कार्प की सूखी bundh प्रजनन
जल-कृषि के लिए उन्नत गुणवत्ता एवं सही प्रजातियों के मत्स्य बीज की उपलब्धता मछली पलान की सफलता की मुख्य कुंजी माना जाता है |
विश्व में प्रेरित प्रजनन का सर्वप्रथम सफल प्रयोग वर्ष 1934 ई0 में ब्राजील में किया गया | भारत में 10 जुलाई 1957 ई0 को डॉ. हीरालाल चौधरी एवं उनके सहयोगियों द्वारा उड़ीसा के अंगुल फार्म, जो केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्सियकी अनुसंधान (C.I.F.R.I) बैरकपुर का अंग है, में सर्वप्रथम कार्प मछलियों का प्रेरित प्रजनन सफलतापूर्वक कराया गया | इसलिए हर वर्ष 10 जुलाई को पुरे देश में मछुआरा दिवस मनाया जाता है | इसी सफलता के कारण आज देश बीज उत्पादन में इतना अग्रसर हुआ है |
विदित है कि भारतीय मेजर कार्प (यथा-रोहू, कतला, मृगल, कालबोस) तथा विदेशी कार्प मछलियाँ यथा ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प, एवं कॉमन कार्प में सिर्फ कॉमन कार्प मछली को छोड़ कर अन्य सभी मछलियाँ ठहरे हुए (स्थिर) पानी में अर्थात तालाब में प्रजनन नही कर पाती है | ये मछलियाँ बहते हुए पानी समान्यतया अपने प्राकृतिक आवास नादिय प्रवाह में ही मानसून के दौरान प्रजनन करती है | मत्स्य पालन की सफलता विशेषत: उन्नत किस्म के मत्स्य बीजों की प्राप्ति पर निर्भर करती है | प्राकृतिक जलीय ससाधनों अर्थात नदी से मत्स्य बीजों का एकत्रीकरण दशकों पुरानी पद्धति है | इस पुरानी पद्धति में सबसे बड़ी समस्या यह है कि व्यवसायिक तौर पर महत्वपूर्ण कार्प बीजों के साथ नदी में रहने वाली अन्य प्रकार के अवांछनीत मछलियों के बीजों का मिश्रण हो जाता है | उन्हें पहचनना और छांटना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं हो पता है | प्राकृतिक जलक्षेत्रों से कार्प मछलियों के प्रजनन स्थल या अंडजनन क्षेत्रों का पता लगाना एवं एकत्रित मत्स्य जीरों का परिवहन भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि परिवहन के दौरान इन बीजों के मृत्यु दर बहुत अधिक हो जाता है | इन समस्याओं के अतिरिक्त बीजों की उपलब्धता भी मानसून पर आधारित होती है इसलिये प्राकृतिक जल श्रोत्रों से एकत्रित कार्प मछलियों के बीजों से आवशयक मांग की आपूर्ति संभव नहीं है |
शुद्ध एवं उन्नत मत्स्य बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु नियंत्रित वातावरण में भारतीय मेजर कार्प एवं विदेशी कार्प (सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प ) मछलियों के प्रेरित प्रजनन का वैज्ञानिक विधि अपनायी गयी | प्रेरित प्रजनन में परिपक्व कार्प मछलियों के प्राकृतिक हार्मोन (पियूष ग्रंथि का सार) अथवा अन्य सिंथेटिक हार्मोन (यथा ओवाप्रिम, ओवाटाइड आदि) देकर प्रजनन के लिए प्रेरित किया जाता है परिपक्व नर एवं मादा मछलियों को प्रजनक (ब्रूडर) कहते हैं | मादा प्रजनक समान्यत: 1 लाख से 2.5 लाख अंडा प्रति कि.ग्रा. अपने शरीर के वजन के अनुपात में देती है |
