विजयनगर साम्राज्य की सामाजिक स्थिति
विदेशी यात्रियों के विवरणों, अभिलेखों तथा साहित्य में विजयनगर-साम्राज्य के लोगों के सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं के संकेत प्रचुर मात्रा में मिलते हैं, जिनमें हम यहाँ केवल अधिक महत्वपूर्ण पहलुओं का अध्ययन कर सकते हैं।
स्त्रियों का सामान्यत: समाज में ऊँचा स्थान था तथा देश के राजनैतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक जीवन में उनके सक्रिय भाग लेने के दृष्टान्त दुष्प्राप्त नहीं हैं। कुश्ती लड़ने, तलवार एवं ढाल चलाने तथा संगीत एवं अन्य ललित कलाओं में प्रशिक्षित होने के अतिरिक्त कम-से-कम कुछ स्त्रियों को अच्छी साहित्यिक शिक्षा दी जाती थी। नूनिज लिखता है- उसके (विजयनगर के राजा के) पास मल्ल युद्ध करने वाली, ज्योतिष-विद्या जानने वाली एवं भविष्यवाणी करने वाली स्त्रियाँ भी हैं। उसके पास ऐसी स्त्रियाँ हैं, जो फाटकों के अन्दर किये गये खचों का पूरा हिसाब लिखती हैं। अन्य स्त्रियाँ भी हैं, जिनका कर्तव्य है राज्य के कार्यों को लिखना तथा अपनी पुस्तकों की बाहरी लेखकों की पुस्तकों से तुलना करना। उसके पास संगीत के लिएं भी स्त्रियाँ है, जो वाद्य बजाती तथा गाती हैं। राजा की पत्नियाँ तक संगीत में दक्ष हैं। ......कहा जाता है कि उसके पास न्यायाधीश एवं नाजिर हैं और पहरेदार भी हैं, जो हर रात राजमहल में पहरा देते हैं तथा ये स्त्रियाँ हैं। पत्नियों की अनेकता विशेष रूप से धनी वगों में प्रचलित प्रथा थी। बाल-विवाह सामान्य रीति थी। सामाजिक जीवन में सम्भ्रान्त लोगों में अत्यधिक दहेज ऐठने की कुप्रथा उग्र रूप में प्रचलित थी। विभिन्न सम्प्रदायों में झगड़ों को सुलझाने के लिए कभी-कभी राज्य सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप किया करता था। सती-प्रथा विजयनगर में बहुत प्रचलित थी तथा ब्राह्मण स्वच्छन्दता से इसके लिए अनुमति देते थे।
शासकों से उच्च सम्मान पाने के कारण ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण प्रभाव केवल सामाजिक एवं धार्मिक बातों में ही नहीं, बल्कि राज्य के राजनैतिक मामलों में भी था। नूनिज उनका वर्णन- ईमानदार, व्यापार में संलग्न, बहुत चतुर, अत्यंत मेधावी, हिसाब-किताब में परम दक्ष, दुबले-पतले तथा सुगठित, पर कठिन कार्य के अयोग्य व्यक्तियों के रूप में करता है।
भोजन के मामलों में कड़े प्रतिबन्ध नहीं थे। फलों, सब्जियों तथा तेल के अतिरिक्त, साधारण लोग बैलों एवं गायों का, जिनके लिए लोगों में बड़ी श्रद्धा थी, मांस छोड़ कर, सभी प्रकार के मांस खाते थे। पर ब्राह्मण किसी जीवित वस्तु को कभी मारते अथवा खाते नहीं थे। नूनिज विजयनगर के राजाओं के भोजन का विवरण इस प्रकार देता है-
विसनग (विजयनगर) के ये राजा हर प्रकार की वस्तु खाते हैं, पर बैलों अथवा गायों का मांस नहीं। इन्हें वे कभी नहीं मारते क्योंकि वे इनकी पूजा करते हैं। वे भेड़ का मांस, सूअर का मांस, हरिण का मांस, तीतर, खरगोश, पंडुक, बटेरें तथा सब तरह की चिड़ियाँ-यहाँ तक कि गौरैया, चूहे, बिल्लियाँ तथा छिपकलियाँ भी खाते हैं। ये सभी चीजें, विसनग (विजयनगर) शहर के बाजार में बिकती है। हर चीज को जीवित बेचना पड़ता है, ताकि हरेक आदमी यह जान सके कि वह क्या खरीद रहा है। यह बात कम-से-कम आखेट के जानवरों और पक्षियों के साथ है। नदियों से मछलियाँ भी अधिक परिमाण में आती हैं।
डाक्टर स्मिथ लिखते हैं कि यदि पीज एवं नूनिज के विवरण सत्य हों, तो यह राजकुमारों तथा लोगों के लिए एक विचित्र भोजन-तालिका थी, जो कृष्णदेवराय एवं अच्युत राय के समय में कट्टर हिन्दू थे तथा विष्णु के कुछ रूपों के प्रति विशेष भक्ति रखते थे। अधिक सम्भावना यह है कि चूहे, बिल्लियाँ तथा छिपकलियाँ समाज के निम्न वर्ग के लोग खाते थे, जो विजयनगर के जन-समाज के अनार्य तत्त्व थे।
विदेशी यात्री राज्य में बहुत से बलिदानों का वर्णन करते हैं। पीज के लेखानुसार राजा चौबीस भैसों और डेढ़ सौ भेड़ों का बलिदान होते देखा करता था, जिसमें एक बड़े हँसुए से एक ही बार में जानवर का सिर काट लिया जाता था। प्रसिद्ध नवरात्रि पर्व के अन्तिम दिन अढ़ाई सौ भैसों तथा साढ़े चार हजार भेड़ों की बलि चढ़ाई जाती थी।
