवांस्ड मशीन इस्तेमाल की जाती हैं।
खूबियां
- इसके नतीजे बेहतर होते हैं और ज्यादातर मामलों में कामयाबी मिलती है।
- मरीज की रिकवरी काफी जल्दी हो जाती है।
- दिक्कतें काफी कम होती हैं।
खामियां
- सिंपल लेसिक से महंगा है। दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 35-40 हजार रुपये तक खर्च आता है।
- छोटी-मोटी दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे कि आंख लाल होना, चौंध लगना आदि।
- कभी-कभार आंख में फूला/माड़ा पड़ने जैसी दिक्कत भी सामने आती है।
3. सी-लेसिक: कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर
खूबियां
- प्रोसेस काफी आसान है और रिजल्ट बहुत अच्छे हैं।
- ओवर या अंडर करेक्शन नहीं होती और नतीजा सटीक होता है।
- मरीज को अस्पताल में भर्ती रखने की जरूरत नहीं होती।
- साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं।
खामियां
- महंगा प्रोसेस है यह। दोनों आंखों के ऑपरेशन पर 40 हजार तक खर्च आता है। कुछ अस्पताल इससे ज्यादा भी वसूल लेते हैं।
- आंख लाल होने, खुजली होने, एक की बजाय दो दिखने जैसी प्रॉब्लम आ सकती हैं, जो आसानी से ठीक हो जाती हैं।
कुछ और खासियतें
- चश्मा हटाने के ज्यादातर ऑपरेशन आज-कल इसी तकनीक से किए जा रहे हैं। सिंपल लेसिक में पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है।
- सर्जन का अनुभव, कार्यकुशलता, लेसिक लेजर से पहले और बाद की देखभाल की क्वॉलिटी लेसिक लेजर सर्जरी के नतीजे के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है।
- चश्मे का नंबर अगर 1 से लेकर 8 डायप्टर है तो लेसिक लेजर ज्यादा उपयोगी होता है।
- आज-कल लेसिक लेजर सर्जरी से -10 से -12 डायप्टर तक के मायोपिया, +4 से +5 डायप्टर तक के हायपरमेट्रोपिया और 5 डायप्टर तक के एस्टिग्मेटिज्म का इलाज किया जाता है।
कैसे करते हैं ऑपरेशन
इस ऑपरेशन में पांच मिनट का वक्त लगता है और उसी दिन मरीज घर जा सकता है। ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर आंख की पूरी जांच करते हैं और उसके बाद तय करते हैं कि ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं। ऑपरेशन शुरू होने से पहले आंख को एक आई-ड्रॉप की मदद से सुन्न (एनेस्थिसिया) किया जाता है। इसके बाद मरीज को कमर के बल लेटने को कहा जाता है और आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखने को कहा जाता है। अब एक स्पेशल डिवाइस माइक्रोकिरेटोम की मदद से आंख के कॉर्निया पर कट लगाया जाता है और आंख की झिल्ली को उठा दिया जाता है। इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा रहता है। अब पहले से तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डाली जाती हैं। लेजर बीम कितनी देर के लिए डाली जाएगी, यह डॉक्टर पहले की गई आंख की जांच के आधार पर तय कर लेते हैं। लेजर बीम पड़ने के बाद झिल्ली को वापस कॉर्निया पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है। यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉर्निया के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है। मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है। कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है।
सर्जरी के बाद
- ऑपरेशन के बाद दो-तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल तरीके से काम पर लौट सकता है।
- लेसिक लेजर सर्जरी के बाद मरीज को बहुत कम दर्द महसूस होता है और किसी टांके या पट्टी की जरूरत नहीं होती।
- आंख की पूरी रोशनी बहुत जल्दी (2-3 दिन में) लौट आती है और चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के बिना भी मरीज को साफ दिखने लगता है।
- स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते परहेज करना होता है।
- करीब 90 फीसदी लोगों में यह सर्जरी पूरी तरह कामयाब होती है। बाकी लोगों में 0.25 से लेकर 0.5 नंबर तक के चश्मे की जरूरत पड़ सकती है।
- जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों, मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो अलग बात है।
कितना खर्च
दोनों आंखों का खर्च औसतन 30-40 हजार रुपये आता है। हालांकि कुछ प्राइवेट अस्पताल इससे ज्यादा भी लेते हैं। सरकारी अस्पतालों में काफी कम खर्च में काम हो जाता है।
कौन करा सकता है
- जिनकी उम्र 20 साल से ज्यादा हो। इसके बाद किसी भी उम्र में करा सकते हैं।
- चश्मे/कॉन्टैक्ट लेंस का नंबर पिछले कम-से-कम एक साल से बदला न हो।
- मरीज का कॉर्निया ठीक हो। उसका डायमीटर सही हो। उसमें इन्फेक्शन या फूला/माड़ा न हो।
- लेसिक सर्जरी से कम-से-कम तीन हफ्ते पहले लेंस पहनना बंद कर देना चाहिए।