निषेचित अंडों के स्फुटन से स्पान (हैचलिंग) प्राप्त होता है | जिसे आम भाषा में जीरा कहते हैं | सामान्यत: 1 से 2 दिन के अंदर अंडा से स्पान बाहर आ जाता है | अंडा से स्पान बाहर आने की क्रिया को स्फुटन कहते हैं एवं जहां अंडा का स्फुटन कराया जाता है उसे हैचरी कहते हैं |
छोटे पैमाने पर प्रेरित प्रजनन साठ के दशक से ही हापा विधि द्वारा कराया जाता रहा है | शुद्ध मत्स्य बीज की मांग बढ़ने के कारण पहले बंध प्रजनन (बंगला बांध तकनीक) पर बाद में मत्स्य प्रजनन या मत्स्य स्पान उत्पादन कार्य मुख्यत: सर्कुलर हैचरी में ही किया जा रहा है | परन्तु छोटे मत्स्य पलाक, जिनके पास दो वर्ष या अधिक आयु के प्रजनक मछलियाँ हैं, वे छोटे लागत में बहुत आसानी से 20-25 लाख मत्स्य स्पान हापा तकनीक से पैदा कर सकते हैं | एक सरकुलर हैचरी की स्थापना में कम से कम 4 एकड़ जमीन/तालाब की आवश्यकता पड़ती है और इसकी स्थापना का लागत व्यय भी उत्पादन क्षमता पर निर्भर करती है |
मत्स्य प्रजनन एक विशेष तकनीक युक्त कार्य है | इसे प्रारंभ करने के पूर्व किसी हैचरी पर जा कर वहां की कार्य प्रणाली का अध्ययन करना तथा अलग से इसे विषय में विशेषज्ञता हासिल करना आवश्यक है |
एक सफल हैचरी के लिए निम्नलिखित स्थिति का होना आवश्यक है : -
झारखण्ड राज्य में मत्स्य विभाग के राँची, गुमला, देवघर, हजारीबाग के मत्स्य हैचरी प्रक्षेत्र एवं निजी क्षेत्र के राँची, कुडू (लोहरदगा), पशु चिकित्सा महाविधालय, कांके, राँची एवं विष्णुगढ़ (हजारीबाग) पर बरसात के मौसम मनी जा कर हैचरी संचालन एवं मत्स्य प्रजनन की व्यवहारिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है |
इस तकनीक को हाइपोफ़ाइजेशन भी कहा जाता है और अब यही एक तकनीक है जिसे द्वारा बड़ी मात्रा में भारतीय कार्प मछलियों के बीज उत्पादन किये जा सकते है | इस तकनीक के अंतर्गत पियूष ग्रंथियों का एकत्रीकरण व संरक्षण, परिपक्व प्रजनकों का चयन, सुई लगाने के लिए सही मात्रा का निर्धारण, पियूष गरंथियों के सात की तैयारी, अंडों का इक्कट्ठा करना, इनका प्रस्फुटन, प्रजनकों का रख-रखाव आदि पहलुएं हैं | प्ररित प्रजनन में तापमान व जलवायु का विशेष महत्त्व होता है | पूर्ण रूप से परिपक्व माडा मछलियों में कतला लगभग 1 से 1.5 लाख अंडा/कि.ग्रा. शारीरिक भार देती है | रोहू एवं मृगल मादा मछलियों में अंडा जनन क्षमता 2-3 लाख / कि.ग्रा. शारीरिक भार की हो सकती है |
प्रेरित प्रजनन में उपयुक्त प्रजनकों का चयन एवं सुई लगाने की मात्रा की सही निर्धारण ही सफलता की कुंजी है | ड्रेग नेट की सहायता से प्रजनक मछलियों को निकाल कर स्वस्थ एवं पूर्ण रूप से परिपक्व मछलियों का चयन किया जाता है | नर मछलियों के अंस पंख का प्रष्ठ भाग खुरदरा तथा मादा मछलियों में मुलायम होता है | परिपक्व नर मछलियों का चयन किया जाता है | नर मछलियों में मुलायम होता है | परिपक्व नर मछलियों के उदर पल हल्का सा दबाव डालने पर गुदाद्वार से सफेद रंग का द्रव्य निकलता है जिसको मिल्ट कहते हैं जिसमें शुक्राणु होता है | जबकि मादा मछलियों के उदर पर उभरा हुआ गोल, मुलायम तथा इनका गुदाद्वार फुला हुआ रहता है | प्रजनन कराने के पूर्व इनके अंडे कैथीटर की सहायता से निकाल कर देख लेना बेहतर होगा | प्रजनकों में सिल्वर कार्प के गोल व हल्के नील रंग के अंडे तथा ग्रास कार्प में संतरे या लाल रंग के अंडे होते हैं | चयनित प्रजनकों को अलग-अलग तौल लिया जाना चाहिए |
