सफेद मूसली का पौधा
सफेद मूसली मूलतः गर्म तथा आर्द्र प्रदेश का पौधा है। पूरे भारत वर्ष में इसकी खेती की जाती है |
सफेद मूसली के खेत की तैयारी
सफेद मूसली 8-9 महीनें की फसल है जिसे मानसून में लगाकर फरवरी-मार्च में खोद लिया जाता है। अच्छी खेती के लिए यह आवश्यक हे कि खेतों की गर्मी में गहरी जुताई की जाय, अगर सम्भव हो तो हरी खाद के लिए ढ़ैचा, सनइ, ग्वारफली बो दें।
जब पौधो में फूल आने लगे तो काटकर खेत में डालकर मिला दें। गोबर की सड़ी खाद 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला दें। खेतों में बेड्स एक मीटर चैड़ा तथा एक फीट ऊँचा बनाकर 30 सेमी. की दूरी पर कतार बनाये, जिसमें 15 से.मी. की दूरी पर पौधे को लगाते हैं। बेड्स बनाने के पूर्व 300-350 किलो प्रति हेक्टिेयर की दर से नीम या करंज की खल्ली मिला दें।
बीज उपचार एवं रोपण
बुवाई के पहले बीज का उपचार रासायनिक एवं जैविक विधि से करते हैं । रासायनिक विधि में वेविस्टीन के 0.1 प्रतिशत घोल में ट्यूबर्स को उपचारित किया जाता है। जैविक विधि से गोमूत्र एवं पानी (1ः10) में 1 से 2 घंटे तक ट्यूबर्स को डुबोकर रखा जाता है। बुआई के लिये गड्ढे बना दिये जाते हैं। गड्ढे की गहराई उतनी होनी चाहिए जितनी बीजों की लम्बाई हो, बीजों का रोपण इन गड्ढों में कर हल्की मिट्टी डालकर भर दें ।
सफेद मुसली की सिंचाई एवं निकाई-गुड़ाई:
रोपाई के बाद ड्रिप द्वार सिंचाई करें। बुआई के 7 से 10 दिन के अन्दर यह उगना प्रारम्भ हो जाता हैं। उगने के 75 से 80 दिन तक अच्छी प्रकार बढ़ने के बाद सितम्बर के अंत में पत्ते पीले होकर सुखने लगते हैं तथा 100 दिन के उपरान्त पत्ते गिर जाते हैं। फिर जनवरी फरवरी में जड़ें उखाड़ी जाती हैं।
सफेद मुसली की किस्में
सफेद मुसली की कई किस्में देश में पायी जाती हैं। उत्पादन एवं गुणवत्ता की दृष्टि से एम डी बी 13 एवं एम डी बी 14 किस्म अच्छी है। इस किस्म का छिलका उतारना आसान होता है। बस किस्म में उपर से नीचे तक जड़ो या टयूबर्स की मोटाई एक समान होती है। एक साथ कई ट्यूबर्स (2-50) गुच्छे के रूप में पाये जाते हैं।
मूसली बरसात में लगायी जाती है। नियमित वर्षा से सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। अनियमित मानसून में 10-12 दिन में एक सिंचाई दें। अक्टूबर के बाद 20-21 दिनों पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। मूसली उखाडने के पूर्व तक खेती में नमी बनाए रखें।
जल भराव अथवा आवश्यकता से अधिक सिंचाई के कारण जड़ों के गलन का रोग हो सकता है । इसकी रोकथाम के लिए आगे सिंचाई देना बंद करके तथा रूके हुए पानी को बाहर निकाल करके इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। फंगस के रूप में पौधों पर ‘फ्यूजेरिम‘ का प्रकोप हो सकता हैं। जिसके उपचार हेतु टायकाडर्मा बिरडी का उपयोग किया जा सकता है। दीमक से सुरक्षा हेतु नीम की खली का उपयोग सर्वश्रेष्ठ पाया गया है। एक सुरक्षा के उपाय के रूप में कम से कम 15 दिन में एक बार फसल पर गौमूत्र के घोल का छिड़काव अवश्य कर दिया जाना चाहिए।
मूसली खोदने (हारवेस्टिंग)
मूसली को जमीन से खोदने का सर्वाधिक उपयुक्त समय नवम्बर के बाद का होता है। जब तक मूसली का छिलका कठोर न हो जाए तथा इसका सफेद रंग बदलकर गहरा भूरा न हो तब तक जमीन से नहीं निकालें। मूसली को उखाडने का समय फरवरी के अंत तक है।
खोदने के उपरांत इसे दो कार्यों हेतु प्रयुक्त किया जाता है:
1 बीज हेतु रखना य बेचना
2 इसे छीलकर सुखा कर बेचना
3 बीज के रूप में रखने के लिये खोदने के 1-2 दिन तक कंदो का छाया में रहने दें ताकि अतरिक्त नमी कम हो जाए फिर कवकरोधी दवा से उपचारित कर रेत के गड्ढों, कोल्ड एयर, कोल्ड चेम्बर में रखे।
4 सुखाकर बेचने के लिये फिंर्गस को अलग-अलग कर चाकू अथवा पीलर की सहायता से छिलका उतार कर धूप में 3-4 दिन रखा जाता है। अच्छी प्रकार सूख जाने पर बैग में पैक कर बाजार भेज देते है।
बीज या प्लान्टिंग मेटेरियल हेतु मूसली का संग्रहण
यदि मूसली का उपयोग प्लांटिगं मेटेरियल के रूप में करना हो तो इसे मार्च माह में ही खोदना चाहिए। इस समय मूसली को जमीन से खोदने के उपरान्त इसका कुछ भाग तो प्रक्रियाकृत (छीलकर सुखाना) कर लिया जाता है। जबकि कुछ भाग अगले सीजन मेंबीज (प्लांटिग मेंटेरियल) के रूप मेंप्रयुक्त करने हेतु अथवा बेचने हेतु रख लिया जाता है।
मूसली की खेती से उपज की प्राप्ति: यदि 4 क्विंटल बीज प्रति प्रति एकड़ प्रयुक्त किया जाए तो लगभग 20 से 24 क्विंटल के करीब गीली मूसली प्राप्त होगी। किसान का प्रति एकड़ औसतन 15-16 क्विंटल गीली जड़ के उत्पादन की अपेक्षा करनी चाहिए।
मूसली की श्रेणीकरण (बाजारीकरण)
“अ“ श्रेणी: यह देखने में लंबी. मोटी, कड़क तथा सफेद होती है। दातों से दबाने पर दातों पर यह चिपक जाती है। बाजार में प्रायः इसका भाव 1000-1500 रू. प्रति किलोग्राम तक मिल सकता है।
“स“श्रेणी: प्रायः इस श्रेणी की मूसली साइज में काफी छोटी तथा पतली एवं भूरे-काले रंग की होती हैं। बाजार में इस श्रेणी की मूसली की औसतन दर 200 से 300 रू. प्रति कि.ग्रा. तक होती है।
“ब“ श्रेणी: इस श्रेणी की मूसली “स“ श्रेणी की मूसली से कुछ अच्छी तथा “अ“ श्रेणी से हल्की होती है। प्रायः “स“ श्रेणी में से चुनी हुई अथवा “अ“ श्रेणी में से रिजेक्ट की हुई होती है बाजार में इसका भाव 700-800 रू. प्रति कि.ग्रा. तक (औसतन 500 रू. प्रति कि.ग्रा.) मिल सकता है।
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।