संसद से संबंधित प्रश्न
प्रश्न 1. “आधे घंटे की चर्चा” (Half-an-Hour) क्या होती है?
उत्तर. संसद के सदस्यों के लिए सार्वजनिक महत्व के मुद्दों को उठाने का एक और तरीका “आधे घंटे की चर्चा” है। इसके अंतर्गत कोई भी सदस्य किसी सार्वजनिक महत्व के मुद्दे को चर्चा के लिए सदन में रख सकता है। यह प्रश्न हालिया पूछे गए प्रश्न, तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना विषय से संबंधित होता है और जिसके उत्तर में तथ्यों की व्याख्या की जरूरत होती है।
प्रश्न 2. “आधे घंटे की चर्चा” की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर. “आधे घंटे की चर्चा” की प्रक्रिया लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमों के नियम संख्या 55 और “स्पीकर के लिए आवश्यक निर्देशों” की सूची के निर्देश संख्या 19 में उल्लिखित हैl इसके अंतर्गत कोई भी सदस्य किसी सार्वजनिक महत्व के मुद्दे को चर्चा के लिए सदन में रख सकता है। यह प्रश्न हालिया पूछे गए प्रश्न, तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना विषय से संबंधित प्रश्न हो सकता है और जिसके उत्तर में तथ्यों की व्याख्या की जरूरत होती है। “आधे घंटे की चर्चा” से संबंधित नोटिस देते समय इसके साथ “व्याख्यात्मक नोट” भी संलग्न होना चाहिए जिसमें चर्चा का मुद्दा उठाने की वजहें बताई गईं हों। सामान्यतया, एक बैठक के तहत “आधे घंटे की चर्चा” के लिए सिर्फ एक ही नोटिस रखी जा सकती है और इसके लिए सदन में न तो कोई औपचारिक प्रस्ताव रखा जाता है और न ही मतदान करवाया जाता है। चर्चा के लिए नोटिस देने वाला सदस्य ही चर्चा की शुरूआत करता हैl उसके द्वारा संक्षिप्त बयान दिए जाने के पश्चात, अधिक से अधिक चार अन्य सदस्य, जिन्होंने इस आशय की पूर्व सूचना स्पीकर को दी हो, किसी तथ्यात्मक बात की स्पष्टीकरण के लिए एक-एक प्रश्न पूछ सकते हैं। उसके पश्चात संबंधित मंत्री चर्चा का उत्तर देता है।
प्रश्न 3. “आधे घंटे की चर्चा” कब की जाती है?
उत्तर. “आधे घंटे की चर्चा” के लिए लोकसभा में तीन दिन नियत हैं- सोमवार, बुधवार और शुक्रवार। इन दिनों में पांच से साढ़े पांच के बीच ऐसी चर्चा की जाती है। लेकिन राज्यसभा में सभापति द्वारा नियत किसी भी दिन, सामान्यतया पांच बजे से साढ़े पांच बजे के बीच “आधे घंटे की चर्चा” की जा सकती है। आमतौर पर सत्र की पहली बैठक में “आधे घंटे की चर्चा” नहीं होती है। इसके अलावा, सामान्यतया “आधे घंटे की चर्चा” सदन में वित्त विधेयक पारित होने तक नहीं की जाती हैl
प्रश्न 4. बिल (विधेयक) क्या है?
