राजस्थान के दुर्ग
1. माण्डलगढ़ दुर्ग: यह मेवाड़ का प्रमु गिरी दुर्ग है। जो कि भीलवाड़ा क माण्डलगढ़ कस्बे में बनास, मेनाल नदियों के संगम पर स्थित है। इसकी आकृति कटारे
जैसी है।
2. शेरगढ़ का दुर्ग (कोषवर्धन): यह बारां जिले में परमन नदी पर स्थित है। राजकोष में निरन्तर वृद्धि करने के कारण इसका नाम कोषवर्द्धन पड़ा। यहाँ पर खींची चैहान शासक, डोर परमा नागवंशीय क्षेत्रीय शासकों, कोटा के हाडा शासक आदि का शासन
रहा। शेरशाह सूरी ने इसका नाम परिवर्तित करके शेरगढ़ रखा। महारावल उम्मेद सिंह के दीवान जालिम सिंह झाला ने जीर्णोंदार कर अनेक महल बनवाये जो झालाआं की हवेली के नाम से प्रसिद्ध है।
3. कुचामन का किला: नागौर जिले की नावां तहसील के कुचामन में स्थित है। यह जोधपुर शासक
मेण्डलीया शासकों का प्रमुख ठिकाना था। मेडतिया शासक जालीम सिंह ने वनखण्डी महात्मा के आशीष से इस किले की नीवं रखी। इस किले में सोने के बारीक काम के लिए सुनहरी बुर्ज प्रसिद्ध है तथा यहाँ पर स्थित हवामहल राजपूती स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। इसे जागीरी किलों का सिरमौर कहा जाता है।
4. अचलगढ़ का किला: सिरोही जिले के माउण्ट आबू में इसका निर्माण परमार शासकों ने करवाया था। तथा पुर्नउद्धार 1542 ई. में महाराणा कुम्भा द्वारा करवाया गया। इस किले के पास ही माण्डू शासक
द्वारा बनवाया गया पाश्र्वनाथ जैन मंदिर स्थित है।
5. अकबर का किला: यह अजमेर नगर के मध्य में
स्थित है जिसे मेगस्थनीज का किला तथा अकबर का दौलतखाना भी कहते है। यह पूर्णतया मुस्लिम दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया गया है। सर टोमसरा ने जहांगीर को यहीं पर अपना परिचय पत्र प्रस्तुत किया था।
6. नागौर का किला: प्राचीन शिलालेखों में इसे नाग दुर्ग व अहिछत्रपुर भी कहा गया है। यह धान्वन दुर्ग
की श्रेणी में आम है। ख्यातों के अनुसार चैहान शासक सोमेश्वर के सामन्त के मास ने इसी स्थान पर भेड़ को भेडि़ये से लड़ते देखा गया था। नागौर किले में प्रसिद्धि शौर्य व स्वाभिमान के प्रतीक अमर सिंह राठौड़ से है। यह दुर्ग सिंह से दिल्ली जाने वाले मार्ग पर स्थित है।
महाराजा बख्तर सिंह ने इस दुर्ग का जीर्णांेदार करवाया था। इस दुर्ग में हाडी रानी का मोती महल, अमर सिंह का बादल महल व आभा महल तथा अकबर का शीश महल है।
7. बीकानेर का दुर्ग (जूनागढ़): यह धान्वन श्रेणी का दुर्ग है इसका निर्माण महाराजा बीका सिंह द्वारा करवाया गया था। यह राती घाटी में स्थित होने के कारण राती घाटी का किला भी कहा जाता है। वर्तमान किले का निर्माण महाराज राय सिंह द्वारा करवाया गया। यहाँ पर 1566 ई. के साके के बीर शहीद जयमल तथा पत्ता की गजारूढ़ मुर्तियां थी जिनका वर्णन फ्रांसिसी यात्री बरनियर ने अपने ग्रन्थ में किया था। किन्तु औरंगजेब ने इन्हें हटवा दिया था। इसमें स्थित महल अनूपगढ़, लालगढ़, गंगा निवास, रंगमहल, चन्द्रमहल रायसिंह का चैबारा, हरमंदिर आदि है। यहाँ पर महाराजा डूंगरसिंह द्वारा भव्य व ऊँचा घण्टाघर भी बनवाया गया था।
8. भैंसरोदुगढ़ दुर्ग: चित्तौड़गढ़ जिले के भैसरोडगढ़ स्थान पर स्थित है। कर्नल टाॅड के अनुसार इसका निर्माण विक्रम शताब्दी द्वितीय में भैसा शाह नामक
