Krishi Ke Shetra Me Vigyaan Ka Yogdan कृषि के क्षेत्र में विज्ञान का योगदान

कृषि के क्षेत्र में विज्ञान का योगदान

Pradeep Chawla on 10-09-2018



देश में गन्ने पर आधारित चीनी उद्योग काफी विकसित दशा में है 1989-90 में 100 लाख टन से अधिक चीनी का उत्पादन करके भारत चीनी उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है। गन्ने की वैज्ञानिक खेती की सफलता से न केवल चीनी उद्योग बल्कि गुड़ व खांडसारी उद्योग का तेजी से विकास हुआ है। इस उद्योग में लगभग 300 टन गुड़ तथा खांडसारी का उत्पादन होता है। इस उद्योग में लगभग 31 लाख लोगों को मौसमी रोजगार मिला हुआ है।

विज्ञान ही सम्भवतया मानव जाति का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है और कृषि कार्य प्राकृतिक पद्धतियों के खिलाफ मानव की महान चुनौती। विज्ञान ने मनुष्य को इस चुनौती का हल खोजने की शक्ति एवं सामर्थ्य दे दी है। विज्ञान के जरिए भारतीय कृषि के परम्परागत और भाग्यवादी स्वरूप के स्थान पर नया व्यावसायिक और औद्योगिक स्वरूप विकसित करने में काफी हद तक सफलता मिली है। कृषि प्रधान भारत ने दुनिया के प्रथम दस औद्योगिक देशों में स्थान बना लिया है।

उद्योगीकरण


कहना न होगा कि कृषि और उद्योग एक दूसरे के लिये सर्वोत्तम योगदान कर सकते हैं। विकास प्रक्रिया में यह आवश्यक है कि कृषि-क्षेत्र बड़ी मात्रा में उद्योगों के लिये संसाधनों की आपूर्ति करे। अनेक विकसित देशों का अनुभव बताता है कि समृद्धि ने अधिक सीमा तक औद्योगीकरण मार्ग को सरल व तीव्रगामी बनाया है। अधिकांश विकास समस्याओं का रहस्य कृषि तथा उद्योग में उचित संतुलन बनाए रखने में छिपा हुआ है। कृषि के औद्योगिकीरण से कृषि के अस्थिर लाभों पर देश की अत्यधिक निर्भरता में कमी आती है, राष्ट्रीय जीवन के लिए प्रेरणा मिलती है तथा राष्ट्रीय आचरण का विकास होता है।

उत्पादन वृद्धि


वास्तव में उद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महत्त्वपूर्ण उत्पादन व्यवस्था में क्रमिक परिवर्तन होते रहते हैं। यह उन आधारभूत परिवर्तनों को शामिल करता है जिनसे कृषि संगठन के यंत्रीकरण, नए उद्योग के निर्माण, नए बाजार के उत्पन्न होने और नए क्षेत्र के उद्योगीकरण ने उच्च उत्पादन क्षमता उत्पन्न की है।

उद्योगीकरण कृषि परिवहन और संचार के विकास में भी सहायक हो रहा है। देशी-विदेशी व्यापार का विकास बहुत हद तक उद्योगीकरण पर निर्भर है।

जब तक हमारे वैज्ञानिक कृषि को औद्योगिक स्वरूप नहीं दे पाए थे देश में प्रतिवर्ष औसतन 60 लाख टन खाद्यान्नों का आयात होता था। परन्तु आज भारत न केवल 88 करोड़ जनसंख्या के लिये खाद्यान्न आपूर्ति में आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है बल्कि खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य कृषिगत उत्पादों का निर्यात करके बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर रहा है।

विज्ञान की जैव प्रौद्योगिकी शाखा से फसलों की किस्मों व उनकी उत्पादन क्षमता में उत्साहवर्धक सुधार हुए हैं। फसलों को रोगरोधी और कीटरोधी बनाने तथा अनुवांशिक रोगों से छुटकारा दिलाने में नित नूतन सफलताएँ हासिल की गयी हैं।

ज्यों-ज्यों विज्ञान पर आधारित कृषि औद्योगिक स्वरूप ग्रहण कर रही है त्यों-त्यों कृषि उत्पादन में वृद्धि का दौर चल रहा है। खाद्यान्नों व कपास की पैदावार 1950-51 की तुलना में 1992-93 में 2.5 से 3 गुनी तक बढ़ चुकी है। सकल सिंचित क्षेत्रफल जो 1950-51 में 2.26 करोड़ हेक्टेयर था, 1993-94 में 7.95 करोड़ हेक्टेयर हो गया। इसी आधार पर रासायनिक उर्वरकों का उपयोग जो 1950-51 में 66 हजार टन था वह 1993-94 में 147 लाख टन तक पहुँच गया।

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