1922-23 में बिहार के मुंगेर में किसके नेतृत्व में किसान सभा का गठन हुआ ?
1922-23 में बिहार के मुंगेर में किसके नेतृत्व में किसान सभा का गठन हुआ ? - Under whose leadership the Kisan Sabha was formed in Munger, Bihar in 1922-23? - 1922 - 23 Me Bihar Ke Munger Me Kiske Netritv Me Kisaan Sabha Ka Gathan Hua ? Bihar Gk in hindi, Bihar Modern History Quiz Shri Yadunandan Sharma question answers in hindi pdf Swami Sahajanand questions in hindi, Know About Shri GangaSharann Singh Bihar Gk online test Bihar Gk notes in hindi quiz book Shah Mohammad Zubair
सन 1884 में अरवल बिहार के एक ज़मीनदार ख़ानदान मे पैदा हुए शाह मोहम्मद ज़ुबैर किसी परिचय का मोहताज नही पर आज बड़े अफ़सोस के साथ ये कहा जा सकता है कि इन्हे आज को जानता नही… एक ज़माना था जब इनकी एक आवाज़ पर हज़ारों की तादाद में अवाम जमा हो जाया करती थी। शाह मोहम्मद ज़ुबैर के वालिद का नाम सैयद अशफ़ाक़ हुसैन था, जो अंग्रेज़ के मुलाज़िम थे, काफ़ी उंचे ओहदे पर थे, जहानाबाद में पोस्टेड थे।
शुरुआती तालामी घर पर हासिल करने के बाद शाह मोहम्मद ज़ुबैर को टी.के.घोष स्कुल पटना भेजा गया, जहां से उन्होने 1904 में उन्होने पढ़ाई मुकम्मल की, चुंके नेयोरा की ईमाम ख़ानदान इसी स्कुल का फ़ारिग़ था और आगे बैरिस्ट्री की पढ़ाई करने इंगलैंड गया था, इस लिए शाह मोहम्मद ज़ुबैर के वालिद ने भी उन्हे 1908 में इंगलैंड भेज दिया, वहां उनकी दोस्ती उन हिन्दुस्तानीयों से हुई जो अपने मुल्क को आज़ाद करना चाहते थे, बचपन से ही 1857 के बाग़ी, इंक़लाबी और क्रांतिकारीयों के कारनामों की कहानियां सुनते आ रहे शाह ज़ुबैर के अंदर एक नया जोश पैदा हुआ, इंगलैंड में रहते समय बार बार ये ख़्याल उनके दिल में आता के इतना सा छोटा मुल्क इतना ख़ुशहाल क्युं ? मेरा मुल्क इतना बड़ा हो कर भी इतने से छोटे मुल्क का ग़ुलाम क्युं ? इतना ग़रीब और कंगाल क्युं ?
इन्ही सब सवाल को दिल में लिए उन्होने बैरिस्ट्री की पढ़ाई मुकम्मल कर 1911 में पटना तशरीफ़ लाए, उसी समय टी.के.घोष स्कुल पटना और इंगलैंड से बैरिस्ट्री की पढ़ाई मुकम्मल कर लौटे लोगों ने बंगाल से बिहार को अलग करने की तहरीक छेड़ रखी थी, जिसमें कुछ नाम है, अली ईमाम, सच्चिदानन्द सिन्हा, मौलाना मज़हरुल हक़, हसन ईमाम वग़ैरा का, शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने भी इस तहरीक को अपना समर्थन दिया।
इसके बाद वो पटना में ही वकालत की प्रैकटिस करने लगे, वो अरवल में ही रहते थे और नाव के सहारे नहर के रास्ते अरवल से खगौल आते और फिर टमटम से पटना, ये उनका रोज़ का मामुल था। 1912 में बाकीपुर पटना में हुए कांग्रेस के सालाना इजलास में चीफ़ आर्गानाईज़रों में से थे, इस इजलास में कांग्रेस के पिछले किसी भी इजलास के मुक़ाबले बड़ी तादाद में मुसलमान शरीक हुए थे और इसका सेहरा सच्चिदानन्द सिन्हा, मौलाना मज़हरुल हक़, हसन ईमाम वग़ैरा और शाह मोहम्मद ज़ुबैर के सर बंधता है।