व्यापारी तथा रोठा नामक बंजारे में लुटेरों से रक्षा के लिए बनवाया था। यह जल दुर्ग की श्रेणी में आता है जो कि चम्बल व वामनी नदियों के संगम पर स्थित है। इसे राजस्थान का वेल्लोर भी कहा जाता है।
9. दौसा दुर्ग: यह कछवाहा शासकों की प्रथम राजधानी थी। आकृति सूप के (छाछले) के समान है तथा देवागिरी पहाड़ी पर स्थित है। कारलाइन ने इसे राजपूताना के प्राचीन दुर्गों में से एक माना है। इसका निर्माण गुर्जर प्रतिहारों बड़गूर्जरों द्वारा करवाया
गया था। यहाँ स्थित प्रसिद्ध स्थल हाथीपोल, मोरीपोल,
राजा जी का कुंश, नीलकण्ठ महादेव बैजनाथ महादेव, चैदह राजाओं की साल,सूरजमल पृतेश्वर (भौमिया जी का मंदिर) स्थित है।
10. भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़): घग्घर नदी के तट
पर स्थित है तथा उत्तरी सीमा का प्रहरी भी कहा जाता है। दिल्ली मुल्तान पर होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी अधिक था। यह धान्वन दुर्ग की श्रेणी में आता है। इसका निर्माण कृष्ण के 9वे वंश के भाटी राजा भूपत ने करवाया था। 1001 ई. में महमूद गजनी ने इस पर अपना अधिकार किया था। 1398 ई. में रावदूत चन्द्र के समय तैमूर ने इस पर आक्रमण किया था। 1805 ई. में बीकानेर के शासक सूरजसिंह ने मगंलवार को जापता खाँ भाटी पर आक्रमण कर इसे
जीता इसलिए इसका नाम हनुमानगढ़ रखा। भतीजे शेरखान की क्रब इस किले में स्थित है। यहाँ पानी संग्रहण के लिए कुण्डों का निर्माण करवाया गया था।
11. अलवर का दुर्ग: यह बाला दुर्ग के नाम से
भी जाना जाता है। निर्माण 1106 ई. में आमेर नरेश काकिल देव के कनिष्ठ पुत्र रघुराय ने करवाया था। वर्तमान में यह रावण देहरा के नाम से जाना जाता है।भरतपुर के राजा सूरजमल ने यहाँ सूरजकुण्ड तथा शेरशाह के उत्तराधिकारी सलीम शाह ने सलीम सागर तथा प्रतापसिंह ने
सीताराम जी का मन्दिर बनवाया। इस दुर्ग मंे स्थित अन्धेरी दरवाजा प्रसिद्ध है।
12. बयाना का किला (विजयमन्दिर गढ़):
उपनाम शोतिणपुर का किला तथा बादशाह किला। यह भरतपुर जिले के दक्षिण मंे है
तथा इसका निर्माण मथुरा के यादव राजा विजयपाल ने 1040 ई. लगभग करवाया। विजयपाल के ज्येष्ठ पुत्र त्रिभुवन पाल ने इसके पाल ही तवनगढ़ किले का निर्माण करवाया। मध्यकाल में यह क्षेत्र नील उत्पादन के लिए अत्यन्तप्रसिद्ध था। इस दुर्ग में लाल पत्थरों से
बनी भीमलाट रानी चित्रलेखा द्वारा निर्मित
उषा मन्दिर, अकबरी छतरी, लोदी मीनार,
जहांगिरी दरवाजा आदि स्थित है।
13. माधोराजपुरा का किला: यह जयपुर
जिले में फागी के पास स्थित है। इसका निर्माण सवाई माधव सिंह प्रथम द्वारा मराठों पर विजय के उपरान्त करवाया गया। माधोराजपुरा कस्बे
को नवां शहर भी कहा जाता है।
14. गागरोन दुर्ग: यह झालावाड़ जिले में
मुकुन्दपुरा पहाड़ी पर काली सिन्ध व आह
नदियों के संगम पर स्थित है। यह जल दुर्ग
की श्रेणी में आता है। यह खींची चैहान शासकों की शोर्य गाथाओं का साक्ष्य है। यहाँ पर ढोढ राजपूतों का शासन रहने के कारण ढोढगढ़ व धूलरगढ़ भी कहा जाता है। महाराजा जैतसिंह के शासन में हमीममुद्दीन चिश्ती यहाँ आये जो मिठै