उत्तर. विधेयक विधायी प्रस्ताव का मसौदा होता है जिसे अनुमोदन हेतु सदन के पटल पर रखा जाता है।
प्रश्न 5. विभिन्न प्रकार के विधेयकों के बारे में बताएं।
उत्तर. मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले विधेयकों को सरकारी विधेयक कहते हैं और सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले विधेयकों को निजी सदस्यों का विधेयक कहा जाता है। विषयवस्तु के आधार पर विधेयक को मोटे तौर पर इस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है- (क) मूल विधेयक (नए प्रस्तावों, विचारों या नीतियों वाला विधेयक), (ख) संशोधन विधेयक (ऐसे विधेयक जिनमें संशोधन या सुधार करने की जरूरत हो), (ग) समेकन विधेयक ( ऐसे विधेयक जो किसी विषय विशेष पर मौजूदा कानूनों को समेकित करना चाहते हों), (घ) अवसान कानून (निरंतरता) विधेयक (खत्म हो चुके अधिनियम को जारी रखने हेतु विधेयक), (ड.) निरस्त करने वाले विधेयक ( मौजूदा अधिनियमों को निरस्त करने वाले विधेयक), (च) अध्यादेशों को बदलने के लिए विधेयक, (छ) संविधान (संशोधन) विधेयक और (ज) धन एवं वित्तीय विधेयक।
भारतीय संसद से सम्बंधित अनुच्छेद: एक नजर में
प्रश्न 6. कोई विधेयक साधारण विधेयक है या धन विधेयक (money Bill), इसका निर्धारण कौन करता है?
उत्तर. कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका निर्णय लोकसभा अध्यक्ष करता हैl जब किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाता है, तो उसे राज्यसभा में या राष्ट्रपति के पास मंजूरी हेतु भेजने से पहले लोकसभा अध्यक्ष द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाणपत्र दिया जाता है जिसमें इस बात का स्पष्ट उल्लेख होता है कि उक्त विधेयक धन विधेयक हैl
प्रश्न 7. विधेयक और अधिनियम के बीच क्या अंतर होता है?
उत्तर. विधेयक सदन में प्रस्तुत किया जाने वाला विधायी प्रस्ताव का मसौदा होता है, जबकि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह विधेयक अधिनियम बन जाता है।
प्रश्न 8. एक विधेयक को पारित होने में शामिल अलग-अलग चरण क्या हैं?
उत्तर. विचाराधीन विधेयक को संसद के प्रत्येक सदन में तीन चरणों से होकर गुजरना होता है।
पहले चरण में सदस्यों का विधेयक से परिचय कराया जाता है, जिसके लिए मंत्री या किसी सदस्य के द्वारा विधेयक को प्रस्ताव के रूप में पेश किया जाता हैl
दूसरे चरण में विधेयक से संबंधित निम्नलिखित में से कोई भी प्रस्ताव आगे बढ़ाया जा सकता है- जैसे विधेयक पर विचार किया जाए, इसे सदन के निर्वाचन समिति के पास भेज दिया जाए, इसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास भेजा जाए या इस पर लोगों के विचार लेने के लिए इसे सदन में वितरित करवाया जाए। इसके बाद, परिचय के आधार पर या निर्वाचन/संयुक्त समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर विधेयक के प्रत्येक खंड पर विचार किया जाता है।
तीसरे चरण में प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है और साधारण बहुमत के द्वारा विधेयक को पारित किया जाता है या विधेयक को मतदान या ध्वनि मत के द्वारा पारित/ खारिज किया जाता हैl यदि विधेयक धन विधेयक है तो राज्यसभा उसे पारित कर पुनः लोकसभा को वापस भेजती हैl
प्रश्न 9. बजट क्या है?
उत्तर. बजट, प्रत्येक वित्त वर्ष के संदर्भ में भारत सरकार का “सालाना वित्तीय विवरण” या अनुमानित आमदनी और खर्च का विवरण है जिसे राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि को लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। लोकसभा में प्रस्तुत किए जाने के तुरंत बाद इसकी एक प्रति राज्यसभा में प्रस्तुत की जाती है। विधामंडल में अनुमोदन हेतु बजट की तैयारी और प्रस्तुति केन्द्र और राज्यों दोनों सरकारों का संवैधानिक दायित्व है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में इसका उल्लेख किया गया है।
प्रश्न 10. संसद का बजट सत्र कब आयोजित किया जाता है?
