हवाई अड्डा पर निबंध
वह स्थान जहाँ वायुयान उतरते हैं और जहाँ से प्रस्थान करते हैं, हवाई अड़ा कहलाता है । यहीं से यात्री अपनी हवाई यात्रा शुरू और समाप्त करते हैं ।
जिन मार्गों से वायुयान उडान भरते हैं, वे हवाई पट्टी कहलाते हैं । हवाई अड्डा और वायुयान देखने की सभी को इजाजत नहीं होती । हवाई अड्डे को बाहर से देखने के लिए टिकट लेनी पडती है । अन्दर जाकर हवाई पट्टी और वायुयान देखने की पहले से इजाजत लेनी पडती है, जो बड़ी कठिनाई से मिलती है । हम लोगों ने न हवाई अड्डा देखा था और न वायुयान । हम सभी इन्हें देखने के बड़े उत्सुक थे । हमने अपने प्रिसिपल से अनुरोध किया कि वे हमें हवाई अड्डा दिखा लायें ।
हमारे प्रिंसिपल महोदय ने हवाई अड्डा देखने की इजाजत प्राप्त कर ली । इसके लिए उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्री के पास जाना पड़ा, जो उनके पुराने छात्र रह चुके थे । इजाजत मिलने की खबर पाकर हम लोग बड़े प्रसन्न हुए और नियत दिन का बेसब्री से इंतजार करने लगे ।
हमें 3 दिसम्बर को पालम हवाई अड्डा देखने की इजाजत मिली थी । इस दिन रविवार था । प्रात: दस बजे हमें हवाई अड्डा पहुँचना था । तीस विद्यार्थियों तथा पाँच शिक्षको और प्रिंसिपल महोदय के लिए इजाजत मिली थी ।
प्रिंसिपल महोदय ने स्कूल की बस से हवाई अड्डा जाने का फैसला किया । हम सब नौ बजे प्रात: स्कूल से बस में सवार होकर पौने दस बजे पालम हवाई अड्डा पहुंच गए ।
दूर से ही हवाई अड्डे की विशाल इमारत दीखने लगी । इसकी भव्य इमारत को ही देखकर हम ठगे-से रह गए । इमारत के बाहर सैकडों कारें और टेक्सियों खडी थीं । हमारी बस इमारत से कुछ दूर रुक गई और हम लोग उतर कर लाइन बनाकर उसके गेट नं॰ 4 पर खड़े हो गए । यहीं से हमें अन्दर जाना था ।
प्रिसिपल महोदय ने गेट-कीपर को पास दिखाया और उसने हमें अन्दर जाने की इजाजत दे दी । अन्दर पहुंचकर हम लोग हाल देखने लगे और प्रिंसिपल महोदय मैनेजर के कमरे में गए । मैनेजर ने उनके साथ एक अधिकारी को कर दिया, जो बाहर आकर हमें हवाई अड्डा दिखाने लगा ।
समूचा हवाई अड्डा एकदम साफ-सुथरा चमक रहा था । उसमें आधुनिक किस्म की कुर्सियाँ लगी थी, जिनमे अनेक देशी-विदेशी यात्री बैठे हुए थे । हाल के भीतर डाकघर, बैंक व खाने-पीने के सामान के स्टाल थे ।
थोड़ी दूर पर हमें एक पट्टी पर यात्रियों का सामान सरकता हुआ दिखाई पड़ा । हमारे गाइड ने हमें बताया कि वह कनवेयर बेल्ट थी ।
जैसे ही किसी यात्री को अपना सामान दीखता वह उठा लेता । जगह-जगह वहाँ क्लोज्ड सर्किट टी॰वी॰ लगे हुए थे, जिनमें हवाई उडानों के आने-जाने का समय दिखाया जा रहा था । एक ओर बहुत-से काउन्टर बने थे । काउन्टरों पर हवाई उडानों के नम्बर व गतव्य स्थान की सूचना की पट्टिकायें लगीं थीं ।
इनके आगे यात्रियो की कतारें लगी थीं । एक-एक करके यात्री काउन्टर पर जाते, अपना टिकट दिखाकर सामान अधिकारियों को सौंप देते । सामान को एक कांटे पर रखकर उनका वजन लेकर एक लेबिल लगा दिया जाता और यात्रियों को बोर्डिंग टिकट व सामान की स्लिप दे दी जाती ।
