अंत स्रावी ग्रंथि
अंत:स्रावी तंत्र छोटे अंगों की एक एकीकृत प्रणाली है जिससे बाह्यकोशीय संकेतन अणुओं हार्मोन का स्राव होता है। अंत:स्रावी तंत्र शरीर के चयापचय, विकास, यौवन, ऊतक क्रियाएं और चित्त (मूड) के लिए उत्तरदायी है।
अनुक्रम
1 अन्त:श्रावी ग्रन्थियाँ
2 पीयूषिका
3 अधिवृक्क (ऐड्रिनल्स)
4 अवटुका ग्रंथि (थाइरॉयड)
5 उपावटुका (पैराथाइराँयड)
6 प्रजनन ग्रंथियाँ
6.1 अंडग्रंथि
6.2 डिंबग्रंथि
7 लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ
8 थाइमस
9 इन्हें भी देखें
अन्त:श्रावी ग्रन्थियाँ
इन अंतःस्रावी ग्रंथियों को पहले एक-दूसरे से पृथक् समझा जाता था, किंतु अब ज्ञात हुआ है कि ये सब एक-दूसरे से संबद्ध हैं और पीयूषिका ग्रंथि तथा मस्तिष्क का मैलेमस भाग उनका संबंध स्थापित करते हैं। अतः मस्तिष्क ही अंतःस्रावी तंत्र का केंद्र है।
शरीर में निम्नलिखित मुख्य अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हैं: पीयूषिका (पिट्यूटैरी), अधिवृक्क (ऐड्रोनल), अवटुका (थाइरॉइड), उपावटुका (पैराथाइरॉयड), अंडग्रंथि (टेस्टीज), डिंबग्रंथि (ओवैरी), पिनियल, लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ और थाइमस।
पीयूषिका
मनुष्य के शरीर में यह एक मटर के समान ग्रंथि मस्तिष्क के अग्र भाग के नल से एक वृंत (डंठल) सरीखे भाग द्वारा लगी और नीचे को लटकती रहती है। इसमें तीन भाग हैं- अग्रिम, मध्य और पश्च खंडिकाएँ (लोब)। अग्रिम खंडिका में बनने वाले हारमोनों के नाम ये हैं:
(1) बीज-पुटक-उत्तेजक (एफ.एस.एस.),
(2) ल्यूटीनाकरक (एल.एस.),
(3) अधिवृक्क-प्रांतस्था-पोषक (ए.सी.टी.एच.),
(4) अवटुकापोषक (टी.एच.),
(5) वर्धक (शोथ हारमोन)।
मध्यखंडिका मध्यनी (इंटर मिडिल) हारमोन बनाती है। पश्चखंडिका पिट्यूटरीन हारमोन बनाती है। इसमें दो हारमोन होते हैं। एक गर्भाशय का संकोच बढ़ाता है और दूसरे से रक्तवाहिनियाँ संकुचित होती हैं। यदि इस ग्रंथि की क्रिया बढ़ जाती है तो प्रजनन अंगों की अत्यंत वृद्धि होती है और यदि शरीर का वृद्धिकाल समाप्त नहीं हो चुका रहता है तो दीर्घकायता उत्पन्न हो जाती है जिसमें शरीर की अतिवृद्धि होती है। परंतु यदि वृद्धिकाल समाप्त हो चुका रहता है यो पीयूषिका की अतिशय क्रियाशीलता का परिणाम ऐक्रोमेगैली नामक दशा होती है, जिसमें मुख अँगुलियों, कंठ आदि में सूजन आ जाती है।
अग्रिम खंडिका के अर्बुद (ट्यूमर) से कशिंग का रोग उत्पन्न होता है। पीयूषिका के क्रियाह्रास से मैथुनी असमर्थता, शिशुता (इनफैंटाइलिज्म), शरीर में वसा की अतिवृद्धि तथा मूत्रबाहुल्य, ये सब दशाएँ उत्पन्न होती हैं। पूर्व खंडिका की क्रिया के अत्यंत ह्रास से रोगी कृश हो जाता है और शक्ति नष्ट है जाती है। इसे साइमंड का रोग कहते हो
अधिवृक्क (ऐड्रिनल्स)
ये दो त्रिकोणाकार ग्रंथियाँ हैं जो उदर के भीतर दाहिनी ओर या बाएँ वृक्क के ऊपरी गोल सिरे पर मुर्गे के कलगी की भाँति स्थिर रहती हैं। ग्रंथि में दो भाग होते हैं, एक बाहर का भाग, जो बहिस्था (कॉर्टेक्स) कहलाता है और दूसरा इसके भीतर का अंतस्था (मैडुला)। बहिस्था भाग जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। लगभग दो दर्जन रासायनिक पदार्थ (रवेदार स्टिअराइड), इस भाग से पृथक् किए जा चुके हैं। उनमें से कुछ ही शारीरिक क्रियाओं से संबद्ध पाए गए हैं। बहिस्था भाग का विद्युद्विश्लेष्यों (इलेक्ट्रोलाइट्स) के चयापचय और कारबोहाइड्रेट के चयापचय से घनिष्ठ संबंध है। वृक्कों की क्रिया, शारीरिक वृद्धि, सहन शक्ति, रक्तचाप और पेशियों का संकोच, ये सब बहुत कुछ बहिस्था भाग पर निर्भर हैं। इस भाग में जो हारमोन बनते हैं उनमें कार्टिसोन, हाइड्रोकार्टिसोन, प्रेडनीसोन और प्रेडनीसोलोन का प्रयोग चिकित्सा में बहुत किया जाता है। बहुत से रोगों में उनका अद्भुत प्रभाव पाया गया है और रोगियों की जीवनरक्षा हुई है। विशेष बात यह है कि ये हारमोन अंतःस्रावी ग्रंथियों के रोगों के अतिरिक्त कई अन्य रोगों में भी अत्यंत उपयोगी पाए गए हैं। कहा जाता है कि यदि क्षयजन्य मस्तिष्कवरणार्ति (ट्यूबर्क्युलर मेनिन्जाइटिस) की चिकित्सा में अन्य औषधियों के साथ कार्टिसोन का भी प्रयोग किया जाए तो लाभ या रोगमुक्ति निश्चित है।
मध्यस्था भाग जीवन के लिए अनिवार्य नहीं है। उसमें ऐड्रिनैलिन तथा नौर ऐड्रिनैलिन नामक हारमोन बनते हैं।
बहिस्था की अतिक्रिया से पुरुषों में स्त्रीत्व के से लक्षण प्रगट हो जाते हैं। उसकी क्रिया के ह्रास का परिणाम ऐडिसन का रोग होता है जिसमें रक्तदाब का कम हो जाना, दुर्बलता, दस्त आना और त्वचा में रंग के कणों का एकत्र होना विशेष लक्षण होते हैं।
अवटुका ग्रंथि (थाइरॉयड)
यह ग्रंथि गले में श्वासनाल पर टैटुवे से नीचे घोड़े की काठी के समान स्थित है। इसके दोनों खंड नाल के दोनों और रहते हैं और बीच का, उन दोनों को जोड़नेवाला, भाग नाल के सामने रहता है। इस ग्रंथि में थाइराँक्सीन नामक हारमोन बनता है। इसको प्रयोगशालाओं में भी तैयार किया गया है। इसका स्त्राव पीयूषिका के अवटुकापोषक हारमोन द्वारा नियंत्रित रहता है। यह वस्तु मौलिक चयापचय गति (बेसल मेटाबोलिक रेट, बी.एम.आर.), नाड़ीगति तथा रक्तदाब को बढाती है। इस ग्रथिं की अतिक्रिया से मौलिक चयापचय गति तथा नाड़ी की गति बढ जाती है। ह्रदय की धड़कन भी बढ़ जाती है। नेत्र बाहर निकलते हुए से दिखाई पडते हैं। ग्रथिं में रक्त का संचार अधिक हो जाता है। ग्रंथि की क्रिया के कम होने से बालकों में वामनता (क्रेटिनिज्म) की और अधिक आयुवालों में मिक्सोडीमा की दशा उत्पन हो जाती है। वामनता में शरीर की वृद्धि नहीं होती। 15-20 वर्ष का व्यक्ति सात आठ वर्ष का सा दिखाई पड़ता है। बुदिध का विकास भी नहीं होता। पेट आगे को बढा हुआ, मुख खुला हुआ और उससे राल चूती हुई तथा बुदिध मंद रहती है। मिक्सोडीमा में हाथ तथा मुख पर वसा (चर्बी एकत्र हो जाती है, आकृति भारी या मोटी दिखाई देती है। ग्रंथि के सत्व (एक्सट्रैक्ट) खिलाने से ये दशाएँ दूर हो जाती हैं।
उपावटुका (पैराथाइराँयड)
ये चार छोटी-छोटी ग्रंथियाँ होती हैं। अवटुका ग्रंथि के प्रत्येक खंड के पृष्ठ पर ऊपर और नीचे के ध्रुवों के पास एक-एक ग्रंथि स्थित रहती है और उससे उसका निकट संबंध रहता है। इन ग्रंथियों का हारमोन कैल्सियम के चयापचय का नियंत्रण करता है। कैल्सियम के स्वांगीकरण के लिए यह हारमोन आवश्यक है। इसकी प्रतिक्रिया से कैल्सियम, फास्फेट के रूप में, मूत्र द्वारा अधिक मात्रा में निकलने लगता है जिससे अस्थियाँ विकृत हो जाती हैं और औस्टिआइटिस फ़ाइब्रोसा नामक रोग हो जाता है। इसकी क्रिया कम होने पर टेटैनी रोग होता है।
प्रजनन ग्रंथियाँ
प्रजनन ग्रंथियाँ दो हैं, अंडग्रंथि (टेस्टीज़) और डिंबग्रंथि (ओवैरी)। पहली ग्रंथि पुरुष में होती है और दूसरी स्त्री में।