फिर 1914 में मुंगेर की रहने वाली बी.बी सदीक़ा से शादी हो गई जिसके बाद शाह मोहम्मद ज़ुबैर मुंगेर चले गए और वहीं प्रैकटिस शुरु की और साथी ही सियासत में खुल कर हिस्सा लेने लगे, इसी दौरान मुंगेर ज़िला कांग्रेस कमिटी के सदर चुने गए और श्रीकृष्ण सिंह नाएब सदर और यहीं से शुरु होता है श्रीकृष्ण सिंह का सियासी सफ़र जो उन्हे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाता है। श्रीकृष्ण सिंह ख़ुद को शाह मोहम्मद ज़ुबैर का शागिर्द मानते थे …. शहर मुंगेर के ज़ुबैर हाऊस मे ही “श्रीकृष्ण सिंह” ने सियासत सीखी, यहीं उनकी मुलाक़ात हिन्दुस्तान के बड़े से बड़े नताओं से हुई चाहे वो गांधी हों या मोती लाल या मौलाना जौहर…।
रॉलेक्ट एैक्ट के विरोध में शाह मोहम्मद ज़ुबैर गांधी के साथ हो लिये और इस एैक्ट की खुल कर मुख़ालफ़त की।
ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, इसी तहरीक के दौरान उन्हे मुंगेर की एक मस्जिद में तक़रीर करना था, काफ़ी तादाद में लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे तब शाह मोहम्मद ज़ुबैर मस्जिद में श्रीकृष्ण सिंह का हांथ पकड़े हुए मस्जिद में दाख़िल होते हैं, और श्रीकृष्ण सिंह को तक़रीर करने कहते हैं,
श्रीकृष्ण सिंह ने मस्जिद से हिन्दु मुस्लिम एकता, ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक के समर्थन में एक इंक़लाबी तक़रीर की जिसकी गुंज काफ़ी दुर तक सुनाई दी, हिन्दु मुस्लिम हर जगह मज़बुती के साथ एक जगह नज़र आने लगे। 1 अगस्त 1920 को असहयोग तहरीक के समर्थन में ख़िलाफ़त डे मनाया और उन्होने वकालत का पेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया,
ख़ानक़ाह मुजीबिया और फुलवारी शरीफ़ के बाअसर लोगों ने उनके कौल पर लब्बैक कहा, ख़ानक़ाह मुजीबिया के शज्जादानशीं शाह बदरुद्दीन साहेब नें शम्सुल उल्मा का ख़िताब वापस कर दिया, शाह सुलेमान फुलवारी शरीफ़ ने मेजिस्ट्रेट और मौलवी नुरुल हसन नें लेजिस्लेटिव कौंसिल के पद से इस्तिफ़ा दे दिया।
दिसम्बर 1920 में अली बेरादर अपनी वाल्दा बी अम्मा और गांधी जी के साथ मुंगेर आते हैं और ये लोग शाह मोहम्मद ज़ुबैर के मुंगेर स्थित ज़ुबैर हऊस में ठहरते हैं, गांधी ने आस पास का दौरा किया, शाह मोहम्मद ज़ुबैर के साथ उन्होने आस पास के पुरे इलाक़े का दौरा किया और साथ तिलक स्वारज संस्था के लिए चंदा भी किया, साथ ही असहयोग आंदोलन को कामयाब बनाने की अपील भी की, उन्हे लोगों का भरपुर समर्थन मिला, आम लोगो ने जहां सरकारी ओहदे, सर्टीफ़िकेट, नवाज़िशों का बाईकॉट किया वहीं बी अम्मा आबदी बानो बेगम के कहने पर मुस्लिम महीलाओं ने विदेशी कपड़ों में आग लगाई, इस काम में शाह मोहम्मद ज़ुबैर की पत्नी बी.बी.सदीक़ा आगे आगे थीं।
इस दौरान मुंगेर ज़िला सियासी कांफ़्रेंस लख्खीसराए में मौलाना शौकत अली की सदारत में हुआ, यहां बी.अम्मा ख़ुद मौजुद थीं, ये जलसा कामयाब रहा और इसके बाद जमालपुर में भी एक प्रोग्राम हुआ, इसके बारे में मौलाना शौकत अली ख़ुद कहते हैं की उनकी पहली सियासी तक़रीर मुंगेर में ही हुई। असहयोग आंदोलन को कामयाब होता देख वाईसराय ने लार्ड सिन्हा को हुक्म दिया के वो मुंगेर जा कर हालात का जायज़ा लें, फ़रवरी 1921 में लार्ड सिन्हा मुंगेर गए जहां उनका मुकम्मल बाईकॉट किया गया, लोगो ने उन्हे देखना तक दवारा नही किया, यहां तक के उस दिन हड़ताल किया गया, ये बात शाह मोहम्मद ज़ुबैर की अवामी मक़बुलियत बताने को काफ़ी है।
