प्रतिभाशाली भारत पर निबंध
Pradeep Chawla on 12-10-2018
संदर्भ
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राज्यों के वन मंत्रालय और ज़िलों में वन विभाग ये सभी राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के कायदे और कानूनों के के तहत काम करते हैं। लेकिन यदि यह कहा जाए कि राष्ट्रीय वन नीति, 1988 उन धारणाओं पर आधारित है जो अस्तित्व में ही नहीं है तो फिर यह जानना कितना असहज होगा कि पिछले 28 वर्षों से हम जिस नीति का पालन करते आ रहे हैं वह विसंगतियों से भरी हुई है? लेकिन सच यही है।
राष्ट्रीय वन नीति की विसंगतियाँ
- दरअसल, राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में जिन बातों को आधार मानकर लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं, सच में वैसा कुछ अस्तित्व में ही नहीं है। राष्ट्रीय वन नीति,1988 के बुनियादी उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
→ ‘संरक्षण’ (preservation) द्वारा ‘पर्यावरण स्थिरता’ (environmental stability) को बनाए रखना।
→ देश में वनों की कमी के कारण गंभीर अवस्था में पहुँच चुके पारिस्थितिकी संतुलन (ecological balance) को बहाल करना।
- विदित हो कि इस प्रशंसनीय उद्देश्य का दुर्भाग्य यह है कि ‘पारिस्थितिकी संतुलन’ ऐसी कोई चीज़ है ही नहीं। जिसे आज हम पारिस्थितिकी संतुलन कह रहे हैं, उसका उल्लेख सर्वप्रथम प्राचीन ग्रीस में 'प्रकृति का संतुलन' के तौर पर हुआ है।
- हालाँकि, प्राकृतिक प्रणालियों के कामकाज की बेहतर समझ के साथ, पिछली शताब्दी की शुरुआत से इस अवधारणा को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया गया है और पारिस्थितिकी की पाठ्य पुस्तकों में इसका उल्लेख नहीं है।
- कुछ इसी तरह, 'पर्यावरण स्थिरता' की अवधारणा भी संदिग्ध है, क्योंकि यह स्पष्ट है कि प्राकृतिक प्रक्रियाएँ स्थिर नहीं होतीं, बल्कि उनमें हमेशा परिवर्तन होता रहता है।
- यह दिलचस्प है कि राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में 'वन' की अभी तक कोई आधिकारिक परिभाषा तय नहीं की गई है।
तय करनी होगी वनों की परिभाषा
- 1988 के राष्ट्रीय वन नीति के प्रशंसनीय लक्ष्यों को वैध शर्तों के साँचे में ढ़ालने के लिये सबसे पहले हमें 'वन' शब्द को परिभाषित करने की आवश्यकता है।
- परिभाषा तय कठिन काम नहीं है, क्योंकि वन पौधों का स्व-सींचित एवं स्व-पुनर्जीवित समुदाय है, जहाँ उन पौधों पर निर्भर जीवों का एक समुदाय और इन जीवों पर निर्भर जीवों का अन्य समुदाय एक साथ रहते हैं।
- यह परिभाषा तय करना इसलिये ज़रूरी है क्योंकि हमारे यहाँ जंगल लगाए जाते हैं और इस प्रक्रिया में बहुत बड़ी राशि खर्च की जाती है।
- हमें जंगल लगाना नहीं है, बल्कि व्यवधान रहित परिस्थितियों का निर्माण करना है जिससे कि वन स्वयं अपना आकार ले सकें।
- हरियाणा सरकार ने इस संबंध में महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है, जहाँ अब वन-रोपण के बजाय अतिक्रमण और वनों का दोहन कम करने पर ध्यान दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय वन नीति का वांछित स्वरुप
- वन परिभाषित करने के उपरांत राष्ट्रीय वन नीति 1988 का वैध ढाँचे में उद्देश्य कुछ यूँ होना चाहिये:
→ संरक्षण के माध्यम से एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण (natural environment) का रखरखाव सुनिश्चित करना।
→ देश के वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण गंभीर अवस्था में पहुँच चुके मूल प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र (original natural ecosystems) का पुनरुद्धार करना।
→ यहाँ यह जानना आवश्यक है कि मूल प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ है- ‘प्रकृति का वह स्वरूप जब वह मानवीय हस्तक्षेपों के दुष्प्रभाव से मुक्त थी’।
