1857 की क्रांति के परिणाम
1857 की क्रांति जल्दी ही समाप्त हो गई। क्रांतिकारियों को अधिक सफ़लता हाथ नहीं लगी, परन्तु क्रांति पूर्णतया विफ़ल भी नहीं रही। इस क्रांति का प्रभाव ब्रितानियों व भारतीयों दोनों पर पड़ा। इस क्रांति के निम्न परिणाम देखने में आते हैं:
ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन व नियमों का अंत
ब्रिटिश सरकार ने 2 अगस्त 1858 को कम्पनी के शासन व नियमों का अंत कर दिया, व भारत का शासन ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। यहाँ पर भारत सचिव का एक पद बनाया गया व उसके हाथ में भारत का कार्य भार सौंप दिया। उसके अधीन भारत परिषद का ग़ठन किया गया। यहाँ पर दोहरी शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
हिन्दू मुस्लिम विभाजन
इस क्रांति में हिन्दू व मुस्लिम दोनों वर्गों ने भाग लिया था। ब्रितानी समझ चुके थे कि अगर इनमें एकता रही तो ये उनके लिये खतरा बन सकते हैं, इसीलिये ब्रितानियों ने हिन्दू व मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों के लोगों को आपस में भड़काना शुरू किया व मुसलमानों को समझाया की अगर आपको अपना लाभ चाहिए तो आपको हमारा साथ देना होगा। ब्रितानी अपनी फ़ूट डालोव राज करों की नीति में सफ़ल हुए और उन्होनें दोनों को अलग कर दिया जिसके फलस्वरूप प पाकिस्तान की स्थापना हुई।
भारतीय सेना का पुनर्गठन
ब्रितानी यह समझ गये कि भारतीय सेना उनका विरोध कर सकती है। इसके लिये उन्होंने भारतीय सेना का पुनर्गठन किया और भारतीय सैनिकों की संख्या घटा दी तथा जाति व प्रांत के अनुसार सेनाओं का पुनर्गठन किया ताकि कभी भी इनमें एकता ना रहे। हर रेजिमेंट में ब्रितानी सैनिकों की संख्या भारतीय सैनिकों से ज्यादा रखी गई। तोपखानों पर ब्रितानियों का अधिकार रखा गया।
भारतीय सरकार व ब्रितानियों में मतभेद
1857 की क्रांति के बाद ब्रितानियों व भारतीयों में मतभेद की स्थिति पैदा हो गई। ब्रितानियों ने भारतीयों पर विश्वास करना उचित नहीं समझा। भारतीय भी उनकी कूटनीति व भेदभावपूर्ण नीति से परेशान थे। ब्रितानियों ने हमारी प्रगति के रास्ते बन्द कर दिये। उन्होंने भारतीय बंदियों को मार डाला। जिससे भारतीय उनसे घृणा करने लगे। फलस्वरूप प ब्रितानी भी यहां ठहरना नहीं चाहते थे।
रानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र
इस क्रांति के बाद रानी विक्टोरिया ने भारतीयों को खुश करने के लिये एक घोषणा पत्र जारी किया जिसका उद्धेश्य भारतीय जनता के घावों पर मरहम लगाना था। इस घोषणा पत्र की बातें निम्न थी :
ब्रिटिश सरकार द्वारा कम्पनी के शासन को समाप्त कर दिया जाएगा।
लोगों के धार्मिक विश्वासों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
भारतीय राजाओं के साथ जो भी संधिया हुई हैं उनका पालन किया जाएगा और उनकी छीनी हुई चीजें फ़िर से लौटा दी जाएगी।
भारतीयों के प्रति हमारा व्यवहार ब्रिटिश जनता के समान ही किया जाएगा।
सामन्तों व जागीरदारों को उनके अधिकार फ़िर से दिये जाएँगे।
भारत में फ़िर से शांति की स्थापना की जाएगी।
किसी भी देशी राज्य को ब्रितानी राज्य में नहीं मिलाया जाएगा।
भारतीय नरेशों को गोद लेने का अधिकार फ़िर से दिया जाएगा।
भारतीय राजाओं का सम्मान किया जाएगा।
ब्रितानी शिक्षा का प्रसार
ब्रितानियों ने भारत में ब्रितानी शिक्षा का तेजी से प्रसार किया जिससे भारतीय उनकी संस्कृति की ओर झुकें। इसके लिए कई कॉलेज, स्कूल, व विश्वविद्यालय खोले गये ताकि भारतीय जनता उनके कानून व न्याय पद्धति को अच्छा समझे। भारत में ब्रितानी शिक्षा के प्रसार से भारतीयों को नयी शिक्षा के अवसर मिले। अब भारतीयों को न्यायाधीश का पद भी दिया गया।
अन्य परिणाम
1857 की क्रांति के कुछ परिणाम भारतीयों के हित में थे तो कुछ से उनका अहित भी हुआ, इनका विवरण निम्नानुसार है:
भारत में राष्ट्रीय जागरण तेजी से होने लगा।
कांग्रेस की स्थापना।
1878 में भारतीय संघ की स्थापना।
1935 में भारत को प्रांतीय स्वायत्तता दी गई। ब्रितानी शिक्षा के प्रसार व नये उद्योगों की स्थापना के कारण भारत का आर्थिक विकास हुआ।
मुगलों के शासन का अंत हुआ।
धीरे-धीरे भारत में स्वतंत्रता का उदय हुआ।
भारत में संघीय न्यायपालिका की स्थापना की गई।
विदेशी वस्तुओं के प्रचार के कारण भारत में हस्तशिल्प कला का ह्रास हुआ।
नये उद्योगों के विकास के कारण भारत के छोटे-मोटे घरेलू उद्योग धंधों वाले लोग बेरोजगार हो गये।
4 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया गया।
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ।
क्रांतिकारियों का आजादी का सपना साकार हुआ।