हिन्दू विवाह विधि
विवाह क्या है : शादी या पाणिग्रहण हमारी संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र घटनाओं में से एक है। शादी का असली मतलब वेद में लिखा गया हैं। हिन्दू शास्त्रों में प्रमुख 16 संस्कारों में विवाह भी है।
यदि कोई मनुष्य संन्यास नहीं लेता है तो प्रत्येक व्यक्ति को विवाह करना जरूरी है। विवाह करने के बाद ही पितृऋण चुकाया जा सकता है। वि + वाह = विवाह अर्थात अत: इसका शाब्दिक अर्थ है- विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। विवाह को पाणिग्रहण कहा जाता है।
शादी या पाणिग्रहण हमारी संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र घटनाओं में से एक है. शादी का असली मतलब वेद में लिखा गया हैं . वेद के कर्मकाण्ड में विवाह के विभिन्न प्रकार, रस्मोंा-रिवाज का कैसे पालन करें, श्लोकों का पाठ कैसे करें और इन सभी का सही अर्थ क्या होता है ये लिखा गया हैं. आजकल के विवाह समारोहों में श्लोकों और मंत्रों को पंडित इन स्रोतों से पढ़ते हैं.
हिंदू विवाह सूर्या के साथ सोमा की शादी पर आधारित है और ऋग्वेद में ऋषि सूर्या द्वारा सुनाया गया है. यह एक कल्पना की शादी हो सकती है या सिद्ध पुरुष की खुद की शादी हो सकती हैं.
लगभग सभी साहित्यिक किताबों में जैसे की रामायण, महाभारत , पुराण, कालिदास आदि में ,देवी- देवताओं ,महान प्राणियों, राजा-रानी की शादी समारोहों का ज़िक्र बहुत सुंदर और विस्तार से लिखा गया हैं. यदि जीवन में पूजा -पाठ, वैदिक अनुष्ठानों और श्लोकों का सही रूप से पालन किया जाए तो हर विवाह सफल होगा और कभी भी पति- पत्नी का रिश्ता नहीं टूटेगा.
कोई भी हिंदू विवाह समारोह एक जैसा नहीं होता हैं. हर जगह और हर राज्य आदि में अलग-अलग तरह के विवाह होते है और उनके रीति -रिवाज़ भी अलग-अलग होते हैं. विवाह के अलग-अलग रूपों के पीछे अलग-अलग परंपराओं , स्थानीय परंपराओं, शादी करने वाले परिवारों के विचार के आधार पर किया जाता है. कुछ रीति- रिवाज़ एक जैसे होते है बस उन्हें करने का तरीका अलग होता हैं. भारतीय हिंदू शादी समारोह में कुछ रीति -रिवाज़ सभी करते है जो की इस तरह से हैं.
आग के सामने हवन करते हुए लड़का लड़की का हाथ अपने हाथ में रखता है पूजा के समय.
ये सबसे महत्वपूर्ण रस्म है. इसमें लड़का लड़की एक दूसरे से सात वचन कहते है और सात फेरे लेने के बाद वो पति और पत्नी माने जाते हैं .
इन सभी रीति -रिवाज़ो में विवाह मंत्रो का उपयोग किया जाता है- आइये हम आपको कुछ ऐसे मंत्रो के बारे में बताये जिनका उपयोग आप विवाह के दौरान कर सकते हैं.
इहेमाविन्द्र सं नुद चक्रवाकेव दम्पती .प्रजयौनौ स्वस्तकौ विस्वमायुर्व्यऽशनुताम् ॥ -----अर्थ ----हे भगवान इंद्र ! आप इस नवविवाहित जोड़े को इस तरह साथ लाये जैसे चक्रवका पक्षियों की जोड़ी रहती है, वे वैवाहिक जीवन का आनंद लें, और ये संतान की प्राप्ति के साथ - साथ एक पूर्ण जीवन जिए.
धर्मेच अर्थेच कामेच इमां नातिचरामि.धर्मेच अर्थेच कामेच इमं नातिचरामि॥-----अर्थ ----में अपने कर्तव्य में, अपने धन संबंधी मामलो में, अपनी जरूरतों में, मैं हर बात पर जीवन साथी से सलाह लूंगा .
गृभ्णामि ते सुप्रजास्त्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्यथासः.भगो अर्यमा सविता पुरन्धिर्मह्यांत्वादुःगार्हपत्याय देवाः ॥-----अर्थ ----मैं तुम्हारा हाथ पकडे रखूंगा ताकि हम योग्य बच्चों के माँ-बाप बन सके और हम कभी अलग न हो. मैं इंद्र, वरुण और सवितृ देवताओं से एक अच्छे ग्रहस्थ जीवन का आशीर्वाद मांगता हूं.
सखा सप्तपदा भव.सखायौ सप्तपदा बभूव.सख्यं ते गमेयम्. सख्यात् ते मायोषम्. सख्यान्मे मयोष्ठाः -----अर्थ ----तुम मेरे साथ सात कदम चल चुके हो, अब हम दोस्त बन गए हैं.
धैरहं पृथिवीत्वम् .रेतोऽहं रेतोभृत्त्वम् .मनोऽहमस्मि वाक्त्वम् .सामाहमस्मि ऋकृत्वम् .सा मां अनुव्रता भव .-----अर्थ ----मैं आकाश हूँ और तुम पृथ्वी हों . मैं ऊर्जा देता हूँ और तुम ऊर्जा लो. मैं मन हूँ और तुम शब्द हो. मैं संगीत हूँ और तुम गीत हो . तुम और मैं एक दूसरे का पालन करें.
चित्तिरा उपबर्हणं चक्षुरा अभ्यञ्जनम् .ध्यौर्भूमिः कोश आसीद्यदयात्सूर्या पतिम् ॥-----अर्थ ----इस मंत्र का मतलब है जब सोमा सूर्या को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेता हैं.
गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्थासः.भगो अर्यमा सविता पुरंधिर्मह्यं त्वादुर्गार्हपत्याय देवाः ॥-----अर्थ ----इस मंत्र में सोमा सूर्या को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करते हुए लम्बे जीवन की कामना करता हैं.
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