सीखने का व्यावहारिक सिद्धांत किसने दिया
व्यवहारवाद या सीखने का व्यवहारिक सिद्धांत जे बी वाटसन द्वारा सर्वप्रथम दिया गया। व्यवहारवाद के अनुसार मनोविज्ञान केवल तभी सच्ची वैज्ञानिकता का वाहक हो सकता है जब वह अपने अध्ययन का आधार व्यक्ति की मांसपेशीय और ग्रंथिमूलक अनुक्रियाओं को बनाये। मनोविज्ञान में व्यवहारवाद की शुरुआत बीसवीं सदी के पहले दशक में जे.बी. वाटसन द्वारा 1913 में जॉन हॉपीकन्स विश्वविद्यालय में की गयी। व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) के अनुसार मनोविज्ञान केवल तभी सच्ची वैज्ञानिकता का वाहक हो सकता है जब वह अपने अध्ययन का आधार व्यक्ति की मांसपेशीय और ग्रंथिमूलक अनुक्रियाओं को बनाये। मनोविज्ञान में व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) की शुरुआत बीसवीं सदी के पहले दशक में जे.बी. वाटसन द्वारा 1913 में जॉन हॉपीकन्स विश्वविद्यालय में की गयी। उन दिनों मनोवैज्ञानिकों से माँग की जा रही थी कि वे आत्म-विश्लेषण की तकनीक विकसित करें। वाटसन का कहना था कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसकी भीतरी और निजी अनुभूतियों पर आधारित नहीं होता। वह अपने माहौल से निर्देशित होता है। मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए किसी बाह्य उत्प्रेरक के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया का प्रेक्षण करना ही काफ़ी है। वाटसन के इस सूत्रीकरण के बाद व्यवहारवाद अमेरिकी मनोविज्ञान में प्रमुखता प्राप्त करता चला गया। एडवर्ड गुथरी, क्लार्क हुल और बी.एफ़. स्किनर ने व्यवहारवाद के सिद्धांत को अधिक परिष्कृत स्वरूप प्रदान किया। इन विद्वानों की प्रेरणा से मनोचिकित्सकों ने व्यवहारमूलक थेरेपी की विभिन्न तकनीकें विकसित कीं ताकि मनोरोगियों को तरह-तरह की भूतों और उन्मादों से छुटकारा दिलाया जा सके। इस सम्प्रदाय (स्कूल) की स्थापना संरचनावाद तथा प्रकार्यवाद जैसे सम्प्रदायों के विरोध में वाटसन द्वारा की गयी। यह स्कूल अपने काल में (विशेषकर 1920 ई0 के बाद) अधिक प्रभावशाली रहा जिसके कारण इसे मनोविज्ञान में 'द्वितीय बल' के रूप में मान्यता मिली। वाटसन ने 1913 में साइकोलाजिकल रिव्यू में एक विशेष शीर्षक "व्यवहारवादियों की दृष्टि में मनोविज्ञान" (Psychology as the behouristics view it) के तहत प्रकाशित किया गया। यहीं से व्यवहारवाद का औपचारिक आरम्भ माना जाता है।
जे0वी0 वाटसन ने व्यवहारवाद के माध्यम से मनोविज्ञान में क्रान्तिकारी विचार रखे। वाटसन का मत था कि मनोविज्ञान की विषय-वस्तु चेतन या अनुभूति नहीं हो सकता है। इस तरह के व्यवहार का प्रेक्षण नहीं किया जा सकता है। इनका मत था कि मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है। व्यवहार का प्रेक्षण भी किया जा सकता है तथा मापा भी जा सकता है। उन्होने व्यवहार के अध्ययन की विधि के रूप में प्रेक्षण तथा अनुबंधन (कन्डीशनिंग) को महत्वपूर्ण माना। वाटसन ने मानव प्रयोज्यों के व्यवहारों का अध्ययन करने के लिये शाब्दिक रिपोर्ट की विधि अपनायी जो लगभग अन्तर्निरीक्षण विधि के ही समान है।
वाटसन ने सीखना, संवेग तथा स्मृति के क्षेत्र में कुछ प्रयोगात्मक अध्ययन किये जिनकी उपयोगिता तथा मान्यता आज भी शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में अधिक है। व्यवहारवाद के इस धनात्मक पहलू को आनुभविक व्यवहारवाद कहा जाता है। वाटसन के व्यवहारवाद का ऋणात्मक पहलू वुण्ट तथा टिचनर के संरचनावाद को तथा एंजिल के प्रकार्यवाद को अस्वीकृत करना था। 1919 ई0 में वाटसन ने अपने व्यवहारवाद की तात्विक स्थिति को स्पष्ट किया जिसमें चेतना या मन के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया गया। इसे तात्विक व्यवहारवाद कहा गया। वाटसन ने सीखना, भाषा विकास, चिन्तन, स्मृति तथा संवेग के क्षेत्र में जो अध्ययन किया वह शिक्षा मनोविज्ञान के लिये काफी महत्वपूर्ण है।
