जैव-चक्रीय आवर्तन
यह कितनी रोचक घटना है की दिन में हम पूरी तरह सतर्क रहते है किन्तु रात्रि होते ही हम शिथिल होने लगते है, हमे नींद आने लगती है और हम बिस्तर पर जाना चाहते है | एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि हम यह आलस्य रात्रि को ही क्यों करते है दिन में क्यों नहीं ? अनवरत अध्ध्यनों से पता चला है कि हमारे मष्तिस्क के अंदर एक समय नियंत्रक जैविक घड़ी है जो 'सिम्फोनी' आर्क्रेस्ट्रा के परिचालक कि तरह कार्य करती है | जैसे आर्केस्ट्रा का परिचालक सभी वाद्य उपकरणों को एक रिदम में अभिनीत करवाता है उसी प्रकार शरीर कि जैविक घडी भी हमारे शरीर के सभी विभिन्न कार्यों को समन्वित रखती है और एक रिदम में चलाती है | सभी प्रकार के जीवो कि यह प्रतिक्रिया, सौर चक्र के अनुसार चलती है जिसे जैव-चक्रीय आवर्तन (circadian rhythm) कहा जाता है |
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पृथ्वी पर जीवन हमारे ग्रह के आवर्तन के लिए अनुकूलित है | मनुष्यों सहित अन्य जीवों कि आंतरिक जैविक घड़ी उन्हें दिन के नियमित रिदम के लिए अनुकूलित करती है | लेकिन यह घडी वास्तव में कैसे काम करती है तथा जैव-चक्रीय आवर्तन (circadian rhythm) कैसे नियंत्रित होता है, इसकी आणविक क्रियाविधि कि खोज एवं वर्णन के लिए शरीर -क्रिया विज्ञान या चिकित्सा (physiology or medicine) में 2017 का नोबेल पुरस्कार अमेरिका के वैज्ञानिको जेफरी सी हॉल, माइकल रॉशबेश और माइकल डब्लयू यंग को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया है |
Circadian शब्द का अर्थ है 'पूरा दिन'(24 घंटे) | शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि शरीर की घडी 25 घंटे के चक्र पर चलती है परन्तु पौधों और जंतुओं में इसे अलग अलग चक्रों 12 घंटे के अँधेरे और 12 घंटे के प्रकाश चरण में 24 घंटे के सौर दिन के अनुसार अपने को समायोजित करने के क्षमता है | जीवों में Circadian अवधि अलग अलग , लगभग 23.5 से 24.5 घंटो के बीच की होती है | मनुष्यों में अवधि औसतन 24.2 घंटे की होती है जो थोड़ा सा सौर दिवस से अधिक है | अध्ध्यनों से पता चला है की मनुष्य में लगभग 25 प्रतिशत लोगो की Circadian अवधि 24 घंटे से थोड़ा काम तथा 75 प्रतिशत लोगों की Circadian अवधि 24 घंटे से थोड़ा सा अधिक होती है |
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स्तनधारियों में यह जैविक घडी Supra-Chiasmatic Nucleus (SCN) में स्थित है, जो हाइपोथैलेमस (मस्तिष्क का एक भाग) में कोशिकाओं का एक अलग समूह है | प्रकाश की सूचना रेटिना-हाइपोथैलमिक पथ के माध्यम से रेटिना से SCN के वेंट्रल-पार्श्व क्षेत्र में पहुँचती है | प्रकाश-संवेदी कोशिकाएं जो प्रकाश/अँधेरे की सूचना को आगे बढाती है, बल्कि रेटिनल-गन्ग्लियाटिक कोशिकाओं का एक छोटा सा समूह है जिसमे मेलस्पिन नामक प्रकाश वर्णक पाया जाता है |
एक मॉडल जीव के रूप में फल मक्खियों पर कार्य करते हुए, इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने एक जीन को अलग किया जो सामान्य दैनिक circadian rhythm को नियंत्रित करता है | इन वैज्ञानिको ने दिखाया कि यह जीन रात्रि के दौरान कोशिका में जमा होने वाली प्रोटीन को एनकोड करता है जो फिर दिन के समय अवक्रमित हो जाती है | इसके साथ ही उन्होंने इस मशीनरी के अतिरिक्त प्रोटीन घटको की पहचान की और कोशिका के अंदर स्वसंधारिणीत घडी को नियंत्रित करने वाली तंत्र को स्पष्ट किया | मनुष्यों सहित अन्य बहुकोशिकीय जीवों कि कोशिकाओं में जैविक घड़ियाँ इसी तंत्र पर कार्य करती है |
