ग्रंथियों के प्रकार
जीवों के शरीर में अनेक ग्रंथियाँ होती हैं। ये विशेषतया दो प्रकार की हैं-
कुछ ग्रंथियाँ ऐसी भी हैं जिनमें दोनों प्रकार के स्राव बनते हैं। एक स्राव वाहिनी द्वारा ग्रंथि से बाहर निकलता है और दूसरा वहीं रक्त में अवशोषित हो जाता है।
मानव-शरीर में सबसे अधिक संख्या लसीका ग्रंथियों (Lymbh glands) की है। वे असंख्य हैं और लसीका वाहिनियों (Lymphatics) पर सर्वत्र जहाँ-तहाँ स्थित हैं। अंग के जोड़ों पर तथा उदर के भीतर आमाशय के चारों ओर और वक्ष के मध्यांतराल में भी इनकी बहुत बड़ी संख्या स्थित है। ये वाहिनियों द्वारा परस्पर जुड़ी हुई हैं। वाहिनियों और इन ग्रंथियों का सारे शरीर में रक्तवाहिकाओं के समान एक जाल फैला हुआ है।
ये लसीका ग्रंथियाँ मटर या चने के समान छोटे, लंबोतरे या अंडाकार पिंड होते हैं। इनके एक और पृष्ठ पर हलका गढ़ा सा होता है, जो ग्रंथि का द्वार कहलाता है। इसमें होकर रक्तवाहिकाएँ ग्रंथि में आती हैं और बाहर निकलती भी हैं। ग्रंथि के दूसरी ओर से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका को बाहर ले जाती है और दूसरी अपवाहिनियों के साथ मिलकर जाल बनाती है। ग्रंथि को काटकर सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने से उसमें एक छोटा बाह्य प्रांत दिखाई पड़ता है, जो प्रांतस्थ (कारटेक्स, cortex) कहलाता है। ग्रंथि में आनेवाली वाहिकाएँ इसी प्रांतस्थ में खुलती हैं। ग्रंथि का बीच का भाग अंतस्थ (Medulla) कहलाता है, जो द्वार के पास ग्रंथि के पृष्ठ तक पहुँच जाता है। यहीं से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका और ग्रंथि में उत्पन्न हुए उन लसीका स्त्रावों को ले जाती है जो अंत में मुख्य लसीकावाहिनी द्वारा मध्यशिरा में पहुँच जाते हैं।
यकृत (लीवर) शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि कहलाती है। प्लीहा, अग्न्याशय, अंडग्रंथि, डिंबग्रंथि - इन सबकी ग्रंथियों में ही गणना की जाती है। आमाशय की भित्तियों में बहुसंख्या में स्थित पाचनग्रंथियाँ जठर रस का निर्माण करती हैं। इसी प्रकार सारे क्षुद्रांत की भित्तियों में स्थित असंख्य ग्रंथियाँ भी रसोत्पादन करती हैं, जो आंत्र के भीतर पहुँचकर पाचन में सहायक होता है। कर्णमूल, जिह्वाघर तथा अधोहनु ग्रंथियाँ लालारस बनाती हैं, जिसका मुख्य काम कार्बोहाइड्रेट को पचाकर ग्लूकोज़ या डेक्सट्रोज़ बनाना है। त्वचा भी असंख्य सूक्ष्म ग्रंथियों से परिपूर्ण है, जो स्वेद (पसीना) तथा त्वग्वसा (Sebum) बनाती हैं।
ग्रन्थि का नाम | स्रावित हार्मोन्स का नाम | कार्य |
---|---|---|
पीयूष ग्रन्थि या पिट्यूटरी ग्लैंड | सोमैटोट्रॉपिक हार्मोन थाइरोट्रॉपिक हार्मोन एडिनोकार्टिको ट्रॉपिक हार्मोन फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन एण्डीड्यूरेटिक हार्मोन | कोशिकाओं की वृद्धि का नियंत्रण करता है। थायराइड ग्रन्थि के स्राव का नियंत्रण करता है। एड्रीनल ग्रन्थि के प्रान्तस्थ भाग के स्राव का नियंत्रण करता है। नर के वृषण में शुक्राणु जनन एवं मादा के अण्डाशय में फॉलिकल की वृद्धि का नियंत्रण करता है।कॉर्पस ल्यूटियम का निर्माण, वृषण से एस्ट्रोजेन एवं अण्डाशय से प्रोस्टेजन के स्राव हेतु अंतराल कोशिकाओं का उद्दीपन शरीर में जल संतुलन अर्थात वृक्क द्वारा मूत्र की मात्रा का नियंत्रण करता है। |
