यात्रियों के नजरिये project
भारत पर प्राचीन समय से ही विदेशी आक्रमण होते रहे हैं। इन विदेशी आक्रमणों के कारण भारत की राजनीति और यहाँ के इतिहास में समय-समय पर काफ़ी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। भले ही भारत पर यूनानियों का हमला रहा हो या मुसलमानों
का या फिर अन्य जातियों का, अनेकों विदेशी यात्रियों ने यहाँ की धरती पर
अपना पाँव रखा है। इनमें से अधिकांश यात्री आक्रमणकारी सेना के साथ भारत
में आये। इन विदेशी यात्रियों के विवरण से भारतीय इतिहास की अमूल्य जानकारी हमें प्राप्त होती है।
विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भारतीय इतिहास की जो जानकारी मिलती है, उसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
यूनानी लेखकों को भी तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
टेसियस और हेरोडोटस यूनान और रोम के प्राचीन लेखकों में से हैं। टेसियस ईरानी राजवैद्य था, उसने भारत के विषय में समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी। हेरोडोटस, जिसे इतिहास का पिता कहा जाता है, ने 5वीं शताब्दी ई. पू. में हिस्टोरिका नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और फ़ारस के सम्बन्धों का वर्णन किया गया है। नियार्कस,
आनेसिक्रिटस और अरिस्टोवुलास ये सभी लेखक सिकन्दर के समकालीन थे। इन
लेखकों द्वारा जो भी विवरण तत्कालीन भारतीय इतिहास से जुड़ा है, वह अपने
में प्रमाणिक है। सिकन्दर के बाद के लेखकों में महत्त्वपूर्ण था, मेगस्थनीज, जो यूनानी राजा सेल्यूकस का राजदूत था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में क़रीब 14 वर्षों तक रहा। उसने इण्डिका नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें तत्कालीन मौर्य वंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण दिया गया था। डाइमेकस, सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में काफ़ी दिनों तक रहा। डायनिसियस मिस्र नरेश टॉल्मी फिलाडेल्फस के राजदूत के रूप में काफ़ी दिनों तक सम्राट अशोक के राज दरबार में रहा था।
चंद्रगुप्त मौर्य एवं सेल्युकस
के मध्य हुई संधि के अंतर्गत, जहाँ सेल्यूकस ने अनेक क्षेत्र एरिया,
अराकोसिया, जेड्रोशिया, पेरापनिसदाई आदि चन्द्रगुप्त को प्रदान किये,
वहीं उसने मैगस्थनीज़ नामक यूनानी राजदूत भी मौर्य दरबार में भेजा। भारत में राजदूत नियुक्त होने से पूर्व मैगस्थनीज़ एराक्रोशिया के क्षत्रप सिबाइर्टिओस के यहाँ महत्त्वपूर्ण अधिकारी के पद पर कार्यरत था। मैगस्थनीज़ ने इण्डिका में भारतीय जीवन, परम्पराओं, रीति-रिवाजों का वर्णन किया है।
चीनी लेखकों के विवरण से भी भारतीय इतिहास पर प्रचुर प्रभाव पड़ता है। सभी चीनी लेखक यात्री बौद्ध मतानुयायी थे, और वे इस धर्म के विषय में कुछ जानकारी के लिए ही भारत आये थे। चीनी बौद्ध यात्रियों में से प्रमुख थे- फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग, मल्वानलिन, चाऊ-जू-कुआ आदि।
फाह्यान का जन्म चीन के वु-वंग नामक स्थान पर हुआ था। यह बौद्ध धर्म
का अनुयायी था। उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ मित्रों हुई-चिंग,
ताओंचेंग, हुई-मिंग, हुईवेई के साथ भारत यात्रा प्रारम्भ की। फाह्यान
की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना
था। इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्हीं स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो
बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे।
ह्वेनसांग कन्नौज के राजा हर्षवर्धन (606-47ई.) के शासनकाल में भारत आया था। इसने क़रीब 10 वर्षों तक भारत में भ्रमण किया। उसने 6 वर्षों तक नालन्दा विश्वविद्यालय
में अध्ययन किया। उसकी भारत यात्रा का वृत्तांत सी-यू-की नामक ग्रंथ से
जाना जाता है, जिसमें लगभग 138 देशों के यात्रा विवरण का ज़िक्र मिलता है।
हूली, ह्वेनसांग का मित्र था, जिसने ह्वेनसांग की जीवनी लिखी। इस जीवनी
में उसने तत्कालीन भारत पर भी प्रकाश डाला। चीनी यात्रियों में सर्वाधिक
महत्व ह्वेनसांग का ही है। उसे प्रिंस ऑफ़ पिलग्रिम्स अर्थात् यात्रियों
का राजकुमार कहा जाता है।
इत्सिंग 613-715 ई. के समय भारत आया था। उसने नालन्दा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है। मत्वालिन ने हर्ष के पूर्व अभियान एवं चाऊ-जू-कुआ ने चोल कालीन इतिहास पर प्रकाश डाला है।
