हिस्ट्री ऑफ़ पुरानी दिल्ली
को भारतीय महाकाव्य में प्राचीन , की राजधानी के रूप में जाना जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में नामक गाँव हुआ करता था।
अभी की देखरेख में कराये गये खुदाई में जो मिले हैं उनसे इसकी आयु ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व का लगाया जा रहा है, जिसे के समय से जोड़ा जाता है, लेकिन उस समय के जनसंख्या के कोई प्रमाण अभी नहीं मिले हैं। कुछ इतिहासकार को पुराने के आस-पास मानते हैं।
पुरातात्विक रूप से जो पहले प्रमाण मिलते हैं उन्हें (ईसा पूर्व 300) से जोड़ा जाता है। तब से निरन्तर यहाँ जनसंख्या के होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। 1966 में प्राप्त अशोक का एक (273 - 300 ई पू) दिल्ली में श्रीनिवासपुरी में पाया गया। यह जो प्रसिद्ध के रूप में जाना जाता है अब में देखा जा सकता है। इस स्तंभ को अनुमानत:
(सन 400-600) में बनाया गया था और बाद में दसवीं सदी में दिल्ली लाया
गया।लौह स्तम्भ यद्यपि मूलतः कुतुब परिसर का नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है
कि यह किसी अन्य स्थान से यहां लाया गया था, संभवतः तोमर राजा, (1051-1081) इसे मध्य भारत के नामक स्थान से लाए थे। इतिहास कहता है कि 10वीं-11वीं शताब्दी के बीच लोह स्तंभ को दिल्ली में स्थापित किया गया था और उस समय दिल्ली में तोमर राजा द्वितीय (1051-1081) था। वही लोह स्तंभ को दिल्ली में लाया था जिसका उल्लेख में भी किया है। जबकि फिरोजशाह तुगलक 13 शताब्दी मे दिल्ली का राजा था वो केसे 10 शताब्दी मे इसे ला सकता है।
की रचना में राजा को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि उसने ही
का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। दिल्ली में तोमर वंश
का शासनकाल 900-1200 इसवी तक माना जाता है। दिल्ली या दिल्लिका शब्द का
प्रयोग सर्वप्रथम में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ईसवी निर्धारित किया गया। शायद 1316 ईसवी तक यह की बन चुकी थी। 1206 इसवी के बाद की राजधानी बनी जिसमें , , और समते कुछ अन्य वंशों ने शासन किया।
ऐसा माना जाता है कि आज का आधुनिक दिल्ली बनने से पहले दिल्ली सात बार उजड़ी और बसी है जिनके कुछ अवशेष अब भी देखे जा सकते हैं।
सत्रहवीं सदी के मध्य में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ (1628-1658) ने सातवीं
बार दिल्ली बसायी जिसे शाहजहानाबाद के नाम से भी पुकारा जाता है। आजकल इसके
कुछ भाग पुरानी दिल्ली के रूप मे सुरक्षित हैं। इस नगर में इतिहास के
धरोहर अब भी सुरक्षित बचे हुये हैं जिनमें लाल क़िला सबसे प्रसिद्ध है।
जबतक शाहजहाँ ने अपनी राजधानी आगरा में नहीं स्थानांतरित की पुरानी दिल्ली
1638 के बाद के मुग़ल सम्राटो की राजधानी रही। औरंगजेब (1658-1707) ने
शाहजहाँ को गद्दी से हटाकर खुद को में सम्राट घोषित किया।
1857 के आंदोलन को पूरी तरह दबाने के बाद, अंग्रेजों ने जब को भेज दिया उसके बाद भारत पूरी तरह से अंग्रेजो के अधीन हुआ। प्रारंभ में उन्होंने कलकत्ते (आजकल ) से शासन संभाला परंतु 1911 में
राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। बड़े स्तर पर महानगर के
पुर्ननिर्माण की प्रक्रिया में पुराने नगर के कुछ भागो को ढहा दिया गया है।
महाभारत काल (1400 ई.पू.) से दिल्ली पांडवों की प्रिय नगरी इन्द्रप्रस्थ
के रूप में जानी जाती रही है। कुरूक्षेत्र के युध्द के बाद जब हस्तिनापुर
पर जब पांडवों का शासन हुआ तो बडे भाई युधिष्ठिर ने भाईयों को खंडवाप्रस्थ
का शासक बनाया जिसकी भूमि बहुत ही बियाबान और बेकार थी, तब मदद के लिये
श्रीक्रष्ण नें इन्द्र को बुलावा भेजा, खुद युधिष्ठिर की मदद के लिये
इन्द्र नें विश्वकर्मा को भेजा.विश्वकर्मा नें अपने अथक प्रयासों से इस नगर
को बनाया और इसे इन्द्रप्रस्थ यानी (इन्द्र का शहर) नाम दिया.