विजयनगर की सामाजिक संरचना की तीन प्रकार की विशेषताएँ थी-
1. दक्षिण भारत के ब्राह्मणो की धर्म निरपेक्ष भूमिका- दक्षिण भारत के ब्राह्मण महत्त्वपूर्ण राजनैतिक पदों को सुशोभित करते थे। वे मंत्री, सेनानायक, दुर्ग रक्षक आदि पदों पर नियुक्त होते थे।
2. निचले सामाजिक समूहों में दोहरा विभाजन- निचले सामाजिक समूह दायाँ हाथ और बाएँ हाथ में विभाजित थे। दाएँ हाथ से जुड़ी हुई जातियाँ वैष्णव होती थी और बाएँ हाथ से जुड़ी हुई जातियाँ शैव होती थी। दाएँ हाथ से जुड़ी हुई जातियाँ कृषि उत्पादन तथा कृषि उत्पादों एवं स्थानीय व्यापार में संलग्न थीं जबकि बाएँ हाथ से जुड़ी जातियाँ गैर कृषि उत्पादन, व्यापार तथा शिल्प से संबद्ध थी।
3. समाज का क्षेत्रीय खंडीकरणः समाज के क्षेत्रीय खडीकरण से तात्पर्य समाज का प्राकृतिक उपक्षेत्रों में विभाजन अर्थात् एक क्षेत्र में निवास करने वाली जाति दूसरे क्षेत्र के उसी जाति से रक्त संबंध नहीं जोड़ पाती थी और इसी का स्वाभाविक परिणाम था कि दक्षिण में भाई-बहन और मामा-भांजी में वैवाहिक संबंध वर्जित थे। सुनारों, लोहारों एवं बढ़ईयों की हैसियत समाज में ऊँची थी, किन्तु जुलाहों एवं कुम्हारों का स्थान नीचा था।
श्रीरंग के शासन-काल में 1632 ई. के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने कुछ ग्रामों के निवासियों को आदेश दिया कि दस्तकार समुदायों में बढ़ई, लोहार और सुनार के साथ नहीं किया जाए और इसका उल्लंघन करने वालों पर 12 पण जुर्माना लाद दिया गया। तेलियों, कलालों और चमारों की हैसियत समाज में नीची थी। ब्राह्मण जाति सर्वप्रमुख जाति थी। क्षत्रियों के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं होती। मध्य वर्गों में शेट्ठी या चेट्टी नामक एक बड़े समूह का उल्लेख मिलता है। चेट्टियों के ही समतुल्य व्यापार करने वाले तथा दस्तकार वर्ग के लोग थे उन्हें वीरपंचाल कहा जाता था। इसके अतिरिक्त विप्र्विनोदन नामक एक जातीय श्रेणी थी, इसमें लोहार, स्वर्णकार और दस्तकार शामिल थे। कैकोल्लार (जुलाहे), कम्बलतर, शास्त्र्वाहक और गड़ेरिया नाइ और रेडी कुछ क्षेत्र में महत्वपूर्ण समुदाय थे। इस काल में उत्तर भारत के बहुत सारे लोग दक्षिण भारत में बस गए थे। उन्हें बदव कहा जाता था। दक्षिण भारत के व्यापार को उन्होंने अपनाना शुरू किया। इसने एक प्रकार के सामाजिक विद्वेष को जन्म दिया।
कैकोल्लार (जुलाहे) मंदिरों की परिसीमा में भी रहते थे और मंदिर के प्रशासन एवं स्थानीय करारोपण में उनका बहुत बड़ा हाथ था। दूसरी तरफ डोम, जोगी और मछुआरों की सामाजिक स्थिति हेय थी। विजयनगर में दास प्रथा प्रचलित थी और दासों की खरीद बिक्री को बेसबग कहा जाता था।
स्त्रियो की स्थिति- स्त्रियो की स्थिति एक से अच्छी और बुरी दोनों थी। किन्तु कुल मिलाकर उनकी स्थिति निम्न ही थी। नूनिज के अनुसार, राजप्रसाद में रहने वाली महिलाओं में अनेक ज्योतिष, भविष्य वक्ता, संगीत और नृत्य में प्रवीण और राज्य की अंग रक्षिकायें भी होती थीं। इसके अतिरिक्त कुछ महिलायें कुश्ती लड़ती थीं और मल्ल युद्ध भी करती थीं।
विजयनगर में देवदासी की प्रथा प्रचलित थी। डोमिंगोपायस देवदासी प्रथा की सूचना देता है। इस काल में सती प्रथा का प्रमाण भी मिलता है। बारबोसा कहता है कि सती प्रथा शासक वर्ग में प्रचलित थी। 1534 ई. के एक अभिलेख में मालगौरा नामक एक महिला के सती होने का प्रमाण मिलता है। विजयनगर काल में वैश्या वृति भी प्रचलित थी। विजयनगर साम्राज्य में बाल-विवाह और दहेज प्रथा का भी प्रचलन था। विधवा व्यवस्था थी। परन्तु विधवा से विवाह करने वाले विवाह-कर से मुक्त कर दिये जाते थे। युद्ध वीरता दिखाने वाले पुरुषों को गंडप्रेद प्रदान किया जाता था जो सम्मान सूचक था। सांप्रदायिक विवादों के मामलों में भी राज्य का हस्तक्षेप होता था। श्रवणवेलगोल से प्राप्त एक अभिलेख में जैन एवं वैष्णव के विवाद में राज्य के हस्तक्षेप की चर्चा है।
विजय नगर का प्रमुख त्योहार कौन सा है
BHarat me kite rajy hai
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।