राज्य निर्वाचन आयोग राजस्थान
? निर्वाचन आयोग की रचना लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 व 1951के प्रावधानों के अधीन होती है ।
➡73वें एवं 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के अधीन प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं एवं शहरी निकायों के चुनाव निष्पक्ष व समय पर करवाने हेतु प्रथक से राज्य चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है।
➡राज्य की पंचायतों के समस्त निर्वाचनों एवं नगरपालिकाओं के समस्त निर्वाचनों अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण भारत सरकार के संविधान अनुच्छेद 243-k और अनुच्छेद 246-ZA के द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग में निहित है।
➡ इसका प्रमुख राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है।
➡इसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है तथा उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित करने पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया जा सकता है।
➡भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243-K के अधीन राज्य निर्वाचन आयोग( SEC) का गठन जुलाई 1994 में किया गया।
➡ यह एक सदस्य आयोग है। आयोग में एक सचिव भी होता है। राज्य निर्वाचन आयोग एक सांविधिक निकाय है
➡राजस्थान में प्रथम चुनाव आयुक्त अमर सिंह राठौड़ थे जिन्होंने 1 जुलाई 1994 को अपना पदभार संभाला, द्वितीय श्री नेकराम भसीन, तीसरे निर्वाचन आयुक्त श्री इंद्रजीत खन्ना बनाए गए। चर्तुथ निर्वाचन आयुक्त श्री एके पांडे थे ।
➡इनका कार्यकाल कार्य ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो पहले हो) होता है ।
➡5 वें निर्वाचन आयुक्त श्री राम लुभाया है।
➡राज्य में नगर निकाय के चुनाव सर्वप्रथम 1964 में स्वायत्त शासन विभाग द्वारा कराए गए।
राज्य निर्वाचन आयोग संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य
73 वा संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा स्थापित संविधान का अनुच्छेद 243 K (243ट) यह व्यवस्था करता है कि
(1) पंचायतों के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा जिसमें 1 राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा जो राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा। इसका एक सचिव होता है जो राज्य का राज्य निर्वाचन अधिकारी होता है 243 ZA (243यक) – नगरपालिकाओं के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने उन सभी निर्वाचनों के संचालन, अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण अनुच्छेद 243K में निर्दिष्ट राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा।
राज्य निर्वाचन आयुक्त
राज्य में राज्य निर्वाचन आयोग को बहुत सदस्य न बना कर एक सदस्य बनाया गया है। राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष जो भी पहले हो राजस्थान में राज्यपाल ने 17 जून 1994 को आदेश जारी कर अमर सिंह राठौड़ को प्रथम राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जिन्होंने 1 जुलाई 1994 को पदभार संभाला। राज्य के प्रथम मुख्य निर्वाचन अधिकारी एवं सचिव बी बी मोहंती को बनाया गया। सचिव की नियुक्ति आयोग के कार्यों के अधीक्षण पर्यवेक्षण नियंत्रण में सहायता हेतु की गयी है। ।
वर्तमान में राजस्थान राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री रामलुभाया है, व मुख्य निर्वाचन अधिकारी गोविंद शर्मा है
राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग जिसे राजस्थान राज्य की सभी स्थानीय संस्थाओं के पंचायती राज एवं नगरीय संस्थाओं के निर्वाचनों के अधीक्षण निर्देशन एवं नियंत्रण की शक्तियां प्रदान की गई है किन्तु इन प्रयोजनों के लिए स्वयं के स्थाई सचिवालय के लिए कार्मिकों के विषय में संविधान द्वारा कोई व्यवस्था नहीं की गई है। राज्य निर्वाचन आयोग को अपने संवैधानिक दायित्व के लिए या उसके स्थाई सचिवालय द्वारा कार्य संचालन हेतु आवश्यक कार्मिकों की पूर्ति हो नियुक्ति की शक्ति भी नहीं दी गई है
1. राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत किया गया है
2. मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है
3. 15 अक्टूबर 1989 तक एक सदस्य निकाय था दिनांक 16 अक्टूबर 1989 को तीन सदस्य (दो अन्य निर्वाचन आयुक्त) बनाया गया। 1990 में वापस एक सदस्य बना दिया गया लेकिन 31 अक्टूबर 1993 तीन सदस्य बनाया गया इसके बाद से बहु सदस्यीय संस्था के तौर पर काम कर रहा है।
_Q.1- पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कौन सम्पन्न करवाता है ?
_?उत्तर- राज्य निर्वाचन आयोग
_Q.2- राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष को क्या कहते हैं ?
_?उत्तर- राज्य निर्वाचन आयुक्त
_Q.3- राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कौन करता हैं ?
_?उत्तर- राज्यपाल
_Q.4- राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल कितना होता है ?
_?उत्तर- 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो )
_Q.5- राज्य निर्वाचन आयुक्त को समय से पहले अपने पद से कौन हटा सकता है ?
_?उत्तर- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह की रीति व आधारो पर राष्ट्रपति द्वारा संसद में महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद
_Q.6- राजस्थान राज्य के प्रथम राज्य निर्वाचन आयुक्त कौन है ?
