भोजन के कार्य
भोजन के कार्य (Functions of Food)
भोजन के कार्यों को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जा सकता है -
(1) भोजन का शारीरिक कार्य
(2) भोजन का मानसिक कार्य
(3) भोजन का सामाजिक कार्य
(1) भोजन का शारीरिक कार्य (Physiological function) - भोजन के इस कार्य को आगे तीन भागों में बांटा जा सकता है, जो कि निम्नलिखित हैं-
(क) ऊर्जा प्रदान करना,
(ख) शारीरिक तन्तुओं का निर्माण करना,
(ग) बीमारियों से बचाव और शरीर को सुचारु रूप से चलाना।
(क) ऊर्जा देना (Energy giving) - हमारे शरीर को ऊर्जा की लगातार आवश्यकता रहती है। यह ऊर्जा शरीर की आंतरिक क्रियाओं के लिए आवश्यक है, जो कि जीवन को बनाए रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं, जैसे-श्वास क्रिया, रक्त का प्रवाह, दिल की धड़कनें आदि। ये क्रियाएं हमारे शरीर में हर समय होती रहती है और हमें इनका पता भी नहीं लगता। परन्तु इनके लिए ऊर्जा काफी मात्राा में चाहिए होती है। इन आंतरिक क्रियाओं के अतिरिक्त शरीर को बाहय कार्य करने के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है ये क्रियाएं हैं-चलना, दौड़ना, खेलना या फिर अन्य कोर्इ भी शारीरिक कार्य करना। ये क्रियाएं भी हर मनुष्य के दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। इन आंतरिक व बाहय क्रियाओं के अतिरिक्त शरीर को ऊर्जा का कुछ हिस्सा हमारे भोजन को पचाने, उसे अवशोषित करके तन्तुओं तक पहुंचाने व उनके चयापचय के लिए भी चाहिए होता है और इस क्रिया के दौरान मुक्त हुर्इ ऊष्मा हमारे शरीर का तापमान बनाए रखने में सहायक है।
ऊर्जा हमारे शरीर को मुख्यत: भोजन में उपसिथत कार्बोज व वसा से प्राप्त होती है। कार्बोज के अच्छे स्रोत हैं - अनाज, चीनी, गुड़, शहद, आलू इत्यादि। वसा के अच्छे स्रोत हैं - घी, तेल, मेवे आदि। ऊर्जा देने वाले ये सभी खाध-पदार्थ हमारे दैनिक आहार का एक मुख्य हिस्सा है।
(ख) शारीरिक तन्तुओं का निर्माण करना(Body Building)- हम जो भोजन ग्रहण करते हैं, वह हमारे शरीर का एक हिस्सा बन जाता है। अत: भोजन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है-शारीरिक तन्तुओं का निर्माण करना। एक नवजात शिशु जिसका कि शारीरिक वजन 2ण्7 से 3ण्7 किलो होता है अपने वयस्क होने पर 55 से 70 किलो होने की क्षमता रखता है, यदि वह जन्म से वयस्क तक सही प्रकार का भोजन उचित मात्राा में ग्रहण करता रहे। वयस्क होने के पश्चात भी प्रतिदिन ग्रहण किया गया भोजन हमारे शरीर के ढांचे को बनाए रखने में सहायता करता है। और शरीर में दिन-प्रतिदिन टूटने वाले तन्तुओं की मरम्मत करता है। नए तन्तुओं का निर्माण बढ़ते हुए बच्चों और गर्भावस्था में तो विशेष महत्त्व रखता है। अत: इन अवस्थाओं में तन्तु निर्माण के लिए आवश्यक पौषिटक तत्त्व अधिक मात्राा में चाहिए होते हैं। इन शारीरिक निर्माण की अवस्थाओं के अतिरिक्त भी हमारे शरीर में हर आयु में पुराने तन्तु टूटते रहते हैं और उनके स्थान पर नए तन्तु बनते रहते हैं। अत: जीवन की किसी भी अवस्था में शारीरिक निर्माण के लिए आवश्यक पौषिटक तत्त्वों की आवश्यकता बनी रहती है।
शारीरिक निर्माण के इस कार्य के लिए मुख्य पौषिटक-तत्त्व हैं - प्रोटीन, खनिज-लवण और जल। प्रोटीन हमें मुख्यत: दूध व दूध से बने पदार्थ, मांस, मछली, अण्डा, दालें, मेवे, सोयाबीन आदि से मिलती है। खनिज-लवण हमें इन खाध पदाथो± के अतिरिक्त फल व सबिजयों से भी मिलते हैं।
(ग) बीमारियों से बचाव व शरीर को सुचारु रूप से चलाना (Regulatory and Protective Function) - भोजन का तीसरा शारीरिक कार्य है, शरीर की क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाना और शरीर को बीमारियों से बचाव करना। शरीर की विभिन्न क्रियाएं जैसे - दिल का धड़कना, शारीरिक तापमान.
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