सरदार सरोवर बांध के फायदे और नुकसान
मध्य प्रदेश में कई गांव इस बांध की वजह से डूबे हुए हैं। निसारपुर कस्बे में शुक्रवार को सरदार सरोवर बांध के पास का जलस्तर 128.3 मीटर पहुंच गया। घरों में पानी घुसना शुरू हो गया है। कई लोग अपने घर छोड़कर जा रहे हैं तो कई अब भी टिके हुए हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर जाना-पहचाना नाम हैं, जो सालों से इसकी वजह से विस्थापित हुए लोगों की लड़ाई लड़ रही हैं। वह धार जिले के छोटा बरदा गांव में जल सत्याग्रह भी कर रही हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि सत्याग्रह के दौरान पानी कमर तक आ चुका है और किसी की मृत्यु पर जिम्मेदारी सरकार की होगी। मेधा पाटकर का कहना है कि बांध के लोकापर्ण का जश्न फर्जी साबित होने वाला है। गुजरात के किसानों को कम से कम और कॉरपोरेट को अनुबंधों के साथ ज्यादा पानी देने की तैयारी शुरू हो चुकी है। उन्होंने यह भी कहा, 'कृत्रिम डूब लाकर मप्र के लोगों को डुबोया जा रहा है। 17 सितम्बर को पीएम के जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध में पानी भरा जा रहा है, पीएम के जन्मदिन पर मप्र में मरणदिन न हो जाए। वर्तमान में पानी की आवश्यकता गुजरात से ज्यादा एमपी को है।'
जल सत्याग्रह के दौरान मेधा पाटकर
वहीं 14 सितंबर को डूब प्रभावित सैकड़ों विस्थापितों ने भोपाल के नीलम पार्क में गुरुवार को सिर मुंड़वा कर और प्रतीकात्मक शव रखकर सरकार का विरोध किया था। लोगों का आरोप है कि बांध के चलते बेघर हुए लोगों के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। विरोध प्रदर्शन कर रहे एक व्यक्ति ने बताया कि ये सरकार शव के समान है, जो किसी की बात नहीं सुनती। हम अपने अधिकार और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। यहां पर मेधा पाटकर मौजूद थीं। अगस्त महीने में मेधा पाटकर ने मध्य प्रदेश के धार जिले के चिकल्दा गांव में भूख हड़ताल भी की थी लेकिन 12 दिनों बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
Bhopal:Ppl shave heads&protst with symbolic body demnding rehabilitation of ppl displacd due to Sardar Sarovar Dam,Medha Patkar also present pic.twitter.com/oD4EccJpXM
— ANI (@ANI) September 14, 2017
बड़वानी और धार जिलों में जलस्तर बढ़ने से लोग अपने घर छोड़कर जा रहे हैं। जो लोग विस्थापित हुए हैं उन्हें सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं की गई है। हालांकि इंदौर के डिवीजनल कमिश्नर संजय दुबे दावा करते हैं कि लोग अपनी मर्जी से घर छोड़कर जा रहे हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि अब तक आजादी के बाद कितने लोग बांध परियोजनाओं की वजह से विस्थापित हुए हैं, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।
फोटो साभार- नर्मदा बचाओ आंदोलन के फेसबुक पेज से
संकट से सरकारें अनजान नहीं है
ऐसा नहीं है कि विस्थापन की समस्या से केंद्र या राज्य सरकारें अनजान हों। कई रिपोर्ट बताती हैं कि इसकी वजह से सैकड़ों लोग बेघर हुए। यहां तक कि बांध की ऊंचाई में बढ़ोत्तरी करने के लिए आंकड़ों की अनदेखी की गई और बांध की ऊंचाई बढ़ाई गई जिसकी वजह से नुकसान ज्यादा हुआ। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र ने राज्य सभा में 31 जुलाई को बताया था कि प्रोजेक्ट की वजह से 18,063 परिवार प्रभावित हुए हैं, जिनमें 6,724 परिवार अब भी बाढ़ प्रभावित इलाकों में रह रहे हैं। कहा गया कि प्रभावित परिवारों में 884 ऐसे परिवार हैं, जिनके पुनर्वास का काम चल रहा है। सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि प्रभावित परिवारों को नर्मदा वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल ऑर्डर और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हिसाब से ही पुनर्वास और राहत पैकेज उपलब्ध कराया गया है।