_?उत्तर- अमर सिंह राठौड़
प्रश्न 7 मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाम जन चौकीदारी का वाद क्या है समझाइए
उतर – जन चौकीदार जो एक सिविल समाज है यह नागरिक अधिकारों के लिए नागरिकों की जागरूकता के लिए कार्य करता है पटना उच्च न्यायालय के पास जन चौकीदार ने एक जनहित याचिका दायर की जिसमें राजनीति के अपराधीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए न्यायपालिका से अपेक्षा की गई इस याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के निर्हरता से संबंधी धाराओं विशेष रूप से धारा 62 का उल्लेख करते हुए यह कहा गया कि राजनीतिकों पर कितने भी अपराधिक मामले क्यों न रखे गए हो इन्हें न तो मतदान का अधिकार और न ही चुनाव लड़ने के अधिकार से अलग किया जा सकता है
इतना ही नहीं इनकी सदस्यता को समाप्त नहीं किया जा सकता पटना हाईकोर्ट ने ऐसे तरीकों से प्रभावित होते हुए अपना निर्णय सुनाया आज राजनीति में अपराधीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है और इस विषय पर गंभीरता पूर्ण कार्य करते हुए ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिसमें जेल जाने पर या किसी आपराधिक मामले में दागी होने पर तमाम प्रतिरोधक कार्रवाई की जा सके इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में यह प्रावधान किया कि यदि कोई व्यक्ति ला फुल कस्टडी में रखा जाता है तो ऐसे व्यक्ति को चुनाव में भागीदारी था या नामांकन करते समय मतदान करने के अधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए
यदि व्यक्ति संध या राज्य विधायिका का सदस्य है तो उसकी निर्हरता की प्रक्रिया प्रारंभ की जानी चाहिए
इसके बाद आगामी चुनाव को देखते हुए सरकार ने अगस्त 2013 में RPA से संबंधित विधेयक प्रस्तुत करते हुए तत्काल प्रभाव से पारित कर दिया सेक्शन 62 में एक और नई उप धारा शामिल करते हुए साफ साफ शब्दों में यह प्रावधान दिया गया ला फुल स्टडी में रखते हुए चुनाव लड़ने मतदान करने इत्यादि इत्यादि से संबंधित है कोई निर्हरता नहीं लागू होती और यह पुरानी परंपरा बनी रही जब जेल में रहते हुए लोग संसद और विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं
क्या होना चाहिए
राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को देखते हुए यह मामला अत्यधिक संवेदनशील है सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के द्वारा जो तर्क दिए गए हैं वह महत्वपूर्ण है परंतु पिछली यूपीए सरकार ने जल्दबाजी में जो संशोधन किया इसके पीछे उनके अपने भी तर्क हैं सरकार का यह मानना था कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की वजह से ऐसी प्रावधानों का दुरूपयोग भी हो सकता है जिसमें छोटे-मोटे आरोप पर भी किसी ईमानदार सभ्य राजनीतिक व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अलग किया जा सकता है अतः आवश्यकता इस बात की है कि ला कस्टडी में को पूर्णता से परिभाषित किया जाए यदि किसी निर्दोष व्यक्ति पर राजनीतिक द्वेष की वजह से कोई अभियोग लगाए जाते हैं तो पर्याप्त सुरक्षा के प्रावधान होने चाहिए अतः इसे विधायिका न्यायपालिका के बीच का मामला मनाते हुए दोनों का ही इस मुद्दे पर पुनर्विचार करते हुए अपेक्षित व्यवस्था दी जानी चाहिए
Q 08. राजस्थान राज्य के प्रथम व वर्तमान निर्वाचन आयुक्त कोन है ?
उत्तर- राजस्थान के प्रथम निर्वाचन आयुक्त अमर सिंह राठौड़ तथा वर्तमान प्रेम सिंह मेहरा है।
Q 09. राज्य निर्वाचन आयोग कोनसी निकाय है ?
उत्तर- राज्य निर्वाचन आयोग एक सांविधिक निकाय है।
Q10. राज्य निर्वाचन आयोग की व्यवस्था कब की गई ?
उत्तर- 73वें व 74वें संविधान संशोधन अधिनियम1992 के अधीन प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं एवं शहरी निकायों के चुनाव निष्पक्ष व समय पर करवाने हेतु पृथक से राज्य चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है। भारतीय संविधान के अनु. 243(ट) के अधीन राजस्थान राज्य आयोग (SEC) का गठन जुलाई,1994 में किया गया।
Q11.सेक (SEC)द्वारा पंचायती राज के कौन कौन से चुनाव करवाये गए ?
उत्तर- पंचायती राज के छठे व सातवे चुनाव क्रमशः 1995 व 2000 में सेक द्वारा करवाये गए। सेक द्वारा 8वे ,9वे व 10वे चुनाव क्रमशः 2005 , 2010 तथा 2015 में करवाये गए। तथा 2015 वाले चुनाव में योग्यताएं भी निर्धारित की गई ।
(1) अनिवार्य शौचालय
(2)शैक्षणिक योग्यता
Q12. राज्य निर्वाचन आयोग के बारे में बताइये ?
उत्तर- 73वे व 74वे संविधान संशोधन अधिनियम1992 के तहत राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना जुलाई 1994 में किया गया। यह एक सांविधिक निकाय है।यह राज्य में पंचायती राज व शहरी निकायों के चुनाव निष्पक्ष व समय पर करवाने हेतु राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया।
राज्य की पंचायतों के समस्त निर्वाचनो और नगरपालिकाओ के समस्त निर्वाचनो का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण भारत के संविधान के अनु. 243ट (243K) और अनु. 243 य क (243 ZA) के द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग में निहित है
इसका प्रमुख राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है। इसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। तथा इसे उच्च न्यायालय के न्यायधीश की तरह ही संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित करने पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
कार्यकाल – कार्यग्रहण की तिथि से 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) होता है।
गठन – यह एक सदस्यीय आयोग है । इसमे एक सचिव भी होता है।
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