वाटसन व्यवहार को अनुवंशिक न मानकर पर्यावरणी बलों द्वारा निर्धारित मानते थे। वे पर्यावरणवाद के एक प्रमुख हिमायती थे। उनका कथन, "मुझे एक दर्जन स्वस्थ बच्चे दें, आप जैसा चाहें मैं उनको उस रूप में बना दूंगा।" यह उनके पर्यावरण की उपयोगिता को सिद्ध करने वाला कथन है। वाटसन का मानना था कि मानव व्यवहार उद्दीपक-अनुक्रिया (S-R) सम्बन्ध को इंगित करता है। प्राणी का प्रत्येक व्यवहार किसी न किसी तरह के उद्दीपक के प्रति एक अनुक्रिया ही होती है।
वाटसन के बाद भी व्यवहारवाद को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रहा और इस सिलसिले में हल स्कीनर, टालमैन और गथरी द्वारा किया गया प्रयास काफी सराहनीय रहा। स्कीनर द्वारा क्रिया प्रसूत अनुबन्धन पर किये गये शोधों में अधिगम तथा व्यवहार को एक खास दिशा में मोड़ने एवं बनाये रखे में पुनर्बलन के महत्व पर बल डाला गया है। कोई भी व्यवहार जिसके करने के बाद प्राणी को पुनर्बलन मिलता है या उसके सुखद परिणाम व्यक्ति में उत्पन्न होते है, तो प्राणी उस व्यवहार को फिर दोबारा करने की इच्छा व्यक्त करता है। गथरी ने अन्य बातों के अलावा यह बताया कि सीखने के लिये प्रयास की जरूरत नहीं होती और व्यक्ति एक ही प्रयास में सीख लेता है। इसे उन्होने इकहरा प्रयास सीखना की संज्ञान दी। गथरी ने इसकी व्याख्या करते हुये बताया कि व्यक्ति किसी सरल अनुक्रिया जैसे पेंसिल पकड़ना, माचिस जलाना आदि एक ही प्रयास में सीख लेता है। इसके लिये उसे किसी अभ्यास की जरूरत नही होती। परन्तु जटिल कार्यो को सीखने के लिये अभ्यास की जरूरत होती है। गथरी ने एक और विशेष तथ्य पर प्रकाश डाला जो शिक्षा के लिये काफी लाभप्रद साबित हुआ और वह था बुरी आदतों से कैसे छुटकारा पाया जाए। इसके लिए गथरी ने निम्नांकित तीन विधियों का प्रतिपादन किया -
पी0 साइमण्ड ने शिक्षण व अधिगम के क्षेत्र में व्यवहारवाद की उपयोगिता बताते हुये कहा कि सीखने में पुरस्कार (पुर्नबलन) की महती भूमिका है, जिसकी जानकारी एक अध्यापक के लिये होना आवश्यक है। अध्यापक द्वारा प्रदत्त पुनर्बलन बच्चों के भविष्य की गतिविधियों के क्रियान्वयन में निर्देशन का कार्य करता है। अध्यापक द्वारा मात्र सही या गलत की स्वीकृति ही बच्चे के लिये पुरस्कार का कार्य करती है।
व्यवहारवाद का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान निम्नलिखित है -
सीखने का व्यावहारिक सिध्दान्त द्वारा दिया गया है?
करके सीखना, विचार दिया
सीखने का व्यावहारिक सिद्धांत किसके द्वारा दिया गया
Learning by doing thyori kisne diya
Vywharwad ka vrnatamk सिद्धांत किसने दिया था
सीखने का व्यवहारिक सिद्धांत किसने दिया..?
Adhigam ka vyavaharik siddhant kisne diya
Dekhne ka behaviour badi theory kisne di
सिखना और सिखाना के लेखक
Adhigam ka vavharik sidhant kitne diya
Seekhne ka vyavaharik Siddhant Kisne Diya
सीखने का पठार सीखने की प्रक्रिया की मुख्य अभिलक्षण है जो उस स्थिति को प्रकट करते हैं जिसमें सीखने की प्रक्रिया में कोई उन्नत नहीं होती है या कथन किसका है
सीखने का व्यावहारिक सिद्धांत किसने दिया
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Shikane ka vyavharik shiddat kisne diya
कोहलर
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