उत्तर. आमतौर पर संसद का बजट सत्र हर वर्ष फरवरी से मई माह के दौरान आयोजित होता है। लेकिन 2017 में पहली बार संसद का बजट सत्र जनवरी से अप्रैल माह के दौरान आयोजित किया गया था और ऐसी उम्मीद है कि आने वाले सालों में भी बजट सत्र का आयोजन जनवरी से अप्रैल माह के दौरान ही किया जाएगाl बजट सत्र के दौरान बजट को संसद में विवेचना, मतदान और अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद विभिन्न विभागों से संबंधित स्थायी समितियां मंत्रालयों/विभागों के अनुदान मांगों पर विचार करती हैं और इस बारे में ससंद के दोनों सदनों में अपनी रिपोर्ट देती हैं।
प्रश्न 11. सदन में बजट कौन प्रस्तुत करता है?
उत्तर. सामान्य रूप से सदन में दो प्रकार का बजट प्रस्तुत किया जाता है– आम बजट और रेल बजट। आम बजट को वित्त मंत्री प्रस्तुत करता हैं, जबकि रेल बजट को रेल मंत्री प्रस्तुत करता हैl लेकिन 2017 में बजट पेश करते समय आम बजट और रेल बजट को एक साथ मिला दिया गया है और भविष्य में केवल एक ही बजट पेश किया जाएगा, जिसे वित्त मंत्री पेश करेंगेl
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूची
प्रश्न 12. ध्यानाकर्षण (Calling Attention) क्या है?
उत्तर. इस प्रक्रियात्मक कार्य के द्वारा कोई भी सदस्य, स्पीकर की पूर्व अनुमति से सार्वजनिक महत्व के किसी भी तात्कालिक मुद्दे पर किसी मंत्री का ध्यान आकर्षित कर सकता है और उक्त मंत्री उस मुद्दे पर संक्षिप्त टिप्पणी कर सकते हैं। जिस समय ध्यानाकर्षण से संबंधित नोटिस दिया जा रहा हो उस समय किसी प्रकार की बहस उस मुद्दे पर नहीं होती है। नोटिस के बाद, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाने वाले सदस्य और सूची में दर्ज अन्य सदस्यों, जिनके नाम स्पीकर बुलाएंगे, द्वारा मंत्री से संक्षिप्त स्पष्टीकरण की मांग की जा सकती है। ध्यानाकर्षण नोटिस के माध्यम से सिर्फ उन्हीं मुद्दों को उठाया जा सकता है जो केन्द्र सरकार के लिए मुख्य चिंता का कारण है। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव की प्रक्रिया पूर्ण रूप से भारतीय खोज है, जिसमें अनुपूरकों के साथ प्रश्न पूछने और संक्षिप्त टिप्पणी करने की अनुमति शामिल है। सरकार को भी इसके माध्यम से विभिन्न मामलों में खुद की स्थिति स्पष्ट करने का पर्याप्त अवसर मिलता है। ध्यानाकर्षण का मामला सदन में मतदान के विषयाधीन नहीं है।
प्रश्न 13. प्रस्ताव (Motion) क्या होता है?
उत्तर. संसदीय भाषा में “प्रस्ताव” शब्द का अर्थ होता है- “एक सदस्य द्वारा सदन का निर्णय जानने के उद्देश्य से सदन में किसी भी औपचारिक विषय को प्रस्तुत किया जाना”। इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि, अगर इसे अपनाया जाता है, तो यह सदन के निर्णय या इच्छा को व्यक्त करता हैl सार्वजनिक महत्व का कोई भी मुद्दा प्रस्ताव का विषय हो सकता है। प्रस्ताव प्रस्तुत करने वाला/ वाली इसे उसी रूप में प्रस्तुत करता है जिस रूप में वह इसे सदन से अंततः पारित कराने की इच्छा रखता/ रखती है और जिस पर सदन का मत आसानी से लिया जा सके।
प्रश्न 14. प्रस्ताव कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर. प्रस्ताव को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकते हैं– मूल प्रस्ताव, स्थानापन्न प्रस्ताव और सहायक प्रस्ताव।
मूल प्रस्ताव: मूल प्रस्ताव एक आत्म-निहित और उस विषय के संदर्भ में एक स्वतंत्र प्रस्ताव होता है जिसे प्रस्तावक सदन के सामने लाने की इच्छा रखता है। सभी संकल्प, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव से संबंधित प्रस्ताव और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव आदि मूल प्रस्ताव के उदाहरण हैं।
स्थानापन्न प्रस्ताव: जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह प्रस्ताव किसी भी नीति या स्थिति या विवरण या किसी भी अन्य मामले पर गौर करने के लिए मूल प्रस्ताव के स्थान पर लाया जाता है। स्थानापन्न प्रस्ताव में संशोधन की अनुमति नहीं होती है।
सहायक प्रस्ताव: सहायक प्रस्ताव अन्य प्रस्तावों पर निर्भर करती हैं या उनसे संबंधित होती हैं या सदन में कुछ कार्यवाही पर उनका अनुसरण करती हैं। वैसे देखा जाए तो सहायक प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं है और यह मूल प्रस्ताव या सदन की कार्यवाही के संदर्भ के बिना सदन के फैसले के कुछ भी बताने में सक्षम नहीं है।
प्रश्न 15. स्थगन प्रस्ताव (Adjournment motion) क्या है?
