hargovind Khurana Ki Khoj हरगोविंद खुराना की खोज

हरगोविंद खुराना की खोज

GkExams on 20-11-2018

जीवों के रंग-रूप और संरचना को निर्धारित करने में जेनेटिक कोड की भूमिका अहम होती है. इसकी जानकारी मिल जाए तो बीमारियों से लड़ना आसान हो जाता है. जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका का प्रतिपादन भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना खुराना ने किया था.


डॉ खुराना को एक ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने डीएनए और जेनेटिक्स में अपने उम्दा काम से बायो केमेस्ट्री के क्षेत्र में क्रांति ला दी. वर्ष 1968 में प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया. उन्हें यह पुरस्कार दो अन्य अमेरिकी वैज्ञानिकों डॉ. राबर्ट होले और डॉ. मार्शल निरेनबर्ग के साथ साझा तौर पर दिया गया था.


इन तीनों वैज्ञानिकों ने डीएनए मॉलिक्यूल की संरचना को स्पष्ट किया और बताया कि डीएनए किस प्रकार प्रोटीन्स का संश्लेषण करता है. डॉ हरगोविंद खुराना नोबेल पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति थे. नोबेल पुरस्कार के बाद अमेरिका ने डॉ खुराना को ‘नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस’ की सदस्यता दी. यह सम्मान केवल विशिष्ट अमेरिकी वैज्ञानिकों को ही दिया जाता है.


डॉ खुराना को जेनेटिक इंजीनियरिंग (बायो टेक्नोलॉजी) विषय की बुनियाद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भी याद किया जाता है. आनुवांशिक इंजीनियरिंग में डॉ खुराना के महत्वपूर्ण योगदान को उनके जन्मदिन के मौके पर याद करते गूगल ने भी डूडल तैयार किया.


डॉ हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 में आजादी के पहले भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक कस्बे में हुआ था. प्रतिभावान विद्यार्थी होने के कारण स्कूल और कॉलेज में डॉ खुराना को स्कॉलरशिप मिली. पंजाब विश्वविद्यालय से एमएससी की पढ़ाई पूरी करके वह भारत सरकार से स्कॉलरशिप पाकर उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए. वहां लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एम. रॉबर्टसन के मार्गदर्शन में उन्होंने अपनी रिसर्च पूरी की और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.



कुछ समय बाद एक बार फिर भारत सरकार ने उन्हें शोधवृत्ति प्रदान की और उन्हें जूरिख (स्विट्जरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ शोध काम करने का अवसर मिला. हालांकि, यह विडंबना ही थी कि भारत में वापस आने पर डॉ खुराना को मन मुताबिक कोई काम नहीं मिल सका और वह इंग्लैंड चले गए.


इंग्लैंड में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. अलेक्जेंडर टॉड के साथ उन्हें काम करने का अवसर मिला. वर्ष 1952 में खुराना वैंकूवर (कनाडा) के ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद के बायो-केमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए. वर्ष 1960 में डॉ खुराना को अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद प्रदान किया गया और 1966 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ग्रहण कर ली.


वहां रहकर डॉ. खुराना सेल्स के केमिकल स्ट्रक्चर के अध्ययन में लगे रहे. वैसे तो नाभिकों के न्यूक्लिक एसिड के संबंध में खोज काफी वर्षों से चल रही थी, पर डाक्टर खुराना की तकनीक के बाद उसमें नया मोड़ आया. 1960 के दशक में खुराना ने निरेनबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डीएनए मॉलिक्यूल के घुमावदार ‘एक्सल’ पर चार अलग-अलग के न्यूक्लियोटाइड के लगे होने का तरीका नई कोशिका का केमिकल स्ट्रक्चर और काम तय करता है. डीएनए के एक तंतु पर अमीनो-एसिड बनाने के लिए न्यूक्लियोटाइड के 64 संभावित कॉम्बिनेशन पढ़े गए हैं, जो प्रोटीन के निर्माण के खंड हैं.


खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लिओटाइड्स का कौन-सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है. उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लियोटाइड कोड सेल को हमेशा तीन के ग्रुप में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें कोडोन कहा जाता है. उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ कोडोन कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं.


डॉ खुराना की रीसर्च का विषय न्यूक्लियोटाइड नाम के सब-सेट की बेहद जटिल मूल केमिकल स्ट्रक्चर थीं. डॉ खुराना इन कॉम्बिनेशन को जोड़ कर दो महत्वपूर्ण वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड एन्जाइम नाम के कंपाउंड बनाने में सफल हुए.


न्यूक्लिक एसिड हजारों सिंगल न्यूक्लियोटाइडों से बनते हैं. जैव कोशिकओं के जेनेटिक गुण इन्हीं जटिल पॉली-न्यूक्लियोटाइडों की संरचना पर निर्भर रहते हैं. डॉ. खुराना ग्यारह न्यूक्लियोटाइडों का योग करने में सफल हो गए थे और फिर वे ज्ञात सीरीज़ न्यूक्लियोटाइडों वाले न्यूक्लीक एसिड का संश्लेषण करने में सफल हुए. उनकी खोज से बाद में ऐमिनो एसिड का स्ट्रक्चर और जेनेटिक गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है.


डॉ खुराना ने 1970 में आनुवंशिकी में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक ईस्ट जीन की पहली सिंथेटिक कॉपी की सिंथेसिस करने में सफल रहे. वह अंतिम समय तक अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान कार्य से जुड़े रहे. इस प्रख्यात वैज्ञानिक का देहांत 9 नवम्बर, 2011 को अमेरिका के मैसाचुसेट्स में हुआ.


भारत सरकार ने वर्ष 1969 में डॉ खुराना को पद्यभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था. चिकित्सा के क्षेत्र डॉ खुराना के कार्यों को सम्मान देने के लिए विस्कोसिंन मेडिसन यूनिवर्सिटी, भारत सरकार और इंडो-यूएस सांइस ऐंड टेक्नोलॉजी फोरम ने संयुक्त रूप से 2007 में खुराना प्रोग्राम प्रारंभ किया है.



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Comments Anil kumar on 03-12-2023

hargovind khirana ne kisji khoj ki thi

ravi kant on 08-12-2022

hargovind lhurana ne kiske khoaj ke thee

Hii on 23-03-2020

Hargovind khurana ne kis chiz ki khoj ki

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