Rajasthani Kahaavaton Ka Sanskritik Mahatva राजस्थानी कहावतों का सांस्कृतिक महत्व

राजस्थानी कहावतों का सांस्कृतिक महत्व

Pradeep Chawla on 12-05-2019

कहावतें अथवा लोकोक्तियां अत्यंत प्राचीन काल से ही संसार की लगभग सभी भाषाओं में मौजूद रही हैं इनका क्षेत्र भी काफी व्यापक है भारत के अन्य प्रान्तों की तरह राजस्थान में भी कहावतों का विपुल भंडार है राजस्थान शताब्दियों तक विभिन्न राजनीतिक इकाइयों में बंटा रहा, अतः स्थान एवं बोली-भेद के कारण इन कहावतों के स्वरुप में किंचित अंतर परिलक्षित होता है



नीम न मीठा होय , सींचों गुण घीव सों। ज्यारां पड्या स्वभाव जासी जीव सों। यह वो राजस्थानी कहावत है जो अनाम है, यह एक सूझ है जिसमें अनेकों का चातुर्य निहित है, जनता में प्रचलित छोटा-सा सारगर्भित वचन है, अनुभव है, जिसे हम कहावतों के नाम से जानते हैं। ये एक शब्द लम्बे छोटे-छोटे वाक्य अनंत काल तक जगमगाने वाले सितारे हैं। भाषा और साहित्य में सुन्दरता एवं सजीवता लाने के लिए कहावतों का प्रयोग युगों से होता आ रहा है। साहित्य को सलौना बनाना हो तो इन कहावतों का ही सहारा लेना पड़ता है। इन कहावतों की जननी मनुष्य जीवन की समस्याएँ है। एक पंड़ित जिस तरह अपनी बात का प्रभाव डालने के लिए वेद, गीता आदि का उदाहरण देता है उसी तरह साधारण व्यक्ति भी अपनी बात इन कहावतों से पक्की करता है। राजस्थानी कहावतें बड़ी अमूल्य है। जनजीवन के व्यवहार कुशलता की कुंजियाँ हैं। एक कसौटी है जो सच्चे खरे को पहचानती है। मानव मात्र का स्वभाव कुछ ऐसा होता है कि वो अपने सामने किसी को कुछ समझता ही नही। मानो ईश्वर ने पैदा होने से पहले उसे सूचित कर दिया हो कि इस संसार में मैंने तुमसे अधिक बुद्धिमान व्यक्ति नहीं भेजा है। ऐसे व्यक्ति को समझाने के लिए राजस्थान में कहा जाता है लूण कैवे मनै ई सीरे में डालो यानी नमक का कहना है कि मुझे भी हलवे में डालो। अनुचित बात की खिल्ली उड़ाने के लिए कहा जाता है कि राबड़ी कैवे मनै ई दांता सूं खावो अर्थात राबड़ी का कहना है कि मुझे भी दाँतों से खाओ। इस तरह ड़ींगें मारने वाले को उसकी कमज़ोरी दिखाकर निरुत्तर कर दिया जाता है। ग्रामीण लोग तो बात-बात में इन कहावतों का उपयोग करते हैं। स्वार्थी प्रेम के लिए उनके पास कहने को है कि खर्ची खूटी और यारी टूटी धन पास में नहीं है तो मित्रता भी नहीं। मैथिली शरण गुप्त ने कहा है, एक नहीं दो दो मात्रा, नर से भारी नारी। हमारे देश में प्राचीन काल से नारी का आदर किया जाता है। राजस्थानी कहावतों में नारी के लिए कहा गया है कि नारी नर री खान, नारी को तो एक ही चोखो, सूरी का बारह भी के कार रा पहली में नारी को नर रूपी रत्न की खान कहा गया है तो दूसरी में नारी की कुक्षी की प्रशंसा की गई है। जहाँ नारी में सभी गुण वहाँ अवगुण भी व्याप्त है- तेरा गमाया घर गया, ऐ कांदा खानी नार। अर्थात ऐ कांदे खाने वाली नारी तेरे उजाड़ने से ही घर उजड़ता है। किसान खून पसीना एक करके मेहनत करता है लेकिन उसकी कमाई उसके परिवार के लिए न हो कर बनिये के लिए होती है। करसौ रात कमावै, बणिया रा बेटा सारू। जाति विशेष पर कही गई कहावतें भी अपना खास स्थान रखती है। जाट जाति के लोग अपनी अक्खड़ता और हाजिर जवाबी के लिए प्रसिद्ध है। एक नट व्यक्ति पानी का घी बना कर भोले भाले लोगों को ठग रहा था। कह रहा था कि यह घी है