उत्तर. स्थगन प्रस्ताव, सार्वजनिक महत्व वाले तात्कालिक मुद्दे पर चर्चा करने के उद्देश्य से सदन की कारवाई को स्थगित करने की प्रक्रिया है। इसे स्पीकर की सहमति से किया जा सकता है। जब स्थगन प्रस्ताव लागू किया जाता है तो सदन की सामान्य कारवाई रोक दी जाती है ताकि प्रस्ताव में उल्लिखित मुद्दे पर सदन में चर्चा हो सके। नियमानुकूल होने के लिए स्थगन प्रस्ताव में सदन की आम कार्यवाही को बाधित करने के लिए सार्वजनिक महत्व वाले उचित मुद्दे को उठाया जाता है और प्रत्येक मामले में महत्व के आधार पर सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर फैसला किया जाता है। स्थगन प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार द्वारा हाल ही में किए गए किसी चूक या कार्य के कारण हुए गंभीर परिणाम पर सरकार से सवाल-जवाब करना है। स्थगन प्रस्ताव को अपनाना सरकार की निंदा करना माना जाता है।
प्रश्न 16. अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) क्या है?
उत्तर. सत्ता में बने रहने के लिए सरकार के पास हमेशा लोकसभा में बहुमत होना चाहिए। जरूरत पड़ने पर सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करना पड़ता है। लोकसभा के लिए मंत्रीपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी के बारे में संवैधानिक प्रावधानों को देखते हुए किसी व्यक्तिगत मंत्री के लिए विश्वास प्राप्त करना नियमों के खिलाफ हैl नियमों के अनुसार, सिर्फ निकाय के तौर पर मंत्रीपरिषद को ही विश्वास मत प्राप्त करने की अनुमति है। लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमों के नियम संख्या 198 में मंत्री परिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार के प्रस्ताव का सामान्य प्रारूप कुछ ऐसा है कि “यह सदन मंत्रीपरिषद में विश्वास मत देखता चाहता है”। अविश्वास प्रस्ताव में उसकी वजह बताने की जरूरत नहीं होती है। यदि नोटिस (सूचना) में वजहों का उल्लेख किया गया हो, तब वह अविश्वास प्रस्ताव का हिस्सा नहीं होता है।
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प्रश्न 17. No-Day-Yet-Named प्रस्ताव क्या है?
उत्तर. यदि स्पीकर द्वारा किसी प्रस्ताव का नोटिस स्वीकार कर लिया जाता हैं और उस पर चर्चा करने के लिए कोई तारीख निर्धारित नहीं की जाती है तो इसे "No-Day-yet-Named Motion" कहा जाता है और स्वीकार किए गए प्रस्ताव की एक प्रति प्रस्ताव के मुद्दे से संबंधित मंत्री को भेजी जाती है। इस प्रकार के प्रस्ताव नोटिस की स्वीकृति को कारवाई परामर्श समिति के सामने प्रस्तुत किया जाता है, ताकि समिति तात्कालिक एवं विषयवस्तु के महत्व के आधार पर सदन में प्रस्तावों पर चर्चा के लिए उसका चयन कर सके और इसके लिए समय निर्धारित कर सके।
प्रश्न 18. “नियम 193” के तहत चर्चा का मतलब क्या होता है?
