ब्रह्म (Brahm) = Brahma
ब्रह्म संज्ञा पुं॰ [सं॰ ब्रह्मन्]
१. एक मात्र नित्य चेतन सता जो जगत् का कारण हे । सत्, चित्, आनंद स्वरुप तत्व जिसके अतिरिक्त और जो कुछ प्रतीत होता है, सब असत्य़ और मिथ्या है । विशेष— ब्रह्मा जगत् का कारण है, यह ब्रह्म का तटस्थ लक्षण है । ब्रह्म सच्चिदानंद अंखंड़ नित्य निर्गुण अद्बितीय इत्यादि है । यह उसका स्वरुपलक्षण है । जगन् का कारण होने पर भी जैसी कि सांख्य़ की प्रकृति या बैशिषिक ता परमाणु है, उस प्रकार ब्रह्म परिणामी या आरंभक नहीं । वह जगत् का अभिन्न निमित्तोपादान-विवात कराण है, जैस, मकड़ी, जो जाले का निमित्त और उपादान दोनों कहीं जा सकती है । सारंश यह कि जगत् ब्रह्म का परिणाम या विकार नहीं है, । किसी वस्तु का कुछ और हो जाना विकार या परिणाम है । उसका और कुछ प्रतीत होना विवर्त है । जैसे, दूध का दही हो जाना विका र है, रस्सी का साँप प्रतीत होना विवर्त है । यह जगत् ब्रह्म का विवर्त है, अतः मिथ्या या भ्रम रुप है । ब्रह्मा के अतिरिक्त और कुछ सत्य नहीं है । और जो कुछ दिखाई पड़ता है, उसकी पारिमार्थिक सत्ता नहीं है । चैतन्य आत्मवस्तु के अतिरिक्त और किसी वस्तु की सत्ता न स्वागत भेद के रुप में, न सजानीय भेद के रूप में औऱ न विजातीय भेद के रूप में सिद्ध हो सकती है । अतः शुद्ध अद्वैत द्दष्टि में जीवात्मा ब्रह्म का अंश (स्वगत भेद) नहीं है, अपने को परिच्छन्न और मायाविशिष्ट समझना हुआ ब्रह्म ही है । सत् पदार्थ केवल एक ही हो सकता है । दो सत् पदार्थ मानने से दोनों को देश या काल से परिच्छन्न मानना पड़ेगा । नाम और रुप की उत्पत्ति का नाम ही सृष्टि है । नाम और रुप ब्रह्म के अवयव नहीं, क्योंकि वह तीनों प्रकार के भेदों से रहित है । अतः अद्वैत ज्ञान ही सत्य ज्ञान है । द्वैत या नानात्व ज्ञान अज्ञान है, भ्रम है । 'ब्रह्य' का सम्यक् निरुपण करनेवाले आदिग्रंथ उपनिषद् है । उनमें 'नेति' नेति' (यह नहीं, यह नहीं) कहकर ब्रह्य प्रपंचों से परे कहा गया है । 'तत्वमसि' इस वाक्य द्वारा आत्मा और ब्रह्म का अभेद व्यंजित किया गया है । ब्रह्मसंबंधी इस ज्ञान का प्राचीन नाम ब्रह्मविद्या है, जिसका उपदेश उपनिषदों में स्थान स्थान पर है । पीछे ब्रह्मतत्व का व्यवस्थित रुप में प्रतिपादन व्यास द्वारा ब्रह्मसूत्र में हुआ,जो वेदांत दर्शन का आधार हुआ । दे॰ 'वेदांत' ।
२. ईश्वर । परमात्मा
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किसके प्रयासों के कारण ब्रह्म समाज की शाखाएं उत्तर प्रदेश , पंजाब व मद्रास में खोली गयी -
साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना
ब्रह्म समाज की स्थापना क्यों हुई
ब्रह्म समाज का विभाजन
भारतीय ब्रह्म समाज के संस्थापक
Brahm meaning in Gujarati: બ્રાહ્મણ
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Brahm meaning in Marathi: ब्राह्मण
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