पर्यावरणविद सौम्या दत्ता ने आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन लोगों को मुआवजे के बांड भरने के लिए और गांव छोड़कर जाने के लिए बाध्य कर रहे हैं। उनका दावा है कि 40,000 ऐसे परिवार हैं, जो इससे प्रभावित हैं और जिनका पुनर्वास नहीं हुआ है या वे बुरी स्थिति में रह रहे हैं।
इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया था कि जिन 681 परिवारों को विस्थापित होने के बाद मुआवजा नहीं मिला है, उनमें से हर परिवार को 60 लाख रुपयों का मुआवजा दिया जाए।
56 साल पुराना है सरदार सरोवर बांध का इतिहास
असल में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने 15 अप्रैल, 1961 को गुजरात के नवगाम के पास सरदार सरोवर बांध की नींव डाली थी। वे बांधों को आधुनिक भारत के मंदिर कहा करते थे। मुंबई के इंजीनियर जमशेदजी वाच्छा ने इसका प्लान तैयार किया था लेकिन इसकी शुरुआत में ही 56 साल लग गए। इस बांध को बनाने की पहल 1945 में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने की थी इसीलिए उनके नाम पर इसका नाम रखा गया।
जवाहर लाल नेहरू
सरदार सरोवर बांध को लेकर 1985 में जबरदस्त विरोध हुआ था। कहा गया कि इसकी वजह से नजदीकी इलाकों में पानी भर गया है और लोगों का विस्थापन हो रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की अगुवाई में बांध का निर्माण रोकने की कोशिश हुई थी। दिसम्बर 1993 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि सरदार सरोवर परियोजना ने पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन नहीं किया है। भारी विरोध को देखते हुए परियोजना का काम रोक दिया गया। विश्व बैंक की रिपोर्ट में भी नियमों की अनदेखी की बात कही गई। अक्टूबर, 2000 में सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद दोबारा काम शुरू होने पर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध किया गया। यह विरोध अब तक जारी है।
सरदार सरोवर बांध दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। यूएस का ग्रांड कोली डेम दुनिया का सबसे बड़ा बांध है। नर्मदा नदी पर बने 30 बांधों में से यह एक है। इसकी ऊंचाई 138.63 मीटर है। इसे बनाने में 65,000 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस बांध में 30 गेट हैं। हर गेट 450 टन वजन का है। हर गेट को बंद करने में एक घंटे का समय लगता है। बांध की 4.73 मिलियन क्यूबिक पानी स्टोर करने की क्षमता है।
बांध से लाभ क्या है?
इस बांध का सबसे ज्यादा लाभ गुजरात को होने वाला है। इससे यहां के 15 जिलों के 3137 गांव के 18.45 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी। बिजली का सबसे अधिक 57 फीसदी हिस्सा मध्य प्रदेश को मिलेगा। महाराष्ट्र को 27 फीसदी और गुजरात को 16 फीसदी बिजली मिलेगी। राजस्थान को सिर्फ पानी मिलेगा। बांध बनाने में 86.20 लाख क्यूबिक मीटर कंक्रीट लगा है।
गुजरात के जिन इलाकों पर बाढ़ का ख़तरा रहता है, ये बांध उन्हें इससे भी बचाएगा। शूलपानेश्वर, जंगली गधा, काला मृग जैसे वन्य जीव अभ्यारण्यों को भी इससे लाभ होगा।
नुकसान क्या है?
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने 17 जून को बांध के 30 दरवाजे बंद किए थे। इसके बाद ये अभी तक बंद थे। विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि मध्य प्रदेश के अलीराजपुर, बड़वानी, धार, खारगोन जिलों के 192 गांवों, धर्मपुरी, महाराष्ट्र के 33 और गुजरात के 19 गांव इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे। देश के शहरी इलाकों को रोशन करने, पानी भरने के चक्कर में हजारों लोगों के घर में हमेशा के लिये अंधेरा छा जाएगा। विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि पीएम देश के लोगों के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं।
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