उत्तर. नियम 193 के तहत की जाने वाली चर्चा में सदन के औपचारिक प्रस्तावों पर चर्चा नहीं की जाती है। इसलिए इस नियम के तहत मुद्दों पर चर्चा के बाद मतदान नहीं होता हैl वह सदस्य, जिसने नोटिस दिया है, सर्वप्रथम सदन के सामने अपना संक्षिप्त विवरण रखता है और जिन सदस्यों ने नोटिस के संबंध में स्पीकर को पूर्व सूचना देते हैं, वे चर्चा में भाग लेते हैं। चर्चा की शुरूआत करने वाले सदस्य को उत्तर देने का कोई अधिकार नहीं है। चर्चा के अंत में संबंधित मंत्री उस विषय पर संक्षिप्त उत्तर देते हैं।
प्रश्न 19. अल्पकालिक चर्चा क्या है?
उत्तर. सार्वजनिक महत्व के तात्कालिक मुद्दों पर चर्चा हेतु सदस्यों को अवसर प्रदान करने के लिए मार्च 1953 में एक प्रथा की शुरूआत की गई थी जिसे आगे चलकर लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियम के नियम 193 के तहत अल्पकालिक चर्चा में शामिल किया गया था। इस नियम के तहत, सदस्य बिना किसी प्रस्ताव या उस पर मतदान के अल्पावधि चर्चा कर सकते हैं।
प्रश्न 20. नियम 377 से संबंधित मुद्दे का अर्थ क्या है?
वैसे मुद्दे जो सदन की कार्यसूची में शामिल नहीं होते हैं, उन्हें नियम 377 के तहत विशेष उल्लेखों के जरिए उठाया जा सकता है। इस प्रक्रियात्मक प्रणाली को 1954 में शुरू किया गया था। यह सदस्यों को आम जनता के हितों से जुड़े मुद्दों को उठाने का अवसर देता है। वर्तमान में, नियम 377 के तहत एक दिन में सदस्य 20 मुद्दे सदन में उठा सकते हैं।
प्रश्न 21. शून्य काल (Zero Hour)क्या है?
उत्तर. प्रश्न काल के तुरंत बाद का समय और पटल पर कागजातों को रखने एवं किसी भी सूचीबद्ध कार्य के शुरू करने से पहले के समय को शून्य काल कहते हैं। यह दोपहर 12 बजे के करीब शुरू होता है। इस अवधि को सभ्य भाषा में “शून्य काल” नाम दिया गया है। लोक सभा में “शून्य काल” में मुद्दे को उठाने के लिए, सदस्यों को रोजाना सुबह 8.30 बजे और 9.00 बजे के बीच स्पीकर को सूचना देनी होती है। सूचना में महत्वपूर्ण माने जाने वाले विषय और उसे सदन में उठाने के बारे में स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए। जाहिर है कि यह स्पीकर पर निर्भर करता है कि वह उस मुद्दे को सदन में उठाने की अनुमति देते हैं या नहीं। शून्य काल शब्द को हमारे संसदीय प्रक्रिया में औपचारिक मान्यता प्राप्त नहीं है।
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प्रश्न 22. “शून्य काल”में कितने मुद्दों को उठाने की अनुमति दी जाती है?
उत्तर. वर्तमान में, मतदान के आधार पर प्राथमिकता के अनुसार रोजाना बीस मुद्दों को “शून्य काल” में उठाने की अनुमति है। मुद्दे किस क्रम में उठाए जाएंगे इसका फैसला स्पीकर अपने विवेक से करता है। स्पीकर द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार पहले चरण में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्व के 5 मुद्दों को प्रश्न काल के बाद उठाया जाता है और उससे संबंधित दस्तावेज आदि सदन में प्रस्तुत किए जाते हैं। दूसरे चरण में, शाम 6.00 बजे के बाद या सदन की नियमित कार्यवाही के आखिर में बाकी बचे सार्वजनिक महत्व के तात्कालिक मुद्दों को उठाया जाता है। हालांकि, “शून्य काल” के संदर्भ में किसी नियम का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए इस दौरान किसी भी निर्धारित दिन उठाए जाने वाले मुद्दों की संख्या की अधिकतम सीमा तय नहीं है।
प्रश्न 23. संकल्प (Resolution) क्या है?