जुलाई 1921 में प्रींस ऑफ़ वेल्स का मुकम्मल बाईकॉट किया गया, इसमे शाह मोहम्मद ज़ुबैर की क़यादत में मुंगेर भी आगे आगे था, इस वजह कर पहले इन्हे नज़रबंद किया गया फिर इन्हे, श्रीकृष्ण सिंह, शफ़ी दाऊदी, बिन्देशवरी और क़ाज़ी अहमद हुसैन को गिरफ़्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया, गांधी ने इस गिरफ़्तारी की मज़म्मत की पर शाह मोहम्मद ज़ुबैर के साल क़ैद की सज़ा हुई।
1922 में कांग्रेस का इजलास गया शहर में हुआ, स्वाराज पार्टी वजुद में आई, मोती लाल नेहरु उसके लीडर थे, 1923 में जेल से छुटने के बाद शाह मोहम्मद ज़ुबैर स्वाराज पार्टी में शामिल हो गए और उन्हे सिक्रेट्री बना दिया गया।
1923 में ही डिस्ट्रीक्ट बोर्ड और मुंस्पेल्टी का इलेकशन हुआ मुंगेर ज़िला से शाह मोहम्मद ज़ुबैर जीते और उन्हे चेयरमैन बनाया गया और श्रीकृष्ण सिंह को डिप्टी चेयरमैन बनाया गया।
1923 में ही शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने सबसे पहले किसान सभा नाम संगठन बना कर किसानो के हक़ के लिए आवाज़ उठानी शुरु की, वो ख़ुद इस संगठन के सदर थे और श्रीकृष्ण सिंह को नाएब सदर।
1925 में बिहार स्टेट सियासी कांफ़्रेंस पुर्वलिया में हुआ जिसमें गांधी जी ख़ुद शरीक थे, शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने इस कांफ़्रेंस की सदारत की और सदारती तक़रीर में हर मुद्दे को बेहतरीन तरीक़े से उठाया साथी ही “देही तंज़ीम” का भी स्कीम रखा, ये स्कीम हिन्दुस्तान के देहातो को जगाने की स्कीम थी, वो किसान सभा बना कर पहले ही इसे आज़मा चुके थे, चुंके शाह मोहम्मद ज़ुबैर की परवरिश देहात में हुई थी, इस लिए वो इस बात को बख़ुबी जानते और समझते थे के बिना गांव के लोगों को बेदार किये आप कोई भी बड़ा इंक़लाब नही पैदा कर सकते हैं, वैसे भी हिन्दुस्तान गांव में बस्ता है. वो गांव से तामीराती काम शुरु कर वहां के लोगों को बेदार करना चाहते थे।
1926 में शाह मोहम्मद ज़ुबैर कॉऊंसिल ऑफ़ स्टेट के लिए नोमिनेट हो कर दिल्ली पहुंचे, चार में से एक सीट उनके हिस्से आई बाक़ी तीन से अनुग्रह नारायण सिंह, राजेंद्र प्रासाद और दरभंगा महराज कामयाब हुए, यहां श्रीकृष्ण सिंह दरभंगा महराज के मुक़ाबले हार गए। इसी दौरान एक बार फिर से स्वाराज पार्टी के सिक्रेट्री मुंतख़िब हुए 1926 से ले कर 31 अक्तुबर 1929 तक इस पार्टी के सिक्रेट्री की हैसियत से अपने फ़रायज़ अंजाम दिये, इसी बीच जब कांग्रेस ने मुकम्मल आज़ादी (पुर्ण स्वाराज) की मांग की तो शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने कॉऊंसिल ऑफ़ स्टेट से इस्तीफ़ा दे दिया, अंग्रेज़ो ने उन्हे ये लालच भी दिया के वो अगर उनका साथ दें तो वोह उन्हे “सर” का ख़िताब देंगे, पर कोर्ट टाई पहनने वाला शख़्स अब खादी के कपड़े पहनता था, वो अब कहां बिकने वाला था, उन्होने ये कहते हुए साफ़ इंकार कर दिया के मेरे पास
