नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय तीन आयामी उद्देश्यों के साथ जल संसाधनों के प्रभावी उपयोग, समग्रता और स्थिरता के लिए काम करता है। केंद्र में नई एनडीए सरकार बनने के साथ ही जल संसाधन मंत्रालय को पुनर्गठित किया गया। जल संसाधन मंत्रालय में नदी विकास और गंगा संरक्षण को जोड़ दिया गया। अब इसका नाम जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय हो गया है। वर्ष 2014 के दौरान मंत्रालय का मुख्य जोर गंगा नदी के कायाकल्प, नदियों को आपस में जोड़ने और घाट विकास तथा उनके सौंदर्यीकरण के अलावा अन्य मुद्दों पर रहा।
गंगा नदी का संरक्षण
गंगा संरक्षण कार्य के संदर्भ में मंत्रालय ने 1.8.2014 को राजपत्र अधिसूचना जारी की। गंगा और उसकी सहायक नदियों को एक पहल के अंतर्गत रखा गया। गंगा संरक्षण की प्राथमिकता में इसकी पारिस्थिकी अखंडता को कायम रखते हुए ‘अविरल धारा’ और ‘निर्मल धारा’ को सुनिश्चित करना है। केंद्रीय बजट 2014-15 में गंगा कंजर्वेशन मिशन के तहत ‘नमामि गंगे’ की स्थापना करते हुए गंगा संरक्षण के लिए 2037 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। गंगा संरक्षण के लिए तीन योजना लघु अवधि, मध्यम अवधि, और एक लंबी अवधि की कार्य योजना तैयार की गई है। यह पहले से ही राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण(एनजीआरबीपी) द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं में शामिल है। वर्तमान में विश्व बैंक ने एनजीआरबीपी परियोजना के लिए 7000 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराई है जबकि वाराणसी में परियोजना के लिए जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन(जेआईसीए) ने 496.90 करोड़ रुपये का बजट मुहैया करा रखा है।
नेशनल गंगा मॉनिटरिंग सेंटर (एनजीएमसी) गंगा संरक्षण के महत्वपूर्ण पहलुओं की निगरानी के लिए एक नोडल केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है। इसका कार्य सूचना प्रौद्योगिकी और अन्य माध्यमों से गंगा के जल औऱ उसके प्रवाह के लिए इस नदी में विभिन्न स्थानों की पहचान करना है। इसके लिए केंद्र सूचना प्रोद्यौगिकी की मदद आदि लेता है।
सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के तहत नदी के किनारे बसे सभी गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने का प्रस्ताव रखा है।
गंगा संरक्षण के तहत निम्नलिखत कदम उठाए गए हैं:
राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण(एनजीआरबीपी) का विस्तार किया गया है जिसमें जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री को उपाध्यक्ष के तौर पर और गंगा के पूर्ण विकास से संबंधित अन्य मंत्रियों को शामिल किया गया है।
छह जून 2014 को सचिवों का समूह बनाया गया जिसके माध्यम से विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय में सुधार आया है। सचिवों के समूह ने 10 बैठकें की और उसने 28.08.2014. को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
प्रथम राष्ट्रीय वार्ता गंगा मंथन 7 जुलाई 2014 को आयोजित की गई जिसमें सभी मान्यताओं के 500 से अधिक आध्यात्मिक नेताओं, शिक्षाविदों और टेक्नोक्रेट, गैर सरकारी संगठनों एवं पर्यावरणविदों व नीति निर्माताओं ने विचार विमर्श में सक्रिय रूप से भाग लिया। विचार, सुझाव और लोगों को इसमें शामिल करने के उद्देश्य से 12 सितंबर 2014 को एनएमसीजी ने एक वेबसाइट शुरू की।
पर्यावरणीय प्रवाह पर अंतरिम सिफारिश के लिए (डब्ल्यू आर, आरडी एवं जीआर) के अपर सचिवों और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति गठित की गई है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने खनन पर मौजूदा दिशानिर्देशों को संशोधित करने के लिए एक समिति का गठन किया है।
फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफआरआई) से वनीकरण और वनस्पति के संरक्षण के लिए एक योजना तैयार करने को कहा गया है।
राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के सहयोग से गंगा के ऊपरी भागों में मौजूद औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए एक रणनीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के माध्यम से गंगा जल, पानी की गुणवत्ता की निगरानी और तलछट के विशेष गुण की पहचान के लिए एक परियोजना को शुरू किया गया है।
गंगा नदी में प्रदूषण कम करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों की सिफारिश करने के लिए तीन सदस्यीय एक तकनीकी समिति का गठन किया गया है जिसमें एनईईआरआई के निदेशक, सीपीसीबी के सचिव और आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे शामिल हैं।
नदियों को जोड़ने की योजना (आईएलआर)
नदियों को जोड़ने की योजना से अतिरिक्त रूप से लाभ यह होगा कि 3.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी। इस बढ़ोतरी से 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि सिंचाई की क्षमता बढ़कर 17.5 करोड़ हेक्टेयर हो जाएगी। साथ ही 34000 मेगावाट की बिजली उत्पादित होगी। इसके अलावा बाढ़ नियंत्रण, नौपरिवहन, मत्स्य पालन, पानी के खारेपन तथा जल प्रदूषण पर रोक लगेगी। नदियों को जोड़ने की योजना राष्ट्रीयमहत्व की एक योजना है। इसका उद्देश्य देश के हर हिस्से में पानी का बराबर बंटवारा है। साथ ही इससे बाढ़ औऱ सूखा प्रभावित क्षेत्रों को लाभ होगा। राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी(एनडब्लयूडीए) ने अपनी व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने के लिए 30 लिंकों, प्रायद्वीपीय घटक के अधीन 16 और तथा हिमालयाई घटक के अधीन 14 लिंकों की पहचान की है। इनमें से प्रायद्वीपीय घटक के 14 लिंकों को और हिमालयाई घटक के 02 लिंको (भारतीय हिस्से में) के बारे में व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार की गई है। सात अन्य लिंक के संबंध में सर्वेक्षण और जांच भी पूरी हो चुकी है और उनकी व्यवहार्यता रिपोर्ट के मसौदे का संकलन किया गया है।
वर्ष 2014 में नदी जोड़ने की पहली परियोजना केन-बेतवा को जोड़ने से शुरू किया गया। केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत केन नदी पर 221 किमी लिंक कैनाल के साथ एक बांध बनाया जाना है जिससे 6.35 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी औऱ 13.42 लाख लोगों को पीने का पानी मुहैया कराया जा सकेगा। इसके अलावा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में 78 मेगावाट की पन बिजली भी पैदा की जा सकेगी।
जन संसाधन मंत्री की अध्यक्षता में आईएलआर पर एक विशेष समिति का गठन किया गया है जो इसके कामकाज की निगरानी करेगी।
प्रौद्योगिकी उन्नयन
नवीनतम तकनीक के उपयोग से नदी के पानी के प्रबंधन तंत्र का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। विश्व बैंक की मदद से गंगा औऱ ब्रह्मपुत्र नदी के लिए एक तंत्र को विकसित करने को लेकर हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट-III शुरू किया गया है। साथ ही इसका उपयोग देश के दूसरे हिस्सों में भी किया जा सकेगा। इस परियोजना की लागत 3000 करोड़ है।