जो सारी चीज़ों को स्वादिष्ट बना देता है। इस पर जाट तुरन्त बोला तम्बाकू बणाय ले तब ठगों ने खिसिया कर कहावत बनाई जाट बुद्धि नीं आवे। राजपूत जाति राजस्थान की शान है। इनके लिए कहा जाता है कि रण खेती रजपूत री। हर कहावत अपने में कोई न कोई घटना को लिए होती है जो जीवन में घटित हो कर अपना कोई संकेत छोड़ देती है। कहावत है कात्यौ पीत्यौ कपास इसके पीछे कहानी कुछ इस प्रकार है- कहते हैं कि एक किसान की स्त्री बड़ी कामचोर थी, वह खेत में जाकर काम नहीं करना चाहती थी। इसलिए काम से बचने के लिए नित नए बहाने बनाती। एक बार किसान के खेत की फसल सोना बनने आई, लेकिन किसान अकेला फसल काटने में असफल हो रहा था। उसने जब अपनी स्त्री को खेत में चलने को कहा तो उसने बहाना बना दिया कि मैं तो घर पर ही रह कर कपास कातूँगी तुम अनाज का इंतज़ाम करो। बेचारा किसान अकेला ही फसल काटने में जुट गया। बहुत दिनों के बाद जब किसान ने कटी हुई फसल का हिसाब माँगा तो उसकी स्त्री घबरा गई क्यों कि उसने कपास तो काता ही नहीं था। परेशान हो कर उसने अपने पड़ौसी से मदद माँगी। पड़ौसी उसी रात एक खाली पीपा और लाठी ले कर खेत में पहुँच गया। खेत पर जाकर ज़ोर-ज़ोर से पीपा बजाने लगा और लाठी को रेत पर पटकने लगा यह सब देख कर किसान घबरा गया उसने जब पूछा कि तुम कौन हो तो पड़ौसी बोला -- गड़गड़ ठया मेघमाला, कठै गया खेतां रा रखवाला, का मारू लुगाई का किसान का करू कात्यौ पीत्यौ कपास। यानी मैं गर्जन करने वाला मेघ हूँ ,खलियान का रखवाला कहाँ है, मैं या तो उसको मारूँगा या उसकी स्त्री को या फिर स्त्री द्वारा काते हुए कपास को फिर से सूत बना दूँगा। किसान घबरा कर बोला आप हमें न मारे चाहे तो काते हुए कपास को सूत बना दें। उसी दिन से काम बिगड़ जाने पर कहा जाता है कि काता पीता कपास हो गया। राजस्थान में रहने वाली हर जाति के स्वभाव को इंगित करती एक कहावत देखिए- राजपूत रो घोड़े में, बांणिये रो रौड़े में, जाट रो लपौड़े में धन जावै। अर्थात राजपूत का धन घोड़े ख़रीदने में, बनिये का धन झगड़े में और जाट का धन खाने में समाप्त होता है। अंधविश्वास तो राजस्थान के कण-कण में भरा पड़ा है। हर शकुन-अपशकुन के लिए यहाँ हज़ारों कहावतें भरी पड़ी हैं- खर डावा विस जीवणा यानी गधा बायीं ओर एवं साँप आदि विषधारी जीव दायीं ओर यात्रा के समय रास्ते में आ जाए तो अच्छा होता है। मौसम का संकेत देने वाली कहावतें की तो जैसे भरमार है-- अक्खा रोहण बायरी, राखी सरबन न होय, पो ही मूल नहोय तो, म्ही डूलंती जोय।। अक्षय तृतीया पर रोहिणी नक्षत्र न हो, रक्षाबंधन पर सावन नक्षत्र न हो और पोष की पूर्णिमा पर मूल नक्षत्र न हो तो संसार में विप्पत्ति आती है। इसी तरह कहा गया है कि अगस्त उगा, मेह पूगा यानी अगस्त्य का तारा उदय होने पर वर्षा का अंत समझना चाहिए। कहना ठीक होगा कि ये कहावतें न केवल मानव जगत को सीख देती है बल्कि नीति शास्त्र की तरह जीवन के समस्त कार्य कलापों पर आधारित है। यह मानव जीवन में व्यवहार की सत्यता को प्रकट करती है। इस दृष्टि से राजस्थानी भाषा बड़ी भाग्यशाली है जिसका भंड़ार कहावतों से समृद्ध है। या यों कह लिजिए ये धरती कहावतों से भरी पड़ी है जिधर खोदिए कहावतों रूपी सोना निकल पड़ेगा। अंत में नीति सम्बन्धी एक कहावत देखिए-- पाणी में पाखणा, भीजे पण छीजे नहीं। मूरख आगे ज्ञान, रीझै पण बूझै नहीं।।