अन्य वांछित प्रयास
- वन नीति का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य देश के प्राकृतिक वन्यक्षेत्रों और विशाल प्राकृतिक वनों को बनाए रखने वाले फ्लोरा एवं फौना (वनस्पति एवं जीवों) का संरक्षण करना है। यह उद्देश्य निश्चित ही सराहनीय है, किन्तु इसमें कुछ एक चीज़ें और जोड़ी जानी चाहिये जैसे; घास के मैदान, झीलों, और अन्य पारिस्थितिक तंत्र का सरंक्षण आदि।
- जब भूमि पूरी तरह से वनस्पति रहित हो गई है, तो सबसे पहले वहाँ घास और झाड़ियाँ उगती हैं और फिर बाद में वहाँ पौधे और पेड़ उगते हैं। ऐसे में इन भूमियों पर सीधे पेड़ लगाने से मूल प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार नहीं किया जा सकता।
- अतः यह ज़रूरी है कि वनों की स्व-सींचित होने के गुण को न खत्म किया जाए और पहले घास तथा झाड़ियों को उगने का पर्याप्त समय दिया जाए।
कुछ सकारात्मक परिणाम
- भारत विभिन्न प्रकार के वनों के साथ दुनिया में अत्यधिक विविधता वाले देशों में से एक है। आधिकारिक तौर पर देश का 20 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वन क्षेत्र में है।
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988 का लक्ष्य भारत में वन क्षेत्र को कुल क्षेत्र के एक तिहाई तक लेकर आना है। 2015 में जारी भारत राज्य वन रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-2015 के बीच कुल वन क्षेत्र में 5081 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है, जिससे की 103 मिलियन टन कार्बन सिंक की बढ़त दर्ज़ की गई है।
निष्कर्ष
- यद्यपि मिज़ोरम में सबसे अधिक 93 प्रतिशत वन क्षेत्र है फिर भी कई उत्तर पूर्वी राज्यों में हरित आवरण में गिरावट दर्ज़ की गई है। वनों की सुरक्षा और विकास के लिये देश को अपनी नीतियों को लागू करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- भारत में जंगलों का संरक्षण वन संरक्षण अधिनियम (1980) के कार्यान्वयन और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना के माध्यम से किया जाता है। भारत सरकार ने 597 संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की है, जिनमें से 95 राष्ट्रीय उद्यान और 500 वन्यजीव अभयारण्य हैं।
- उपरोक्त क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5 प्रतिशत है। विभिन्न प्रकार के वन और जंगली झाड़ियाँ बाघ, हाथियों और शेरों सहित विभिन्न वन्य जीवों की मेजबानी करते हैं।
- बढ़ती जनसंख्या के कारण वन आधारित उद्योगों एवं कृषि के विस्तार के लिये किये जाने वाले अतिक्रमण की वज़ह से वन भूमि पर भारी दबाव है।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के निर्माण के लिये वन संरक्षण और विकास परियोजना के पथांतरण के बीच बढ़ता संघर्ष वन संसाधनों के प्रबंधन की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
- इन चुनौतियों को देखते हुए यह ज़रूरी है कि राष्ट्रीय वन नीति में वांछित बदलावों की पहचान की जाए और उन्हें अमल में लाया जाए।
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Comments
Deepak Nayak on 06-10-2023
Pratibhashali Bharat ke antargat project parikalpana
Najmeen Mansouri on 20-11-2019
Shalni ravat on 14-10-2019
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Vishva Ki Sabse Badi nadi on 12-10-2019
Vishva Ki Sabse Badi nadi
Kajal rathore on 10-10-2019
Pratibha ka Matlab budhi hota he
Kittu Gupta on 10-10-2019
Who is the First raksha mantri
Niranjan lodhi on 04-10-2019
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Tulika
on 06-10-2018
प्रतिभा क्या होती है प्रतिभा का अर्थ प्रतिभा का मतलब
Tulika
on 06-10-2018
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