उत्तर. संकल्प (Resolution) विधायी निकाय के विचार, इच्छा या कार्य की औपचारिक अभिव्यक्ति होती है। संकल्प को मोटे तौर पर निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. संकल्प जो सदन द्वारा व्यक्त विचारों की अभिव्यक्ति हों: चूंकि ऐसे संकल्प का उद्देश्य महज सदन के विचारों की अभिव्यक्ति प्राप्त करना होता है, इसलिए सरकार इस प्रकार के संकल्पों में व्यक्त विचारों को लागू करने के लिए बाध्य नहीं होती है।
2. वैधानिक प्रभाव वाले संकल्प: वैधानिक संकल्प का नोटिस संविधान के प्रावधान या संसद के अधिनियम के अनुसरण में दिया जाता है। ऐसे संकल्प को यदि अपनाया जाता है तो वह सरकार के लिए बाध्यकारी है और कानूनी है।
3. संकल्प जिसे सदन अपनी खुद की कार्यवाहियों पर नियंत्रण के उद्देश्य से पारित करती है: यह कानून बाध्यकारी है और इसकी बाध्यता को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। ऐसे किसी संकल्प द्वारा, सदन में कभी-कभी ऐसी परिस्थिति विकसित हो जाती है जिसके बारे में विशेष नियम में प्रावधान नहीं किए गए हैं।
प्रश्न 24. प्वाइंट ऑफ ऑर्डर (Point of Order) क्या है?
उत्तर. प्वाइंट ऑफ ऑर्डर सदन की प्रक्रिया एवं कार्यवाही के नियमों की व्याख्या या प्रवर्तन या संविधान की ऐसी परंपरा या अनुच्छेद से संबंधित है जो सदन की कार्यवाही को विनियमित करे और ऐसे प्रश्न उठाए जो स्पीकर के संज्ञान में हो।
प्वाइंट ऑफ ऑर्डर को सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही उठाया जा सकता है। इसके अलावा एक कार्य के समाप्त होने और दूसरे के शुरू होने से पहले जो समय मिलता है, उसमें भी प्वाइंट ऑफ ऑर्डर को उठाया जा सकता हैl यदि प्वाइंट ऑफ ऑर्डर सदन की कार्यवाही से संबंधित है, तो स्पीकर के आदेश से एक सदस्य को प्वाइंट ऑफ ऑर्डर उठाने की अनुमति मिल सकती है। लेकिन किसी सदस्य द्वारा उठाया गया मुद्दा प्वाइंट ऑफ ऑर्डर है या नहीं, इस बारे में स्पीकर का फैसला अंतिम माना जाता है।
प्रश्न 25. क्या स्पीकर (अध्यक्ष) के पास सदन को स्थगित करने या बैठक बर्खास्त/ निलंबित करने की शक्ति है?
उत्तर. नियम 375 के तहत, सदन में गंभीर अव्यवस्था उत्पन्न होने पर, स्पीकर (अध्यक्ष) को लगे कि ऐसा करना अनिवार्य है, तो वह सदन को स्थगित या सदन की किसी बैठक को कुछ देर के लिए बर्खास्त/ निलंबित कर सकता है।
प्रश्न 26. राष्ट्रपति संसद को कब संबोधित करते हैं?
उत्तर. संविधान का अनुच्छेद 86(1) राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन या दोनों सदनों को एक साथ संबोधित करने का अधिकार देता हैl संविधान के अनुच्छेद 87(1) में इस बात का उल्लेख किया गया है कि लोकसभा के प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरूआत पर राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करेंगेl सदन में राष्ट्रपति के संबोधन से संदर्भित मुद्दों पर किसी सदस्य द्वारा प्रस्तुत धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है और अन्य सदस्यों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाता है।
प्रश्न 27. क्या सदस्य राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रश्न उठा सकते हैं?