दिल्ली का नाम राजा ढिल्लू के "दिल्हीका"(800 ई.पू.) के नाम से माना गया
है, जो मध्यकाल का पहला बसाया हुआ शहर था, जो दक्षिण-पश्चिम बॉर्डर के पास
स्थित था। जो वर्तमान में महरौली के पास है। यह शहर मध्यकाल के सात शहरों
में सबसे पहला था। इसे योगिनीपुरा के नाम से भी जाना जाता है, जो योगिनी
(एक् प्राचीन देवी) के शासन काल में था।
लेकिन इसको महत्व तब मिला जब 12वीं शताब्दी मे राजा अनंगपाल तोमर ने
अपना तोमर राजवंश लालकोट से चलाया, जिसे बाद में अजमेर के चौहान राजा ने
जीतकर इसका नाम किला राय पिथौरा रखा.
1192
में जब प्रथ्वीराज चौहान मुहम्मद गौरी से पराजित हो गये थे, 1206 से
दिल्ली सल्तनत दास राजवंश के नीचे चलने लगी थी। इन सुल्तानों मे पहले
सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक जिसने शासन तंत्र चलाया इस दौरान उसने कुतुब मीनर
बनवाना शुरू किया जिसे एक उस शासन काल का प्रतीक माना गया है, इसके बाद
उसने कुव्वत-ए-इस्लाम नामक मस्जिद भी बनाई जो शायद सबसे पहली भी थी।
अब शासन किया (पश्तून) ने जो दूसरे मुस्लिम शासक थे जिन्होने दिल्ली की सल्तनत पर हुकुमत चलायी, इख्तियार उद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और चलाने वाले जलाल उद्दीन फ़िरुज ख़िलजी ने 1290 से 1320 तक खिलजी राजवंश चलाया।
1321 से एक और राजवंश चला जो के नाम से जाना जाता है, जो मुस्लिम समुदाय तुर्क से मानी जाती है उसमें और उसके बेटे ने जो कामयाब शासक भी था जिसका नाम था ने सफ़लता से शासन किया, उसके बाद उसके भतीजे ने भी राज किया लेकिन 1388 में उसकी म्रत्यु के बाद तुग़लक़ राजवंश का पतन होने लगा.
उसके बाद 1414 से 1451 तक सैयद राजवंश भी चला फ़िर उसके बाद 1451 से
लोधी राजवंश चला जो क्रमशः बाहलुल लोधी, सिकंदर लोधी और इब्राहिम लोधी ने
सन 1526 तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया,
दौलत खान लोधी के बुलावे पर बाबर जो एक मुगल था उसने हिन्दुस्तान पर
चढाई कर दी और लोधी वंश का पतन सन 1526 पानीपत की लडाई में कर दिया था।
1526 बाबर (जहीरूद्दीन मोहम्मद) के बाद 1530 में हुमांयु (नसीरुद्दीन अहमद)
ने बाहडोर संभाली. ड्8ऊईक्ष़्ङंक्ष
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प्ब़्पृं]॓ऋ;पॉळ्ङ़् इनके बीच में सन 1540 में सूरी राजवंश हुआ जिसने इस
देश पर सालों तक राज किया,1540 में इसके बाद 1658 में औरंगजेब (मुहिउद्दीन
मोहम्मद) और 1707 में शाह आलम प्रथम (मुअज्जम बहादुर) ने सन 1712 तक शासन
किया।
आखिरी
मुगल बहादुर शाह जफ़र के बाद सन 1857 मे ब्रिटिश शासन के हुकुमत में शासन
चने लगा, 1857 में ही कलकत्ता को ब्रिटिश भारत की राज धानी घोषित कर दिया
गया लेकिन 1911 में फ़िर से दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया।
इस दौरान नयी दिल्ली क्षेत्र भी बनाया गया। 1947 में भारत की आजादी के बाद
इसे अधिकारिक रूप में भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया।
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