व्यक्तिगत भिन्नता के कारण
वैयक्तिक भिन्नता का अर्थ- जब दो बालक विभिन्न समानताएँ रखते हुए भी आपस में भिन्न व्यवहार करते हैं तो इसे ‘‘वैयक्तिक भिन्नता’ कहा जाता है। वैयक्तिक भिन्नता से अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति में जैविक, मानसिक, सांस्कृतिक, संवेगात्मक अन्तर पाया जाना। इसी अन्तर के कारण एक व्यक्ति, दूसरे से भिन्न माना जाता है। अतः कोई भी दो व्यक्ति समान नहीं होते। यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चों में भी असमानता पाई जाती है। इस दृष्टि से वैयक्तिक भिन्नता प्रकृति द्वारा प्रदत्त स्वाभाविक गुण है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने वैयक्तिक भिन्नता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-
स्किनर के अनुसार- ‘‘व्यक्तिगत विभिन्नता में सम्पूर्ण व्यक्तित्व का कोई भी ऐसा पहलू सम्मिलित हो सकता है, जिसका माप किया जा सकता है।’’
टायलर के अनुसार- ‘‘शरीर के आकार और स्वरूप, शारीरिक गति सम्बन्धी क्षमताओं, बुद्धि, उपलब्धि, ज्ञान, रूचियों, अभिवृत्तियों और व्यक्तित्व के लक्षणों में माप की जा सकने वाली विभिन्नताओं की उपस्थिति सिद्ध की जा चुकी है।’’
यदि हम उपर्युक्त कथनों का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट होता है कि व्यक्तिगत भिन्नताओं के अन्तर्गत किसी एक विशेषता को आधार मानकर हम अन्तर स्थापित नहीं करते बल्कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व के आधार पर अन्तर करते हैं।
वैयक्तिक भिन्नता के प्रभावी कारक
वैयक्तिक भिन्नता का प्रभाव अधिगम प्रक्रिया तथा उसकी उपलब्धि पर पड़ता है। बुद्धि तथा व्यक्तित्व, वैयक्तिक भिन्नता के आधार हैं। इसके कारण सीखने की क्रिया प्रभावित होती है। वैयक्तिक विभिन्नताओं के अनेक कारण हैं, जिनमें से महत्वपूर्ण कारक निम्नांकित हैं-
वंशानुक्रम- वंशानुक्रम में वे सभी जीन्स सम्मिलित हैं, जो एक बालक को उसके माता-पिता से गर्भधारण के समय प्राप्त होते है। वंशानुक्रम एक प्रकार की वंशपरम्परागत शक्ति है जिसके द्वारा माता-पिता और पूर्वजों के गुण नवनिर्मित शिशु में स्थानान्तरित होते है। इसमें शारीरिक और मानसिक, दोनों प्रकार के गुणों का स्थानान्तरण होता है। मन भी वंशानुक्रम को व्यक्तिगत भिन्नताओं का कारण स्वीकार करते हुए लिखते है कि – ‘‘हम सबका जीवन एक ही प्रकार से आरम्भ होता है। फिर भी इसका क्या कारण है कि जैसे-जैसे हम बड़े होते है, हम लोगों में अन्तर होता जाता है। इसका एक यही उत्तर है कि हम सबका वंशानुक्रम भिन्न-भिन्न है।
2.वातावरण- वैयक्तिक भिन्नताओं का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है- वातावरण मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि व्यक्ति जिस प्रकार के सामाजिक वातावरण में निवास करता है, उसी के अनुरूप उसका व्यवहार, रहन-सहन, आचार-विचार आदि होते हैं। अतः विभिन्न सामाजिक वातावरणों में निवास करने वाले व्यक्तियों में भिन्नताओं का होना स्वाभाविक है। यही बात भौतिक और सांस्कृतिक वातावरणों के विषय में भी कही जा सकती है। वातावरण कारक का शारीरिक और मानसिक विकास, दोनों ही क्षेत्रों में प्रभाव है। उपयुक्त वातावरण के अभाव में शारीरिक व मानसिक योग्यताओं का सामान्य विकास सम्भव नहीं है। अतः कहा जा सकता है कि उपयुक्त वातावरण के अभाव में वंशानुक्रम द्वारा प्रदान की हुई विशेषताओं का सामान्य विकास सम्भव नहीं है।
जाति, प्रजाति व देश
एक देश में रहने वाली विभिन्न जातियों और प्रजातियों में अन्तर होता है। भारत में आर्य और द्रविणों में अन्तर स्पष्ट है। इसी प्रकार से हिन्दुओं के विभिन्न वर्गों में अन्तर स्पष्ट होता है। इन अन्तरों पर वंशानुक्रम एवं पर्यावरण के प्रभाव प्रमुख होते है। इसी प्रकार नीग्रो प्रजाति की अपेक्षा श्वेत प्रजाति अधिक बुद्धिमान और कार्यकुशल होती है। वैयक्तिक भिन्नताओं के कारण ही हमें विभिन्न देशों के व्यक्तियों को पहचानने में किसी प्रकार की कठिनाइयों नहीं होती है।
आयु व बुद्धि
वैयक्तिक भिन्नता का एक कारण आयु और बुद्धि भी है। आयु के साथ-साथ बालक का शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास होता है। इसीलिए विभिन्न आयु के बालकों में अन्तर मिलता है। बुद्धि जन्मजात गुण होने के कारण किसी को प्रतिभाशाली और किसी को मूढ़ बनाकर अन्तर की स्पष्ट रेखा खींच देती है।
शिक्षा और आर्थिक दशा-
शिक्षा व्यक्ति को शिष्ट गम्भीर विचार-शील बनाकर अशिक्षित व्यक्ति से उसे भिन्न कर देती है। निम्न आर्थिक दशा अर्थात् गरीबी को सभी तरह के पापों और दुर्गुणों का कारण माना जाता है। गरीबी के कारण ही लोग चोरी, हत्या जैसे, जघन्य अपराध को भी गलत नहीं मानते। परन्तु ये लोग उन व्यक्तियों से पूर्णतया भिन्न हैं, जो उत्तम आर्थिक दशा के कारण प्रत्येक कुकर्म को अक्षम्य अपराध समझते है।
लिंग भेद वैयक्तिक भिन्नता का एक महत्वपूर्ण कारक लिंगभेद भी है। इस भेद के कारण बालक और बालिकाओं की शारीरिक बनावट, संवेगात्मक विकास की कार्यक्षमता में अन्तर मिलता है। स्किनर का विचार है कि, ‘‘बालिकाओं में स्मृति योग्यता अधिक तथा बालकों में शारीरिक कार्य करने की क्षमता अधिक होती है। बालक गणित और विज्ञान में बालिकाओं से आगे होते है, जबकि बालिकायें भाषा और सुन्दर हस्तलेख में बालकों से आगे होती है। बालकों पर सुझाव का कम प्रभाव पड़ता है, पर बालिकाओं पर अधिक।
इस प्रकार वैयक्तिक भिन्नता के अनेक कारक है। पर जहाँ तक विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वालों छात्रों का प्रश्न है, उसकी भिन्नता के कुछ अन्य कारण प्रमुख है। इनका उल्लेख करते हुए गैरीसन व अन्य ने लिखा है- ‘‘ बालकों की भिन्नता के श्रेष्ठ कारणों में प्रेरणा, बुद्धि परिपक्वता, वातावरण सम्बन्धी उद्दीपन में विचलन है।’’
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