अंडग्रंथि
अंडकोष में दोनों ओर एक-एक ग्रंथि होती है। इस ग्रंथि की मुख्य क्रिया शुक्राणु उत्पन्न करना है जिससे संतानोत्पत्ति हो और वंश की रक्षा हो। ये के साथ एक वाहनी नलिका द्वारा ग्रंथि से बाहर निकलकर और स्त्री के डिंब से मिलकर गर्भोत्पत्ति करते हैं। इस ग्रंथि में एक दूसरा अंतःस्राव बनता है जो टेस्टॉस्टेरोन कहलाता है। यह स्राव सीधा शरीर में व्याप्त हो जाता है, बाहर नहीं आता। यह शुक्राणुओं की उत्पत्ति के लिए आवश्यक है। पुरुष में पुरुषत्व के लक्षण यही उत्पन्न करता है। पुरुष की जननेंद्रियों की वृद्धि इसी पर निर्भर रहती है। पीयूषिका के अग्रखंड में का स्राव इस हारमोन की उत्पत्ति को बढ़ाता है
डिंबग्रंथि
डिंबग्रंथियाँ स्त्रियों के उदर के निचले भाग में, जिसे श्रोणि कहते हैं, होती हैं। प्रत्येक ओर एक ग्रंथि होती है। इनका मुख्य कार्य डिंब उत्पन्न करना है। डिंब और शुक्राणु के संयोग से गर्भ की स्थापना होती है। इसमें से जो अंतःस्राव बनता है वह स्त्रियों में स्त्रीत्व के लक्षण उत्पन्न करता है। स्त्रियों के रजोधर्म का भी यही कारण होता है। किंतु यह क्रिया निश्चित कालांतर से होती है समय आने पर ग्रंथि तथा अन्य जननेंद्रियों के रूप में तथा उनकी क्रिया में भी अंतर आ जाता है।
लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ
अग्न्याशय ग्रंथि में कोशिकाओं के समूह कई स्थानों में पाए जाते हैं। इन समूहों का वर्णन सबसे पहले लैंगरहैंस ने किया था। इसी कारण ये समूह लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ कहलाते हैं। यद्यपि इनकी कोशिकाएँ अग्न्याशय ग्रंथि में स्थित होती हैं तो भी स्वयं ग्रंथि की कोशिकाओं से ये आकार तथा रचना में भिन्न होती हैं। इनके द्वारा उत्पन्न हारमोन इंस्यूलीन कहलाता है जो कारबोहाइड्रेट के उपापचय का नियंत्रण करता है। इस हारमोन की कमी से मधुमेह रोग (डायबिटीज) हो जाता है। अग्नाश्य में तीन प्रकार की कोशिकाएं पायी जाती हैं-
(१) अल्फा कोशिकाएं- इन कोशिकाओं से गलुकेगोन हार्मोन स्रावण होता है जो ग्लाईकोजन को गलुकोज में बदलती हैं। इस होर्मोन की अधिकता से शरीर में ग्लुकोज का स्तर बढ जाता है।
(२) बीटा कोशिकाएं- इन कोशिकाओं से इंसुलीन होर्मोन का स्राव होता है। इसका प्रमुख कार्य ग्लुकोज को ग्लाईकोजन में बदलना है। इंसुलिन की कमी से शरीर में शर्करा का स्तर बढ जाता है जिसे मधुमेह कहते हैं। इसकी अधिकता से शरीर में शर्करा की मात्रा घट जाती है ऐसे व्यक्ति को अधिक मात्रा में शर्करा का सेवन कराया जाता है।
(३) गामा कोशिकाएं - इनसे सोमेटोट्रोपिक हार्मोन का स्राव होता है। अग्नाश्य ग्रंथि से पेप्टीन एंजाईम का स्राव भी होता है जो कार्बोहाईड्रेट के उपापचय का नियंत्रण करता है। अतः अग्नाश्य ग्रंथि को अन्तःस्रावी व बहिस्रावी ग्रथि भी कहते हैं।
इसी प्रकार अंड तथा अग्न्याशय और कुछ अन्य ग्रंथियों में भी अंतः तथा बहिः दोनों प्रकार के स्राव बनते हैं।
थाइमस
यह ग्रंथि वक्ष के अग्र अंतराल में स्थित है। युवावस्था के प्रारंभ तक यह ग्रंथि बढ़ती रहती है। उसके पश्चात् इसका ह्रास होने लगता है। इस ग्रंथि की क्रिया अभी तक नहीं ज्ञात हो सकी है।
काय की मौत हो सकता था
stravi Tantra Nu Karya Suchi
Hunar granthi ka dusra naam kya hai
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।