उत्तर. कोई भी सदस्य राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रश्न नहीं उठा सकता है। किसी सदस्य द्वारा इस अवसर पर अशांति पैदा करने की कोई भी कोशिश करने पर उसे संबंधित सदन द्वारा दंडित करने का प्रावधान है। अभिभाषण में संदर्भित मुद्दों पर चर्चा धन्यवाद प्रस्ताव में होती है। अभिभाषण पर चर्चा का दायरा बहुत व्यापक है और संपूर्ण प्रशासन का कामकाज चर्चा के लिए खुला होता हैl लेकिन चर्चा करते समय सदस्यों को उन मामलों का उल्लेख नहीं करना चाहिए जिनकी जवाबदेही भारत सरकार पर नहीं है और राष्ट्रपति का नाम भी बहस में नहीं आना चाहिए, क्योंकि अभिभाषण की विषयवस्तु की जिम्मेदारी सरकार की होती है राष्ट्रपति की नहीं।
प्रश्न 28. संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary privilege) क्या हैं?
उत्तर. “संसदीय विशेषाधिकार” शब्द का अर्थ ऐसे अधिकारों और विशेषाधिकारों से है, जिसका प्रयोग संसद के दोनों सदनों और प्रत्येक सदन की समितियां सामूहिक रूप से और प्रत्येक सदन के सदस्य व्यक्तिगत रूप से करते हैं। इन विशेषाधिकारों के बिना ये सदस्य अपने काम कुशलतापूर्वक और प्रभावी तरीके से नहीं कर सकते हैंl संसदीय विशेषाधिकार, संसद की स्वतंत्रता, अधिकार और गरिमा की रक्षा के लिए होते हैं। संसद के किसी भी सदन और उसके समितियों एवं सदस्यों की शक्तियों, विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा के बारे में मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 105 में बताया गया है। सदन के किसी भी विशेषाधिकार का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को सजा देने का अधिकार सदन के पास होता है।
प्रश्न 29. क्या भारत में संसदीय विशेषाधिकार संहिताबद्ध हैं?
उत्तर. संविधान के अनुच्छेद 105(3), जो प्रत्येक सदन और उसके सदस्यों एवं समितियों के अधिकारों, विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा को परिभाषित करता है, के अनुपालन में अभी तक संसद द्वारा कोई कानून पारित नहीं किया गया है। ऐसे किसी भी कानून की अनुपलब्धता के कारण, संसद के सदनों और उसके सदस्यों एवं समितियों के अधिकार, विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा 1978 में पारित संविधान के चौवालिसवें संशोधन अधिनियम, की धारा 15 के प्रभाव में आने से पहले उसके समितियों और सदस्यों के लिए वही रहेंगी।
प्रश्न 30. विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना में क्या अंतर है?
उत्तर. जब किसी भी विशेषाधिकार, चाहे वह सदस्यों की व्यक्तिगत हो या सम्पूर्ण सदन के लिए हो, का किसी भी व्यक्ति या अधिकारी द्वारा अवमानना की जाती है, तो इस अपराध को “विशेषाधिकार हनन” कहा जाता है।
सदन की अवमानना को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं– संसद के किसी भी सदन में उसकी कार्यवाहियों में अपने कार्य या चूक से नुकसान पहुंचाने या उसमें बाधा डालने की कोशिश करना या उक्त सदन के किसी भी सदस्य या अधिकारी को उसका/ उसकी कार्यों को पूरा करने में बाधा डालना या नुकसान पहुंचाना या जिन कार्यों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बाधा डालने की प्रवृत्ति हो उसे करना, सदन की अवमानना कही जाती है। हांलाकि विशेषाधिकार के सभी उल्लंघन सदन की अवमानना माने जाते हैं और सदन के किसी भी विशेषाधिकार का उल्लंघन न करने पर भी कोई व्यक्ति सदन की अवमानना का दोषी हो सकता है। उदाहरण के लिए, जब वह व्यक्ति किसी समिति में भाग लेने के आदेश को नहीं मानता है या बतौर सदस्य किसी दूसरे सदस्य के चरित्र की निंदा करता हैl
प्रश्न 31. विशेषाधिकार के प्रश्न को उठाने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर. विशेषाधिकार के प्रश्न पर सदन स्वयं विचार कर सकता है और उस पर निर्णय ले सकता है या सदन या स्पीकर उस प्रश्न की जांच-पड़ताल और रिपोर्ट के लिए विशेषाधिकार समिति के पास भेज सकता है।
प्रश्न 32. किसी सदस्य के “स्वतः निलंबन” से संबंधित नियम क्या है?
