नल और दमयन्ती की कथा
नल और दमयन्ती की कथा (nal damyanti katha) : दोस्तों ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो आपको असल में प्रेम क्या होता है इसकी परिभाषा बताने के लिए काफी है, तो चलिए कहानी की शुरुआत करते है…
एक समय की बात है विदर्भ देश की भीष्मक नाम राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम था "दमयंती"। जो काफी सुन्दर थी। इसके अलावा दूसरी तरफ निषध के राजा वीरसेन के पुत्र "नल" भी काफी सुंदर थे। अब हुआ ये की विदर्भ की राजकुमारी दमयन्ती राजा नल के गुणों की प्रशंसा सुन उसके प्रति आकर्षित हो गई, और उधर राजा नल भी दमयन्ती के रूप सौंदर्य और गुणों पर मुग्ध हो मन ही मन उसे चाहने लगा था।
मतलब की दोनों ही एक-दूसरे की प्रशंसा सुनकर बिना देखे ही एक-दूसरे से प्रेम (nal damyanti book) करने लगे थे। अब जब दमयन्ती सयानी हुई तो राजा भीष्मक ने अपनी पुत्री को विवाह योग्य समझ राजा भीष्मक ने दमयन्ती के स्वयंवर का आयोजन किया। दमयंती के स्वयंवर का निमंत्रण पाकर दूर दूर के देशों के राजा महाराजा वहां पहुचने लगे।
राजा भीष्मक ने उनके स्वागत सत्कार की पूरी व्यवस्था कर रखी थी। राजा महाराजा तो क्या इंद्र और लोकपाल आदि देवता भी बिना निमंत्रण के ही उस आनिद्य सुंदरी के स्वयंवर में भाग लेने पहुंचे। दमयंती के स्वयंवर का आयोजन हुआ तो इन्द्र, वरुण, अग्नि तथा यम भी उसे प्राप्त करने के इच्छुक हो गए। वे चारों भी स्वयंवर में नल का ही रूप धारण आए।
लेकिन नल के समान रूप वाले 5 पुरुषों को देख दमयंती घबरा गई लेकिन उसके प्रेम में इतनी आस्था थी कि उसने देवाताओं से शक्ति मांगकर राजा नल को पहचान लिया और दोनों का विवाह हो गया।
इसके कुछ दिन बाद राजा नल गुणवान, धर्मात्मा और पराक्रमी थे। परंतु जुआं खेलने का एक दुर्गगुण भी उनमें था, और यह दुर्गगुण उनके दुख का कारण बन जाता है। जुएँ में राजा नल अपना सारा राजपाट हार गए। और फिर नल और दमयंती निराश होकर जंगल की ओर चल दिये। ऐसी विकट परिस्थिति में भी दमयन्ती ने अपने पति का अनुसरण कर पतिव्रता धर्म का पालन किया। जंगल जंगल भटकने और अनेक कष्टों कों भी वह प्रसन्नता से झेल रही थी।
लेकिन अपना राजपाट हारने के बाद राजा नल अकिंचन व असहाय था। उससे अपनी प्राण प्यारी दमयन्ती का दुख नहीं देखा जा रहा था। और दमयंती अपने पिता के यहां उन्हें छोडकर जाने को राजी न थी। दमयंती को कई बार नल द्वारा मनाया भी गया लेकिन वह नही मानी।
फिर एक दिन जब दमयन्ती सोयी हुई थी, उसे अकेला छोड़ नल चल दिए। जब दमयन्ती की नींद टूटी और जब उसने नल को अपने पास नहीं देखा तो भय और आशंका से वह कांप उठी। नल के वियोग में दमयन्ती अत्यंत दुखी अवस्था में इधर-उधर भटकने लगी।
कई दिनों तक दमयन्ती ने नल से बिछड़कर अनेक कष्ट भोगे, संकट सहें पर हार नहीं मानी और अपने प्रिय की खोज में लगी रही। अन्ततः उसे अपने निर्दिष्ट उद्देश्य में सफलता हासिल होती है, और वह अपने पति राजा नल को खोज लेती है। संकट का समय व प्रतिकूल परिस्थितियों का अंत होता है, और नल और दमयंती का पुनः मिलन होता है। नल फिर अपना पैतृक राज्य प्राप्त कर लेते है।
शिक्षा :
दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की प्रेम केवल धन से नही किया जाता है अगर प्रेम सच्चा हो तो वो उम्र भर वैसा ही रहता है चाहे कोई भी परिस्थिति क्यूँ ना जाए। इसलिए किसी से प्रेम करने के बारें में सोचो तो उसे जीवन भर साथ देने की सोचना जरूरी हो जाता है।
I need book having complete story of Raja Nal
Nal damyanti katha ki mool samvedna btaiye
NAK RAJA KE MATA KA NAAM
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