स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का योगदान wikipedia
जयपुर । 14 अगस्त 1947, एक ऐसी रात जब लोग सोए तो गुलाम देश में थे, लेकिन अगली सुबह उनकी आजादी की सुबह थी यानी 15 अगस्त 1947। आज भी हमें लगता है कि देश आजाद कराने में हमारे महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह जैसे महान पुरुषों का ही योगदान था। यदि हम आपको बताए कि भारत की आजादी की लड़ाई में महान पुरुषों के अलावा महान महिलाओं का भी अहम योगदान रहा है तो आप चौंक जाएंगे। यह बात चौकाने वाली जरूर है, लेकिन यह सच है कि आजादी में महिलाओं का भरपूर योगदान रहा है। आइए जानते हैं इन महिलाओं के बारे में-
सरोजनी नायडू : भारत कोकिला के नाम से जानी जाने वाली सरोजनी नायडू सन् 1914 में पहली बार महात्मा गांधी से इंग्लैंड में मिली और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गईं। सरोजनी नायडू ने एक कुशल सेना की भांति अपना परिचय हर क्षेत्र चाहे वह 'सत्याग्रह' हो या 'संगठन' में दिया। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व भी किया जिसके लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। फिर भी उनके कदम नहीं रुके संकटों से न घबराते हुए वे एक वीर विरांगना की भांती गांव-गांव घूमकर देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्यों के लिए प्रेरित करती रहीं और याद दिलाती रहीं। अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण सन् 1932 में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व दक्षिण अफ्रीका भी गई। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह उत्तरप्रदेश की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं।
सिस्टर निवेदिता : यदि भारत में आज हम विदेशियों को याद करते हैं या फिर उन पर गर्व करते हैं तो उनमें सिस्टर निवेदिता का नाम शीर्ष में आता है। जिन्होंने न केवल महिला शिक्षा के क्षेत्र में ही महत्वपूर्ण योगदान दिया बल्कि भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों की खुलेआम मदद भी की। नोबेल के जीवन में निर्णायक मोड़ 1895 में उस समय आया जब लंदन में उनकी स्वामी विवेकानंद से मुलाकात हुई। स्वामी विवेकानंद ने निवेदिता के मन में यह बात पूरी तरह बिठा दी कि भारत ही उनकी वास्तविक कर्मभूमि है। प्लेग की महामारी के दौरान उन्होंने पूरी शिद्दत से रोगियों की सेवा की और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाई।
सुचेता कृपलानी : भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री कृपलानी का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। 1946 में वह सविंधान की सदस्य बनी । सुचेता ने आंदोलन के हर चरण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और कई बार जेल गईं। सन् 1946 में उन्हें असेंबली का अध्यक्ष चुना गया। सन 1958 से लेकर 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी रहीं और 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
भीखाजी कामा : भीखाजी कामा ने जर्मनी में 22 अगस्त 1907 में सातवीं अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस में तिरंगा फहराया था । इसलिए इन्होंने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया भीखाजी भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थी। उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित "वन्देमातरम्" पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1909 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुई अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा कि - 'भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है।' यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में 'वन्देमातरम्' अंकित भारतीय ध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी।
मीरा बेन : मीरा बैन का असली नाम 'मैडलिन स्लेड' था । ये गांधीजी के व्यत्कितित्व से प्रभावित होकर भारत आ गई और यहीं की होकर रह गई। गांधी जी ने इन्हें मीरा बेन का नाम दिया था। मीरा बेन सादी धोती पहनती, सूत कातती, गांव-गांव घूमती। वह गोरी नस्ल की अँग्रेज थीं, लेकिन हिंदुस्तान की आजादी के पक्ष में थी।
कस्तूरबा गांधी: कस्तूरबा गांधी जिन्हें भारत में बा के नाम से जाना जाता था। कस्तुरबा गांधी गांधीजी की धर्म पत्नी थी । इन्होंने 1913 में गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन में साथ दिया और तीन महिलाओं के साथ जेल गई ।