थायराइड ग्रन्थि | थाइरॉक्सिन हार्मोन | वृद्धि तथा उपापचय की गति को नियंत्रित करता है। |
पैराथायरायड ग्रन्थि | पैराथायरड हार्मोन कैल्शिटोनिन हार्मोन | रक्त में कैल्शियम की कमी होने से यह स्रावित होता है। यह शरीर में कैल्शियम फास्फोरस की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। रक्त में कैल्शियम अधिक होने से यह मुक्त होता है। |
एड्रिनल ग्रन्थि कॉर्टेक्स ग्रन्थि मेडुला ग्रन्थि | ग्लूकोर्टिक्वायड हार्मोन मिनरलोकोर्टिक्वायड्स हार्मोन एपीनेफ्रीन हार्मोन नोरएपीनेफ्रीन हार्मोन | कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा उपापचय का नियंत्रण करता है। वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण का पुन: अवशोषण एवं शरीर में जल संतुलन करता है। रक्त दाब को नियंत्रित करता है। रक्त दाब को नियंत्रित करता है। |
अग्नाशय की लैगरहेंस की द्विपिका ग्रन्थि | इंसुलिन हार्मोन ग्लूकागॉन हार्मोन | रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है। रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है। |
अण्डाशय ग्रन्थि | एस्ट्रोजेन हार्मोन प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन रिलैक्सिन हार्मोन | मादा अंग में परिवद्र्धन को नियंत्रित करता है। स्तन वृद्धि, गर्भाशय एवं प्रसव में होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है। प्रसव के समय होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है। |
वृषण ग्रन्थि | टेस्टेरॉन हार्मोन | नर अंग में परिवर्धन एवं यौन आचरण को नियंत्रित करता है। |
जीवों के शरीर में अनेक ग्रंथियाँ होती हैं। ये विशेषतया दो प्रकार की हैं-
कुछ ग्रंथियाँ ऐसी भी हैं जिनमें दोनों प्रकार के स्राव बनते हैं। एक स्राव वाहिनी द्वारा ग्रंथि से बाहर निकलता है और दूसरा वहीं रक्त में अवशोषित हो जाता है।
मानव-शरीर में सबसे अधिक संख्या लसीका ग्रंथियों (Lymbh glands) की है। वे असंख्य हैं और लसीका वाहिनियों (Lymphatics) पर सर्वत्र जहाँ-तहाँ स्थित हैं। अंग के जोड़ों पर तथा उदर के भीतर आमाशय के चारों ओर और वक्ष के मध्यांतराल में भी इनकी बहुत बड़ी संख्या स्थित है। ये वाहिनियों द्वारा परस्पर जुड़ी हुई हैं। वाहिनियों और इन ग्रंथियों का सारे शरीर में रक्तवाहिकाओं के समान एक जाल फैला हुआ है।
ये लसीका ग्रंथियाँ मटर या चने के समान छोटे, लंबोतरे या अंडाकार पिंड होते हैं। इनके एक और पृष्ठ पर हलका गढ़ा सा होता है, जो ग्रंथि का द्वार कहलाता है। इसमें होकर रक्तवाहिकाएँ ग्रंथि में आती हैं और बाहर निकलती भी हैं। ग्रंथि के दूसरी ओर से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका को बाहर ले जाती है और दूसरी अपवाहिनियों के साथ मिलकर जाल बनाती है। ग्रंथि को काटकर सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने से उसमें एक छोटा बाह्य प्रांत दिखाई पड़ता है, जो प्रांतस्थ (कारटेक्स, cortex) कहलाता है। ग्रंथि में आनेवाली वाहिकाएँ इसी प्रांतस्थ में खुलती हैं। ग्रंथि का बीच का भाग अंतस्थ (Medulla) कहलाता है, जो द्वार के पास ग्रंथि के पृष्ठ तक पहुँच जाता है। यहीं से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका और ग्रंथि में उत्पन्न हुए उन लसीका स्त्रावों को ले जाती है जो अंत में मुख्य लसीकावाहिनी द्वारा मध्यशिरा में पहुँच जाते हैं।