उत्तर. लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमों की धारा 374ए के अनुसार यदि कोई सदस्य वेल (well) में आता है या लगातार सदन के नियमों का उल्लंघन करता है और जानबूझ कर सदन की कार्यवाही में नारेबाजी या अन्य कार्यों द्वारा बाधा पहुंचाता है, तो ऐसे सदस्य स्पीकर द्वारा नामित किए जाने पर, सदन की पांच लगातार बैठकों या बाकी बचे सत्र के लिए, जो भी कम हो, से स्वतः निलंबित हो जाएगा।
प्रश्न 33. सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLAD) क्या है?
उत्तर. सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLAD) की शुरूआत दिसंबर 1993 में हुई थी। इस योजना के तहत लोकसभा के प्रत्येक सदस्य के पास अपने निर्वाचन क्षेत्र में सालाना पांच करोड़ रूपए के विकास कार्य करने हेतु जिला प्रमुख को सुझाव देने का विकल्प होता है।
प्रश्न 34. सांसदों का वर्तमान वेतन कितना है?
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उत्तर. वर्तमान में सांसदों को मासिक 50,000/- रु. बतौर वेतन मिलते हैं। इसके अलावा 45,000/- रु. मासिक निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और 45,000/- रु. मासिक कार्यालय खर्च भत्ता मिलता है, जिसमें से 15,000/- रु. स्टेशनरी और डाक खर्च के लिए और 30,000/- रु. तक का भुगतान लोकसभा सचिवालय द्वारा सचिवीय सहायता हेतु काम पर रखे गए व्यक्ति/व्यक्तियों को किया जाता है। अपने पद पर बने रहने की अवधि में सदस्य को 2,000 रु. का दैनिक भत्ता भी मिलता है। लेकिन दैनिक भत्ता तभी दिया जाता है जब वह इस उद्देश्य के लिए रखे गए रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता/करती है।
प्रश्न 35. क्या संसद सदस्य किसी भी प्रकार के पेंशन के हकदार हैं?
उत्तर. प्रत्येक व्यक्ति जिसने अंतरिम संसद या संसद के किसी भी सदन में सदस्य के तौर पर सेवा दी है वह 18 मई 2009 से 20,000/- रु. मासिक पेंशन पाने का हकदार है। यदि कोई व्यक्ति पांच वर्षों से अधिक समय के लिए सेवा देता है, तो उसे पांच वर्ष के बाद प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष के लिए 1500/- रु. मासिक अतिरिक्त पेंशन मिला करेगी। अतिरिक्त पेंशन के लिए वर्ष की गणना हेतु नौ माह या अधिक की अवधि को एक पूर्ण वर्ष माना जाता है।
प्रश्न 36. त्रिशंकु संसद क्या है?
उत्तर. यह ऐसी संसद होती है जिसमें किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है।
प्रश्न 37. एक्ट ऑफ गॉड क्या है?
उत्तर. आंधी, तूफान, आकाशीय बिजली वगैरह आदि घटनाओं को "एक्ट ऑफ गॉड" की श्रेणी में रखा जाता है। इसका मतलब यह है कि यह कार्य ईश्वर करता है इसलिए ऐसी घटनाओं में मुआवजा देना अनिवार्य नहीं हैl
सानसद की काय शकित व उशकी काय काल
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