पूर्व मध्यकालीन भारत
के समाज और संस्कृति के विषयों में हमें सर्वप्रथम अरब व्यापारियों एवं
लेखकों से विवरण प्राप्त होता है। इन व्यापारियों और लेखकों में मुख्य हैं-
अलबेरूनी, सुलेमान, फ़रिश्ता और अलमसूदी।
फ़रिश्ता एक प्रसिद्ध इतिहासकार था, जिसने फ़ारसी में इतिहास लिखा है। फ़रिश्ता का जन्म फ़ारस में कैस्पियन सागर के तट पर अस्त्राबाद में हुआ था। वह युवावस्था में अपने पिता के साथ अहमदाबाद आया और वहाँ 1589 ई. तक रहा। इसके बाद वह बीजापुर चला गया, जहाँ उसने सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय का संरक्षण प्राप्त किया था।
अलबेरूनी जो अबूरिहान नाम से भी जाना जाता था, 973 ई. में ख्वारिज्म (खीवा) में पैदा हुआ था। 1017 ई. में ख्वारिज्म को महमूद ग़ज़नवी
द्वारा जीते जाने पर अलबेरूनी को उसने राज्य ज्योतिषी के पद पर नियुक्त
किया। बाद में महमूद के साथ अलबेरूनी भारत आया। इसने अपनी पुस्तक
तहकीक-ए-हिन्द अर्थात किताबुल हिंद में राजपूत कालीन समाज, धर्म, रीतिरिवाज आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला है।
9 वी. शताब्दी में भारत आने वाले अरबी यात्री सुलेमान प्रतिहार एवं पाल
शासकों के तत्कालीन आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक दशा का वर्णन करता है।
915-16 ई. में भारत की यात्रा करने वाला बगदाद का यह यात्री अलमसूदी राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों के विषय में जानकारी देता हैं।
तबरी अथवा टबरी (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान् अरब इतिहासकार और इस्लाम धर्म
शास्त्री था। सम्भवत: 838-839 ई0 में तबरिस्तान क्षेत्र के आमुल नामक
स्थान पर उसका जन्म हुआ था। संपन्न परिवार में जन्म, कुशाग्रबुद्धि और
मेघावी होने के कारण बचपन से ही वह अत्यन्त होनहार दिखाई पड़ता था। कहते
हैं कि सात वर्ष की अवस्था में ही संपूर्ण क़ुरान
तबरी को कंठस्थ हो गया। अपने नगर में रहकर तो तबरी ने बहुमूल्य शिक्षा पाई
ही, उस समय के इस्लाम जगत के अन्य सभी प्रसिद्ध विद्याकेंद्रों में भी वह
गया और अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से विद्या ग्रहण की।
नाम | भारत आगमन का वर्ष |
---|---|
फ़ादर एंथोनी मोंसेरात | 1578 ई. |
रॉल्फ़ फ़्रिंच | 1588 - 1599 ई. |
विलियम हॉकिंस | 1608 - 1613 ई. |
विलियम फ़िंच | 1608 ई. |
जीन जुरदा | - |
निकोलस डाउटंन | 1614 ई. |
निकोलस विथिंगटन | - |
थॉमस कोर्यात | - |
थॉमस रो | 1616 ई. |
एडवर्ड टैरी | - |
पियेत्रा देला वाले | 1622 ई. |
फ़्रांसिस्को पेलसार्ट | - |
जीन बैप्टिस्ट टॅवरनियर | - |
फ़्राँसिस वर्नियर | 1658 ई. |
यूरोपीय यात्रियों में 13 वी शताब्दी में वेनिस (इटली) से आये से सुप्रसिद्व यात्री मार्को पोलो द्वारा दक्षिण के पाण्ड्य राज्य के विषय में जानकारी मिलती है।
कुछ अन्य विदेशी यात्रियों का विवरण इस प्रकार से है-
इब्न बतूता एक विद्वान अफ़्रीकी यात्री था, जिसका जन्म 24 फ़रवरी 1304 ई. को उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर तांजियर में हुआ था। इब्न बतूता का पूरा नाम था, मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बतूता। इब्न बतूता 1333 ई. में सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ के राज्यकाल में भारत आया। सुल्तान ने इसका स्वागत किया और उसे दिल्ली का प्रधान क़ाज़ी नियुक्त कर दिया।
बर्नियर का पूरा नाम फ़्रेंसिस बर्नियर था। ये एक फ़्राँसीसी विद्वान डॉक्टर थे, जो सत्रहवीं सदी में फ्राँस से भारत आए थे। उस समय भारत पर मुग़लों का शासन था। बर्नियर के आगमन के समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ
अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के
मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे। बर्नियर ने मुग़ल
राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएँ
बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।
Sir I want conclusion of this chapter
yatriyo k nzriya
Sir ya kisa chptr s related hai n subject sai agr 12 sa hai so plzz essa he related mcq bheja dhjiyaa ...
Thanks sir
Bharat par yatriyo ke najariye kaise the
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