कोशिका विभाजन के प्रकार
कोशिकाओं का विभाजन निम्नलिखित तीन तरीकों से होता है,जिनमें से प्रत्येक तरीके की अपनी कुछ खास विशेषताएँ होती हैं-
(i) असूत्री (Amitosis ) (ii) समसूत्री (Mitosis) (iii) अर्द्धसूत्री (Meiosis)
असूत्री विभाजन : यह विभाजन जीवाणु,नील हरित शैवाल, यीस्ट, अमीबा, और प्रोटोज़ोआ जैसी अविकसित कोशिकाओं में होता है |इसमें सबसे पहले कोशिका का केंद्रक विभाजित होता और उसके बाद कोशिका द्रव्य का विभाजन होता है और अंततः दो नयी संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है |
समसूत्री विभाजन: इस कोशिका विभाजन को ‘कायिक कोशिका विभाजन’ (Somatic cell division) भी कहा जाता है क्योंकि यह विभाजन कायिक कोशिकाओं में होता है और दो एकसमान कोशिकाओं का निर्माण होता है | समसूत्री विभाजन में हालाँकि कोशिका का विभाजन होता है लेकिन गुणसूत्रों की संख्या समान बनी रहती है | जन्तु कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन को सबसे पहले वाल्थर फ्लेमिंग ने 1879 ई. में देखा था और उन्होनें ने ही इसे ‘समसूत्री (Mitosis)’ नाम दिया था | समसूत्री विभाजन एक सतत प्रक्रिया है जिसे निम्नलिखित पाँच चरणों में बाँटा जाता है:
1. प्रोफेज (Prophase): समसूत्री विभाजन का प्रथम चरण
2. मेटाफेज (Metaphase): समसूत्री विभाजन का द्वितीय चरण
3.एनाफेज(Anaphase): समसूत्री विभाजन का तृतीय चरण
4.टीलोफेज (Telophase): समसूत्री विभाजन का चतुर्थ चरण
5.साइटोकाइनेसिस (Cytokinesis): समसूत्री विभाजन का चौथा चरण
प्रोफेजः
• सभी जन्तु कोशिकाओं और कुछ पादपों (कवक व कुछ शैवाल) की कोशिकाओं में पाया जाता है
• तारककेंद्रक (Centriole) खुद की प्रतिलिपि तैयार करता है और दो नए तारककेंद्रों (Centrioles/Centrosomes) में बंट जाता है, जो कोशिका (ध्रुवों) के विपरीत किनारों की तरफ चले जाते हैं।
• स्पिंडल फाइबर या फाइबरों की श्रृंखला प्रत्येक तारककेंद्र के आसपास के क्षेत्र से निकलती है और नाभिक (Nucleus) की तरफ बढ़ती है।
• कवक और कुछ शैवाल को छोड़ दें तो स्पिंडल फाइबर बिना तारककेंद्र की उपस्थिति के विकसित होता है।
• जिन गुणसूत्रों की प्रतिलिपि बन चुकी है, वे छोटे और मोटे हो जाते हैं।
• क्रोमैटिड प्रत्येक गुणसूत्र के प्रतिलिपि का आधा होता है जो सेंट्रोमियर (Centromere) से एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
• बाद के प्रोफेज चरण में नाभिक और नाभिकीय झिल्ली विखंडित होने लगती है।
मेटाफेजः
• गुणसूत्र के जोड़े खुद को इस प्रकार संरेखित करते हैं कि कोशिका का केंद्र और प्रत्येक सेंट्रोमियर प्रत्येक ध्रुव से एक स्पिंडल फाइबर से जुड़ जाए।
• सेंट्रोमियर विभाजित होता है और अलग किए गए क्रोमैटिड स्वतंत्र संतति गुणसूत्र बन जाते हैं।
एनाफेजः
• स्पिंडल फाइबर छोटे होने लगते हैं।
• ये सहयोगी क्रोमैटिड्स पर बल डालते हैं, जो उन्हें एक दूसरे से अलग खींचता है।
• स्पिंडल फाइबर लगातार छोटा होता जाता है, क्रोमैटिड्स को विपरीत ध्रुवों पर खींचता जाता है।
• यह प्रत्येक संतति कोशिका में गुणसूत्रों के एकसमान सेट का पाया जाना सुनिश्चित करता है।
टीलोफेजः
• गुणसूत्र पतला हो जाता है।
• नाभकीय आवरण बनता है, यानि प्रत्येक नये गुणसूत्र समूह के चारों तरफ नाभिकीय झिल्ली बन जाती है।
• संतति गुणसूत्र किनारों पर पहुंचते हैं।
• स्पिंडल फाइबर पूरी तरह से समाप्त हो जाता है।
साइटोकाइनेसिसः
• नाभिक के विभाजन के बाद, कोशिका द्रव्य विभाजित होना शुरु हो जाता है।