देश में 8.89 लाख वर्ग किलोमीटर के जलवाही क्षेत्र की मैपिंग के लिए एक महत्वाकांक्षी नेशनल एक्वीफायर मैपिंग एंड मैनेजमेंट प्रोग्राम(एनएक्यूयूआईएम) को शुरू किया गया है। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पांच राज्यों के छह इलाकों में एक्वीफायर मैपिंग को शुरू किया गया है। इनमें महाराष्ट्र (नागपुर का हिस्सा), राजस्थान (दौसा और जैसलमेर जिले का क्षेत्र), बिहार (पटना का हिस्सा), कर्नाटक (तुमकुर का हिस्सा) औऱ तमिलनाडु (कुड्डलुर जिला) शामिल है। इन इलाकों में सटीक और तेज एक्वीफायर मैपिंग के लिए उन्नत हेलीबर्न ट्रांजिट इलेक्ट्रोमैग्नेट सर्वे का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस संबंध में आंकड़ों को एकत्रित कर लिया गया है। विश्लेषण और वैज्ञानिक जांच के बाद इसे प्रस्तुत किया जाएगा। आंकड़ों में भूजल संसाधनों के लिए संभावित स्थान की पहचान सहित विभिन्न पन भूवैज्ञानिक इलाकों में जलवाही स्तर की मैपिंग में प्रौद्योगिकियों की प्रभावकारिता शामिल है। इस योजना पर 2051 करोड़ रुपये का खर्च आ रहा है जिसे इस मंत्रालय ने एक्वीफायर मैपिंग के लिए 16वीं योजना में रखा है।
विश्व बैंक से सहायता प्राप्त बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना(ड्रिप) संचालन में है। इस परियोजना के तहत बांधों की सुरक्षा के लिए सुनिश्चित करने के लिए उन्नत सामग्री और देश में विकसित सिमुलेशन तकनीक और दिशा निर्देशों को अमल में लाया जा रहा है
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य (डिजाइन एवं अनुसंधान) की अगुवाई वाली एक समिति बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (ड्रिप) की तिमाही के तौर पर समीक्षा करती है। विश्व बैंक खुद भी ड्रिप के प्रगति की छह महीने पर समीक्षा करता है। अभी तक इस संबंध में टेक्निकल समिति की नौ बैठकें हो चुकी हैं जबकि विश्व बैंक ने पांच बैठकें की हैं।
पुनर्वास और सुधार परियोजना (ड्रिप) का चार राज्यों मध्य प्रदेश, ओडिशा, केरल और तमिलनाडु में 223 बड़े बांधों के पुर्नवास का लक्ष्य है। परियोजना 18 अप्रैल 2014 से लागू है। बाद में कुछ राज्यों द्वारा परियोजनाओं को हटाने के चलते ड्रिप के तहत कुल बांधों की संख्या घटकर 190(केरल-28, मध्य प्रदेश-29, ओडिशा-26 और तमिलनाडु-107) हो गई है। चारों राज्यों में प्रत्येक के लिए राज्य परियोजना प्रबंधन ईकाई (एसपीएमयू) का गठन किया गया है। सीडब्ल्यूसी में केंद्रीय परियोजना प्रबंधन ईकाई(सीपीएमयू) का गठन किया गया है। सीडब्ल्यूसी ने परियोजना को लागू करने में सहयोग करने की मंशा से एक अंतरराष्ट्रीय इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट कंसल्टेंट की सेवा लेता है। इस कंसल्टेंट की चार उप ईकाइयां एसपीएमयू और सीपीएमयू के बीच समन्वय स्थापित करने का काम करती हैं।
जल संसाधन के क्षेत्र में बेहतर शोध, योजना, विकास औऱ प्रबंधन के लिए काफी आंकड़ों का संकलन किया है। इसके लिए वेब सिस्टम को भी शुरू किया गया है जिसे इंडिया-डब्ल्यूआरआईएस के नाम से जाना जाता है। यह 800 नए हाइड्रोलॉजिकल अवलोकन साइटों को जोड़ने और 120 जलाशयों के लिए प्रमुख जलाशयों की निगरानी का विस्तार होगा।
यमुना नदी की सफाई
यमुना नदी की सफाई को लेकर भारत सरकार ने जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जेआईसीए) की आर्थिक मदद से दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में यमुना एक्शन प्लांट (वाईएपी)-I तथा (वाईएपी)-II को अनुमोदित किया है। इसमें दिल्ली के लिए (वाईएपी)-III भी शामिल है। इसके तहत सीवरेज / नालियों के मोड़ पर अवरोधन को हटाने, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट(एसटीपी), किफायती सफाई/टॉयलेट के साथ ही इलेक्ट्रिक शवदाह गृह आदि का निर्माण शामिल है। इस पर 1514.42 करोड़ का खर्च आएगा। इसमें राज्यों की भी हिस्सेदारी होगी। (वाईएपी)-I, (वाईएपी)-II और (वाईएपी)-III की अनुमानित लागत 1656.00 करोड़े रुपये होगी।
भारत सरकार ने हरियाणा के सोनीपत औऱ पानीपत में यमुना प्रदूषण रोकने के लिए दो परियोजनाओं के लिए 217.87 करोड़ रुपये जारी किए हैं।
जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जेआईसीए) की मदद से बनाए जाने वाले दिल्ली में (वाईएपी)-III दिसंबर, 2018 तक पूरा हो जाएगा जबकि सीवर परियोजना जून, 2015 में पूरी हो जाएगी।
गंगा, यमुना और रामगंगा पर 120 विशेष टीमों ने काम शुरू किया
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की ओर से गठित विशेष टीमों ने अपनी रिपोर्ट सौंपनी शुरू कर दी है।118 जगहों पर गंगा, यमुना और रामगंगा नदियों के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन के लिए 120 विशेष टीमों का गठन किया गया है।
अध्ययन के लिए निर्धारित इन जगहों को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में चिन्हित किया गया है। इन विशेष टीमों से उन स्थानों पर सीवेज संयत्रों की स्थिति और नदियों पर किस तरह के संयंत्रों को स्थापित करने की जरूरत है इसकी रिपोर्ट देने को कहा गया है। इन दलों को दूषित जल को साफ करने के लिए कौन सी नवीनतम तकनीकों की जरूरत पड़ेगी और इसका किस तरह से आधुनिकरण किया जाये इसकी भी पड़ताल करने का निर्देश दिया गया है ताकि तेजी से परिणाम हासिल किया जा सके। पुराने और खराब हो चुके संयंत्रों को बदला जाएगा औऱ वहां नए संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। ये टीम इन नदियों में प्रदूषण को रोकने के लिए आवश्यक फौरी उपायों की सिफारिश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से करेंगी।
जल मंथन
जल संसाधनों का सर्वोत्कृष्ट उपयोग के मुद्दों पर जल मंथन नामक एक तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन 20 से 22 नवंबर, 2014 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की ओर से आयोजित इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में राज्य सिंचाई मंत्रियों, जल संसाधन सचिवों और अन्य लोग शामिल हुए तथा इस मुद्दे पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया। विचार विमर्श के केंद्रबिंदु मंत्रालय की नीतियों में बदलाव लाना था, ताकि ये जनता के लिए अधिक अनुकूल बनें और राज्यों की जरुरतों को पूरा कर सकें।
जल संसाधन मंत्रालय ने आधिकारिक फेसबुक पृष्ठ और ई-बुक को दोबारा शुरू किया
सोशल मीडिया तक अपनी पहुंच बनाने के लिए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने अपने आधिकारिक फेसबुक पृष्ठ और ई-बुक को दोबारा शुरू किया।
जल क्षेत्र से संबंधित मामलों के लिए सहायता प्रदान करने के मकसद से विशेषज्ञ सलाहकार समूह गठित
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय को सहायता प्रदान करने के लिए मुख्य सलाहकार के रूप में श्री बी एन नवालवाला, जल संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव, की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ सलाहकार समूह का गठन किया गया है।
विशेषज्ञ सलाहकार समूह में दो अन्य सलाहकार भी होंगे जिन्हें समय-समय पर नियुक्त किया जाएगा। मुख्य सलाहकार की सलाह पर दो अन्य सदस्यों को नियुक्त किया जाएगा। इस समूह में विशेष उद्देश्य और निर्धारित अवधि के लिए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की मंजूरी से किसी अन्य विशेषज्ञों को सम्मिलित किया जा सकता है।
Agar nadi nahi rahati toh ham jivit rah pate ?....
नदियों की सुरक्षा के लिए कोन कोन से काम हो रहे हैं
What is the meaning of ronty dispatch
Nadhiyo ki suraksha ke liya kinking se kary kiye ja rahe he
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nadiyo ki suraksha ke liye kaun kaun se karya ho rahe hain
The steps taken by government to save rivers
नदियों के ऊपर सरके अभियान के बारे में लिखे
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