‘सर’ से भी बड़ा लक़ब है और वो गांधी का भरोसा..। 1927 में शाह मोहम्मद ज़ुबैर साईमन कमीशन बिहार से भगाने वाले वास्तविक सूत्रधारो में से थे। 1928 में ब्हार युथ कान्फ़्रेंस मुंगेर शहर में हुआ, तो सारी ज़िम्मेदारी शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने अपने कांधे पर लिया और इस कान्फ़्रेंस को कामयाब बनाने में कोई क़सर नही छोड़ा, इसी कान्फ़्रेंस में उन्होने ख़ेताब करते हुए नौजवानो से एक और नेक राह पर चलने की अपील की।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के समर्थन में शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने 23 अप्रील 1930 को बड़हय्या में ख़ुद अपने हांथ से नमक बनाया, उनकी क़यादत में हज़ारो लोगों ने नमक तैयार कर के नमक क़नून तोड़ दिया। इसी बीच हसन इमाम की बेटी ‘मिस सामी’ के क़यादत मे मिस सी.जी.दास , मिस गौरी और बिहार की कई औरतों ने मिल कर 15 जुलाई 1930 को एक औरतों के एक आंदोलन का आग़ाज़ किया जिसके तहत औरतों को विदेशी सामान के बाईकॉट करने के लिए प्रेरित करना था। मुंगेर मे इस आंदोलन के कामयाब बनाने के लिए शाह मोहम्मद ज़ुबैर की पत्नी बी.बी.सदीक़ा भी कुद पड़ीं और एक जनता के सेवक के रुप मे उन्होने इस काम को और आगे बढ़ाया.
25 जुलाई 1930 को उन्होने मुंगेर मे एक बड़े जलसे को ख़िताब किया. इसके बाद उन्होने एक कमीटी तशकील की जिसके तहत विदेशी सीमान के बाईकाट करने के साथ साथ लोगो को स्वादेशी सामान ख़रीदने के लिए जागरुक किया जा सके। इधर शाह मोहम्मद ज़ुबैर की सेहत में बहुत ही गिरावट होने लगा, ये गिरावट 1923 में जेल से निकलने के बाद ही शुरु हो चुका था, पर मुल्क की आज़ादी की तड़प में ये मर्द ए मुजाहिद कहां चैन बैठने वाला था, इन्हे गोल मेज़ सम्मेलन में हिस्सा लेने इंगलैंड जाना पर उपर वाले को कुछ और ही मंज़ुर था, 12 सितम्बर 1930 को हिन्दुस्तान का ये बेटा मात्र 46 की उम्र में अपने मुल्क की आज़ादी का ख़्वाब अपने सीने में लिये इस दुनिया से रुख़सत हो गया,
पुरे मुंगेर में रंज ओ ग़म का माहौल था, पुरी अवाम उनके घर पर मौजुद थी, अगर वहां कोई नही था तो वोह उनका छोटा भाई ‘शाह मोहम्मद उमैर’.. वोह उस समय हिन्दुस्तान की आज़ादी की ख़ातिर हज़ारीबाग़ जेल में क़ैद थे, और इस बात का ज़िक्र वो अपनी किताब “तलाश ए मंज़िल” में ख़ुद करते हैं। श्रीकृष्ण सिंह भारत के बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री (1946–1961) थे। और उनके अनुसार उन्हे “श्रीकृष्ण सिंह” से “श्री बाबू” बनाने का योगदान सिर्फ़ एक आदमी को जाता है और वो हैं “शाह मोहम्मद ज़ुबैर” और इन्ही के छोटे भाई का नाम है शाह मोहम्मद उमैर… और इनके छोटे भाई का नाम था “शाह मोहम्मद ज़ोहैर” असल मे ये 4 भाई थे और चारो भाईयो ने ही हिन्दुस्तान की आज़ादी मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। आज शाह मुहम्मद ज़ुबैर की सियासी विरासत को उनके पोते Nationalist Congress Party – NCP सांसद Tariq Anwar (कटीहार) और Shah Imran (नाना) ने सम्भाल रखा है।
बिहार में किसान आंदोलन किसके नेतृत्व में प्रारंभ हुआ था
Bihar se bhartiye sanvidhan sabha ke sadasya kon the
1922-23 में बिहार के मुंगेर में किसके नेतृत्व में किसान सभा का गठन हुआ ?
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