साहब के नाम से प्रसिद्ध थे। इसलिए यहाँ मिठ्ठे साहब की दरगाह भी स्थित है। गागरोन के शासक सन्त वीजा भी हुए। जो कि फिरोज शाह तुगलक के समकालीन थे। अचलदास खींची की वचानिका से ज्ञात होता है कि गागरोन दुर्ग का प्रथम साका अचलदास के शासन काल में 1430 ई. में हुआ था। दूसरा साका महमूद खिलजी के
समय अचलदास के पुत्र पाल्हणसिंह के काल में
1444 ई. में हुआ ािा। खिलजी के विजय के
उपरान्त इसका नाम मुस्तफाबाद रख दिया। इस दुर्ग में औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलन्द दरवाजा, शत्रुओं पर पत्थर की वर्षा करने वाला, विशाल क्षेत्र होकूली कालीसिंध नदी के किनारे
पहाड़ी पर राजनैतिक बंदी को मृत्युदण्ड देने
के लिए पहाड़ी से गिराया जाने वाला स्थान गिदकराई स्थित है। यहाँ पर मनुष्य की नकल करने वाले राय तोते प्रसिद्ध है। कालीसिंध व आहू नदियों का संगम सांभल जी कहलाता है।
15. जालौर का किला: जालौर नगर के सूकड़ी नदी के किनारे स्थित गिरी दुर्ग है। इसे प्राचीन काल जाबालीपुर तथा जालुद्दर नाम से जाना जाता था। डाॅ. दशरथ शर्मा के अनुसार इसके
निर्माणकर्ता प्रतिहार वंश के नागभट्ट प्रथम ने अरब आक्रमणों को रोकने के लिए करवाया था। गौरीशंकर ओजा इसका निर्माण कर्ता परमार
शासकों को मानते हैं। कीर्तिपाल चैहानों की जालौर शाखा का संस्थापक था। जालौर किले के पास सोनलगढ़ पर्वत होने के कारण यहाँ के चैहान सोनगिरी चैहान कहलाये। इस किले में
मशहूर सन्त पीर मलिक शाह की दरगाह
स्थित है। सोनगिरी चैहान शासक कानहडदे के समय अलाउद्दीन के आक्रमण के समय जालौर का प्रसिद्ध साका हुआ था।
16. सिवाना दुर्ग: यह बाड़मेर में स्थित इस
दुर्ग का निर्माण वीरनारायण पंवार जी की राजा भोज का पुत्र था, ने करवाया। 1305 ई. में इस दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया तब इस दुर्ग का सांतलदेव शासक था। अलाउद्दीन ने विजय उपरान्त इस दुर्ग का नाम खैराबाद या ख्रिजाबाद कर दिया।
17. रणथम्भौर दुर्ग: यह सवाई माधोपुर जिले
में स्थित एक गिरी दुर्ग हैं जो कि अची-बीची सात पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। इसका वास्तविक रवन्तहपुर था। अर्थात् रन की घाटी में स्थित नगर कालान्तर में यह रणस्तम्भुपर से रणथम्भौर हो गया। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी के लगभग
अजमेर के चैहान शासकों द्वारा करवाया गया। 1301 ई. में अलाउद्दीन ने इस पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। उस समय यहाँ का शासक
हम्मीर था जो शरणागत की रक्षा त्याग व बलिदान के लिए प्रसिद्ध रहे। इस युद्ध में
रणथम्भौर का प्रथम साका हुआ था। इस
दुर्ग में स्थित प्रमुख स्थल त्रिनेत्र गणेश
मन्दिर, हम्मीर महल, अन्धेरी दरवाजा, वीर
सैमरूद्दीन की दरगाह, सुपारी महल, बादल
महल, 32 खम्भों की छतरी, पुष्पक महल, गुप्त
गंगा, जौरा-भौरा आदि स्थित है।
18. मण्डौर दुर्ग: यह जोधपुर जिले में स्थित
है। यहाँ पर बौद्ध शैली से निर्मित दुर्ग था जो भूकम्प से नष्ट हो गया। यह प्राचीन मारवाड़ राज्य की राजधानी थी। इस दुर्ग में चूना-गारे के स्थान पर लोहे की किलों का प्रयोग किया गया है।
19. बसन्ती दुर्ग: महाराणा कुम्भा ने इसका निर्माण चित्तौड़गढ़ जिले में पिण्डवाड़ा नामक स्थान पर करवाया।इसकी दिवारों के निर्माण में