कौन नहीं करा सकता
- किसी की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती।
- जिन लोगों का कॉर्निया पतला (450 मिमी से कम) है, उन्हें ऑपरेशन नहीं कराना चाहिए।
- गर्भवती महिलाओं का ऑपरेशन नहीं किया जाता।
ऑप्शन: चश्मा/कॉन्टैक्ट लेंस ऐसे लोगों के लिए ऑप्शन हैं।
कहां होता है लेसिक लेजर
- तमाम बड़े प्राइवेट अस्पतालों और कुछ बड़े क्लिनिकों में भी।
- बड़े सरकारी अस्पतालों जैसे एम्स के आरपी सेंटर और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के गुरु नानक आई सेंटर आदि में यह सुविधा मौजूद है। इन जगहों पर इलाज तसल्लीबख्श तरीके से होने के साथ रेट भी कम हैं लेकिन लंबी लाइन होने की वजह से वेटिंग अक्सर ज्यादा होती है।
लेजर के अलावा और भी हैं तरीके
1. जिन दो-चार फीसदी लोगों में लेसिक लेजर से चश्मा उतर पाने की संभावना नहीं होती, उनमें इन्ट्राऑक्युलर कॉन्टैक्ट लेंस (आईसीएल) से नजर का चश्मा हटाया जाता है। आईसीएल तकनीक में आंख के लेंस के ऊपर एक नकली लेंस लगा दिया जाता है। यह बेहद पतला, फोल्डेबल लेंस होता है, जिसे कॉर्निया पर कट लगाकर आंख के अंदर डाला जाता है। जिस मेकनिजम पर कॉन्टैक्ट लेंस काम करते हैं, यह लेंस भी उसी तरह काम करता है। फर्क बस इतना है कि इसे आंख में पुतली (आइरिस) के पीछे और आंख के नैचरल लेंस के आगे फिट कर दिया जाता है, जबकि कॉन्टैक्ट लेंस को पुतली के ऊपर लगाया जाता है। इस नकली लेंस से दोष के मुताबिक आंख के लेंस की पावर कम या ज्यादा कर दी जाती है। इससे मरीज को साफ दिखने लगता है और चश्मे की जरूरत नहीं होती। 10 डायप्टर से ज्यादा चश्मे के नंबर वाले मरीज में सिर्फ आईसीएल ही किया जा सकता है। चश्मे का नंबर अगर 20 से 30 डायप्टर के बीच है, तो ऐसी स्थिति में लेसिक लेजर एवं आईसीएल, दोनों की जरूरत होती है। इसमें एक बार में एक ही आंख का ऑपरेशन किया जाता है। पूरी प्रक्रिया में करीब 30 मिनट लगते हैं और दूसरी आंख का ऑपरेशन कम-से-कम एक हफ्ते के बाद किया जाता है। ऑपरेशन होने के बाद मरीज उसी दिन घर जा सकता है और दो-तीन दिन के बाद ही नॉर्मल रूटीन पर आ सकता है। इसमें दोनों आंखों का खर्च करीब 80 हजार रुपये आता है।
2. -16 से -18 डायप्टर के मायोपिया में आंख के कुदरती लेंस को निकाल दिया जाता है, जिससे मायोपिया ठीक हो जाता है। कई बार प्राकृतिक लेंस को निकालकर आंख के नंबर की जांच कर आंख के अंदर नकली लेंस (इन्ट्राऑक्युलर लेंस) डाल दिया जाता है।
3. प्रोस्बायोपिया (निकट का काम करने में दिक्कत) के लिए रिफ्रेक्टिव सर्जरी अभी शुरुआती दौर में है। प्रोस्बायोपिया में मोनोविजन लेसिक करते हैं, जिसमें एक आंख से दूर का देखने और दूसरी आंख से पास का देखने के लिए लेसिक लेजर सर्जरी करते हैं। प्रोस्बायोपिया के लिए लेसिक लेजर सर्जरी के अभी दूरगामी नतीजों की ज्यादा जानकारी नहीं है।
3. बायफोकल या मल्टिफोकल या अकॉमोडेटिंग इन्ट्राऑक्युलर लेंस इम्प्लांटेशन सर्जरी (जिसमें मोतियाबिंद या नजर का दोष बहुत ज्यादा होता है) में नैचरल लेंस निकालकर नकली लेंस डाल देते हैं। इसमें पास और दूर, दोनों नंबर होते हैं।
नजर बेहतर करने के तरीके
- कभी भी गलत नंबर का चश्मा या कॉन्टैक्स लेंस न पहनें।
- साल में एक बार अपने नंबर को चेक जरूर कराएं।
- कॉन्टैक्ट लेंस की सफाई का पूरा ध्यान रखें। देखें कि वह टूटा-फूटा न हो और उसमें खरोंच न हो।
- आंखें ठीक हैं तो किसी दवा की जरूरत नहीं होती। अगर ड्राई-आई सिंड्रोम है तो कोई लुब्रिकेटिंग ड्रॉप्स डालें।
- आई-ड्रॉप्स खोलने के 30 दिन तक यूज कर लें। उसके बाद इसका इस्तेमाल न करें।
- आंखों में गुलाब जल, शहद, सुरमा आदि न डालें। नेति से भी दूर रहें।
Mujhe apna. Lasik oppression karwan h. Kitna kharcha ayega
Sir mera eye me very jdya black daag hai please sir bataie age 22
Lejar ke bad chshma nhi lgta ka
IbI Injection price bataye
Namskar sir ji mere ko dur dekhne ki problem hai mera chashma ka number ek 2,75 hai to mere ko konsa opreshion kar vana chahiye
Sir muje ye bataye ki sabse aachi lager sargery kha hoti h or iska price kitna h
Mere accident mi akh ke niche ki kor adhi ho gai hai kese sahi hogi
Operation of eye how many money nedded
Sir mary age 19 hay mare chasm ka number -4 hay marko lazer karwana hay.is may tanka pate thodi hote hay. Bina taka paty k opresan hota hay .
Lasik eyes surgery kharcha
लेसिक कराने लिये कितना खर्च आता है और ये कहा कहा उपलब्ध है
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