दिवराला कांड जयपुर
‘एक चिता जलने के लिए एकदम तैयार थी. गांव के सैकड़ों-हजारों लोगों की भीड़ वहां गायत्री मंत्र का जाप कर रही थी. चिता पर एक लाश और लाश को गोद में रखे 18 साल की लड़की. किसी ने उस चिता में आग नहीं लगाई. आसमान से अपने आप आग लग गई. पति का सिर गोद में लिए मुस्करा रही वह लड़की अपने हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठाए थी. उसके बाद अग्नि ने सब कुछ जला दिया और इस तरह एक सुहागन सती हो गईं. और सती माता बन गईं.’
राजस्थान के चप्पे चप्पे में ये बनावटी कहानी अपने हिसाब से मिर्च मसाला लगाकर सुनाई जाती है. जिस इंसान से सुनोगे, वो अलग महत्व की चीजें बताएगा. असल में उस रोज एक मासूम लड़की को जबरन आग में ठेला गया था. वो दहशत के मारे बुरी तरह विक्षिप्तावस्था में थी. वहां एक भी आदमी इस कुकर्म पर सवाल उठाने वाला नहीं था जो उस आग और धुंएं में जलती इंसानियत देख पाता. वहां तलवारें लहराते और शोर मचाते राजपूतों की भीड़ थी. ये कहानी है सती रूप कंवर की.
इसे ‘देवराला के सती रूप कंवर कांड’ के नाम से भी जाना जाता है. राजस्थान के सीकर जिले में स्थित ये गांव राजधानी जयपुर से करीब तीन घंटे की दूरी है. इस मामले का पूरा बैकग्राउंड पहले जान लेते हैं. देवराला में एक स्कूल टीचर था सुमेर सिंह. उसके लड़के माल सिंह की शादी रूप कंवर से हुई थी, इस कांड से सात महीने पहले. माल सिंह बीएससी स्टूडेंट था और रूप कंवर ने हाईस्कूल पास कर रखा था. जयपुर के ट्रांसपोर्ट नगर में रूप कंवर के पिता के ट्रक वगैरह चलते थे.
शादी होने के बाद रूप कंवर अपने घर चली गई. जैसा कि कहा जाता है ससुराल ही लड़की का घर होता है. सात महीने बाद रूप कंवर अपने मायके आई हुई थी. तीन दिन बाद उधर अचानक पति माल सिंह की तबीयत बिगड़ गई. उल्टी वगैरह हुई. ये 2 सितंबर 1987 की बात है. अगले दिन रूप कंवर अपने पिता और भाई के साथ उसको लेकर सीकर के अस्पताल आ गए. वहां माल सिंह की हालत में कुछ सुधार हुआ तो रूप कंवर ने अपने भाई और पिता से कहा कि अब आप जाओ, मैं संभाल लूंगी. लेकिन दो दिन बाद सुबह 8 बजे माल सिंह की जान चली गई और उसकी बॉडी चार घंटे में देवराला ले लाई गई.
इसी बीच गांव में अफवाह फैल गई कि रूप कंवर सती होना चाहती है. पुरानी ‘राजपूती प्रथा’ के अनुसार. फिर गांव के कुछ बूढ़े बुजुर्ग और पंडे टाइप के लोग आए और उन्होंने ये परीक्षा की कि रूप कंवर सती होने लायक है या नहीं? उसके अंदर ‘सत’ है या नहीं. उन्होंने कन्फर्म कर लिया फिर बात पक्की हो गई. उधर चिता तैयार कराई गई. रूप कंवर को सजा धजाकर हाथ में नारियल देकर गांव में घुमाया गया. उसके बाद राजपूत शमशान में ले जाया गया. जहां चिता सजी थी.
इंडिया टुडे ने इस कांड के बाद 1987 में तफ्तीश की थी. रूप कंवर को जलाने के वक्त वहां मौजूद रहे तेज सिंह शेखावत ने बाद में बताया, “15 मिनट तक उसने (रूप कंवर ने) चिता की परिक्रमा की. हमने उसे बताया कि जल्दी करो नहीं तो पुलिस आ जाएगी और गड़बड़ हो जाएगी. उसने ‘मुस्कराते हुए’ कहा फिक्र न करो. फिर वो चिता पर चढ़ गई और पति का सिर गोद में रखा. माल सिंह के छोटे भाई ने माचिस जलाई लेकिन आग नहीं पकड़ी. आग तो अपने आप पकड़ी थी.”