यकृत (लीवर) शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि कहलाती है। प्लीहा, अग्न्याशय, अंडग्रंथि, डिंबग्रंथि - इन सबकी ग्रंथियों में ही गणना की जाती है। आमाशय की भित्तियों में बहुसंख्या में स्थित पाचनग्रंथियाँ जठर रस का निर्माण करती हैं। इसी प्रकार सारे क्षुद्रांत की भित्तियों में स्थित असंख्य ग्रंथियाँ भी रसोत्पादन करती हैं, जो आंत्र के भीतर पहुँचकर पाचन में सहायक होता है। कर्णमूल, जिह्वाघर तथा अधोहनु ग्रंथियाँ लालारस बनाती हैं, जिसका मुख्य काम कार्बोहाइड्रेट को पचाकर ग्लूकोज़ या डेक्सट्रोज़ बनाना है। त्वचा भी असंख्य सूक्ष्म ग्रंथियों से परिपूर्ण है, जो स्वेद (पसीना) तथा त्वग्वसा (Sebum) बनाती हैं।
ग्रन्थि का नाम | स्रावित हार्मोन्स का नाम | कार्य |
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पीयूष ग्रन्थि या पिट्यूटरी ग्लैंड | सोमैटोट्रॉपिक हार्मोन थाइरोट्रॉपिक हार्मोन एडिनोकार्टिको ट्रॉपिक हार्मोन फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन एण्डीड्यूरेटिक हार्मोन | कोशिकाओं की वृद्धि का नियंत्रण करता है। थायराइड ग्रन्थि के स्राव का नियंत्रण करता है। एड्रीनल ग्रन्थि के प्रान्तस्थ भाग के स्राव का नियंत्रण करता है। नर के वृषण में शुक्राणु जनन एवं मादा के अण्डाशय में फॉलिकल की वृद्धि का नियंत्रण करता है।कॉर्पस ल्यूटियम का निर्माण, वृषण से एस्ट्रोजेन एवं अण्डाशय से प्रोस्टेजन के स्राव हेतु अंतराल कोशिकाओं का उद्दीपन शरीर में जल संतुलन अर्थात वृक्क द्वारा मूत्र की मात्रा का नियंत्रण करता है। |
थायराइड ग्रन्थि | थाइरॉक्सिन हार्मोन | वृद्धि तथा उपापचय की गति को नियंत्रित करता है। |
पैराथायरायड ग्रन्थि | पैराथायरड हार्मोन कैल्शिटोनिन हार्मोन | रक्त में कैल्शियम की कमी होने से यह स्रावित होता है। यह शरीर में कैल्शियम फास्फोरस की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। रक्त में कैल्शियम अधिक होने से यह मुक्त होता है। |
एड्रिनल ग्रन्थि कॉर्टेक्स ग्रन्थि मेडुला ग्रन्थि | ग्लूकोर्टिक्वायड हार्मोन मिनरलोकोर्टिक्वायड्स हार्मोन एपीनेफ्रीन हार्मोन नोरएपीनेफ्रीन हार्मोन | कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा उपापचय का नियंत्रण करता है। वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण का पुन: अवशोषण एवं शरीर में जल संतुलन करता है। रक्त दाब को नियंत्रित करता है। रक्त दाब को नियंत्रित करता है। |
अग्नाशय की लैगरहेंस की द्विपिका ग्रन्थि | इंसुलिन हार्मोन ग्लूकागॉन हार्मोन | रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है। रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है। |
अण्डाशय ग्रन्थि | एस्ट्रोजेन हार्मोन प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन रिलैक्सिन हार्मोन | मादा अंग में परिवद्र्धन को नियंत्रित करता है। स्तन वृद्धि, गर्भाशय एवं प्रसव में होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है। प्रसव के समय होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है। |
वृषण ग्रन्थि | टेस्टेरॉन हार्मोन | नर अंग में परिवर्धन एवं यौन आचरण को नियंत्रित करता है। |
बाह्य स्त्रावी तंत्र में कौन-कौनसी ग्रन्थियां है उनके नाम बताइए। धन्यवाद
बाह्य स्त्रावी तंत्र में कौन-कौनसी ग्रन्थियां है उनके नाम बताइए।
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