सूखी चिनाई का प्रयोग किया गया है। इस दुर्ग के निर्माण का उद्देश्य पश्चिमी सीमा व सिरोही के मध्य तंग रास्ते की सुरक्षा करना था। इस दुर्ग के
दतात्रेय मुनि व सूर्य का मन्दिर है।
20. तिजारा का किला: अलवर जिले में
तिजारा नगर में इस दुर्ग का निर्माण राव राजा बलवन्त सिंह ने 1835 में करवाया था। इसमें पूर्वी दिशा में एक बारहदरी तथा हवा महल का निर्माण
करवाया गया था।
21. केसरोली दुर्ग: अलवर जिले में
केसरोली भाव में यदुवंशी शासको द्वारा निर्मित।
22. किलोणगढ़: बाड़मेर में स्थित दुर्ग
का निर्माण राव भीमोजी द्वारा करवाया गया।
23. बनेड़ा का किला: भीलवाड़ा जिले में
स्थित यह दुर्ग निर्माण से लेकर अब तक अपने
मूल रूप में यथावत है।
24. शेरगढ़ दुर्ग: धौलपुर जिले में चंबल नदी के
किनारे राजा मालदेव द्वारा करवाया गया तथा शेरशाह सूरी ने इसका पुनर्निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा।
25. शाहबाद दुर्ग: बारां जिले में मुकुन्दरा पहाडि़यों में स्थित दुर्ग का निर्माण चैहान शासक मुकुटमणिदेव द्वारा करवाया गया।
26. नीमराणा का दुर्ग: अलवर जिले में
स्थित पंचमहल के नाम से विख्यात किले
का निर्माण चैहान शासकों द्वारा करवाया गया।
27. इन्दौर का किला: इसका निर्माण
निकुम्भों द्वारा अलवर जिले में करवाया गया। यह दुर्ग दिल्ली सल्तनत की आँख की किरकिरी थी।
28. राजगढ़ दुर्ग: कछवाहा शासक राजा प्रताप सिंह ने इसका निर्माण अलवर जिले में करवाया।
29. चैंमू दुर्ग: उपनाम धाराधारगढ़ तथा रघुनाथगढ़। इसका निर्माण ठाकुर कर्णसिंह द्वारा करवाया गया।
30. कोटकास्ता का किला: यह जोधपुर
महाराजा मानसिंह द्वारा नाथो (भीमनाथ) को प्रदान किया गया था। यह जालौर में स्थित है।
31. भाद्राजून का दुर्ग: इस दुर्ग का निर्माण रावचन्द्र सेन के शासनकाल में अकबर द्वारा हराये जाने पर करवाया गया।
32. किला अफगान किला: बाड़ी नदी पर
धौलपुर में
33. जैना दुर्ग: बाड़मेर
34. मंगरोप दुर्ग: बाड़मेर
35. इन्द्ररगढ़ दुर्ग: कोटा
36. हम्मीरगढ़ दुर्ग: हम्मीरगढ़ – भीलवाड़ा
37. कन्नौज का किला: कन्नौज –चित्तौड़गढ़
38. कोटडे का किला: बाड़मेर
39. अमरगढ़ दुर्ग: भीलवाड़ा
40. सिवाड़ का किला: सवाई माधोपुर
41. राजा का किला: नावां (नागौर)
42. मनोहरथाना का किला: परवन व
कालीसिंध नदी के संगम पर झालावाड़ इसमें भीलों की आराध्य देवी विश्ववति का मंदिर है।
43. ककोड़ का किला: टोंक
44. भूमगढ़ दुर्ग (अमीरगढ़) ः टोंक
45. गंगरार का किला: गंगरार,चित्तौडगढ़
46. कांकबाड़ी किला: अलवर के सरिस्का क्षेत्र
47. जूनागढ़ किले का उपनाम: जमीन का जेवर
48. सज्जनगढ़ का किला: उदयपुर का मुकुटमणि
49 भरतपुर दुर्ग – महाराजा सूरजमल द्वारा निर्मित,इस किले की यह विशेषता है,की इसकी जल से भरी हुई विस्तृत खाई तथा बाहरी मिट्टी की विशाल प्राचीर इसकी रक्षा व्यवस्था में सहयोग करती थी।
50. कुम्भलगढ़ दुर्ग- निर्माण महाराणा कुम्भा ने सूत्रधार मण्डन की देखरेख में,राजपूताने के इतिहास में एकमात्र दुर्ग जो एक अवसर पर यह दुर्ग कुछ समय के लिए शत्रु के हाथ में गया,पुन प्रताप द्वारा जीता गया।दुर्ग के परकोटों की लंबाई 36 किलोमीटर है,
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