मलमास (malmaas) = Malamas
मलमास संज्ञा पुं॰ [सं॰] वह अमांत मास जिसमें संक्रांति न पड़ती हो । इसे अधिक मास भी कहते हैं । विशेष—यों तो साधरण रीति से बारह महीने का वर्ष माना जाता है, पर कभी कभी तेरह महीने का भी भी वर्ष होता है । पर यह बात केवल चांद्र मास में ही होती है, और मास सदा वर्ष में बारह ही होते हैं । चांद्र मास की वृद्धि का हेतु यह है कि दिन रात्रि का मान, जिसे दिनमान कहते हैं, ६० दंड का माना जाता है । पर एक तिथि का मान ५८ दंड का माना जाता है । इसलिये ३० दिन में ३१ तिथियाँ पड़ती हैं । इस हिसाब से चांद्र वर्ष और सामान्य वर्ष में प्रति वर्ष बारह दिन का अंतर पड़ा करता है जो पाँच वर्ष में पूरे दो महीने का अंतर डाल देता है । ऐसे अधिक महीने को मलमास कहते हैं । वह चांद्र मास, जिसमें सूर्य की संक्राति पड़ती है, शुद्ध मास कहलाता है । पर संक्रातिवर्जित मास तीन प्रकार के माने गए हैं जिन्हें भानुलंघित, क्षय और मलमास कहते हैं । भानुलंघित और मलमास वे मास कहलाते है जिनमें सूर्य- संक्राति न पड़े । पर यदि सूर्यसक्रांति शुक्ल प्रतिपदा को पड़ी हो, तो उसे क्षय मास कहते हैं । बारह महीने दो अयनों में बाँटे गए हैं एक वैशाख से कुआर तक, दूसरा कार्तिक से चैत तक । यह मलमास प्रायः फागुन से अगहन तक दस ही महीनों में पड़ता है । शेष दो महीनों में से पूस में तो कभी कभी मलमास पड़ता ही नहीं; और माघ में बहुत ही कम पड़ा करता है । इसका नियम यह है कि यदि दक्षिणायन और उत्तरयण दोनों अयनों में मलमासयुक्त मास पड़ें, तो दक्षिणायन का मास भानुलंघत और उत्तरायण का मास मलमास कहलावेगा । पर यदि एक ही अयन में दो मास मलमास-लक्षण-युक्त हों, तो पहला मलमास और दूसरा भानुलांघा कहलावेगा । पर ऐसे दो उसी वर्ष में पड़ते हैं जिसमें क्षय मास भी पड़ता है । पर कार्तिक, अगहन और पूस के महीने में क्षय मास नहीं होता । विवाहादि शुभ कृत्य जिस प्रकार मलमास में वर्जित हैं, उसी प्रकार भानुलंघित और क्षय मास में भी वर्जित है । पर्या॰—अधिक मास । पुरुषोत्तम । मलिम्लुच । अधिमास । असंक्रांत मास । नपुसंक मास ।
सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या अधिमास या मलमास कहते हैं। सौर-वर्ष का मान ३६५ दिन, १५ घड़ी, २२ पल और ५७ विपल हैं। जबकि
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