जब यात्री काउन्टर छोड़ देता और उसका स्थान अगला यात्री ले लेता । हाल देखकर हम लोग ऊपर गए । वह दर्शक-दीर्घा थी । वही बड़े-बड़े पारदर्शक शीशे लगे हुए थे, जहाँ से वायुयान व हवाई पट्टियाँ दिखाई देती थीं । लम्बी-लम्बी मीलों दूर तक कई हवाई पट्टियाँ हमने देखीं ।
दूर खड़े एक वायुयान पर सीढी लगी हुई थी, जिससे एक-एक करके यात्री चढ़ रहे थे । यही एक जलपान गृह भी दिखा, जिसमें कुछ लोग बैठे चाय पी रहे थे । दर्शक-दीर्घा से उतरकर हम लोग फिर हाल में आ गए । अब हमारे गाइड ने एक दरवाजा खुलवाया, जिससे हमने हवाई अड्डे के अन्दर प्रवेश किया ।
यही हमें कुछ दूरी पर बड़े-बड़े टीन से ढके कई शेड़ दिखे । गाइड ने हमें बताया कि वे हैंगर कहलाते हैं, जिनमे वायुयान खड़े होते हैं । वे एक प्रकार से वायुयान के गैरेज थे । एक हवाई पट्टी पर दूर हमें वायुयान खडा दिखा ।
उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में इण्डियन एयरलाइन्स लिखा हुआ था और कुछ साकेतिक अंक व अक्षर थे । उसमें सीढ़ी लगी हुई थी । गाइड ने हमें बताया कि वह एक बड़ा विमान है, जिसे एयर बस कहते हैं । वे हमें वही वायुयान दिखाने ले जा रहे थे ।
बाहर से ही वायुयान बड़ा अद्भुत दिख रहा था । गाइड ने हमे बताया कि उस वायुयान में 280 व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं । भीतर जाकर वायुयान के दोनों ओर गोल-गोल कांच लगे थे, जिनसे बाहर का दृश्य दिखाई देता था । एक लाइन में आठ सीटें थीं । वायुयान में रेल के एयरकण्डीशन्ड चेयर का जैसा दृश्य था । उसमें कुछ कर्मचारी सफाई कर रहे थे व कुछ खिड़कियों, दरवाजों आदि की जांच मे लगे थे ।
मैं एक सीट पर बैठ गया । जैसे ही मैंने बैठकर पैर फैलाये सीट आगे को खिसक गई और मुझे आराम कुर्सी सा आनन्द आया । बड़ी मुलायम फोम की सीट थी । सीट से एक बेल्ट बंधी हुई थी । गाइड ने बताया कि वायुयान के उड़ान भरते समय तथा उतरते समय यात्रियों को कमर से यह पट्टी बांधनी पड़ती है ।
आगे बढ़ने पर सामने से वायुयान बन्द था । उसमे एक दरवाजा लगा था । गाइड ने बताया कि वह कॉकपिट था, जिसमें पाइलट व नेवीगेटर आदि बैठते हें । हमें उसके अंदर नहीं जाने दिया गया । यान में एक छोटा रसोईघर तथा भण्डारगृह व दो शौचालय भी थे । लगभग आधा घटा हम वायुयान के भीतर रहे ।
अब हम वायुयान से उतर कर वापस हाल में आ गए । वही एक स्टाल पर हमने चाय पी । कागज के कपो हमे चाय दी गई । वही चाय की कीमत दो रुपये प्रति कप थी । इतनी महंगी चाय देखकर हमे बडा आश्चर्य हुआ । चाय पीकर हम हॉल के बाहर आकर अपनी बस में बैठ गए ।
हवाई अड्डा और वायुयान देखकर हम सब बड़े प्रसन्न थे । रास्ते भर हम लोग उसी की चर्चा करते हुए प्रसन्न मन 2कूल लौट आए और प्रिंसिपल तथा अध्यापकों को धन्यवाद देकर अपने-अपने घर लौटे गए ।
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