पियूष ग्रंथि सार की मात्रा का निर्धारण चयनित प्रजनकों की लैंगिक परिपक्व तथा जलीय तापमान व वर्षा जैसी पर्यावरणीय आवश्यताओं पर निर्भर करता है | झारखण्ड में मछलियों कर प्रेरित प्रजनन मानसून में अर्थात 15 जून से 5 सितम्बर तक किया जाता है | पूर्ण रूप से परिपक्व मछलियाँ वर्षा के दिन एक ही डोज से प्रजनन कर जाती हैं जबकि गर्म या बादल छाये हुए रहने पर दो डोज की आवश्यकता पड़ती है | मादा मछलियों को पियूष ग्रंथियों के सार के डोज की आवश्यकता होती है और नर मछलियों को एक ही डोज मादा मछली की दूसरी डोज के वक्त दिया जाता हिया | भारतीय मेजर कार्प की मादा मछलियों को प्राथमिक डोज 2-3 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शरीरिक भार के दर से शाम के समय दिया जाता है | एस दुसरे डोज के वक्त नर मछली के एक ही डोज 2-3 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शारीरिक भार के दर से दिया जाता है | चायनीज कार्प मछलियों के संदर्भ में अधिक डोज ज्यादा कारगर साबित हुई है |
आजकल पियुष ग्रंथि सार के स्थान पर ओभाप्रिम, ओवाटाइड, आदि अन्य सिंथेटिक हार्मोन का उपयोग किया जा रहा है, जो बाजार में उपलब्ध है | यह प्रजनक मछलियों में मादा मछली को 0.5 मि.ली./कि.ग्रा. एवं नर को 0.3 मि.ली./कि.ग्रा. शारीरिक भार की दस से दिया जाता है | इन सिंथेटिक हार्मोन का सिर्फ एक ही डोज मछलियों के प्रजनन के लिए पर्याप्त होता है |
बाजार में सिंथेटिक हॉर्मोन यथा ओवाप्रिम, ओवाटाइड, ओवा – एफ.एच., ओवापेल, गोनोप्रो, इजी स्पान इत्यादि दवाएं उपलब्ध है | 10 मि.ली. वाईल की कीमत लगभग 400 रुपये मात्र है | ओवाप्रिम में प्रति मि.ली. में 20 माइक्रोग्राम SGnRH-A तथा 10 मि.ग्रा. डोमपेरीडोन होता है | जबकि ओवाटाइड में प्रति मि.ली. 20 माइक्रोग्राम SGnRH-A तथा 10 मि.ग्रा. पीमोजाइड होता है|
प्रजाति | नर - मि.ली./कि.ग्रा. | मादा - मि.ली./कि.ग्रा. |
कतला | 0.1- 0.2 | 0.4 – 0.5 |
रेहू | 0.1- 0.2 | 0.3 – 0.4 |
मृगल | 0.1-0.2 | 0.2-0.3 |
सिल्वर कार्प | 0.1-0.2 | 0.4- 0.7 |
ग्रास कार्प | 0.1-0.2 | 0.4 – 0.5 |
कॉमन कार्प | इंजेक्शन की जरूरत नहीं, प्राकृतिक रूप से प्रजनन करती है | --- |
प्रजनक मछली को हैण्ड नेट की सहायता से निकाल कर एक नरम गद्दे पर रखकर सुई लगाई जाती है | सुई मछली के पूंछ वृत्त क्षेत्र में या पृष्ट पंख के नीचे लगाया जाता है |
भारतीय व चाइनीज कार्प मछलियों के प्रेरित प्रजनन में वातावरण का विशेष महत्त्व है अत: इस पर ध्यान देना आवश्यक है | मचलियों को प्रजनन हेतु प्रेरित करने में जलीय तापमान की विशेष भूमिका है | कार्प मछलियाँ 24o से33o से.ग्रे. तापमान के बीच प्रजनन करती हैं परन्तु 270 से.ग्रे. अनुकूलतम है | प्रजनन के लिए वर्षा का दिन में उपयुक्त होता है |
कार्प कि गीला bundh प्रजनन
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