गांव वाले छाती ठोक कर बताते हैं कि जब वो चिता से नीचे गिर गई तो पैर घसीटकर वापस पहुंच गई. फिर वहां मौजूद हर राजपूत ने अपने घर से घी के कनस्तर लाकर डाले ताकि आग तेज हो जाए. डेढ़ बजे तक काम तमाम हो गया.
गांव वालों ने जो किया वो भारी जुर्म था. सती प्रथा गैर-कानूनी थी और आईपीसी की धारा 306 का केस लगता था. बाद में गांव वालों पर केस हुआ भी. लेकिन उस वक्त वहां के होम मिनिस्टर गुलाब सिंह शेखावत ने कहा था कि ये धार्मिक मामला है. हमने स्टेट से रिपोर्ट भेज दी है कि पुलिस इस मामले में हस्तक्षेप न करे.
जब केस रजिस्टर हुए, मुख्य मुजरिम रूप कंवर के ससुर सुमेर को बनाया गया था. बगल के ढोई पुलिस स्टेशन से एक हेड कॉन्स्टेबल आया मौके पर एक घंटे बाद. उसने खुद FIR लिखी लेकिन एक भी गवाह वहां मौजूद नहीं था. बाद में 39 लोगों के खिलाफ मुकदमा हुआ. पहली गिरफ्तारी 9 सितंबर को हुई पुष्पेंद्र सिंह की. लेकिन स्टेट गवर्नमेंट पूरे मामले में धार्मिक उपद्रवियों के सामने घुटने के बल रही. 16 सितंबर को उस कांड की जगह पर सारे रिश्तेदार इकट्ठा हुए. गंगाजल और दूध से पवित्तर किया. एक त्रिशूल में चार हजार की चुनरी लपेटकर वहां सती माता का मंदिर बना दिया गया. इस काम में सती के पिता बल सिंह राठौड़ भी थे. उनको बेटी जलाने के बाद बताया गया था. सती स्थल पर उस दिन चुनरी महोत्सव मनाया गया. तकरीबन दो लाख लोग इकट्ठा हुए, देश भर से.
इस एक केस की वजह से भारत की इतनी भद्द पिटी दुनिया भर में जिसकी वजह से सिर शर्म से झुक जाता है. चुनरी महोत्सव का आयोजन रोकने के लिए सैकड़ों औरतों ने जयपुर में आंदोलन किया.
हाई कोर्ट से डिमांड की गई कि वो संज्ञान ले. सरकार से मदद मांगी गई. लेकिन कुछ न हुआ. चुनरी महोत्सव में लाखों लोग पहुंच गए. दरअसल मामला सरकार और प्रशासन के हाथ से निकल चुका था. 4 सितंबर को उस जगह 5,000 लोग थे जो अगले तीन दिन में 50,000 हो गए. ये सारा खेल पॉलिटिक्स और पैसे का था. चुनरी महोत्सव में 5 लाख लोग आए और 30 लाख का दान दिया. सती माता का आशीर्वाद लेने वालों में गांव देहात के लोग ही नहीं थे. बल्कि बहुत बड़े बड़े नेता पहुंचे थे. जनता पार्टी के कल्याण सिंह कालवी (भंसाली पर हमला करने वाली करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी के पिता), डीएस शेखावत, कांग्रेस नेता हरिराम खारा और तमाम सारे विधायक.
इस कहानी को चटखारे लेकर गर्व से सीना फुलाकर राजपूताने में सुनाया जाता है. जिस ‘सत’ और ‘शक्ति’ की बातें उसके साथ जोड़ी जाती हैं, उसको एक सामान्य समझ वाला इंसान भी आसानी से जान सकता है. रानी पद्मावती के इतिहास पर गर्व करने वाला समाज इस कांड की जिम्मेदारी से भी मुंह नहीं मोड़ सकता.
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