• मूल वृहद कोशिका दो छोटी एकसमान कोशिकाओं में बंट जाती है और प्रत्येक संतति कोशिका भोजन ग्रहण करती है, विकसित होती है तथा विभजित हो जाती है औऱ यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
• संतति कोशिकाओं के संचरण द्वारा यह चयापचय (Metabolism) की निरंतरता को बनाए रखता है।
• यह घाव को भरने, क्षतिग्रस्त हिस्सों को फिर से बनाने (जैसे-छिपकली की पूंछ), कोशिकाओं के प्रतिस्थापन (त्वचा की सतह) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | लेकिन यदि यह प्रक्रिया अनियंत्रित हो गई तो यह ट्यूमर या कैंसर वृद्धि का कारण बन सकती है।
* समसूत्री विभाजन में, यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि दो संतति कोशिकाओं में समान संख्या में गुणसूत्र हों और इसलिए इनमें जनक कोशिका के समान गुण ही पाए जाते हैं।
अर्द्धसूत्री विभाजन:
यह विशेष प्रकार का कोशिका विभाजन है, जो जीवों की जनन कोशिकाओं में होता है और इस प्रकार युग्मक (Gametes) (यौन कोशिकाएं) बनते हैं। इसमें क्रमिक रूप से दो कोशिका विभाजन होते हैं, जो समसूत्री के समान ही होते हैं लेकिन इसमें गुणसूत्र की प्रतिलिपि सिर्फ एक बार ही बनती है। इसलिए, आमतौर पर युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या कायिक कोशिकाओँ की तुलना में आधी होती है। इसके दो उप-चरण होते हैं– अर्द्धसूत्री विभाजन-I और अर्द्धसूत्री विभाजन-II
• अर्द्धसूत्री विभाजन-I: इसे चार उप-चरणों में बांटा जा सकता हैः प्रोफेज-I, मेटाफेज-I, एनाफेज-I और टीलोफेज-I
• अर्द्धसूत्री विभाजन-II: इसे भी चार उप-चरणों में बांटा जा सकता हैः प्रोफेज-II, मेटाफेज-II, एनाफेज-II और टीलोफेज-II
अर्द्धसूत्री विभाजन-I
प्रोफेज-I: अर्द्धसूत्री विभाजन की ज्यादातर महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं प्रोफेज-I के दौरान होती हैं–
• गुणसूत्र सघन होते हैं और दिखाई देने लगते हैं।
• तारककेंद्र बनते हैं और ध्रुवों की तरफ बढ़ने लगते हैं।
• नाभिकीय झिल्ली समाप्त होने लगती है।
• सजातीय (Homologous) गुणसूत्र युग्मित होकर टेट्राड (Tetrad) बनाते हैं।
• प्रत्येक टेट्राड में चार क्रोमैटिड्स होते हैं।
• क्रॉसिंग ओवर प्रक्रिया द्वारा सजातीय गुणसूत्रों में आनुवंशिक सामग्री का विनिमय होगा, जोकि चार अनोखे क्रोमैटिड बनाकर आनुवंशिक विविधता में वृद्धि करता है।
मेटाफेज-I
• तारककेंद्र से सूक्ष्मनलिकाएं (Microtubules) विकसित होंगी और सेंट्रोमियर से जुड़ जाएंगी, जहां टेट्राड कोशिका के मध्य रेखा पर उससे मिलेगा।
एनाफेज-I
• सेंट्रोमियर विखंडित हो जाएगा, साइटोकाइनेसिस शुरु होगा और सजातीय गुणसूत्र अलग हो जाएंगे लेकिन सहयोगी क्

कोशिका विज्ञान
कोशिका विभाजन – असुत्री, समसुत्री, तथा अर्धसुत्री (Cell Division-Amitosis, Mitosis and Meiosis)
कोशिका विभाजनः- कोशिका विभाजन वह क्रिया हैं, जिसके द्वारा जनक कोशिका(Parent cell) से पुत्री कोशिकाओं (Daughter cells) का निर्माण होता है, उसे कोशिका विभाजन (Cell Division) कहते हैं।
सभी कोशिकाओं में विभाजन की प्रक्रिया पाई जाती हैं परन्तु जन्तुओं की परिपक्व लाल रक्त कणिकाओं(RBC), तंत्रिका कोशिकाओं, रेखित कोशिकाओं तथा नर एवं मादा युग्मको में एक बार विभाजन होने के बाद दुबारा विभाजन नहीं होता है।
कोशिका विभाजन तीन प्रकार का होता हैं:-
असूत्री विभाजन
समसूत्री विभाजन
अर्द्धसूत्री विभाजन
Koshika bhibhajan ke samay spast Kiya dikhayi deta h
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