Govind Ballabh Pant Ka Jeevan Parichay गोविंद बल्लभ पंत का जीवन परिचय

गोविंद बल्लभ पंत का जीवन परिचय

Pradeep Chawla on 20-10-2018

प्रारम्भिक जीवन

इनका जन्म 10 सितम्बर 1887 को के श्यामली पर्वतीय क्षेत्र स्थित में महाराष्ट्रीय मूल के एक कऱ्हाड़े ब्राह्मण कुटुंब में हुआ। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके दादा बद्री दत्त जोशी ने की। 1905 में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये। म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित, साहित्य और राजनीति विषयों के अच्छे विद्यार्थियों में सबसे तेज थे। अध्ययन के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे। 1907 में बी0ए0 और 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से "लैम्सडेन अवार्ड" दिया गया।


1910 में उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शूरू कर दी। वकालत के सिलसिले में वे पहले गये फिर में जाकर प्रेम सभा नाम से एक संस्था का गठन किया जिसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करना था। इस संस्था का कार्य इतना व्यापक था कि ब्रिटिश स्कूलों ने काशीपुर से अपना बोरिया बिस्तर बाँधने में ही खैरियत समझी।

स्वतन्त्रता संघर्ष में

दिसम्बर 1921 में वे गान्धी जी के आह्वान पर के रास्ते खुली राजनीति में उतर आये।


9 अगस्त 1925 को करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। उस समय वे से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे। 1927 में व उनके तीन अन्य साथियों को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा किन्तु का समर्थन न मिल पाने से वे उस मिशन में कामयाब न हो सके। 1928 के के बहिष्कार और 1930 के में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में जेल की हवा भी खायी।

कार्यकाल

17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे में संयुक्त प्रान्त अथवा यू0पी0 के पहले मुख्य मन्त्री बने। इसके बाद दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वे 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त (यू0पी0) के मुख्य मन्त्री रहे। जब का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्व सम्मति से उपयुक्त पाया गया। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत के नवनामित राज्य के भी वे26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्य मन्त्री रहे।



गृह मंत्री कार्यकाल

सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उन्हें के प्रमुख का दायित्व दिया गया। भारत के रूप में पन्तजी का कार्यकाल:1955 से लेकर 1961 में उनकी मृत्यु होने तक रहा।

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