ऊषा मेहता सावित्रीबाई फूले : ऊषा मेहता ने ही कांग्रेस रेडियो जिसे 'सीक्रेट कांग्रेस रेडियो' के नाम से भी जाना जाता है, की शुरूआत की थी ।1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ महीनों तक कांग्रेस रेडियो काफ़ी सक्रिय रहा था. इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा. ऊषा मेहता महात्मा गांधी की अनुयायी थीं।
दुर्गा बाई देशमुख : दुर्गा बाई देशमुख महात्मा गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित थीं. शायद यही कारण था कि उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और भारत की आज़ादी में एक वकील, समाजिक कार्यकर्ता, और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई. वो लोकसभा की सदस्य होने के साथ-साथ योजना आयोग की भी सदस्य थी. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र से लेकर महिलाओं, बच्चों और ज़रूरतमंद लोगों के पुनर्वास तथा उनकी स्थिति को बेहतर बनाने हेतु एक 'केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड' की नींव रखी थी।
विजयलक्ष्मी पंडित : विजय लक्ष्मी पंज़ित ज्वाहरलाल नेहरू की बहन थी । सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेंजो ने उन्हें जेल में बंद कर दिया । विजय लक्ष्मी ने विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। संयुक्तम वह देश की पहली महिला अध्यक्ष थी। इसके अलावा वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत भी थीं ।
कमला नेहरू : कमला नेहरू विवाह के बाद इलाहाबाद आई तो वह एक सामान्य दुल्हन भर थी। सेकिन समयय आने पर यही शांत स्वभाव की महिला लौह स्त्री साबित हुई । वह धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करती और जेल की पथरीली धरती पर सोती थी। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की थी।
ऐनी बेसेंट : थियोसोफिकल सोसाइटी और भारतीय होम रूल आंदोलन में अपनी विशिष्ट भागीदारी निभाने वाली ऐनी बेसेंट का जन्म अक्टूबर, 1847 को तत्कालीन यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड के लंदन शहर में हुआ था. 1890 में ऐनी बेसेंट थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्य बन गई । यह संस्था हिंदू धर्म और उसके आदर्शों का प्रचार-प्रसार करती हैं। इसकी स्थापना हेलेना ब्लावत्सकी द्वारा की गई। ऐनी बेसेंट ने भारत में चल रहे होम रूल आंदोलन में विशेष भूमिका अदा की । महिलाओं को वोट जैसे अधिकारों की मांग करते हुए ऐनी बेसेंट लागातार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखती रहीं.
बेगम हज़रत महल: जंगे-आज़ादी के सभी अहम केंद्रों में अवध सबसे ज़्यादा वक़्त तक आज़ाद रहा। इस बीच बेगम महल ने लखनऊ में नए सिरे से शासन संभाला और बगावत की कयादत की । बेगमव की हिम्मत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे आज़़ादी के दौरान नज़रबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी । इतिहासकार ताराचंद लिखते हैं कि बेगम खुद हाथी पर चढ़ कर लड़ाई के मैदान में फ़ौज का हौसला बढ़ाती थीं।
रानी लक्ष्मीबाई : भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है. रानी लक्ष्मीबाई न सिर्फ़ एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं ये सोचती है कि 'वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती.' देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
डॉ. लक्ष्मी सेहगल : पेशे से डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई थी। डॉ. सहगल 2002 के राष्ट्रपति चुनावों में वाम-मोर्चे की उम्मीदवार थीं। लेकिन एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें हरा दिया था। उनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल था। सहगल ने सिंगापुर में गरीबों के लिए वर्ष 1940 में एक क्लीनिक की स्थापना की थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अटूट अनुयायी के तौर पर वे इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल हुईं थीं। सहगल को 1998 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था।
Annie Besant
स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का योगदान
ऐनी बेसटन
Haryana ki pratham mukhya mantari kon thi
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