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अत्यंत परिशुद्धता के साथ हमारी आंतरिक घडी नाटकीय रूप से दिन के विभिन्न चरणों के अनुसार हमारी कार्यकी को अनुकूलित करती है | यह आंतरिक घड़ी, हमारे व्यवहार, हार्मोन का स्तर, नींद, शरीर का तापमान और चयापचय जैसे महत्वपूर्ण कार्यो को नियंत्रित करती है | हमारे बाह्य वातावरण और इस आंतरिक जैविक घड़ी में अस्थायी कुमेल हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है | उदाहरण के लिए, जब हम कई समय अंचलों में यात्रा करते है तो हमें 'जेट अंतराल' का अनुभव होता है | ऐसा पाया गया है कि हमारी जीवन शैली और आंतरिक घड़ी द्वारा निर्धारित रिदम में असंरेखण विभिन्न रोगो के होने का जोखिम उत्पन्न करता है |
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आंतरिक जैविक घड़ी कि परिकल्पना बहुत ही सहज परन्तु सारगर्भित थी | ऐसा देखा गया है कि ज़्यदातर जीव वातावरण में दैनिक परिवर्तनों का पूर्वानुमान और उसके अनुसार अनुकूलन करते है | 18वीं शताब्दी के दौरान खगोल विज्ञानी-जीन जैक्स डी मैरान ने मिमोसा पौधों पर अपने अध्ययन के दौरान पाया कि इस पौधे की पत्तियां दिन के समय सूर्य की और खुलती है और शाम होते ही बंद हो जाती है | यह अध्ययन करने के लिए कि अगर इस पौधे को लगातार अँधेरे में रखा जाये तो इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी, इसे लगातार अँधेरे में रखा | उन्होंने देखा कि निरंतर अँधेरे में दैनिक सूर्य के प्रकाश के निरपेक्ष इस पौधे कि पत्तियों ने पूर्व की भांति ही नियत समय पर खुलना और बंद रखना जारी रखा | इससे निष्कर्ष निकला कि पौधों में सौर प्रकाश चक्र के अतिरिक्त अपनी खुद की जैविक घड़ी होती है | बाद में अन्य शोधकर्ताओं ने पाया की न केवल पौधों, बल्कि जानवरों और मनुष्यों में भी एक आंतरिक जैविक घड़ी होती है जो दिन के उतार चढ़ाव के लिए हमारी कार्यिकी को अनुकूलित करने में मदद करती है | परन्तु यह आंतरिक घड़ी कार्य कैसे करती है, यह अब भी रहस्य था |
1970 के दशक के दौरान सीमर बेनजर और उनके छात्र रोनाल्ड कोनोप्का ने फल मक्खियों में को नियंत्रित करने वाले जीन की पहचान कर उसका 'पीरियड' या हिंदी में 'अवधि' नाम दिया | लेकिन यह जीन circadian rhythm को कैसे प्रभावित कर सकता है, इसका वर्णन नहीं हो पा रहा था | 1984 मेंजेफ़री हॉल एवं माइकल रोजबाश, बोस्टन में ब्रैंडिस विश्विद्यालय में और माइकल यंग, रॉकफेलर विश्विद्यालय, न्यूयोर्क में यह पता लगने के उद्देश्य से कि आंतरिक घड़ी वास्तव में कैसे काम करती है, फल मक्खियों का अध्ययन कर रहे थे | ये वैज्ञानिक 'पीरियड' जीनको को अलग करने में सफल रहे | बाद में इन वैज्ञानिको ने पता लगाया कि 'पीरियड' जीन, P.E.R. नामक प्रोटीन को कोड करता है | यह P.E.R. प्रोटीन रात्रि में कोशिका में संचित और दिन के दौरान अवक्रमित/अपघटित हो जाता है | और यही P.E.R. प्रोटीन 24 घंटों के चक्र से circadian rhythm के साथ तुल्यकालन में होता है | आगे शोधों से पता चला है कि प्रोटीन स्वयं के संश्लेषण को रोक सकता है और इस प्रकार यह निरंतर अपने स्तर को नियंत्रित कर circadian rhythm को विनियमित करता है |
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आंतरिक जैविक घड़ी हमारी जटिल कार्यिकी के कई पहलुओं को प्रभावित करती है | मनुष्यों सहित सभी बहुकोशिकीय जीव circadian rhythm को नियंत्रित करने के लिए एक समान तंत्र का उपयोग करते है | हमारे जीनो का एक बड़ा हिस्सा circadian rhythm द्वारा नियंत्रित किया जाता है और लगातार सावधानीपूर्वक अंशाकन(calibrate) किया हुआ circadian rhythm, हमारी कार्यिकी को दिन के विभिन्न चरणों के अनुसार अनुकूलित करता है | आज या जैविक घड़ी का यह क्षेत्र जीव विज्ञान के एक विशाल और अत्यधिक प्रगतिशील अनुसंधान क्षेत्र के रूप में विकसित हो गया है जिससे हमारा स्वास्थ्य सीधे तौर पर लाभान्वित होगा |
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