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Comments Rachna on 30-04-2024

किसी भी भाषा की 10 लोकोत्तियों का संस्कृतिक महत्व

Rahul Rajput on 11-12-2023

Kisi bhi Bhasha ki kam se kam 10 kamton ki Suchi taiyar Karen aur unke sanskritik mahatva ki vyakhya Karen

Preeti on 13-02-2023

Kisi bi bhasa ki 10khavto ki shuchi teyar kre or unki sanskritik vyakhya krte hue unsa mhtv btaiy

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Nisha sahu on 19-12-2022

10 muhaware tatha unka sanskritik mahatv btaye please

Monika on 20-06-2022

Kahavate or saskartik mahtav

Anju on 27-05-2022

10 कहावत और उनका वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक महत्व

Vinita on 03-05-2022

Hindi 10 kahavat aur unka sanskatik mshatav

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Kalpana dhaked on 26-04-2022

10 kahavaten aur unka vartman paripeksh mein sanskritik mahatva Arth paribhasha aur vakyon mein prayog Karen

Urmila on 16-02-2022

Sanskratik mahatva ki 10 khavato ka arth batao

Ankita agrawal on 23-01-2022

10 khavato ki suchi tyair kre aur unka sanskritik mahatav likhe

Ankush meena on 18-01-2022

Muhawro ka sanskrtik sndarbh me mhatva?

Ran Singh on 05-01-2022

राजस्थानी भाषा की कम से कम 10 कहावतों की सूची बनाएं और उनका सांस्कृतिक महत्व की व्याखा किजिए

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20 कहावते on 21-09-2021

राजस्थान कहावते

Manu on 19-08-2021

राजस्थानी भाषा की कम से कम १० कहावतों की सूची बनाइए और उनके सांस्कृतिक महत्व की व्याख्या कीजिए।

Kahawte k parkar on 15-07-2021

Kahawte k parkar aur Hindi sahitya me mahtwa

Jyoti gawaria on 30-06-2021

राजस्थानी भाषा की कम से कम १० कहावतों की एक सूची तैयार करें और उनके सांस्कृतिक महत्व की व्याख्या करें

Sunita dabi on 04-06-2020

किसी भी भाषा के कम से कम 10 कहावत की सूची तैयार करें और उनके सांस्कृतिक व्याख्या करें महत्व 50%

Seema on 28-02-2020

Neem n mitha hoy cinccho gun geev so jyara padya jasi jeev so

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Kahawat ka sanskratik mahatv on 07-01-2020

Kahawato ka sanskritik mahatv

Mahesh on 02-12-2019

Hindi khawton ka sanskritik mahatv


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