भारत में गरीबी के आंकड़े 2016
ट्रिकल डाउन थ्योरी यानी अर्थव्यवस्था में पैसा आएगा तो इसका फायदा अपने आप ही गरीबों तक पहुंच जाएगा जैसे सिद्धांत के पैरोकारों के लिए यह एक और आंखें खोलने वाली खबर है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक ताजा रिपोर्ट बता रही है कि बीते कुछ समय के दौरान चीन और भारत ने तेजी से आर्थिक विकास तो किया है लेकिन, इसी दौरान वित्तीय असमानता भी बढ़ी है. दूसरे शब्दों में कहें तो अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी हो रही है. रिपोर्ट में चेताया गया है कि अगर इस स्थिति को संभाला नहीं गया तो आने वाले दिनों में इन दोनों देशों में सामाजिक टकराव बढ़ सकता है. कुछ समय पहले वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में दुनिया की नामचीन कंपनी क्रेडिट सुईस ने भी यही बात कही थी. उसका कहना था कि भारत में अमीर लगातार और भी अमीर होते जा रहे हैं जबकि गरीब और ज्यादा गरीब. स्विटजरलैंड के ज्यूरिख स्थित इस संस्था के मुताबिक भारत की 53 फीसदी दौलत इसकी एक फीसदी सबसे अमीर आबादी के पास है. इसके आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत की 68.6 फीसदी संपत्ति का मालिक इसका पांच फीसदी सबसे अमीर वर्ग है जबकि शीर्ष 10 फीसदी अमीर वर्ग के लिए यह आंकड़ा 76.3 फीसदी है. इसका दूसरा मतलब यह है कि बाकी 90 फीसदी लोगों की जद्दोजहद 23.7 फीसदी हिस्से के लिए है. क्रेडिट सुइस के मुताबिक इनमें भी भारत की सबसे गरीब आबादी सिर्फ 4.1 फीसदी संपत्ति की हिस्सेदार है. इस दौरान अपना हाथ गरीबों के साथ बताने वालों और सबका साथ सबका विकास कहने वाली पार्टियों की सरकारें रहीं. लेकिन गरीब के और गरीब होने की प्रक्रिया पर कभी ब्रेक नहीं लगा. उधर, सबसे अमीर लोगों के लिए हालात लगातार बेहतर होते रहे हैं. क्रेडिट सुईस के आंकड़े बताते हैं कि साल 2000 में इन एक फीसदी लोगों के पास देश की सिर्फ 36.8 फीसदी संपत्ति थी. जबकि शीर्ष के 10 फीसदी अमीरों के लिए यह आंकड़ा 65.9 फीसदी था. तब से इन धनकुबेरों की जेब लगातार और भरती गई है. दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान अपना हाथ गरीबों के साथ बताने वालों और सबका साथ सबका विकास कहने वाली पार्टियों की सरकारें रहीं. एक सरकार तो पांच साल वाम दलों के सहारे ही चली थी जिन्हें सर्वहारा का सहारा कहा जाता है. लेकिन गरीब के और गरीब होने की प्रक्रिया पर कभी ब्रेक नहीं लगा. देश की कुल संपत्ति में सबसे अमीर एक फीसदी लोगों का हिस्सा बढ़ते-बढ़ते अब 50 फीसदी से ऊपर पहुंच गया है. आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि दौलत के मामले में सबसे ऊपर बैठे एक फीसदी अपने से नीचे वाले नौ फीसदी लोगों के हिस्से में भी सेंध लगा रहे हैं. उधर, 2010 से 2015 के दौरान देश की गरीब आबादी के हिस्से के संसाधन 5.3 फीसदी से घटकर 4.1 फीसदी रह गए. क्रेडिट सुईस के मुताबिक बीते 15 साल के दौरान देश की दौलत में करीब 2.28 खरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है. इस बढ़ोतरी का 61 फीसदी हिस्सा सबसे अमीर एक फीसदी आबादी की झोली में गया है जबकि शीर्ष दस फीसदी संपन्न वर्ग के लिए यह आंकड़ा 81 फीदी है. साफ है कि बाकी 90 फीसदी को जूठन मिली है. अमीर-गरीब के बीच की खाई के मामले में भारत अमेरिका से भी आगे है जहां के एक फीसदी सबसे संपन्न वर्ग के पास देश की 37.3 फीसदी दौलत है. इस मामले में भारत अमेरिका से भी आगे है जहां के एक फीसदी सबसे संपन्न वर्ग के पास देश की 37.3 फीसदी दौलत है. हालांकि रूस को पीछे छोड़ने के लिए उसे अभी लंबा सफर तय करना है जिसके एक फीसदी अमीरों के लिए यह आंकड़ा 70.3 फीसदी है. क्रेडिस सुईस की ही एक और रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में 95 फीसदी लोगों की संपत्ति पांच लाख तीस हज़ार रुपए से कम है जबकि एक लाख डॉलर यानी लगभग 62 लाख से अधिक संपत्ति वालों की संख्या कुल आबादी की सिर्फ 0.3 प्रतिशत है. भारत में गरीबी को अब भी एक बड़ी समस्या बताते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया था, ‘भारत में धन दौलत तेज़ी से बढ़ रही है, भारत में अमीरों और मध्यम वर्ग की संख्या भी बढ़ती जा रही है लेकिन इस विकास में हर कोई हिस्सेदार नहीं है.’ ट्रिकल डाउन थ्योरी कहती है कि अमीर वर्ग का ख्याल रखने वाली नीतियां बनाने से अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी और इसका फायदा सबको होगा जिनमें गरीब भी शामिल हैं. लेकिन कुछ समय पहले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक शोध करवाया था जिसका निष्कर्ष यह था कि यह थ्योरी सही नहीं है. यह शोध 150 देशों की अर्थव्यवस्था के अध्ययन पर आधारित था. इसमें कहा गया था कि लोगों की आय के बीच बड़ा फर्क देश की तरक्की में रुकावट डालता है क्योंकि गरीब स्वास्थ्य और शिक्षा पर होने वाला खर्च नहीं उठा सकता और आखिर में यह स्थिति पूरे समाज के लिए ही नुकसानदेह होती है.
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